हमारे यहाँ की फिल्मी कथाओं में प्रेम का कोई अक़्स ना हो ऐसा शायद ही कभी होता है। यही वज़ह है कि अधिकांश फिल्में एक ना एक रूमानी गीत के साथ जरूर रिलीज़ होती हैं। फिर भी गीतकार नए नए शब्दों के साथ उन्हीं भावनाओं को तरह तरह से हमारे सम्मुख परोसते रहते हैं। पर एक गीतकार के लिए बड़ी चुनौती तब आती है जब उसे सामान्य परिस्थिति के बजाए उलझते रिश्तों में से प्रेम की गिरहें खोलनी पड़ती हैं। ऐसी ही एक चुनौती को बखूबी निभाया है राज शेखर ने वार्षिक संगीतमाला 2017 के रनर्स अप गीत के लिए जो कि है फिल्म करीब करीब सिंगल से।
राज शेखर एक शाम मेरे नाम की वार्षिक संगीतमालाओं के लिए कोई नई शख़्सियत नहीं हैं । बिहार के मधेपुरा से ताल्लुक रखने वाले इस गीतकार ने अपनी शुरुआती फिल्म तनु वेड्स मनु में वडाली बंधुओं के गाए गीत रंगरेज़ से क्रस्ना के साथ मिलकर वार्षिक संगीतमाला के सरताज़ गीत का खिताब जीता था। हालांकि तनु वेड्स मनु की सफलता राज शेखर के कैरियर में कोई खास उछाल नहीं ला पाई। तनु वेड्स मनु रिटर्न के साथ वो लौटे जरूर पर अभी भी वो फिल्म जगत में अपनी जड़े जमाने की ज़द्दोजहद में लगे हुए हैं। आजकल अपनी कविताओं को वो अपने बैंड मजनूँ का टीला के माध्यम से अलग अलग शहरों में जाकर प्रस्तुत भी कर रहे हैं।
करीब करीब सिंगल में राज शेखर के लिखे गीत को संगीतबद्ध किया विशाल मिश्रा ने। वैसे तो विशाल ने कानून की पढ़ाई की है और विधिवत संगीत सीखा भी नहीं पर शुरुआत से वो संगीत के बड़े अच्छे श्रोता रहे हैं। सुन सुन के ही उन्होंने संगीत की अपनी समझ विकसित की है। आज वे सत्रह तरह के वाद्य यंत्रों को बजा पाने की काबिलियत रखते हैं। विकास ने भी इस गीत की धुन को इस रूप में लाने के लिए काफी मेहनत की। चूँकि वो एक गायक भी हैं तो अपनी भावनाओं को भी गीत की अदाएगी में पिरोया। जब गीत का ढाँचा तैयार हो गया तो उन्हें लगा कि इस गीत के साथ आतिफ़ असलम की आवाज़ ही न्याय कर सकती है। इसी वज़ह से गीत की रिकार्डिंग दुबई में हुई। ये भी एक मसला रहा कि गीत में जाने दे या जाने दें में से कौन सा रूप चुना जाए? आतिफ़ को गीत के बहाव के साथ जाने दें ही ज्यादा अच्छा लग रहा था जिसे मैंने भी महसूस किया पर आख़िर में हुआ उल्टा।
विशाल मिश्रा, आतिफ़ असलम और राजशेखर |
राज शेखर कहते हैं कि इस गीत को उन्होंने फिल्म की कहानी और कुछ अपने दिल की आवाज़ को मिलाकर लिखा। तो आइए देखें कि आख़िर राजशेखर ने इस गीत में ऍसी क्या बात कही है जो इतने दिलों को छू गयी।
ज़िदगी इतनी सीधी सपाट तो है नहीं कि हम जिससे चाहें रिश्ता बना लें और निभा लें। ज़िंदगी के किसी मोड़ पर हम कब, कहाँ और कैसे किसी ऐसे शख़्स से मिलेंगे जो अचानक ही हमारे मन मस्तिष्क पर छा जाएगा, ये भला कौन जानता है? ये भी एक सत्य है कि हम सभी के पास अपने अतीत का एक बोझा है जिसे जब चाहे अपने से अलग नहीं कर सकते। कभी तो हम जीवन में आए इस हवा के नए झोंके को एक खुशनुमा ख़्वाब समझ कर ना चाहते हुए भी बिसार देने को मजबूर हो जाते हैं या फिर रिश्तों को अपनी परिस्थितियों के हिसाब से ढालते हैं ताकि वो टूटे ना, बस चलता रहे। ऐसा करते समय हम कितने उतार चढ़ाव, कितनी कशमकश से गुजरते हैं ये हमारा दिल ही जानता है। सोचते हैं कि ऐसा कर दें या फिर वैसा कर दें तो क्या होगा? पर अंत में पलायनवादी या फिर यथार्थवादी सोच को तरज़ीह देते हुए मगर जाने दे वाला समझौता कर आगे बढ़ जाते हैं। इसीलिए राजशेखर गीत के मुखड़े में कहते हैं
ज़िदगी इतनी सीधी सपाट तो है नहीं कि हम जिससे चाहें रिश्ता बना लें और निभा लें। ज़िंदगी के किसी मोड़ पर हम कब, कहाँ और कैसे किसी ऐसे शख़्स से मिलेंगे जो अचानक ही हमारे मन मस्तिष्क पर छा जाएगा, ये भला कौन जानता है? ये भी एक सत्य है कि हम सभी के पास अपने अतीत का एक बोझा है जिसे जब चाहे अपने से अलग नहीं कर सकते। कभी तो हम जीवन में आए इस हवा के नए झोंके को एक खुशनुमा ख़्वाब समझ कर ना चाहते हुए भी बिसार देने को मजबूर हो जाते हैं या फिर रिश्तों को अपनी परिस्थितियों के हिसाब से ढालते हैं ताकि वो टूटे ना, बस चलता रहे। ऐसा करते समय हम कितने उतार चढ़ाव, कितनी कशमकश से गुजरते हैं ये हमारा दिल ही जानता है। सोचते हैं कि ऐसा कर दें या फिर वैसा कर दें तो क्या होगा? पर अंत में पलायनवादी या फिर यथार्थवादी सोच को तरज़ीह देते हुए मगर जाने दे वाला समझौता कर आगे बढ़ जाते हैं। इसीलिए राजशेखर गीत के मुखड़े में कहते हैं
वो जो था ख़्वाब सा, क्या कहें जाने दे
ये जो है कम से कम ये रहे कि जाने दे
क्यूँ ना रोक कर खुद को एक मशवरा कर लें मगर जाने दे
आदतन तो सोचेंगे होता यूँ तो क्या होता मगर जाने दे
वो जो था ख्वाब सा ....
हम आगे बढ़ जाते हैं पर यादें बेवज़ह रह रह कर परेशान करना नहीं छोड़तीं। दिल को वापस मुड़ने को प्रेरित करने लगती हैं। उन बातों को कहवा लेना चाहती हैं जिन्हें हम उसे चाह कर भी कह नहीं सके। पर दिमाग आड़े आ जाता है। वो फिर उस मानसिक वेदना से गुजरना नहीं चाहता और ये सफ़र बस जाने दे से ही चलता रहता है। अंतरों में राजशेखर ने ये बात कुछ यूँ कही है..
हम्म.. बीता जो बीते ना हाय क्यूँ, आए यूँ आँखों में
हमने तो बे-मन भी सोचा ना, क्यूँ आये तुम बातों में
पूछते जो हमसे तुम जाने क्या क्या हम कहते मगर जाने दे
आदतन तो सोचेंगे होता यूँ तो क्या होता मगर जाने दे
वो जो था ख्वाब सा ....
आसान नहीं है मगर, जाना नहीं अब उधर
हम्म.. आसान नहीं है मगर जाना नहीं अब उधर
मालूम है जहाँ दर्द है वहीं फिर भी क्यूँ जाएँ
वही कशमकश वही उलझने वही टीस क्यूँ लाएँ
बेहतर तो ये होता हम मिले ही ना होते मगर जाने दे
आदतन तो सोचेंगे होता यूँ तो क्या होता मगर जाने दे
वो जो था ख्वाब सा .......
आतिफ़ की आवाज़ गीत के उतार चढ़ावों के साथ पूरा न्याय करती दिखती है। विशाल ताल वाद्यों के साथ गिटार का इंटरल्यूड्स में काफी इस्तेमाल करते हैं। वैसे आपको जान कर अचरज होगा कि राज शेखर ने इस गीत के लिए इससे भी पीड़ादायक शब्द रचना की थी। वो वर्सन तो ख़ैर अस्वीकार हो गया और फिलहाल राज शेखर की डायरी के पन्ने में गुम है। उन्होंने वादा किया है कि अगर उन्हें वो हिस्सा मिलेगा उसे शेयर करेंगे। तो चलिए अब सुनते हैं ये नग्मा
वार्षिक संगीतमाला 2017
1. कुछ तूने सी है मैंने की है रफ़ू ये डोरियाँ
2. वो जो था ख़्वाब सा, क्या कहें जाने दे
3. ले जाएँ जाने कहाँ हवाएँ हवाएँ
6. मन बेक़ैद हुआ
7. फिर वही.. फिर वही..सौंधी यादें पुरानी फिर वही
8. दिल दीयाँ गल्लाँ
9. खो दिया है मैंने खुद को जबसे हमको है पाया
10 कान्हा माने ना ..
13. ये इश्क़ है
17. सपने रे सपने रे
19. नज़्म नज़्म
20 . मीर ए कारवाँ
24. गलती से mistake
2. वो जो था ख़्वाब सा, क्या कहें जाने दे
3. ले जाएँ जाने कहाँ हवाएँ हवाएँ
7. फिर वही.. फिर वही..सौंधी यादें पुरानी फिर वही
8. दिल दीयाँ गल्लाँ
9. खो दिया है मैंने खुद को जबसे हमको है पाया
10 कान्हा माने ना ..
18 टिप्पणियाँ:
Behtareen sir. Bahut hi badiya likha Hai.
धन्यवाद अजय! गीत ही कुछ ऐसा है :)
अब तो सर नम्बर एक का इन्तज़ार है।
शायद तुमने उसे ना सुना हो क्यूँकि इस साल वो कम बजा है पर बेहद प्यारा सा गीत है।
Being a lawyer, I love the lawyer musician. :) Super song! Way to go Raj Shekhar!
एक अच्छी फिल्म का अच्छा गीत
सुमित : हा हा ये भी सही है वकीलों के लिए थोड़ा ज़्यादा सॉफ्ट कार्नर तो होना ही चाहिए आपके दिल में।
फिल्म तो मुझे देखनी है पर ये गीत मुझे भी बेहद प्रिय है राजेश भाई !
A favourite of mine...ये जो है कम से कम ये रहे के जाने दें....
@Vinita Arora हाँ मुझे भी बेहद पसंद है ये पंक्तियाँ.. :)
बेहतर तो ये होता हम मिले ही न होते..मग़र जाने दे.. पंक्ति दिल को छू जाती है। जितना सुंदर गीत उतना ही सुंदर पोस्ट।
हाँ हमारी हताशा यही कहवा जाती है हमसे मनीष।
Shukriya Manish ji. Bahut sundar likha hai.
शुक्रिया राज शेखर, बस गीत के पीछे की आपकी भावनाओं को परखने की कोशिश की है। हम सब इस तरह की कैफियत से कभी न कभी गुजरते हैं। हां, वो पुर्जा मिला होता तो दर्द की कुछ और तहें खुलतीं।
Manish जी, लेट गो करना ज़रूरी हो जाता है कभी कभी
मनीष, केवल गीत सुन कर बहुत समझ नहीं पाया था। जाने दे।तुम्हारे ब्लॉग की इतनी सुन्दर भाषा शैली एवं भाव ने गीत में छुपे दर्द को उभार कर रख दिया।बहुत ही प्यारा गीत एवं गीत को सहारा देते मधुर संगीत न्यायप्रिय लगा।इस सुंदर पोस्ट के लिए धन्यवाद। जाने दे,जाने दे----।
*सहारा देता
यदुनाथ जी गीत के दर्द को आपने मेरी इस पोस्ट के जरिए महसूस किया ये जानकर अच्छा लगा।
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