वार्षिक संगीतमाला की अगली पायदान पर गीत वो जिसके संगीतकार और गायक का हिंदी फिल्म संगीत में ये पहला कदम है। ये उनकी प्रतिभा का ही कमाल है कि पहले ही प्रयास में वो उनका रचा ये गीत इस संगीतमाला के प्रथम दस गीतों में शामिल हुआ है । मैं बात कर रहा हूँ फिल्म फिल्लौरी के गीत साहिबा की। इस गीत को संगीतबद्ध किया है शाश्वत सचदेव ने और अपनी आवाज़ से सँवारा है रोमी ने । गीत के एक अंतरे में उनका साथ दिया है पवनी पांडे ने।
मन में सहसा ये प्रश्न उठता है कि इतने नए कलाकार एक साथ इस फिल्म में आए कैसे? इसका श्रेय सह निर्माता कर्नेश शर्मा को जाता है जिन्होंने शाश्वत का संगीतबद्ध किया हुआ गीत "दम दम" इतना अच्छा लगा कि उन्हें फिल्म के बाकी के चार गीतों को जिम्मा भी सौंप दिया। अब गायक चुनने की जिम्मेदारी शाश्वत की थी तो उन्होंने पंजाब के गायक रोमी को चुन लिया जो उस वक़्त विज्ञापन के छोटे मोटे जिंगल और स्टेज शो किया करते थे और उनके मित्र भी थे ।
शाश्वत का मानना है कि अगर कुछ नया करना है तो नई आवाज़ों और नए साजिंदो के साथ काम करना चाहिए। यही कारण था कि गायक गायिका के आलावा वादकों की फ़ौज़ ऐसे कलाकारों को ले के बनाई गयी जो पहली बार किसी हिंदी फिल्म के गीत में अपना योगदान दे रहे थे।
आपको जान के आश्चर्य होगा कि शाश्वत सिम्बियोसिस पुणे से कानून की डिग्री ले चुके हैं। कानून और संगीत का गठजोड़ कुछ अटपटा सा लगता है ना? अब उसकी भी एक कहानी है। जयपुर से ताल्लुक रखने वाले शाश्वत के पिता डॉक्टर और माँ दर्शनशास्त्र की व्याखाता हैं। माँ को गाने का भी शौक़ था तो छोटी उम्र से ही उन्होंने शाश्वत की संगीत की शिक्षा देनी शुरु कर दी़। फिर शास्त्रीय संगीत और पियानो की भी उन्होंने अलग अलग गुरुओं से विधिवत शिक्षा ली और साथ ही पढ़ाई भी करते रहे । माँ पढ़ाई के बारे में सख्त थीं तो उनका कहना मानते हुए कानून की पढ़ाई चालू कर दी। उसके बाद वे विदेश भी गए पर पिता उन्हें एक संगीतकार में देखना चाहते थे तो वो संगीत में कैरियर बनाने वापस मुंबई आ गए।
साहिबा एक कमाल का गाना है। इसके बोल, संगीत और गायिकी तीनों ही अलहदा हैं। संगीतमाला के ये उन गिने चुने गीतों में से है जो रिलीज़ होने के साथ ही मेरी पसंदीदा सूची में आ गए थे गीत की लय इतनी सुरीली है कि बिना संगीत के गायी जाए तो भी अपना प्रभाव छोड़ती है। शाश्वत ने गिटार और ताल वाद्यों का मुख्यतः प्रयोग करते हुए इंटरल्यूड्स में पियानो और वॉयलिन का हल्का हल्का तड़का दिया है जो गीत को और मधुर बनाता है । शाश्वत पश्चिमी शास्त्रीय संगीत से काफी प्रभावित हैं और इस गीत की सफलता के बाद उन्होंने इसका आर्केस्ट्रा वर्जन रिलीज़ किया जिसमें उनका ये प्रेम स्पष्ट नज़र आता है।
इस गीत को लिखा है अन्विता दत्त गुप्तन ने । अन्विता गीतकार के आलावा एक पटकथा लेखक भी हैं और अक्सर यशराज और धर्मा प्रोडक्शन की फिल्मों में उनका नाम नज़र आता है। विज्ञापन उद्योग से फिल्म उद्योग में लाने का श्रेय वो आदित्य चोपड़ा को देती हैं। सच बताऊँ तो आरंभिक वर्षों में जिस तरह के गीत वो लिखती थीं वो मुझे शायद ही पसंद आते थे। वर्ष 2008 में उनके दो गीत जरूर मेरी गीतमाला की निचली पायदानों में शामिल हुए थे। एक दशक बाद वो फिर से लौटी हैं इस गीतमाला का हिस्सा बन कर। वो अक्सर कहा करती हैं कि मैं बस इतना चाहती हूँ कि जब भी मैं कोई अपना अगला गीत रचूँ तो वो पिछले से बेहतर बने। फिल्लौरी में उन्होंने इस बात को साबित कर के दिखाया है। जिस गीतकार ने स्टूडेंट आफ दि ईयर के लिए इश्क़ वाला लव जैसे बेतुके बोल रचे हों वो तेरे बिन साँस भी काँच सी काँच सी काटे काटे रे.. तेरे बिन जिंदणी राख सी राख सी लागे रे...जैसी नायाब पंक्तियाँ लिख सकती है ऐसी कल्पना मैंने कभी नहीं की थी।
अन्विता व रोमी |
एक दर्द भरे प्रेम प्रसंग को अन्विता ने जिस खूबसूरती से इस गीत में बाँधा है वो वाकई काबिले तारीफ़ है। गायक रोमी ने इससे पहले प्रेम गीत कम ही गाए थे और इसी वज़ह से वो इसे ठीक से निभा पाने के बारे में सशंकित थे। पर शाश्वत के हौसला देने से उन्होंने वो कर दिखाया जिसकी उम्मीद उन्हें ख़ुद भी नहीं थी। गीत सुनते समय रोमी की गहरी आवाज़ दिल के कोरों को नम कर जाती है जब वो साहिबा को पुकारते हुए कहते हैं कि साहिबा... साहिबा...चल वहाँ जहाँ मिर्जा..
दरगाह पे जैसे हो चादरों सा बिछा
यूँ ही रोज़ यह उधड़ा बुना
किस्सा इश्क़ का कई बार
हमनें फिर से लिखा
साहिबा... साहिबा...चल वहाँ जहाँ मिर्जा..
खाली चिट्ठियाँ थी
तुझे रो रो के लगा भेजी
मुहर इश्कां की, इश्कां की हाये .
काग़ज़ की कश्ती
मेरे दिल की थी डुबा बैठी, लहर अश्कां की हाए
बेसुरे दिल की ये धुन, करता दलीलें तू सुन
आइना तू, तू ही पहचाने ना
जो हूँ वो माने ना, ना अजनबी तू बन अभी .
हूक है दिल में उठी, आलापों सी है बजी
साँसों में तू, मद्धम से रागों सा
केसर के धागों सा, यूँ घुल गया, मैं गुम गया....
ओ.... दिल पे धुंधला सा सलेटी रंग कैसा चढ़ा... आ ....
तुझसे ऐसा उलझा ...साहिबा...चल वहां जहाँ मिर्जा.
ओ साहिबा... ओ साहिबा....
हिज्र की चोट है लागी रे
ओ साहिबा.....
जिगर हुआ है बागी रे
ज़िद्द बेहद हुई रटती है जुबान
ओ तेरे बिन
ओ तेरे बिन साँस भी काँच सी काँच सी काटे काटे रे
ओ तेरे बिन जिंदणी राख सी राख सी लागे रे
अनुष्का शर्मा इस फिल्म की सह निर्मात्री भी थीं और नायिका भी। इस गीत के वीडियो वर्सन में गीत के सबसे बेहतरीन हिस्से को ही शूट किया गया है और इसीलिए ये दो मिनट छोटा है। नायक की भूमिका में आपको नज़र आएँगे दिलजीत दोसाँझ जो ख़ुद भी एक मँजे हुए गायक हैं।
वार्षिक संगीतमाला 2017
1. कुछ तूने सी है मैंने की है रफ़ू ये डोरियाँ
2. वो जो था ख़्वाब सा, क्या कहें जाने दे
3. ले जाएँ जाने कहाँ हवाएँ हवाएँ
6. मन बेक़ैद हुआ
7. फिर वही.. फिर वही..सौंधी यादें पुरानी फिर वही
8. दिल दीयाँ गल्लाँ
9. खो दिया है मैंने खुद को जबसे हमको है पाया
10 कान्हा माने ना ..
13. ये इश्क़ है
17. सपने रे सपने रे
19. नज़्म नज़्म
20 . मीर ए कारवाँ
24. गलती से mistake
2. वो जो था ख़्वाब सा, क्या कहें जाने दे
3. ले जाएँ जाने कहाँ हवाएँ हवाएँ
7. फिर वही.. फिर वही..सौंधी यादें पुरानी फिर वही
8. दिल दीयाँ गल्लाँ
9. खो दिया है मैंने खुद को जबसे हमको है पाया
10 कान्हा माने ना ..
4 टिप्पणियाँ:
वाकई मनीष,तुम्हारे लेखनी और ब्लॉग में ये क्षमता है कि बिना आंख वाले को भी रंगों की बखूबी पहचान करा दे।फ़िल्म मैंने नहीं देखा और इस गीत पर भी ध्यान नहीं दिया था।आज तुम्हारा ब्लॉग एवं ऑडियो,वीडियो पढ़ कर,सुन कर और देख कर महसूस हुआ कि इतने मर्मस्पर्शी गीत एवं प्रेम प्रदर्शन की इन नायाब पंक्तियों से में वंचित रह जाता यदि ब्लॉग नहीं पढ़ा होता।बहुत बहुत धन्यवाद।निश्चित रूप से दिल को छू लेने वाला यह गीत वार्षिक संगीतमाला के पायदान का हकदार है। पुनः ढेरों धन्यवाद मनीष।
धन्यवाद...आपकी उत्साहवर्धक प्रतिक्रियाके लिए।
बेहद पसंदीदा
जानकर खुशी हुई स्मिता !
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