फिल्मों गीतों में गालियों को मुखड़ों में इस्तेमाल करने का रिवाज़ नया नहीं है। दरअसल गीतों में उनका प्रयोग कुछ इस तरह से हुआ है कि अव्वल तो वो गालियाँ रही नहीं बल्कि एक तरह की उलाहना बन गयीं हैं। मजे की बात है कि गीतकारों की सारी खुंदस मुए इस दिल पर ही उतरी है। दिल बदमाश भी है (बदमाश दिल तो ठग है बड़ा..सिंघम)और बदतमीज़ भी ( बदतमीज़ दिल YZHD)। गुलज़ार साहब तो एक स्तर और बढ़ गए और उसे 'कमीना' ही बना दिया। पर इस कमीने दिल पर क्या खूब कहा था उन्होंने..
क्या करे ज़िन्दगी, इसको हम जो मिले
इसकी जाँ खा गये, रात दिन के गिले
रात दिन गिले...
मेरी आरज़ू कमीनी, मेरे ख्वाब भी कमीने
इक दिल से दोस्ती थी, ये हुज़ूर भी कमीने..
इसलिए जब जग्गा जासूस में अमिताभ भट्टाचार्य ने इस दिल को 'उल्लू के पठ्ठे' की संज्ञा दे दी तो लगा कि इस बेचारे दिल को ना जाने आगे और कितने बुरे दिन देखने हैं। कसूर भी क्या जाना ना हो जहाँ वहीं जाता है..फूटी तक़दीर आज़माता है। अब बात भले सही हो पर ज़िंदगी में जो कुछ भी अच्छा है वो तो इसी दिल की बदौलत है। भले ये काबू में नहीं रहता, दिमाग से लड़ झगड़ कर हमसे उल्टी सीधी हरक़ते करवा लेता है पर ये तो उन लहरों की तरह है जो अगर तट पर उथल पुथल ना मचाएँ तो शरीर रूपी सागर बिल्कुल बेजान हो जाए।
वैसे सच बताऊँ तो इस गाने ने मेरा ध्यान अपनी ओर गाली वाली हुक लाइन से नहीं बल्कि प्रील्यूड में प्रीतम के गिटार के शानदार संयोजन की वज़ह से आकर्षित किया था। प्रीतम ने इस गीत में इलेक्ट्रिक और एकॉस्टिक गिटार के आलावा फ्लोमेनको गिटार का इस्तेमाल किया जो स्पेन से प्रचलन में आया।फ्लोमेनको गिटार का ऊपरी सिरा परंपरागत गिटार से थोड़ा पतला होता है। स्पेनिश नृत्य में पैरों की थाप के बीच तेज आवाज़ की जरूरत होती है जो इस गिटार के आधार को रोजवुड जैसी मजबूत लकड़ी से बनाए जाने से उत्पन्न की जा सकती है।
इस गीत को अपनी आवाज़ दी है अरिजीत सिंह और निकिता गाँधी ने और गीत के मूड के साथ उनकी गायिकी जँची भी है। गीत में अमिताभ ने दिल की शान में कुछ मजेदार पंक्तियाँ रची हैं। मिसाल के तौर पर संगमरमर के बँगले बनाता है, दिल अकबर का पोता है या फिर आजकल के प्रेम के परिपेक्ष्य में उनका कहना जैसे आता है चुटकी में जाता है दिल सौ सौ का छुट्टा है। अमिताभ की मस्तिष्क की इस उर्वरता को देख मन मुस्कुराए बिना नहीं रह पाता।
पर्दे पर चेहरे पर शून्यता का भाव लिए हुए रणबीर कपूर और कैटरीना कैफ ने जो रोबोट सदृश लटके झटके किये हैं वो भी दर्शकों का दिल लुभाते हैं। तो आइए इस गीत की मस्ती के साथ मन को थोड़ा आनंदमय कर लें ...
पर्दे पर चेहरे पर शून्यता का भाव लिए हुए रणबीर कपूर और कैटरीना कैफ ने जो रोबोट सदृश लटके झटके किये हैं वो भी दर्शकों का दिल लुभाते हैं। तो आइए इस गीत की मस्ती के साथ मन को थोड़ा आनंदमय कर लें ...
और हाँ अगर वीडियो देख के आप के मन में ये सवाल उठ रहा हो कि ये किस देश में फिल्माया गया तो बता दूँ कि रणवीर कैटरीना का ये गाना उत्तर अफ्रीका के देश मोरक्को में शूट हुआ था।😊
वार्षिक संगीतमाला 2017
1. कुछ तूने सी है मैंने की है रफ़ू ये डोरियाँ
2. वो जो था ख़्वाब सा, क्या कहें जाने दे
3. ले जाएँ जाने कहाँ हवाएँ हवाएँ
6. मन बेक़ैद हुआ
7. फिर वही.. फिर वही..सौंधी यादें पुरानी फिर वही
8. दिल दीयाँ गल्लाँ
9. खो दिया है मैंने खुद को जबसे हमको है पाया
10 कान्हा माने ना ..
13. ये इश्क़ है
17. सपने रे सपने रे
19. नज़्म नज़्म
20 . मीर ए कारवाँ
24. गलती से mistake
2. वो जो था ख़्वाब सा, क्या कहें जाने दे
3. ले जाएँ जाने कहाँ हवाएँ हवाएँ
7. फिर वही.. फिर वही..सौंधी यादें पुरानी फिर वही
8. दिल दीयाँ गल्लाँ
9. खो दिया है मैंने खुद को जबसे हमको है पाया
10 कान्हा माने ना ..
8 टिप्पणियाँ:
गीतों को उनकी पंक्तियों के बीच से पकड़ना कोई आपसे सीखे. इस गीत को अब दोबारा सुना...मज़ा दोहरा हो गया. और साहब, गीतकर भी अगर हमसे हमारी ही जुबान में बात करे तो बात जल्दी दिल में उतरती है...इसीलिए गुलज़ार के कमीना शब्द में भी शायरी की नफ़ासत है और "उल्लू का पट्ठा" दिल भी हमें मीठा लगता है :)
इसीलिए गुलज़ार के कमीना शब्द में भी शायरी की नफ़ासत है और "उल्लू का पट्ठा" दिल भी हमें मीठा लगता है :)
बिल्कुल मेरे मन की बात पढ़ ली आपने सौरभ :)
बेहद ही उम्दा वर्णन किया है सर।
मतलब मेरे दिल की बात तुम तक पहुँची :)
दिल बदमाश, ठग, कमीना वगैरह होने के साथ ही एक अच्छा दोस्त भी है जो अपनी बात पहुंचाना जानता है।
बिल्कुल :)
हिन्दी सिनेमा के बड़े गीतकार श्री संतोषानंद जी ने अपने एक साक्षात्कार में कहा था कि सच्चा और अच्छा गीत वही जो मुहावरों से बनें,और इस कला में अमिताभ भट्टाचार्या जी निष्णात है । चाहे लट्टू हो जाना हो(लट्टू पड़ोसन की भाभी हो गयी, या फिर पुंगी बजा के,)।
'उल्लू का पट्ठा' भी हिन्दी का एक मुहावरा है जिसका अर्थ थोड़ा नासमझ होना या बेवकूफ होना या थोड़ा शरारती होना।फ़िल्म की सिचुएशन भी यही है।जो फ़िल्म की सिचुएशन के अनुसार धुन को प्रचलित मुहावरे में ढालकर कर्णप्रिय बना दे,संवाद को छंद बना दे ,लाक्षणिक मुहावरे को कविता बना दे,आम बात को गीत बना दे,उसे ही शब्दों का जादूगर कहा जाता है।आनंद बक्षी के बाद अमिताभ भट्टाचार्य जी सचमुच ऐसे ही जादूगर है! यही कारण है कि लोककंठ में उनके गीत इतने लोकप्रिय हैं।।
उल्लू का पट्ठा' उल्लू का पठ्ठा एक हल्की फुल्की ही सही पर गाली भी है। बाकी जैसा आपने कहा अमिताभ की काबिलियत पर मुझे भी पूरा यकीन है और वो भी तब से जब उन्हें कोई जानता भी नहीं था। तभी तो उनके लिखे तीस गाने पिछले एक दशक में इस संगीतमाला का हिस्सा बन चुके हैं।
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