पृथ्वी गंधर्व को मैं पिछले कुछ सालों से एक ऐसे ग़ज़ल गायक के रूप में देखता आया था जो मुंबई कि छोटी बड़ी महफिलों में हारमोनियम लिए कभी ख़ुद तो कभी अपने साथी कलाकारों के साथ गाते गुनगुनाते नज़र आते थे। उनकी गायिकी में गुलाम अली, मेहदी हसन व हरिहरण का प्रभाव स्पष्ट ही दिखता है। मेहदी हसन के साथ तो उन्होंने वक़्त बिताया ही है आजकल भी गुलाम अली के साथ विदेशों में एक साथ मंच साझा करते रहे हैं।
पृथ्वी गंधर्व एक संगीत से जुड़े परिवार से आते हैं। दादा, पिता, बहन सब किसी न किसी वाद्य यंत्र में महारत रखते हैं। गायिकी में मां की रुचि थी पर ऐसे संगीतमय माहौल में शास्त्रीय संगीत और ग़ज़ल गायिकी सीखने के लिए पृथ्वी हरिहरण जी के पास पहुंचे और उनके पुत्र के साथ रियाज़ करते करते उनका विश्वास जीता।
इन्हीं महफिलों का असर था कि बंदिश बैंडिट्स के निर्देशक आनंद तिवारी और आकाशसेन गुप्ता को किसी ने पृथ्वी का नाम सुझाया। आनंद ने चार पाँच घंटे के संगीत सत्र में उनसे 16 बंदिशें गवाई पर मामला कुछ जमा नहीं। हालांकि संगीत के ये दौर चलते रहे। ऐसे ही एक सत्र में उनसे कुछ अपना स्वरचित सुनाने की फर्माइश हुई और तब जो गीत पृथ्वी गंधर्व के ज़ेहन में आया वो था निर्मोहिया जिसकी धुन उन्होंने पियानो पर कोविड काल में उज्जैन में घर बैठे रिकार्ड की थी। |
पृथ्वी गंधर्व और सुवर्णा तिवारी
निर्मोहिया में शास्त्रीयता के साथ साथ कानों पर तुरंत चढ़ जाने का असर भी था। इसलिए इस वेब सीरीज के लिए तुरंत ही उनकी ये बंदिश चुन ली गई। राग यमन पर आधारित इस बंदिश में पृथ्वी गंधर्व का साथ दिया सुवर्णा तिवारी ने जो ख़ुद ही एक मँजी हुई शास्त्रीय गायिका हैं। सुवर्णा की गहरी और धारदार आवाज़ के साथ पृथ्वी गंधर्व की मुलायमित खूब सराही गयी। यूँ तो बंदिश बैंडिट्स में पृथ्वी ने कई गीतों में अपनी उपस्थिति गायक या संगीतकार के रूप में दर्ज की है पर निर्मोहिया की बात कुछ अलग है।
बावरा मन तेरी लगन में
डूब ना जाए तेरे नयन में
आ भी जाओ ना सताओ
आ भी जाओ ना सताओ
कैसे मैं कहूँ सखी बातें
काटे ना कटे वैरी रातें
इक पलछिन ना छँट रही उनकी यादें हैं
भोर तलक ना लग रही मेरी आँखें
जोगन बन गयी मैं तो जोगिया
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