रविवार, सितंबर 24, 2017

कई दिनों तक चूल्हा रोया, चक्की रही उदास...

एक दशक पहले की बात है। वो ब्लॉगिंग के शुरुआती दिन थे और तभी अमित कुलश्रेष्ठ से आभासी जान पहचान हुई थी। टिप्पणियों के आलावा कभी कभी चैट पर भी बातें हो जाया करती थीं, जिनका मुख्य विषय अक़्सर कविता व शायरी ही हुआ करता था। फिर अमित अध्ययन से अध्यापन में जुट गए और हमारे बीच संवाद लगभग खत्म ही हो गया। अपनी किसी टिप्पणी के साथ गाहे बगाहे वो कभी प्रकट हो जाते थे और फिर अंतर्ध्यान भी हो जाया करते थे। इतना मुझे आभास था कि गणित से जुड़ा शोध और प्रेम उन्हें सोशल मीडिया व ब्लॉग पर विचरने का कम ही मौका देता है।



सालों बाद धर्मवीर भारती की एक कविता का जिक्र उन्हें  मेरे ब्लॉग पर फिर ले आया। फिर दो तीन महीने पहले उन्होंने एक ख़त लिखा कि सितंबर में मोहाली से राँची आना है। राँची विश्वविद्यालय में गणित से जुड़ी एक कार्यशाला है।  कार्यशाला में आने के साथ मुझसे मिलना भी एक प्रयोजन है। ज़ाहिर है मुझे खुशी हुई कि इतने दिनों बाद भी उन्होंने मुझे याद रखा था। मिलना शनिवार को था। छुट्टी भी थी पर कार्यालय से ऐसा आकस्मिक कार्य आ गया कि मुझे आसनसोल रवाना होना पड़ा।

फिर भी शुक्रवार को संध्या में हमने दो घंटे निकाल ही लिए। इडली और सांभर बड़े के बीच बातचीत का दौर शुरु हुआ। अमित गणित के विद्वान तो हैं ही साथ ही एक साहित्य प्रेमी भी है। भगवान ने उन्हें कविताओं के मामले में स्मरण शक्ति भी अच्छी दे रखी है। मेरी मित्र मंडली में ऍसे कुछ लोग हैं जिन्हें बस कहने की देर है और पुरानी से पुरानी कविता उनकी जिह्वा पर आ जाती है। सच बड़ा रश्क़ होता है ऐसे लोगों को देखकर। अमित भी इसी बिरादरी के हैं। हमलोग अलग अलग विषयों पर बात करते रहे और वो उन बातों का भाव लिए कविताओं की पंक्तियाँ सुना कर मन आनंदित करते रहे।

लिहाज़ा शिवमंगल सिंह सुमन, पंत, भवानी प्रसाद मिश्र, बाबा नागार्जुन, दुष्यंत कुमार से होती हुई बात अदम गोंडवी तक पहुँच गयी। किसी लेखक के लेखन से उसके व्यक्तित्व का कितना सही आकलन कर पाते हैं उस पर चर्चा हुई। अमित ने उन दिनों के ब्लॉगरों को भी याद किया जब वे ब्लागिंग में सक्रिय थे। स्कूलों में भाषा का गिरता स्तर चाहे वो हिंदी हो या अंग्रेजी हम दोनों के लिए चिंता का विषय था। एक मुद्दा ये भी रहा कि जिनके लिए हिंदी रोज़ी रोटी का विषय है वे ही इसकी साख में बट्टा लगाने की कोई कसर नहीं छोड़ रहे। मैं था तो संगीत और मेरी यात्राओं से जुड़ी बातें होनी ही थीं सो हुईं भी।

बहुत अच्छा लगा अमित आप आए और आपसे कविता सुनने का मौका मिला और समय रहता तो मैं कुछ अपने उन पसंदीदा गीतों को आपके सामने जरूर गुनगुनाता जिनमें अंदर की कविता मेरे हृदय को हर मूड में प्रफुल्लित कर देती है। चलते चलते बाबा नागार्जुन की जिस कविता का ये कहते हुए उल्लेख किया था कि बताइए बाबा ने एक कानी कुतिया में भी कितना सटीक बिंब ढूँढ लिया..

कई दिनों तक चूल्हा रोया, चक्की रही उदास
कई दिनों तक कानी कुतिया सोई उनके पास
कई दिनों तक लगी भीत पर छिपकलियों की गश्त
कई दिनों तक चूहों की भी हालत रही शिकस्त।

दाने आए घर के अंदर कई दिनों के बाद
धुआँ उठा आँगन से ऊपर कई दिनों के बाद
चमक उठी घर भर की आँखें कई दिनों के बाद
कौए ने खुजलाई पाँखें कई दिनों के बाद।


ये छोटी सी कविता बाबा नागार्जुन ने अकाल के संदर्भ में पचास के दशक में लिखी थी। कविता का शीर्षक था अकाल और उसके बाद। बाबा ने कविता के पहले अंतरे में उस अकाल पीड़ित खेतिहर के घर के बारे में लिखा है जहाँ हफ्तों से चूल्हा नहीं जला । अब जब भोजन ही नहीं पकना तो चूल्हे के पास कुत्ते को फटकने से कौन रोके। रसोई मे जब आग ही ना जलेगी तो कीट पतंग कहाँ से आकर्षित हो पाएँगे। अब ये भला छिपकलियाँ कहाँ जानती थीं वो तो दीवारों पर लगाती रहीं गश्त। अब भोजन नहीं तो जूठन भी नहीं तो चूहों को भी खाने के लाले पड़ गए। दूसरे अंतरे में अकाल से जूझने के बाद रसोई में फिर से चूल्हा जलने की खुशी का जिक्र है जिससे घर के लोगों के साथ साथ मुंडेर पर मँडराते कौवे को भी आशा का नई किरण दिख चुकी है।

एक रोचक तथ्य ये भी है कि इसे फिल्म लुटेरा में सोनाक्षी और रणवीर ने मिलकर इस कविता को पढ़ा था। 😊
Related Posts with Thumbnails

7 टिप्पणियाँ:

Ashutosh Mishra on सितंबर 25, 2017 ने कहा…

Amit bhai purane hindi dhwajvahak hai

HARSHVARDHAN on सितंबर 25, 2017 ने कहा…

आपकी इस पोस्ट को आज की बुलेटिन 101वीं जयंती : पंडित दीनदयाल उपाध्याय और ब्लॉग बुलेटिन में शामिल किया गया है। कृपया एक बार आकर हमारा मान ज़रूर बढ़ाएं,,, सादर .... आभार।।

Manish Kumar on सितंबर 27, 2017 ने कहा…

हाँ आशुतोष हिंदी कविता से उनका प्रेम सर्वविदित है।

हार्दिक आभार हर्षवर्धन !

प्रवीण पाण्डेय on अक्तूबर 01, 2017 ने कहा…

आपके ब्लॉग पर मन पोषित हो जाता है।

कविता रावत on अक्तूबर 02, 2017 ने कहा…

सच है दुनिया गोल कब, कहाँ किसका परस्पर मिलन संयोग बने, जानना आसान नहीं
बहुत अच्छी प्रस्तुति

Manish Kumar on अक्तूबर 31, 2017 ने कहा…

अच्छा लगा जानकर प्रवीण।

हाँ सही कहा आपने कविता!

Beauty And Health Secrets on मई 01, 2019 ने कहा…

Aprtim kavita

 

मेरी पसंदीदा किताबें...

सुवर्णलता
Freedom at Midnight
Aapka Bunti
Madhushala
कसप Kasap
Great Expectations
उर्दू की आख़िरी किताब
Shatranj Ke Khiladi
Bakul Katha
Raag Darbari
English, August: An Indian Story
Five Point Someone: What Not to Do at IIT
Mitro Marjani
Jharokhe
Mailaa Aanchal
Mrs Craddock
Mahabhoj
मुझे चाँद चाहिए Mujhe Chand Chahiye
Lolita
The Pakistani Bride: A Novel


Manish Kumar's favorite books »

स्पष्टीकरण

इस चिट्ठे का उद्देश्य अच्छे संगीत और साहित्य एवम्र उनसे जुड़े कुछ पहलुओं को अपने नज़रिए से विश्लेषित कर संगीत प्रेमी पाठकों तक पहुँचाना और लोकप्रिय बनाना है। इसी हेतु चिट्ठे पर संगीत और चित्रों का प्रयोग हुआ है। अगर इस चिट्ठे पर प्रकाशित चित्र, संगीत या अन्य किसी सामग्री से कॉपीराइट का उल्लंघन होता है तो कृपया सूचित करें। आपकी सूचना पर त्वरित कार्यवाही की जाएगी।

एक शाम मेरे नाम Copyright © 2009 Designed by Bie