अम्बर की इक पाक सुराही
बादल का इक जाम उठाकर
घूँट चाँदनी पी है हमने
बात कुफ्र की, की है हमने
अम्बर की इक पाक सुराही...
अमृता प्रीतम
पर पहले इस आसान से सवाल का जवाब तो दे दें ! बताइए तो, चाँद से हम सबका पहला परिचय कब का है ?
शायद उन लोरियों से....जो बचपन में माँ हमें निद्रा देवी की गोद में जाने के पहले सुनाया करती थी ।
चंदा मामा दूर के
पूए पकायें भूर के
आप खायें थाली में
मुन्ने को दे प्याली में
तो बचपन के वो हमारे प्यारे से मामा कब जिंदगी की रहगुजर पर चलते चलते हमारे हमसफर बन जाएँगे भला ये कौन जानता था ? इसीलिए तो किसी शायर ने अर्ज किया है कि
ये चाँद भी क्या हसीं सितम ढाता है
बचपन में मामा और जवानी में सनम नजर आता है
क्या आपने कभी चाँद के साथ सफर किया है ?
मैंने तो कई बार किया है....
बस या ट्रेन की खिड़की से बाहर दूर क्षितिज में साथ साथ ही तो चलता रहा है वो
क्या ऐसे में कभी आपका मन नहीं हुआ कि काश ये चाँद धरती पर उतर आता!ऐ चाँद खूबसूरत !
ऐ आसमां के तारे
तुम मेरे संग जमीं पर थोड़ी सी रात गुजारो
कुछ अपनी तुम कहो
कुछ लो मेरी खबर
हो जाए दोस्ती कट जाए ये सफर ...
और ये चाँद अगर नहीं भी उतरा तो क्या हर्ज है बकौल डा० शैल रस्तोगी
उगा जो चाँद
चुपके चुरा लाई
युवती झील।
और यहाँ देखिए हमारी सहयोगी चिट्ठाकार रचना बजाज को कैसे प्रेरित करता है चाँद"हुई रात, अब चाँद फिर से है आया,
तभी मैने अपने मे, अपने को पाया!
उसी ने नये कल का सपना दिखाया,
उसी ने मुझे घट के बढना सिखाया!"
पर यही सफ़र अगर अधजगी रातों और भूखे पेट के साथ गुजरे तो सारा परिपेक्ष्य बदल सा जाता है
माँ ने जिस चाँद सी दुल्हन की दुआ दी थी मुझे
आज की रात वह फ़ुटपाथ से देखा मैंने
रात भर रोटी नज़र आया है वो चाँद मुझे
चाँद की बात हो और उसकी चाँदनी की बात ना हो ऐसा कभी हो सकता है ! नहीं जी नहीं..हरगिज नहीं
जरा सोचिए तो ...
जब सूर्य देव अपना रौद्र रूप धारण कर लेते हैं ....
और अपनी किरणों के वार से हम सभी को झुलसा डालते हैं ....
तो शाम के साथ आई ये चाँदनी ही तो हमें अपनी मित्र सी दिखती है
जिसकी विशाल नर्म बाहों में सिर रखकर किसी अपने की याद बरबस ही आ जाती है
बिखरी हुई नर्म सी चाँदनी
लहरों के घर जा रही रोशनी
लमहा लमहा छू रही हैं सर्द हवायें
तनहा- तनहा लग रहे हैं अपने साये
याद आए कोई...
अरे ये क्या ! याद करते- करते चाँदनी के रथ से उतरती यादों की ये मीठी खुशबुएँ आखिर क्या कह उठीं?
चाँदनी रात के हाथों पे सवार उतरी है
कोई खुशबू मेरी दहलीज के पार उतरी है
इस में कुछ रंग भी हैं, ख्वाब भी, खुशबुएँ भी
झिलमिलाती हुई ख्वाहिश भी, आरजू भी
इसी खुशबू में कई दर्द भी, अफसाने भी
इसी खुशबू ने बनाए कई दीवाने भी
मेरे आँचल पे उम्मीदों की कतार उतरी है
कोई खुशबू मेरी दहलीज के पार उतरी है
चाँदनी रात में मधुर स्मृतियों का लुत्फ इन जनाब ने तो उठा लिया पर क़मर जलालवी साहब का क्या करें? सोचा था चाँदनी रात में उनसे कुछ गुफ्तगू कर लेंगे पर वो हैं कि आसमां पर चाँद देखा और घर को रुखसत हो लिये !
वो मेहमान रहे भी तो कब तक हमारे
हुई शमा गुल और टूटे सितारे
कमर इस कदर उन को जल्दी थी घर की
वो घर चल दिये चाँदनी ढलते-ढलते
कमर साहब की इन पंक्तियों के साथ फिलहाल मुझे इजाजत दीजिए । और हाँ चाँद के साथ का सफर तो बदस्तूर जारी रहेगा अगली किश्त में ...
(पूर्व में दिसंबर २००६ में प्रकाशित आलेख में कुछ बदलाव के साथ, चित्र इंटरनेट से)
22 टिप्पणियाँ:
बहुत बढ़िया लेख ! परन्तु क्या कोई मुझे 'पूए बनाए बूर का' का अर्थ बताएगा ?
घुघूतीबासूती
badhiya sheron se labrej khubsurat lekh,
ALOK SINGH "SAHIL"
बहुत ही बढ़िया उम्दा लेख .याद रहेगा यह चाँद की बात करता हुआ ..बुक मार्क कर लिया है इसको
खोया-खोया चाँद, खुला आसमान... आँखों में सारी रात जायेगी ....
कुछ बदलाव क्या..हमें तो पूरा ही बहा के ले गया ये चाँद अपने साथ. गजब लिखते हैं..सुपर प्रवाह!! बधाई..आगे इन्तजार है.
कमर जलालवी साः की एक गजल है...
ऐ रश्के कमर, मैं मरुँ जो अगर........
जब अज़ीज जनाज़ा लेकर चलें
मेरी लाश को कंधा लगा देना
ताकि आशिकों को यह याद रहे......
शायद शब्द ठीक से याद नहीं. अगर आपके पास हो तो प्लीज्ज्ज्ज्ज!!!!! बतायें.
प्रवाहपूर्ण!
घुघुतिजी बूर चोकर को कहते हैं, आमतौर से मीठे गुलगुले जिन्हें लोकभाषा में पुए कहा जाता है मेंदा से बनते हैं बाकी आप...
waah chand ki sair karane ka shukran,itani khubsurat post,mashaallah,aaj dil khush hua,aapki saari khwahishe sampurn ho yahi dua.
घुघूति जी प्रेमलता जी ने उत्तर दे दिया आपके प्रश्न का। गीत में उच्चारण स्पष्ट नहीं बूर या भूर पर जहाँ तक मेरी जानकारी है शायद गुड़ के चूरे से मतलब रहा होगा क्योंकि गुड़ के साथ आटे को सान कर पूआ बनता तो है।
कई सुँदर जज्बातोँ को याद किया आप के और चाँद के साथ साथ मनीष भाई
" वह अगस्ती रात मस्ती की ,
गगन पे चाँद निकला था अधूरा,
किँतु मेरी गोद
काले बादलोँ के बीच मेँ था चाँद पूरा "
डा. हरिवँश राय "बच्चन" जी की
याद हो आई !
और सबसे सुँदर चाँद देखा था,
बादलो से झाँकता हुआ,
हवाई जहाज की खुडकी से,
जब बोस्टन से उडान भरी और अमरीकी राजधानी के सभी
खास स्थापत्य भवनोँ को
उपर से पहचाना
और चाँद के सँग,
डीनर भी लेते रहे :)
-अविस्मरणीय अनुभव रहा था वह -
स्नेह,
-लावण्या
वाह जी...! अच्छी सिरीज़...! खुशी इस बात की भी है कि मनीष जी शाम से आगे बढ़ कर अब रात की बातें करने लगे हैं :) प्रगति तो होनी ही चाहिये :)
खुशी इस बात की भी कि बचपन से सुनी जाने वाली लोरी के बूर शब्द का अर्थ भी पता चला और रचना जी की सुंदर पंक्तियों
उसी ने मुझे घट के बढ़ना सिखाया
के साथ कई खूबसूरत पंक्तियाँ जानने को मिलीं
ये चाँद भी अजीब सितम ढाता है,
बचपन में मामा और जवानी में मामा नजर आता है
रिश्तों में यूँ तब्दीली...?????वैसे दक्षिण में मान्य है ये, वहाँ मामा से विवाह उत्तम माना जाता है :)
और मुझे याद आया इसके साथ वो अनुभव, जब मेरे भईया जबलपुर से रक्षाबंधन पर घर नही आये थे और मैं छत पर गा रही थी
चंदा रे मेरे भईया से कहना बहना याद करे।
अपने कृष्णवर्णी भाई की निशानी में ये बताना कि
क्या बतलाऊँ कैसा है वो, बिलकुल तेरे जैसा है वो
थोड़ा गलत तो लग रहा था, लेकिन क्या करूँ बताना तो यही था, विकल्प भी नही था कुछ :) :)
प्रतीक्षा आगे के अंको की
चाँद की बात .चांदनी सी खूबसूरत है ना
आपने लगता है चांद मेरे पहलू में ला दिया है । चांद की सफलता तो हमारे साथ जुड़ गया है लेकिन आपने जो नज्म लिखा है वह बचपन की यादो को ताजा और गहरा कर देता है । समचुच लगता है चांद के साये में हम खेलने लगे है । आपको धन्यवाद
kya baat hai manish ji, wase bhi ''suhani chandni raaten sone nahi deti'' aur aapki chandni toh raat ke haathon par sawar hoker utri hai. aane wali post ka intzar rahega.
पिछले कुछ दिनों से मैं आपकी नियमित पाठिका हो गई हूँ. इस दुनिया के झमेलों से दूर एक ऐसे काल्पनिक आत्मिक सुख में ले जाती हैं आपकी लेखनी कि वापस लौटकर भी कुछ समय तक खुमारी सी बनी रहती है.
समीर भाई अपने संकलन में खोजा पर क़मर साहब की वो ग़ज,ल नहीं मिली जिसका आपने उल्लेख किया है।
कंचन अपने अनुभवों को यहाँ बांटने का शुक्रिया
इंडियन आर जे आपको इस ब्लॉग की प्रविष्टियाँ पसंद आ रही हैं जानकर अच्छा लगा। आशा है भविष्य में भी पोस्ट्स पर आपके सुझाव प्रतिक्रियाएँ मिलती रहेंगी।
सुन्दर है चांदचर्चा!
रात यों कहने लगा मुझसे गगन का चाँद, आदमी भी क्या अनोखा जीव होता है | उलझने अपनी बनाता आप ही खोता और फिर बैचैन हो जगता ना सोता है |
पूड़े बनाए बूर (आटे का बूर, आटा छानने के बाद छलनी में बचा बूर) के
आपकी लिखी रचना "पांच लिंकों का आनन्द में" शनिवार 26 सितम्बर 2015 को लिंक की जाएगी ....
http://halchalwith5links.blogspot.in पर आप भी आइएगा ....धन्यवाद!
भूर है भाईजान
भूर मतलब चोकर
पुवे पकायें गुर के यानी गुड़ के गुड़ में बढ़िया पुआ बनता है चीनी तो नये जमाने की देन है
Waah kya kavita h 😄👌👌
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