शुक्रवार, जुलाई 08, 2011

रात भी है कुछ भीगी-भीगी, चाँद भी है कुछ मद्धम-मद्धम...

बारिश के मौसम को ध्यान में रखते हुए कुछ दिनों पहले मैंने लता जी का गाया फिल्म 'परख' का गीत सुनवाया था। बारिश का मौसम अभी थमा नहीं है। अब आज मेरे शहर का मौसम देखिए ना। बाहर ठंडी बयारें तो है ही और उनकी संगत में बारिश की रेशमी फुहार भी है। तो इस भीगी रात में भींगा भींगा सा रूमानियत से भरा इक नग्मा हो जाए।


आज का ये नग्मा मैंने चुना है फिल्म 'मुझे जीने दो' से जो सन 1963 में प्रदर्शित हुई थी। इसके संगीतकार थे जयदेव साहब। वैसे क्या आपको पता है कि जयदेव पहली बार पन्द्रह साल की उम्र में घर से भागकर मुंबई आए थे तो उनका सपना एक फिल्म अभिनेता बनने का था। यहाँ तक कि बतौर बाल कलाकार उन्होंने सात आठ फिल्में की भी। पर पिता के अचानक निधन ने उनके कैरियर की दिशा ही बदल दी। घर की जिम्मेवारियाँ सँभालने के लिए जयदेव लुधियाना आ गए। बहन की शादी करा लेने के बाद जयदेव ने चालिस के दशक में लखनऊ के उस्ताद अकबर अली से संगीत की शिक्षा ली। जयदेव ने पहले उनके लिए और बाद में एस डी बर्मन जैसे संगीतकार के सहायक का काम किया। जयदेव का दुर्भाग्य रहा कि उनके अनूठे संगीत निर्देशन के बावजूद उनकी बहुत सारी फिल्में जैसे रेशमा व शेरा, आलाप,गमन व अनकही नहीं चलीं। पर 'मुझे जीने दो' और 'हम दोनों' ने उन्हें व्यवसायिक सफलता का मुँह दिखलाया।

जयदेव शास्त्रीय संगीत के अच्छे जानकार थे। उनके रचित गीत अक्सर किसी ना किसी राग पर आधारित हुआ करते थे। 'मुझे जीने दो' का ये गीत 'राग धानी' पर आधारित है। वस्तुतः राग धानी, राग मालकोस से निकला हुआ राग है। शास्त्रीय संगीत के जानकार राग धानी को राग मालकोस का रूमानी , मिठास भरा रूप मानते हैं। 

पर ये गीत अगर इतना मधुर व सुरीला बन पड़ा है तो उसमें जयदेव के संगीत से कहीं अधिक साहिर लुधियानवी के बोलों और लता जी की गायिकी का हाथ था।  साहिर के बारे में ये कहा जाता था कि वो मानते थे कि गीत के लोकप्रिय होने में सबसे बड़ा हाथ गीतकार का होता है। इसी वज़ह से किसी भी फिल्म में काम करने के पहले उनकी शर्त होती थी कि उनका पारिश्रमिक संगीतकार से एक रुपया ज्यादा रहे।

वैसे साहिर की शायरी इसकी हक़दार भी थी। अब इसी गीत को लें । शब्दों के दोहराव का कितना खूबसूरत प्रयोग किया है साहिर ने गीत के हर अंतरे में। पहले अंतरे में साहिर लिखते हैं
तुम आओ तो आँखें खोलें
सोई हुई पायल की छम छम
अब आप ही बताइए, एक मुज़रेवाली इससे बेहतर किन लफ़्जों से महफिल में आए अपने प्रशंसकों का दिल जीत सकती है? और गीत के तीसरा अंतरे में इस्तेमाल किए गए प्राकृतिक रूपकों को सुनकर तोदिल से बस वाह वाह ही निकलती है। ज़रा इन पंक्तियों पर गौर फ़रमाएँ

तपते दिल पर यूँ गिरती है
तेरी नज़र से प्यार की शबनम
जलते हुए जंगल पर जैसे
बरखा बरसे रुक-रुक थम-थम


वैसे तो शोख और चंचल गीतों के लिए आशा ताई कई संगीतकारों की पहली पसंद हुआ करती थीं पर यहाँ लता जी ने भी अपनी गायिकी में गीत के हाव भावों को बड़ी खूबसूरती से पकड़ा है। मसलन जब लता होश में थोड़ी बेहोशी है..गाती हैं तो लगता है बस अब मूर्छित हो ही गयीं।

तो आइए सुनते हैं इस गीत को लता जी की सुरीली आवाज़ में


रात भी है कुछ भीगी-भीगी
चाँद भी है कुछ मद्धम-मद्धम
तुम आओ तो आँखें खोलें
सोई हुई पायल की छम छम

किसको बताएँ कैसे बताएँ
आज अजब है दिल का आलम
चैन भी है कुछ हल्का हल्का
दर्द भी है कुछ मद्धम मद्धम
छम-छम, छम-छम, छम-छम, छम-छम

तपते दिल पर यूँ गिरती है
तेरी नज़र से प्यार की शबनम
जलते हुए जंगल पर जैसे
बरखा बरसे रुक-रुक थम-थम
छम-छम, छम-छम, छम-छम, छम-छम
होश में थोड़ी बेहोशी है
बेहोशी में होश है कम कम
तुझको पाने की कोशिश में
दोनों जहाँ से खो ही गए हम
छम-छम, छम-छम, छम-छम, छम-छम

फिल्म में ये गीत फिल्माया गया था वहीदा जी और सुनील दत्त पर
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11 टिप्पणियाँ:

मीनाक्षी on जुलाई 08, 2011 ने कहा…

गीत की जानकारी...भूमिका...और उस पर गीत सुनकर आनन्द आ जाता है...

प्रवीण पाण्डेय on जुलाई 08, 2011 ने कहा…

इस छम छम पर मन छम छम हो गया।

पारुल "पुखराज" on जुलाई 08, 2011 ने कहा…

geet ,vaheeda,sunildutt,film sab

naayab

रंजना on जुलाई 08, 2011 ने कहा…

आपकी प्रस्तुति ऐसी हुआ करती है कि जैसे किसी चीज को पहले खुली आँखों से देखना और उसी को फिर दूरबीन से देखना...

सब कुछ वृहत्ताकार सुस्पष्ट हो जाता है....

बहुत बहुत आभार...

Archana Chaoji on जुलाई 08, 2011 ने कहा…

फ़ुहारों के साथ इसे सुनना.... वाह!!!.......शुक्रिया..

Mrudula Tambe on जुलाई 08, 2011 ने कहा…

समय मिले तो चीनी कम के "जाने दो ना' गाने पर भी लिखिएगा जी । मनचाहे गाने पर यदि आपकी आलोचना हो तो मन को अच्छा लगता है, आपके दृष्टिकोण से देखने का आनंद मिलता है ।

Ravi Rajbhar on जुलाई 08, 2011 ने कहा…

Bahut khoob sir ji

Guide Pawan on जुलाई 09, 2011 ने कहा…

UNFORGETTABLE....SAHIR KE ANMOL GEETO OR NAZMO SE RU BA RU KARANE KA AAPKA PRAYAS BAHUT HIKABILE TARIF HE..... KYU KI KAL OR AAYENGE NAGMO KI KHILTI KALIYA CHUNANE WALE...

Alok Dwivedi ने कहा…

bahut acha hai

daanish on जुलाई 10, 2011 ने कहा…

अभी युनुस खान जी के यहाँ
संगीतकार दानसिंह के बारे में
पढ़ कर आया हूँ
और आपके यहाँ सुविख्यात महान मोसिकार
जनाब जयदेव साहब की बहुत प्यारी संगीत रचना
"रात भी है कुछ...." को पढना / सुनना नसीब हुआ
"तू चंदा मैं चांदनी" के बाद इक यही गीत है
जो बरबस ही मन भिगो जाता है .
और हाँ ! राग धानी के बारे में पहली बार पढ़ा यहाँ
आपकी विलक्षण जानकारी को नमन !!

Pradeep Pandey ने कहा…

Thanks for this song

 

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