रविवार, फ़रवरी 05, 2017

वार्षिक संगीतमाला 2016 पायदान # 13 : कारी कारी रैना सारी सौ अँधेरे क्यूँ लाई, क्यूँ लाई Kaari Kaari

फिल्में जब हमारी रोजमर्रा की समस्याओं को हूबहू पर्दे पर उतारती हैं तो आप कई दिनों तक उस विषय से जुड़ी सामाजिक विकृतियों को और गहराई से महसूस करते हैं। पिंक एक ऐसी ही फिल्म थी। लड़कियों के प्रति लड़कों की सोच को ये समाज किस तरह परिभाषित करने में मदद करता है या यूँ कहें कि भ्रमित करता है, उससे आप सब वाकिफ़ ही होंगे। पिंक में इसी सोच की बखिया उधेड़ने का काम किया गया था। इस संवेदनशील विषय से जुड़ा इसका मुख्य गीत ऍसा होना था जो फिल्म की थीम को कुछ अंतरों में समा ले और श्रोताओं को सोचने पर मजबूर कर दे कि अगर ऐसा है तो आख़िर ऐसा क्यूँ है? तनवीर गाज़ी की सशक्त लेखनी, शान्तनु मोईत्रा की गंभीर धुन और नवोदित पाकिस्तानी गायिका की ज़ोरदार आवाज़ ने सम्मिलित रूप से ऐसा मुमकिन कर दिखाया। 


तो इससे पहले इस गीत की खूबियों की चर्चा करें कुछ बातें गायिका क़ुरातुलेन बलोच के बारे में। 29 वर्षीय क़ुरातुलेन बलोच का आरंभिक जीवन मुल्तान पाकिस्तान में गुजरा। माता पिता के अलगाव के बाद वो अमेरिका के वर्जीनिया में चली गयीं। उन्होंने कभी संगीत की कोई पारंपरिक शिक्षा नहीं ली।  2010 में दोस्तों के कहने पर पहली बार उन्होंने अपनी प्रिय गायिका रेशमा का गाया गीत अखियों नूँ रैण दे यू ट्यूब पर लगाया जो इंटरनेट पर काफी सराहा गया। संगीत में उनके कैरियर में सबसे बड़ा मोड़ तब आया जब 2011 में एक धारावाहिक हमसफ़र के शीर्षक गीत वो हमसफ़र था , मगर उससे हमनवाई ना थी, कि धूप छाँव का आलम रहा जुदाई ना थी को गाकर उन्होंने रातों रात पूरे पाकिस्तान में जबरदस्त लोकप्रियता हासिल कर ली। हालांकि चार साल पहले हुई एक सड़क  दुर्घटना में गले पर चोट की वज़ह से उनकी आवाज़ जाते जाते बची।

क़ुरातुलेन बलोच
नुसरत फतेह अली खाँ, रेशमा, आबिदा परवीन, पठाने खाँ को बचपन से सुनते हुए क़ुरातुलेन सूफ़ी और लोक संगीत की ओर उन्मुख हो गयीं। आज उनकी गायिकी में लोग जब रेशमा का अक़्स देखते हैं तो वो बेहद गर्वान्वित महसूस करती हैं। क़ुरातुलेन को कारी कारी गाने का प्रस्ताव फिल्म के एक निर्माता रॉनी लाहिड़ी ने रखा।  जब क़ुरातुलेन ने फिल्म का विषय सुना तो उन्हें इस गीत के लिए हामी भरते जरा भी देर नहीं लगी। उनका कहना था कि वो  ख़ुद पाकिस्तान के सामंती समाज से लड़कर गायिकी के क्षेत्र में उतरी हैं इसलिए ऐसी कोई फिल्म जो महिलाओं के प्रतिरोध को दर्शाती है का हिस्सा बनना उनके लिए स्वाभाविक व जरूरी था।

पर कुरातुलेन की आवाज़ का असर तब तक मारक नहीं होता जब शायर तनवीर गाज़ी ने वैसे बोल नहीं रचे होते। अमरावती से ताल्लुक रखने वाले तनवीर को फिल्म जगत से जुड़े डेढ दशक बीत गया। पन्द्रह वर्ष पहले उन्होंने फिल्म मंथन में सुनिधि चौहान द्वारा गाए एक आइटम नंबर को अपने बोल दिए थे पर पहली बार उनकी प्रतिभा का सही उपयोग पिंक में जाकर हुआ। 

तनवीर ग़ाज़ी 
तनवीर ने इस गीत के आलावा फिल्म के लिए एक कविता तू ख़ुद की खोज़ में निकल तू किस लिए हताश है लिखी जिसे अमिताभ बच्चन ने अपनी आवाज़ दी। तनवीर गीतकार के आलावा एक लोकप्रिय शायर भी हैं और देश के विभिन्न हिस्सों में होने वाले मुशायरों में एक जाना पहचाना नाम रहे हैं। अपना परिचय वो अपने एक शेर में वो कुछ यूँ देते हैं

मैं बिन पंखों का जुगनू था जहाज़ी कर दिया मुझको
ग़ज़ल ने छू लिया तनवीर गाज़ी कर दिया मुझको

लड़कियों के साथ आए दिन होने वाली अपराधिक घटनाओं से आहत तनवीर की लेखनी गीत के मुखड़े में पूछ बैठती है उजियारे कैसे, अंगारे जैसे..छाँव छैली, धूप मैली क्यूँ हैं री? दूसरे अंतरे में तो उनके शब्द दिल के आर पार हो जाते हैं जब वो कहते हैं कि पंखुड़ी की बेटी है, कंकड़ों पे लेटी है..बारिशें हैं तेज़ाब की..ना ये उठ के चलती हैं, ना चिता में जलती है..लाश है ये किस ख़्वाब की। शांतनु मोइत्रा ने गीत की इन दमदार पंक्तियों को गिटार आधारित धुन के साथ बड़ी संजीदगी से पिरोया है। तो आइए एक बार फिर सुनते हैं ये गीत..


कारी कारी रैना सारी सौ अँधेरे क्यूँ लाई, क्यूँ लाई
रौशनी के पाँवों में ये बेड़ियाँ सी क्यूँ आईं, क्यूँ आईं
उजियारे कैसे, अंगारे जैसे
छाँव छैली, धूप मैली क्यूँ हैं री


तितलियों के पंखों पर रख दिए गए पत्थर
ए ख़ुदा तू गुम हैं कहाँ
रेशमी लिबासों को चीरते हैं कुछ खंजर
ए ख़ुदा तू गुम हैं कहाँ
क्या रीत चल पड़ी हैं, क्या आग जल पड़ी हैं
क्यूँ चीखता हैं सुरमई धुआँ
क्या रीत चल पड़ी हैं, क्या आग जल पड़ी हैं
क्यूँ चीखता हैं सुरमई धुआँ

कारी कारी रैना ....क्यूँ हैं री

पंखुड़ी की बेटी है, कंकड़ों पे लेटी है
बारिशें हैं तेज़ाब की
ना ये उठ के चलती हैं, ना चिता में जलती है
लाश है ये किस ख़्वाब की

रातो में पल रही हैं, सडको पे चल रही हैं
क्यूँ बाल खोले दहशते यहाँ
रातो में पल रही हैं, सडको पे चल रही हैं
क्यूँ बाल खोले दहशते यहाँ

कारी कारी रैना ....क्यूँ हैं री


फिल्म में ये गीत टुकड़ों में प्रयुक्त होता है इसलिए एक बार सुनने में अंतरों के बीच का समय कुछ ज्यादा लगता है।


वार्षिक संगीतमाला  2016 में अब तक 
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14 टिप्पणियाँ:

HindIndia on फ़रवरी 06, 2017 ने कहा…

As usual amazing article .... really fantastic .... Thanks for sharing this!! :) :)

kumar gulshan on फ़रवरी 06, 2017 ने कहा…

शानदार नगमा उतनी ही अच्छी आवाज़ जब पिंक देखी थी ज्यादा ध्यान कहानी पे रह गया सब कुछ अच्छा हो तो तो सिर्फ एक ही अच्छी चीज़ पे ध्यान नहीं रहता और आप है की गाने की तो छोड़ो गाने वाले की भी आगे पीछे की पूरी कुंडली निकाल लेते है मैंने कुरातुलेन का "अँखियाँ नू " सुना यह भी वाकई शानदार है और आप अगर अगर इस तरह के आर्टिकल लिखेंगे तो लगता है थोड़े दिनों में मेरे तारिफ के शब्द कम पड़ जायेंगे ...

Manish Kumar on फ़रवरी 06, 2017 ने कहा…

शुक्रिया हिंदी इंडिया!

Manish Kumar on फ़रवरी 06, 2017 ने कहा…

गुलशन गीत तो आप कहीं भी सुन सकते हैं। मैं तो यही चाहता हूँ कि लोग उस गीत के बनने की प्रक्रिया और उसमें की गई गीतकार, संगीतकार व गायक की मेहनत से रूबरू हों।

कुरातुलेन की आवाज़ में जो ठसक है वो रेशमा की याद ताज़ा करती है। इनका हमसफ़र वाला ट्रैक भी सम्मोहित करता है।

Sunil Singh on फ़रवरी 06, 2017 ने कहा…

तार्किक विश्लेषण करने के लिए धन्यवाद।

Manish Kumar on फ़रवरी 06, 2017 ने कहा…

Sunil jee सामाजिक सनस्याओं को उभारते गीत कम ही बनते हैं। मैंने गीत में निहित भावनाओं की बात की है तर्क की अपेक्षा। :)

Manish Kaushal on फ़रवरी 06, 2017 ने कहा…

साल की सबसे बेहतरीन फिल्मों में एक... गीत दिल को छूता है.

Manish Kumar on फ़रवरी 06, 2017 ने कहा…

हाँ बिल्कुल Manish :)

Sumit on फ़रवरी 10, 2017 ने कहा…

I was just thinking about the working process of Film Industry which keeps blocking talent like Tanveer Gazi for 15 years...... Amazing!!

Sumit on फ़रवरी 10, 2017 ने कहा…

Thank you for bringing out back story of such talents. Salute.

Manish Kumar on फ़रवरी 10, 2017 ने कहा…

धन्यवाद सुमित दरअसल तनवीर मुशायरों में अपनी शायरी के लिए ज्यादा चर्चित रहे। अब शायर आइटम नंबर लिख कर अपने कैरियर की शुरुआत करें तो उनका हुनर कैसे सामने आएगा? ऐसी प्रतिभा को बाहर लाने के लिए पिंक जैसी स्क्रिप्ट की जरूरत पड़ती है।

कहानियों का अनूठापन ही गीतकार से कुछ उम्दा,कुछ अलहदा लिखवा पाता है।

Kanchan Singh Chouhaan on फ़रवरी 10, 2017 ने कहा…

उफ्फ्फ्फ... वो आवाज़.. जिसे आपने पाकिस्तानी बताया

Manish Kumar on फ़रवरी 10, 2017 ने कहा…

आपने QB का रेशमा वाला गीत और वो हमसफ़र था मगर उससे हमनवाई ना थी तो सुना ही होगा। उनके गाए इन दोनों गीतों ने उनकी एक अलग पहचान बना दी।

Sumit on फ़रवरी 11, 2017 ने कहा…

True! But bigger truth is that he was approached to write the songs for this film..... Not many would have gone to him.

 

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