वार्षिक संगीतमाला की पिछली चौदह सीढ़ियाँ चढ़ कर आ पहुँचे है हम ग्यारहवीं पायदान पर। ग्यारहवीं पायदान का ये गीत संगीतमाला में शामिल अन्य सभी गीतों से एक बात में अलहदा है और वो है इसकी लंबाई। करीब साढ़े सात मिनट लंबे युगल गीत पर जो सम्मिलित परिश्रम इसके संगीतकार, गीतकार और गायक द्वय ने किया है वो निश्चय ही काबिलेतारीफ़ है। ये गीत है फिल्म 'इसक' का और इसके संगीतकार हैं सचिन ज़िगर, जबकि शब्द रचना है नीलेश मिश्रा की।
इससे पहले उन्होंने 2011 में अपने गीत धीरे धीरे नैणों को धीरे धीरे , जिया को धीरे धीरे भायो रे साएबो से मुझे प्रभावित किया था। सचिन जिगर के संगीतकार बनने से पहले की दास्तान मैं आपको यहाँ बता चुका हूँ। पिछला साल तो इस जोड़ी के लिए फीका रहा पर इस साल रमैया वस्तावइया, ABCD, इसक और शुद्ध देशी रोमांस में उनके संगीतबद्ध गीतों को साल भर सुना जाता रहा। जब जब सचिन जिगर ने लीक से हटकर संगीत देने की कोशिश की है उनका काम शानदार रहा है। अब इसी गीत को लें हिंदुस्तानी वाद्यों से सजे संगीत संयोजन में तबले व सारंगी का कितना सुरीला इस्तेमाल किया हैं उन्होंने। इंटरल्यूड्स के बीच पार्श्व से आती सरगम की ध्वनि भी मन को बेहद सुकून पहुँचाती है।
गीतकार नीलेश मिश्रा एक बार फिर अपने हुनर का ज़ौहर दिखलाने में सफल रहे हैं। इतना लंबा गीत होने के बावज़ूद वे अपने खूबसूरत अंतरों द्वारा श्रोताओं का ध्यान गीत की भावनाओं से हटने नहीं देते। मिसाल के तौर पर इन पंक्तियों पर गौर करें ज़हर चखा है आग है पीली...चाँदनी कर गई पीड़ नुकीली..पर यादों की झालन चमकीली या फिर धूप में झुलस गए दूरियों से हारे...पार क्या मिलेंगे कभी छाँव के किनारे । मन खुश कर देती हैं ये पंक्तियाँ खासकर तब जब उस्ताद राशिद खाँ और प्रतिभा वाघेल उसे अपनी आवाज़ से सँवारते हैं।
उस्ताद राशिद खाँ तो किसी परिचय के मुहताज नहीं पर प्रतिभा वघेल के बारे में ये बताना जरूरी होगा कि वर्ष 2009 में वो जी सारेगामा के फाइनल राउंड में पहुँची थीं। रीवा से ताल्लुक रखने वाली प्रतिभा बघेल ने शास्त्रीय संगीत की विधिवत शिक्षा ली है।अपना अधिकतर समय संगीत से जुड़े कार्यक्रमों में बिताने वाली प्रतिभा की 'प्रतिभा' को हिंदी फिल्म संगीत में और मौके मिलेंगे इसकी उम्मीद रहेगी। राशिद साहब की भारी आवाज़ के सामने प्रतिभा का स्वर मिश्री की डली सा लगता है।
उस्ताद राशिद खाँ तो किसी परिचय के मुहताज नहीं पर प्रतिभा वघेल के बारे में ये बताना जरूरी होगा कि वर्ष 2009 में वो जी सारेगामा के फाइनल राउंड में पहुँची थीं। रीवा से ताल्लुक रखने वाली प्रतिभा बघेल ने शास्त्रीय संगीत की विधिवत शिक्षा ली है।अपना अधिकतर समय संगीत से जुड़े कार्यक्रमों में बिताने वाली प्रतिभा की 'प्रतिभा' को हिंदी फिल्म संगीत में और मौके मिलेंगे इसकी उम्मीद रहेगी। राशिद साहब की भारी आवाज़ के सामने प्रतिभा का स्वर मिश्री की डली सा लगता है।
इससे पहले की आप ये गीत सुनें ये बता दूँ कि शायद गीत की लय की वज़ह से राशिद खाँ साहब इस गीत के मुखड़े में याद को 'यद' की तरह उच्चारित करते हैं जो पहली बार सुनने पर थोड़ा अटपटा लग सकता है।
अखिया किनारों से जो, बोली थी इशारों से जो
कह दे फिर से तू ज़रा
फूल से छुआ था तोहे, तब क्या हुआ था मोहे
सुन ले जो फिर से तू ज़रा
झीनी रे झीनी याद चुनरिया..लो फिर से तेरा नाम लिया
सारे जख़म अब मीठे लागें,
कोई मलहम भला अब क्या लागे
दर्द ही सोहे मोहे जो भी होवे
टूटे ना टूटे ना. टूटे ना टूटे ना......
सूझे नाही बूझे कैसे जियरा पहेली
मिलना लिखा ना लिखा पढ़ले हथेली
पढ़ली हथेली पिया, दर्द सहेली पिया
ग़म का है ग़म अब ना हमें
रंग ये लगा को ऐसो, रंगरेज़ को भी जैसो
रंग देवे अपने रंग में
झीनी रे झीनी याद चुनरिया..लो फिर से तेरा नाम लिया
सुन रे मदा हूँ तेरे जैसी
काहे सताये आधी रात निदिया बैरी भयी
ज़हर चखा है आग है पीली
चाँदनी कर गई पीर नुकीली
पर यादों की झालन चमकीली
टूटे ना टूटे ना. टूटे ना टूटे ना......
धूप में झुलस गए दूरियों से हारे
पार क्या मिलेंगे कभी छाँव के किनारे
छाँव के किनारे कभी, कहीं मझधारे कभी
हम तो मिलेंगे देखना
तेरे सिराहने कभी, नींद के बहाने कभी
आएँगे हम ऐसे देखना
झीनी रे झीनी याद चुनरिया
13 टिप्पणियाँ:
हमेशा की तरह एक उम्दा जानकारी से भरी पोस्ट |गीत -संगीत को बेहतरीन ढंग से रेखांकित करती पोस्ट |
बहुत ही प्यारा गीत, गहरे स्वर।
Listening first time and loved it soo much..
सुन्दर गीत,संगीत के साथ उम्दा जानकारी।धन्यवाद मनीष जी।
सच में अद्भुत गाया है।।।। इसी गाने के कारन मै फिल्म देखने चला गया था पर फिल्म देख के निराशा हाथ लगी
I had not heard this song before it is beautiful and thank you for sharing
My fav. Rashid Khan and Neelesh Mishra .. lovely song !!
पहली बार सुना गीत, अच्छा गीत...शब्द और लय का सुंदर सामंजस्य... मूवी का नाम मैं पढ़ नही सकी या लिका ही नही है ?
जयकृष्ण व सुनीता जी पोस्ट आपको पसंद आयी जानकर प्रसन्नता हई।
प्रवीण, आलोक, कंचन, शांगरीला, किरण जी गीत पसंद करने के लिए धन्यवाद !
अतुल कई बार फ्लॉप फिल्मों के अच्छे गीत भी इसी कारण ज्यादा सुने नहीं जा पाते।
कंचन फिल्म का नाम तो लिखा है 'इसक'.
Manish ji, Sabse pahle to itne khoobsoorat blog ke liye mera hardik aabhaar sweekar kijiye. Meine ye gaana isse pahle kabhi nahi suna tha. Itna behatarin gaana sunwane ke liye anek dhanyavaad.
Thanks for sharing this and all the other songs Manish. Just a thought - shouldn't Jheeni re Jheeni... get a place in Top 10:) It's a lovely song.
Rajesh ji : Is blog par padharne ke liye dhanyawaad. Ye gana aapko pasand aaya jan kar khushi huyi.
Abhishek There is not much difference from song no. 7 to 15 as per my ratings . Nice to know that u loved this song.
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