वार्षिक संगीतमाला की पिछली दो पॉयदानों पर आपने सुने मिथुन शर्मा और प्रीतम द्वारा संगीतबद्ध दो बेहद कर्णप्रिय नग्मे। आज जिस गीत को आपके सामने प्रस्तुत कर रहा हूँ वो भी उतना ही मधुर है। इस गीत की ख़ासियत है कि इसके गीत , संगीत और गायिकी सभी में अलग अलग जोड़ियों का हाथ रहा है। इसे संगीतबद्ध किया है नवोदित संगीतकार जोड़ी सचिन-जिगर ने। बोल लिखे हैं समीर और प्रिया पंचाल ने और इस युगल गीत को आवाज़ें दी हैं श्रेया घोषाल और तोची रैना ने। गीत तो आप पहचान ही गए होंगे 'धीरे धीरे नैणों को धीरे धीरे , जिया को धीरे धीरे भायो रे साएबो...। कमाल की धुन बनाई है संगीतकार सचिन जिगर ने। गीत के शब्दों के विपरीत ये नग्मा धीरे धीरे नहीं बल्कि एक बार सुनते ही दौड़ के दिलो दिमाग पर हावी हो जाता है।
पर गीत की बात करने के पहले आपकी मुलाकात तो करा दूँ इस संगीतकार जोड़ी से। सचिन यानि सचिन संघवी और ज़िगर यानि ज़िगर सरैया की ये जोड़ी श्रोताओं के लिए नई जरूर है पर फिल्म जगत में ये पिछले कुछ सालों से काम कर रहे हैं। पहले संगीतकार राजेश रोशन और फिर प्रीतम के लिए काम करने के बाद पिछले साल इन्होंने स्वतंत्र रूप से काम करना शुरु किया।
शास्त्रीय संगीत की शिक्षा लिये हुए सचिन के मन में संगीतकार बनने का ख़वाब ए आर रहमान ने पैदा किया। सचिन रोज़ा में रहमान के संगीत संयोजन से इस क़दर प्रभावित हुए कि उन्होंने ठान लिया कि मुझे भी यही काम करना है। अपने मित्र अमित त्रिवेदी के ज़रिए उनकी मुलाकात ज़िगर से हुई। दो गुजरातियों का ये मेल एक नई जोड़ी का अस्तित्व ले बैठा। सचिन ज़िगर अपने साक्षात्कारों में प्रीतम की तारीफ़ करना कभी नहीं भूलते। वे हमेशा कहते हैं कि प्रीतम जिस तरह से कच्ची धुन से पक्के गीत की प्रक्रिया को विभिन्न भागों में बाँटकर अनुशासित रूप में गुजरते हैं उस क़वायद से हम जैसे नए लोगों ने बहुत कुछ सीखा।
सचिन ज़िगर को अपनी पहली सफलता फिल्म फालतू के डांस नंबर चार बज गए मगर पार्टी .....से मिली। पिछले साल उन्होंने 'हम तुम शबाना' और शोर इन दि सिटी के कुछ गीतों का भी संगीत संयोजन किया। शोर इन दि सिटी के इस गीत में गिटार और वॉयलिन का बेहद खूबसूरत उपयोग किया है सचिन जिगर ने। पहले इंटरल्यूड में वॉयलिन की धुन क्या कमाल की है। जरा ध्यान दीजिएगा..
ये तो हम सभी जानते हैं कि नए नए पिया यानि अपने 'साइबो' धीरे धीरे ही दिल में उतरते हैं। दो दिलों को पास आने के लिए आँखों, लबों की कितनी कही अनकही बातों से होकर गुजरना पड़ता है , गीतकार द्वय यही तो बता रहे हैं हमें इस प्यारे से गीत में। गीत में एक ओर तो श्रेया की मिश्री सी आवाज़ है तो दूसरी ओर तोची रैना का बुलंद ज़मीनी स्वर। पर दोनों मिलकर एक ऐसा प्रभाव उत्पन्न करते हैं कि मन इस गीत का हो के रह जाता है...
मन ये साहेब जी, जाणे है सब जी
फिर भी बनाए बहाने
नैणा नवाबी जी देखें हैं सब जी
फिर भी ना समझे इशारे
मन ये साहेब जी, हाँ करता बहाने
नैणा नवाबी जी ना समझे इशारे
धीरे धीरे नैणों को धीरे धीरे
जिया को धीरे धीरे भायो रे साएबो
धीरे धीरे बेगाना धीरे धीरे
अपना सा धीरे धीरे लागे रे साएबो
सुर्खियाँ है हवाओं में, दो दिलों के मिलने की
अर्जियाँ है नज़ारों मे, लमहा ये थम जाने की
कैसी हजूरी जी ये लब दिखलाएँ
चुप्पी लगा के भी गज़ब है ये ढाएँ
धीरे धीरे नैणों को धीरे धीरे
जिया को धीरे धीरे भायो रे साएबो
धीरे धीरे बेगाना धीरे धीरे
अपना सा धीरे धीरे लागे रे साएबो
वार्षिक संगीतमाला 2011 पहुँच चुकी है उस मुकाम पर जहाँ से शुरु होती है प्रथम दस यानि TOP 10 गीतों की आख़िरी दस सीढ़ियाँ ! इन दस गीतों में रूमानियत की हवाएँ भी हैं और सूफ़ियत की झंकार भी। दुखों के बादल भी हैं और ज़िदगी को मुड कर देखने की कोशिश भी। आशा हैं हम सब मिलकर एक साथ महसूस करेंगे गीतों के इन विविध रंगों को आने वाली कड़ियों में..
3 टिप्पणियाँ:
लगन रंग लायी है..
lov this song!!
गीत पसंद करने के लिए शुक्रिया प्रवीण और अनुमेहा !
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