मंगलवार, जनवरी 31, 2017

वार्षिक संगीतमाला 2016 पायदान # 15 : आख़िर कैसे बना "तेरे संग यारा..." ? Tere Sang Yara

वार्षिक संगीतमाला की पन्द्रहवी पायदान पर गाना वो जो पिछले साल इतना लोकप्रिय हुआ कि अब तक इंटरनेट पर नौ करोड़ बार सुना जा चुका है। ज़ाहिर है आप ने भी इसे कई बार सुना होगा। पर क्या आप जानते हैं कि ये गाना अपने इस स्वरूप में कैसे आया यानि इस गीत के पीछे की कहानी क्या है? 

पर ये कहानी जानने के पहले ये तो जान लीजिए कि इस गीत को संगीतबद्ध किया अर्को प्रावो मुखर्जी ने और बोल लिखे एक बार फिर से मनोज मुन्तशिर ने। अर्को पहली बार 2014 में अल्लाह वारियाँ और दिलदारा जैसे गीतों की वज़ह से वार्षिक संगीतमाला का हिस्सा बने थे। तभी मैंने आपको बताया था कि अर्को शैक्षिक योग्यता के हिसाब से एक डॉक्टर हैं पर संगीत के प्रति उनका प्रेम उन्हें सिटी आफ जॉय यानि कोलकाता से मुंबई की मायानगरी में खींच लाया है। मैंने तब भी लिखा था कि अर्कों की धुनें कमाल की होती हैं पर ख़ुद अपने गीत लिखने का मोह उनकी कमज़ोर हिंदी की वज़ह से वो प्रभाव नहीं छोड़ पाता। पर इस गीत में मनोज मुन्तशिर के साथ ने उनकी उस कमी को दूर कर दिया है।



अर्को ने ये धुन और मुखड़ा भी पहले से बना रखा था और जी म्यूजिक के अनुराग बेदी ने उसे सुना था। जब फिल्म के सारे गीत लिखने की जिम्मेदारी मनोज मुन्तशिर को मिली तो उनसे अनुराग ने कहा कि मुझे  एक ऐसा गीत चाहिए जो फिल्म के लिए एक इंजन का काम करे यानि जो तुरंत ही हिट हो जाए और अर्को के पास ऐसी ही एक धुन है। 

अब एक छोटी सी दिक्कत ये थी कि अर्को ने उस गीत में विरह का बीज बोया हुआ था जबकि फिल्म में गीत द्वारा रुस्तम की प्रेम कहानी को आगे बढ़ाना था। तब गीत के शुरुआती बोल कुछ यूँ थे तेरे बिन यारा बेरंग बहारा है रात बेगानी ना नींद गवारा। मनोज ने इस मुखड़े में खुशी का रंग कुछ यूँ भरा तेरे संग यारा, खुशरंग बहारा..तू रात दीवानी, मैं ज़र्द सितारा। एक बार मुखड़ा बना तो अर्को के साथ मिलकर पूरा गीत बनाने में ज्यादा समय नहीं लगा।

अर्को  व मनोज मुन्तशिर

गीत तो बन गया पर मनोज इस बात के लिए सशंकित थे कि शायद फिल्म के निर्माता निर्देशक ज़र्द जैसे शब्द के लिए राजी ना हों क्यूँकि सामान्य सोच यही होती है कि गीत में कठिन शब्दों का प्रयोग ना हो। पर अर्को अड़ गए कि नहीं मुझे इस शब्द के बिना गीत ही नहीं बनाना है। गीत बनने के बाद जब निर्माता नीरज पांडे के सामने प्रस्तुत हुआ तो अर्को ने कहा कि आप लोगों को और कुछ बदलना है तो बदल लीजिए पर  ज़र्द सितारे से छेड़छाड़ मत कीजिए।  ऐसा कुछ हुआ नहीं और नीरज को मुखड़ा और गीत दोनों पसंद आ गए।

बहरहाल इससे ये तो पता चलता है कि फिल्म इंडस्ट्री में अच्छी भाषा और नए शब्दों के प्रयोग के प्रति कितनी हिचकिचाहट है। वैसे मनोज मुन्तशिर ने जिस परिपेक्ष्य में इस शब्द का प्रयोग किया वो मुझे उतना नहीं जँचा। ज़र्द का शाब्दिक अर्थ होता है पीला और सामान्य बोलचाल में इस शब्द का प्रयोग नकारात्मक भावना में ही होता है। जैसे भय से चेहरा ज़र्द पड़ जाना यानि पीला पड़ जाना। पर अगर आप गीत में देखें तो मनोज प्रेमी युगल के लिए दीवानी रात व पीले तारे जैसे बिंब का प्रयोग कर रहे हैं। मनोज की सोच शायद पीले चमकते तारे की रही होगी जो मेरी समझ से ज़र्द के लिए उपयुक्त नहीं लगती। बेहतर तो भाषाविद ही बताएँगे।

इस गीत को गाया है आतिफ़ असलम ने। आतिफ की सशक्त आवाज़, पियानो के इर्द गिर्द अन्य वाद्यों का बेहतरीन संगीत संयोजन इस गीत की जान है। इंटरल्यूड्स की विविधताएँ भी शब्दों के साथ मन को रूमानी मूड में बहा ले जाती हैं। मेरी इस गीत की सबसे प्रिय पंक्ति गीत के अंत में आती है, जी हाँ ठीक समझे आप मैं बहता मुसाफ़िर. तू ठहरा किनारा




तेरे संग यारा, खुशरंग बहारा
तू रात दीवानी, मैं ज़र्द सितारा

ओ करम खुदाया है, तुझे मुझसे मिलाया है
तुझपे मरके ही तो, मुझे जीना आया है

ओ तेरे संग यारा.....ज़र्द सितारा
ओ तेरे संग यारा ख़ुश रंग बहारा
मैं तेरा हो जाऊँ जो तू कर दे इशारा

कहीं किसी भी गली में जाऊँ मैं, तेरी खुशबू से टकराऊँ मैं
हर रात जो आता है मुझे, वो ख्वाब तू..
तेरा मेरा मिलना दस्तूर है, तेरे होने से मुझमें नूर है
मैं हूँ सूना सा इक आसमान, महताब तू..
ओ करम खुदाया है, तुझे मैंने जो पाया है
तुझपे मरके ही तो, मुझे जीना आया है

ओ तेरे संग यारा ...मैं ज़र्द सितारा
ओ तेरे संग यारा ख़ुश रंग बहारा
तेरे बिन अब तो ना जीना गवारा

मैंने छोड़े हैं बाकी सारे रास्ते, बस आया हूँ तेरे पास रे
मेरी आँखों में तेरा नाम है, पहचान ले..
सब कुछ मेरे लिए तेरे बाद है, सौ बातों की इक बात है
मैं न जाऊँगा कभी तुझे छोड़ के, ये जान ले
ओ करम खुदाया है, तेरा प्यार जो पाया है
तुझपे मरके ही तो, मुझे जीना आया है

ओ तेरे संग यारा.....ज़र्द सितारा
ओ तेरे संग यारा, ख़ुश रंग बहारा
मैं बहता मुसाफ़िर. तू ठहरा किनारा





वार्षिक संगीतमाला  2016 में अब तक

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15 टिप्पणियाँ:

Sunil Singh on जनवरी 31, 2017 ने कहा…

मैं तो इस गीत को नहीं सुना, परन्तु आपके विश्लेषण को पढकर गीत की मार्मिकता समझ में आ रही है।

Manish Kumar on जनवरी 31, 2017 ने कहा…

शुक्रिया सुनील अब सुन लीजिए। वाकई मधुर धुन है।

Kumar Nayan Singh on जनवरी 31, 2017 ने कहा…

जर्द की जगह सर्द सितारा भी हो सकता था, लेकिन कहते हैं कि जो गीत एक बार बन जाता है वही बेस्ट होता है। हो सकता है, इसमें भी वही बात हो...

Manish Kumar on जनवरी 31, 2017 ने कहा…

नहीं नयन,,जो भी रूपक होता सकारात्मक ही होता । अब रात दीवानी हो तो सितारा मचलेगा ना कि सर्द होगा। वैसे लेखक ने भी चमकता सितारा ही अर्थ लगाया है पर इस तरह से इस शब्द का प्रयोग होता नहीं मेरी जानकारी में।

Kumar Nayan Singh on जनवरी 31, 2017 ने कहा…

जी, सहमत, धन्यवाद एवं साधुवाद भी, सचमुच आप ऐसे ही नहीं इतना कुछ लिख जाते हैं! इतनी गहराई से...

Manish Kaushal on जनवरी 31, 2017 ने कहा…

जर्द हो या सर्द, क्या फर्क पड़ता है सर जी। गीत बेहतरीन है,और जहाँ तक मुझे याद है, नीरज पाण्डे इसके निर्देशक नही हैं।

Manish Kumar on जनवरी 31, 2017 ने कहा…

हाँ वो निर्माता हैं भूल सुधार के लिए शुक्रिया। जो लोग गीत को समझ कर उसका आनंद उठाते हैं उनको तो पड़ता है। बाकी गीत तो बेहतरीन है तभी मेरी संगीतमाला में है :)

Sumit on फ़रवरी 01, 2017 ने कहा…

Aapne to Nirmata hi likha hai. Gana achcha hai. Popular hai.

Manish Kumar on फ़रवरी 01, 2017 ने कहा…

नहीं सुमित पहले गलती से निर्देशक लिखा गया था जिसे मैंने सुधार लिया है।

Ajit Wadnerkar on फ़रवरी 01, 2017 ने कहा…

नए दौर के गीत, संगीत, फिल्म और कलाकारों से अंजान हूँ। अलबत्ता प्रस्तुत सन्दर्भ में
आपकी विवेचना 100 टके खरी है।

मुझे भी पढ़ते ही खटका। ज़र्द में उदासी, कमज़ोरी, निर्बलता, टूटन का भाव है।
पतझर का सबसे बड़ा प्रतीक पीला रंग है। सब्ज़ पत्ता खुशहाली का प्रतीक है तो ज़र्द पत्ता अमंगल का। इसीलिए घर-आंगन-दालान में सूखे पत्ते पड़े नहीं रहने देते। उन्हें इकट्ठा कर जला देते हैं।

तारे का चमकना, झिलमिलाना और टिमटिमाना तीनों अभिव्यक्तियाँ जुदा जुदा हैं।

सो अपनी राय में मित्रों, ज़र्द सितारा की जगह शोख़ सितारा ज्यादा बेहतर होता जिसका अर्थ चटकीला या चमकीला है। या सुर्ख़ होता जिसका अर्थ लाल, चटकीला होता है। लाल में तेज़ी और चपलता होती है।
ख़ैर, यूँ ही सी चुहलबाजी हो गई। शुक्रिया।

Manish Kumar on फ़रवरी 01, 2017 ने कहा…

अजित भाई बहुत बहुत धन्यवाद मेरे आग्रह पर अपना बहुमूल्य समय निकाल कर इस संबंध में अपने विचार रखने का। मुझे जो ज़र्द शब्द से जो दुविधा थी उसे आपके स्पष्टीकरण ने दूर कर दिया है। आपके विचार मैं इस गीत के हुनरमंद गीतकार जो मेरे फेसबुक मित्र भी हैं तक पहुँचा दूँगा।

Ajit Wadnerkar on फ़रवरी 01, 2017 ने कहा…

भाई, उन्हें बुरा न लग जाए। मैने सिर्फ आपके कहने से थोड़ा बहुत शब्दविलास किया है। कवि का अपना नज़रिया होता है। उनसे सरस्वती लिखवाती है। वहाँ मैने दखल नहीं दिया। खुदा ख़ैर करे

Manish Kumar on फ़रवरी 01, 2017 ने कहा…

हा हा नहीं अजित भाई उन्होंने ख़ुद इस पोस्ट को अपनी वॉल पर शेयर किया है और इस बाबत हमारी चर्चा को पढ़ रहे हैं। वे एक युवा प्रतिभावान गीतकार हैं और इंटरनेट पर ही सही पर जितना थोड़ा मैं उनके बारे में जानता हूँ वे बुरा नहीं मानेंगे।

कंचन सिंह चौहान on फ़रवरी 06, 2017 ने कहा…

नए गीत सुनवाने का काम आजकल भतीजियाँ करती हैं। यह गीत भतीजी ने भेजा था और फिर कई दिन सुना गया था, मुखड़े और संगीत के कारण।

अब मनोज जी ने लिख ही दिया है तो हम ये समझ लेते हैं कि कभी-कभी हुस्न के जलवे देख इश्क़ इश्क़ बस देखता रह जाता है, चुप,सफेद और हो सकता है उसी में कोई ज़र्द भी पड़ जाता है। देखिये हुस्न वह बला है जो कुछ भी करवा सकता है और रुस्तम मूवी में अभिनीत नायिका जैकलीन हों या मूल कथा में नेवल अफसर की पत्नी जिनका नाम अभी भूल रही दोनों का हुस्न ऐसा कमाल है कि कुछ भी करवा सकता है।

फ़िलहाल गीत इस साल के पसंदीदा गीतों में एक है।

Manish Kumar on फ़रवरी 06, 2017 ने कहा…

मनोज ने अपने एक साक्षात्कार में आन रिकार्ड कहा है कि उन्होंने इसे पीला चमकीला तारा के रूप में लिखा था। इसलिए आपकी टिप्पणी पर कुछ नहीं कहूँगा।

गाना तो कर्णप्रिय है ही और इसकी धुन को दिमाग पर चढ़ते देर नहीं लगती।

 

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