आज से तकरीबन बीस साल पहले जब गीत संगीत से जुड़ा ब्लॉग एक शाम मेरे नाम शुरु किया था तो यहाँ अपनी पसंदीदा ग़ज़लों, कविताओं , किताबों की चर्चा के अलावा एक हसरत ये भी थी कि अमीन सयानी साहब की तरह अपने पसंदीदा गीतों की एक गीतमाला पेश करूँ। वो गीतमाला तो ब्लॉग पर आज तक चल रही है पर उसकी लौ जलाने वाला प्रेरणास्रोत आज इस जहान को विदा कह गया।
दरअसल बचपन में मनोरंजन के नाम पर हमारे पास ज्यादा कुछ नहीं था। बहुत से बहुत सिनेमा हॉल के महीने में एक दो चक्कर लग जाया करते थे। टीवी तो घर में बहुत देर में आया पर एक चीज़ शुरु से हमारे साथ रही और वो था छोटा पर बेहद सुंदर लाल रंग का नालको का ट्रांजिस्टर।
इसी ट्रांजिस्टर पर जब समय मिलता हम हवा महल, मन चाहे गीत, रंग तरंग, अनुरोध गीत और छाया गीत जैसे कार्यक्रम सुना लिया करते थे। ये कार्यक्रम तो कभी छूट भी जाते पर अमीन सयानी साहब की बिनाका गीत माला..... उसे छूटने का तो सवाल ही नहीं पैदा होता था। उनकी आवाज़ में प्रस्तुत वो कार्यक्रम हमारी पीढ़ी के लिए मनोरंजन का पर्याय था।
जितना मुझे याद है बिनाका गीत माला जो बाद में सिबाका और विविध भारती पर कोलगेट गीत माला में तब्दील हो गयी रेडियो सीलोन से हर बुधवार रात आठ बजे आती थी और मैं अपने ट्रांजिस्टर को पंद्रह मिनट पहले ही गोद में रखकर शार्ट वेव के 25 मीटर बैंड पर रेडियो सीलोन को ट्यून करने बैठ जाता था। उस ज़माने में रेडियो सीलोन के स्टेशन को ट्यून करना एक बेहद नाजुक मसला हुआ करता था। जहाँ fine tune से हाथ खिसका नहीं सीलोन से वॉयस आफ अमेरिका पहुँचने में देर नहीं लगती थी। एक बार ट्यूनिंग हो गयी तो परिवार के छोटे बड़े किसी भी सदस्य के लिए ट्रांजिस्टर को हिलाना डुलाना और घुमाना वर्जित हुआ करता था।
जैसे ही कार्यक्रम शुरु होता हम अमीन सयानी की जादुई आवाज़ में मंत्रमुग्ध से पायदानों पर चढ़ते उतरते और उनकी शब्दावली में छलांग मार कर सीधे ऊपर की पायदान पर विराजमान होते गीतों को एकाग्रचित्त सप्ताह दर सप्ताह सुना और गुना करते। साल के अंत में जब वे चोटी के गीत की घोषणा करते हुए कहते कि बहनों और भाइयों वक़्त आ गया है सरताजी बिगुल के बजने का तब मेरा तन मन रोमांचित हो जाता इस आशा में कि क्या मेरा पसंदीदा गीत अबकी बार पहली पायदान पर होगा। कई बार मुझे मायूसी हाथ लगती और मन ही मन उन गुमनाम श्रोता संघों की राय और रिकार्ड बिक्री के आंकड़ों पर खीझ उभरती पर मजाल है कि इन गीतों को क्रमबद्ध पेश करने वाले अमीन सयानी साहब पर मेरे दिल में कभी मलाल का एक कतरा भी आता।
अमीन साहब जैसा उद्घोषक भारतीय रेडियो के इतिहास में न कभी हुआ है न होगा। गीतों से परिचय कराने का उनका नायाब अंदाज़, उनकी आवाज़ की खनखनाहट, शब्दों को खींचने का उनका तरीका, संगीत से जुड़ी हस्तियों के बारे में उनके खज़ाने से निकले रोचक किस्से सब कुछ मन में ऐसा बैठ गया है जो शायद मरते दम तक मेरी यादों में हमेशा बना रहेगा और हाँ उनकी यादों की प्रेरणा से एक शाम मेरे नाम पर वार्षिक गीतमाला भी चलती रहेंगी। आज भले ही 91 वर्षों की लंबी आयु के बाद वो सशरीर हमारे बीच नहीं हैं पर मन में वो हमेशा के लिए बने रहेंगे।
8 टिप्पणियाँ:
Super...reminds me of my childhood memories
कैसे हैं आदिल भाई उनके जिक्र के बिना हम जैसों का बचपन अधूरा है।
Super👌👌👌👌
🙏🙏
सादर नमन
🙏
रेडियो का प्रचलन कम होने के बावजूद भी मैं अमीन सयानी साहब को जानती हूं ख़ुद पर नाज़ होता है, गीतमाला अक्सर कारवां पर सुनती थी। अमीन सयानी साहब का अंदाज ए बयां इतना कमाल का था कि वो सबको अपना कायल बना ही लें। ईश्वर उनकी आत्मा को शांति दे। उनकी आवाज अमर रहेगी। 🌼
सही कहा आपने। कारवां पर गीतमाला की छांव में मैं भी कभी कभी सुन लेता हूं। पुरानी यादें ताज़ा हो जाती हैं। उनकी आवाज़ हमारी यादों में हमेशा बनी रहेगी।
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