मंगलवार, मार्च 07, 2017

वार्षिक संगीतमाला 2016 पायदान # 4 : पश्मीना धागों के संग कोई आज बुने ख़्वाब Pashmina

वार्षिक संगीतमाला की चौथी पॉयदान पर गीत वो जो अपने आप में अनूठा है। ये अनूठापन है इस गीत के उतार चढ़ावों में, इसके खूबसूरत संगीत संयोजन में, इसके साथ बहने वाले शब्दों में। फिल्म फितूर का एक गीत होने दो बतिया आप पहले ही सुन चुके हैं और वहीं मैंने जिक्र किया था कि फिल्म की प्रेम कहानी कश्मीर में जन्म लेती है़। वहीं पलती बढ़ती है।


उसी प्रेम को परिभाषित करने के लिए गीतकार स्वानंद किरकिरे को एक रूपक की तलाश थी जो उसी मिट्टी का हो और पश्मीना के रूप में उनकी वो खोज साकार हो गयी। पश्मीना है भी तो क्या? एक बेहद पतला मुलायम धागा जो लद्दाख की एक खास किस्म की बकरियों के रोएँ से निकाला जाता है। प्रेम आख़िर नर्म मुलायम सा ही तो अहसास है जो पश्मीना से बने ऊन की तरह चाहत की गर्मी से दिल को तरो ताजा बनाए रखता है।

पश्मीना धागों के संग
कोई आज बुने ख़्वाब ऐसे कैसे
वादी में गूँजे कहीं
नये साज़ ये रवाब ऐसे कैसे
पश्मीना धागों के संग..


कलियों ने बदले अभी ये मिज़ाज
अहसास ऐसे कैसे
पलकों ने खोले अभी नये राज
जज़्बात ऐसे कैसे
पश्मीना धागों के संग
कोई आज बुने ख्वाब ऐसे कैसे

जब प्यार कच्चा होता है या यूँ कहे पनप रहा होता है तो दिल और दिमाग काबू में नहीं रहते। एक अनजानी डोर उन्हें खींचती रहती है और अगर वो डोर पश्मीना जैसा अहसास जगाए तो फिर उसका साथ छोड़ने का दिल कहाँ करता है? वो कह उठता है मैं साया बनूँ, तेरे पीछे चलूँ, चलता रहूँ....

कच्ची हवा कच्चा धुआँ घुल रहा
कच्चा सा दिल लम्हे नये चुन रहा
कच्ची सी धूप कच्ची ड़गर फिसल रही
कोई खड़ा चुपके से कह रहा
मैं साया बनूँ, तेरे पीछे चलूँ, चलता रहूँ....
पश्मीना धागों के संग
कोई आज बुने ख्वाब ऐसे कैसे ..


स्वानंद दूसरे अंतरे में इन प्रेमसिक्त हृदयों की तुलना उन ओस की बूँदों से करते हैं जो एक दूसरे के पास सरकती हुई यूँ घुल जाती हैं कि उनमें कोई भेद ही नहीं रह जाता। फिर वो अलग भी हो जाएँ तो  दिल और दिमाग का ये बंधन उन्हें ख़यालों से जुदा कब होने देगा?

शबनम के दो कतरे यूँ ही टहल रहे
शाखों पे वो मोती से खिल रहे
बेफिक्र से इक दूजे में घुल रहे
जब हो जुदा ख्यालों में मिल रहे
ख्यालों में यूँ, ये गुफ्तगू, चलती रहे.. ओ..

पानी में गूँजे कहीं, मेरे साज़ ये रवाब
ऐसे कैसे, ऐसे कैसे, ऐसे कैसे, ऐसे कैसे

अमित त्रिवेदी ने इस गीत में गायक और संगीतकार दोनों की भूमिका निभाई  है जिसमें संगीतकार की भूमिका में वो सौ फीसदी खरे उतरे हैं। गिटार के साथ आइ डी राव की बजाई मधुर बाँसुरी प्रील्यूड का हिस्सा बनती है। डेढ़ मिनट बाद पहले इंटरल्यूड में  वॉयलिन के साथ अन्य वाद्यों का समावेश यूँ किया गया है कि मन वाह वाह कर उठता है। संगीत के साथ गीत की उठती गिरती लय आपको अंत तक इससे बाँध कर रखती है। 

हाँ ये जरूर है कि इस गीत को उन्होंने किसी मँजे हुए पार्श्व गायक से गवाया होता तो वो अपनी आवाज़ के कुछ और रंग इसमें भर पाता। ये गीत धीरे धीरे दिल में अपनी जगह बनाता है और जितना इसमें डूबते हैं उतना ही दिल में घर करता  जाता है..


वार्षिक संगीतमाला  2016 में अब तक 
4. पश्मीना धागों के संग कोई आज बुने ख़्वाब Pashmina
5. बापू सेहत के लिए तू तो हानिकारक है   Hanikaarak Bapu
6. होने दो बतियाँ, होने दो बतियाँ   Hone Do Batiyan
7.  क्यूँ रे, क्यूँ रे ...काँच के लमहों के रह गए चूरे'?  Kyun Re..
8.  क्या है कोई आपका भी 'महरम'?  Mujhe Mehram Jaan Le...
9. जो सांझे ख्वाब देखते थे नैना.. बिछड़ के आज रो दिए हैं यूँ ... Naina
10. आवभगत में मुस्कानें, फुर्सत की मीठी तानें ... Dugg Duggi Dugg
11.  ऐ ज़िंदगी गले लगा ले Aye Zindagi
12. क्यूँ फुदक फुदक के धड़कनों की चल रही गिलहरियाँ   Gileheriyaan
13. कारी कारी रैना सारी सौ अँधेरे क्यूँ लाई,  Kaari Kaari
14. मासूम सा Masoom Saa
15. तेरे संग यारा  Tere Sang Yaaran
16.फिर कभी  Phir Kabhie
17 चंद रोज़ और मेरी जान ...Chand Roz
18. ले चला दिल कहाँ, दिल कहाँ... ले चला  Le Chala
19. हक़ है मुझे जीने का  Haq Hai
20. इक नदी थी Ek Nadi Thi
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9 टिप्पणियाँ:

Parmeshwari Choudhary on मार्च 08, 2017 ने कहा…

bahut sunder hai..thanks for sharing

Manish Kumar on मार्च 08, 2017 ने कहा…

शुक्रिया जानकर खुशी हुई कि ये नग्मा आपको भी पसंद आया

HindIndia on मार्च 08, 2017 ने कहा…

हमेशा की तरह एक और बेहतरीन लेख ..... ऐसे ही लिखते रहिये ..... शेयर करने के लिए बहुत-बहुत धन्यवाद। :) :)

Manish Kumar on मार्च 08, 2017 ने कहा…

धन्यवाद !

Smita Jaichandran on मार्च 08, 2017 ने कहा…

I missed out on this song!!! I guess, I am prejudiced...I DO NOT like Katrina, toh iss wajah se iss film ki taraf dhyaan hi nahi jaane diya!!

Manish Kumar on मार्च 08, 2017 ने कहा…

मैंने भी फितूर नहीं देखी हालांकि जिस उपन्यास से ये प्रेरित है वो मेरा पसंदीदा रह चुका है। अमित त्रिवेदी और स्वानंद दोनों ही अपने क्षेत्र में हुनरमंद हैं और इनके रचे गीत पहले भी मुझे पसंद आते रहे हैं। होने दो बतिया और पश्मीना मुझे तो बहुत पसंद आए।

Smita Jaichandran on मार्च 08, 2017 ने कहा…

Yes...Pashmina jab abhi suna toh behad accha laga...tabhi toh aapke countdown se lage rehte hain...choote hue nagine jo mil jaate hain!!

Vinita Arora on मार्च 08, 2017 ने कहा…

A very nice song.....Luv the lyrics....'Daage' word weaves everything into it..Even for the song 'yeh moh moh ke daage'

Manish Kumar on मार्च 08, 2017 ने कहा…

Nice to know that u liked it too.

Moh Moh ke dhage was just fabulous . Infact my number uno of last year countdown

http://www.ek-shaam-mere-naam.in/2016/03/2015-moh-moh-ke-dhage.html

 

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