शनिवार, फ़रवरी 17, 2007

पायदान # 5 : तेरे बिन मैं यूँ कैसे जिया...

पिछला हफ्ता कार्यालय के दौरों में बीता । नतीजा ये कि इस गीतमाला की गाड़ी वहीं की वहीं रुक गई । अब इससे पहले कि फिर बाहर निकलूँ अपनी गाड़ी को ५ वीं सीढ़ी तक पहुँचा ही देता हूँ। आज का ये गीत यहाँ इसलिए है क्योंकि इसे जिस अंदाज में गाया गया है वो अपनेआप में काबिले तारीफ है ।
'बस एक पल' के इस गीत के असली हीरो आतिफ असलम हैं। स्कूल के दिनों में आतिफ पढ़ाई के बाद अपना सारा समय क्रिकेट के अभ्यास में लगाते थे। उनका ख्वाब था पाकिस्तान की टीम में एक तेज गेंदबाज की हैसियत से दाखिल होना । अपनी लगन से वो कॉलेज टीम में भी आ गए । कॉलेज के जमाने में ही दोस्तों के सामने ये राज खुला कि उनकी आवाज भी उनकी गेंदबाजी की तरह धारदार है । सो फिर क्या था दोस्तों ने उनका नाम एक संगीत प्रतियोगिता में डलवा दिया । फिर तो जो हुआ वो अब इतिहास है। उसके बाद काँलेज की हर संगीत प्रतियोगिता वो जीतते रहे ।
फिर जल , आदत आदि एलबमों की सफलता के बाद वो संगीत से पूरी तरह जुड़ गए । फिर जहर के लोकप्रिय ट्रैक ने उन्हें भारत में भी प्रसिद्धि दिला दी । आतिफ की गायिकी में सबसे खास बात ये है कि ये ऊपर के सुर सहजता से लगा लेते हैं । सईद कादरी ने प्रेम और फिर विरह की भावना को केन्द्र बिन्दु रख कर ये गीत लिखा है और आतिफ ने अपनी आवाज द्वारा उस विरह वेदना को बखूबी उभारा है ।

तेरे बिन मैं यूँ कैसे जिया
कैसे जिया तेरे बिन
लेकर याद तेरी, रातें मेरी कटीं
मुझसे बातें तेरी करती है चाँदनी
तनहा है तुझ बिन रातें मेरी
दिन मेरे दिन के जैसे नहीं
तनहा बदन, तनहा है रुह, नम मेरी आँखें रहें
आजा मेरे अब रूबरू
जीना नहीं बिन तेरे
तेरे बिन ....

कबसे आँखें मेरी, राह में तेरे बिछीं
भूले से ही कहीं, तू मिल जाए कहीं
भूले ना.., मुझसे बातें तेरी
भींगी है हर पल आखें मेरी
क्यूँ साँस लूँ, क्यूँ मैं जियूँ
जीना बुरा सा लगे
क्यूँ हो गया तू बेवफा, मुझको बता दे वजह
तेरे बिन....

मिथुन द्वारा संगीतबद्ध इस गीत को आप यहाँ और यहाँ सुन सकते हैं ।

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4 टिप्पणियाँ:

Udan Tashtari on फ़रवरी 18, 2007 ने कहा…

मैं नहीं कहूँगा कि ज्यादा हो रहा है २० वीं पोस्ट के बाद भी. अच्छे गीतों का चयन किया जा रहा है, जारी रहें यही शुभकामनायें हैं. कृप्या अन्यथा न लें :)

Jitendra Chaudhary on फ़रवरी 18, 2007 ने कहा…

बहुत सुन्दर गीत है, मेरा मनपसन्द।
लगे रहो, मनीष भाई। हम तो इन्तज़ार कर रहे है।

हो सके तो अपने टाप गानो वाले लेखों को पीडीएफ़ पर इबुक के रुप मे भी डाउनलोड करने के लिए उपलब्ध कराओ।

Manish Kumar on फ़रवरी 25, 2007 ने कहा…

समीर भाई ना कह कर आप कह ही देते हैं । सीरियल मेकर...शीशे के घरों में रहने वाले...वैगेरह वैगेरह! आपकी राय का मैं सम्मान करता हूँ । आखिर आपके सरस व्यंग्य बाणों को झेलने का अपना ही आनंद है :)

Manish Kumar on फ़रवरी 25, 2007 ने कहा…

जीतू भाई जानकर खुशी हुई कि ये गीत आपको भी पसंद है । गीतमाला पूर्ण करने पर आपके इस अच्छे सुझाव को अमल में लाने का प्रयास करूँगा ।

 

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