दंगल पिछले साल की सर्वाधिक चर्चित फिल्म रही है। फिल्म की पटकथा व अभिनय की तो काफी तारीफ़ हुई ही पर साथ ही इस फिल्म का गीत संगीत भी काफी सराहा गया। यही वज़ह है कि वार्षिक संगीतमाला में इस फिल्म के तीन गाने शामिल हैं और इस कड़ी में पहला नग्मा है गिलहरियाँ जिसे नवोदित गायिका जोनिता गाँधी ने अपनी आवाज़ से सँवारा है।
बचपन से हम सभी इस मासूम से जन्तु को अपने आस पास धमाचौकड़ी मचाते देखते रहे हैं। फिर स्कूल में महादेवी वर्मा जी द्वारा लिखे गिल्लू के संस्मरण को पढ़कर गिलहरियों पर ममत्व और जाग उठा था। पर किसे पता था कि कभी इनका जिक्र एक गीत की शक़्ल में होगा। दिल की धड़कनों के लिए गिलहरियों जैसा बिम्ब सोच कर उसे गीत में पिरोने का श्रेय अर्जित किया है मेरे पसंदीदा गीतकारों में से एक अमिताभ भट्टाचार्य ने ।
यूँ तो दंगल के अधिकांश गीत फिल्म की कथावस्तु के अनुरूप हरियाणवी मिट्टी में रचे बसे हैं पर प्रीतम को इस गीत को उस परिपाटी से अलग रचने का मौका मिला। गीत की शुरुआत प्रीताम गिटार और चुटकियों की मिश्रित जुगलबंदी से करते हैं। गाँव की बँधी बँधाई दिनचर्या से निकल कर शहरी आजादियों का स्वाद चखती एक लड़की की मनोस्थिति में क्या बदलाव आता है, ये गीत उसी को व्यक्त करता है। इस गीत में शब्दों की ताज़गी के साथ साथ आवाज़ की भी एक नई बयार है।
अगर आप जोनिता से पहले परिचित ना हों तो ये बता दूँ कि दिल्ली में जन्मी 27 वर्षीय जोनिता की परवरिश कनाडा में हुई। पिता वैसे तो इंजीनियर थे पर संगीत के शौकीन भी। जोनिता ने अपनी पढ़ाई के साथ पश्चिमी संगीत सीखा और अब हिंदुस्तानी शास्त्रीय संगीत भी सीख रही हैं। पाँच साल पहले यू ट्यूब में पानी दा रंग के कवर वर्सन को गाने के बाद वे सुर्खियों में आयीं। 2013 में चेन्नई एक्सप्रेस के शीर्षक गीत को गाकर उन्होंने बॉलीवुड में अपने कैरियर की शुरुआता की़। फिर ए आर रहमान के एलबम रौनक का हिस्सा बनीं। पिछले साल दंगल के आलावा उनके गया पिंक एंथम और ऐ दिल ए मुश्किल का ब्रेकअप सांग भी काफी लोकप्रिय हुआ।
जोनिता गाँधी |
बहरहाल अमिताभ के इस गीत में गणित की उबन के साथ शरारती अशआर का भी जिक्र है, आसमान और ज़मीं की आपसी नोकझोंक भी है और सिरफिरे मौसम व मसखरे मूड में रचा बसा माहौल भी। शब्दों के साथ इस गीत में उनकी चुहल, लुभाती भी है और गुदगुदाती भी। तो आईए जोनिता की रस भरी आवाज़ में सुनें ये हल्का फुल्का मगर प्यारा सा नग्मा
रंग बदल बदल के, क्यूँ चहक रहे हैं
दिन दुपहरियाँ, मैं जानूँ ना जानूँ ना जानूँ ना जानूँ ना
क्यूँ फुदक फुदक के धडकनों की चल रही गिलहरियाँ
मैं जानूँ ना जानूँ ना
क्यूँ ज़रा सा मौसम सिरफिरा है, या मेरा मूड मसखरा है, मसखरा है
जो जायका मनमानियों का है, वो कैसा रस भरा है
मैं जानूँ ना जानूँ ना जानूँ ना जानूँ ना
क्यूँ हजारों गुलमोहर से
भर गयी है ख्वाहिशों की टहनियाँ
मैं जानूँ ना जानूँ ना जानूँ ना जानूँ ना
इक नयी सी दोस्ती आसमान से हो गयी
ज़मीन मुझसे जल के, मुँह बना के बोले
तू बिगड़ रही है
ज़िन्दगी भी आज कल, गिनतियों से ऊब के
गणित के आंकड़ों के साथ, एक आधा शेर पढ़ रही है
मैं सही ग़लत के पीछे, छोड़ के चली कचहरियाँ
मैं जानूँ ना जानूँ ना जानूँ ना जानूँ ना
वार्षिक संगीतमाला 2016 में अब तक
8 टिप्पणियाँ:
Yess....this is definitely in my list!!! and of course, Haanikaarak Bapu is on top of my list!
Matlab aap bhi apne baapu ki satayi huyi hain :) . Waise uska no. aane mein thoda waqt hai .
Bapu hamare gaay hain gaay...hamari toh matashri hai jinke saamne aaj tak thartharate hai!!
बेहद प्यारा गीत
जानकर खुशी हुई कि ये गीत आपको भी अच्छा लगा बड़ी दी !
ज़मीन मुझसे जल के, मुंह बना के बोले, तू बिगड़ रही है.. बहुत सुन्दर पंक्ति.. जोनिता की आवाज़ गीत में बहुत अच्छी लगती है..
गीत पसंद करने का शुक्रिया ! बोल तो पूरे गीत के ही सुंदर हैं मनीष !
Two highlights.... Gilahri... Aur us jaisi hi pyari fudakti hui si Jonita ki aawaz!!
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