वार्षिक संगीतमाला की अगली सीढ़ी पर गाना वो जिसकी मधुरता पिछले कुछ हफ्तों में मुझे उसे लगातार सुनने को मजबूर करती रही है। हाल ही में कच्छ की यात्रा पर निकला तो वहाँ खान पान के साथ चल रहे Live
Music के दौरान मैंने इस गीत की फर्माइश की और बड़ा आनंद आया जब गायक ने
इसका मुखड़ा और एक अंतरा सुनाकर मेरी वो फर्माइश पूरी की। रूमानी गीतों से
मुझे हमेशा प्रेम रहा है। पर यहाँ तो प्रेम में रससिक्त शब्दों के साथ गायक
की आवाज़ में जो सुकून है और संगीत में जो ठहराव, वो तो दिल ही ले जाता
है।
आइए वार्षिक संगीतमाला में स्वागत करें संगीतकार जीत गांगुली व गीतकार मनोज मुन्तसिर के साथ उभरते हुए उत्तराखंडी गायक जुबिन नौटियाल का। दरअसल पिछले साल जब मैंने जुबीन का बजरंगी भाईजान में गाया नग्मा कुछ तो बता ज़िंदगी अपना पता ज़िंदगी सुना था तो मुझे ये भ्रम हो गया था कि कहीं ये जुबिन असम वाले तो नहीं हैं।
जुबिन नौटियाल |
27 वर्षीय जुबिन की पैदाइश देहरादून में हुई। उनके पिता को गाने का शौक था। ये शौक जब उन तक पहुँचा तो उन्होंने संगीत को अपने स्कूल में एक विषय की तरह ले लिया। स्कूल के बाद उन्होंने अपनी गुरु वंदना श्रीवास्तव जी से हिंदुस्तानी शास्त्रीय संगीत की शिक्षा ली। बनारस में कुछ वक़्त उन्होंने छन्नूलाल मिश्रा जी के साथ भी बिताया तो चेन्नई में रहकर पाश्चात्य संगीत पर अपनी पकड़ मजबूत की। बॉलीवुड में पिछले पाँच सालों से सक्रिय जुबिन की आवाज़ को बजरंगी भाईजान के आलावा दि शौकीन्स के गीत मेहरबानी से भी सांगीतिक हलकों में पहचाना जाने लगा। इस साल फिल्म One Night Stand के इस गीत के आलावा फितूर के लिए सुनिधि चौहान के साथ उनका गाया युगल गीत तेरे लिए भी चर्चा का केंद्र रहा।
अमिताभ भट्टाचार्य की तरह ये साल अमेठी से ताल्लुक रखने वाले गीतकार मनोज मुन्तशिर के लिए भी बेहद अच्छा रहा है और क्यूँ ना रहे उनके शब्द प्यार में डूबे बेसब्र बेचैन दिलों की जुबान जो रहे हैं। आप ही देखिए ज़रा मनोज ने कितना प्यारा मुखड़ा रचा है इस गीत का
छू गयीं उँगलियाँ जाने किस ख़्वाब से
आज क्यूँ नींद से उठ गयीं ख्वाहिशें
ये ख़लिश है नयी ये जुनूँ है नया
ले चला... दिल कहाँ..., दिल कहाँ... ले चला..
सचमुच उनके शब्द हमें कुछ क्षणों के लिए ही सही प्रेम की वादियों में भटकने के लिए प्रेरित जरूर कर देते हैं। कभी प्रीतम दा के सहयोगी रहे जीत गाँगुली पियानो के नोट्स से गीत की शुरुआत करते हैं और यही मधुर धुन पहले इंटरल्यूड् में फिर प्रकट होती है। जीत का संगीत संयोजन कभी गायिकी और लफ़्जों से आपको दूर नहीं जाने देता। जुबिन की आवाज़ में इस गीत को सुनना हवा में तैरना जैसा है। जीवन में कभी आपको किसी से प्रेम हुआ हो ना तो ये फिर इस गीत को गुनगुनाते हुए अपने प्रिय को याद कर लीजिए। एकदम से मूड हल्का ना हो जाए तो कहिएगा..
बस अभी तो मिले, और चले दो क़दम
कैसे फिर आ गए हाँ इस क़दर पास हम
सच है ये या वहम, क्या ख़बर, क्या पता
ले चला... दिल कहाँ..., दिल कहाँ... ले चला..
यूँ लहर की तरह, ज़िन्दगी बह गयी
खो गया मैं कहीं, सिर्फ तू रह गयी
क्या यही है सफ़र जिस्म से रुह का
ले चला... दिल कहाँ..., दिल कहाँ... ले चला..
कैसे फिर आ गए हाँ इस क़दर पास हम
सच है ये या वहम, क्या ख़बर, क्या पता
ले चला... दिल कहाँ..., दिल कहाँ... ले चला..
यूँ लहर की तरह, ज़िन्दगी बह गयी
खो गया मैं कहीं, सिर्फ तू रह गयी
क्या यही है सफ़र जिस्म से रुह का
ले चला... दिल कहाँ..., दिल कहाँ... ले चला..
वार्षिक संगीतमाला 2016 में अब तक
4 टिप्पणियाँ:
दिल कहाँ ले चला ....कभी जंगल के रास्ते या नदी किनारे सुकून से चलो और यह गाना भी चला दिया जाए इतना पक्का है सुकून कम नहीं बल्कि दुगुना ही होगा ...रही बात प्यार की तो अभी तक हमारे सामने कभी आग का दरिया आया नहीं आएगा तो उसमें ख़ुशी से उतरेंगे ......
Beautiful song! Zubin has a fresh voice. A fresh feeling after listening to talented but monotonous Arijit Singh again and again.
रही बात प्यार की तो अभी तक हमारे सामने कभी आग का दरिया आया नहीं आएगा तो उसमें ख़ुशी से उतरेंगे
हम्म वो शेर यद आ गया इस बात पे
ये इश्क़ नहीं आसां इतना तो समझ लीजे
इक आग का दरिया है और डूब के जाना है
सुकून तो भरपूर है इस गीत में :)
हाँ सुमित जुबिन की आवाज़ में एक ताजगी है जो इस गीत को सुनते हुए एक खुशनुमा सा अहसास जगाती है।
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