बुधवार, अगस्त 06, 2008

'मोहब्बतों का शायर' क़तील शिफ़ाई भाग १ : गुज़रे दिनों की याद बरसती घटा लगे सुनिए क़तील की आवाज़ में...

क़तील शिफ़ाई की शायरी से मेरा परिचय जगजीत सिंह जी की वज़ह हुआ। जगजीत जी अपने अलग अलग एलबमों में उनकी कई ग़ज़लें गाई हैं जिसमें ज्यादातर ग़जलें इश्क़ मोहब्बत के अहसासों से भरपूर है। दरअसल प्रेम क़तील की अधिकांश ग़ज़लों और नज्मों का मुख्य विषय रहा है इसलिए उन्हें 'मोहब्बतों का शायर' भी कहा जाता है। बाद में विभिन्न शायरी मंचों में क़तील की कई और ग़ज़लें और नज़्में पढ़ने को मिलीं। आज से शुरु होने वाली इस श्रृंखला में मैं आपसे बाटूँगा क़तील साहब की जिंदगी से जुड़ी बातों के साथ उनकी चंद ग़ज़लें और नज़्में जो मुझे बेहद पसंद हैं।

क़तील का जन्म पश्चिमी पंजाब के हरीपुर, ज़िला हज़ारा (पाकिस्तान) में हुआ। क़तील उनका तख़ल्‍लुस था, क़तील यानी वो जिसका क़त्‍ल हो चुका हैअपने उस्‍ताद हकीम मुहम्‍मद शिफ़ा के सम्‍मान में क़तील ने अपने नाम के साथ शिफ़ाई शब्‍द जोड़ लिया था । क़तील अपनी प्रारम्भिक शिक्षा इस्लामिया मिडिल स्कूल, रावलपिंडी में प्राप्त करने के बाद गवर्नमेंट हाई स्कूल में दाखिल हुए, लेकिन पिता के देहान्त और कोई अभिभावक न होने के कारण शिक्षा जारी न रह सकी और पिता की छोड़ी हुई पूँजी समाप्त होते ही उन्हें तरह-तरह के व्यापार और नौकरियाँ करनी पड़ीं। साहित्य की ओर इनका ध्यान इस तरह हुआ कि क्लासिकल साहित्य में पिता की बहुत रुचि थी और ‘क़तील’ के कथनानुसार, ‘‘उन्होंने शुरू में मुझे कुछ पुस्तकें लाकर दीं जिनमें ‘क़िस्सा चहार दरवेश’ ‘क़िस्सा हातिमताई’ आदि भी थीं। वे अक्सर उन्हें पढ़ते थे जिससे उन्हें लिखने का शौक़ हुआ।

क़तील शिफाई के बारे में मैंने तफ़सील से जाना, जनाब प्रकाश पंडित संपादित किताब 'क़तील शिफाई और उनकी शायरी' को पढ़ने के बाद। सच में क़तील की शख्सियत का अंदाजा आप उनकी शायरी से नहीं लगा सकते।

प्रकाश इस किताब के परिचय में क़तील के बारे बड़े रोचक में अंदाज में लिखते हैं
किसी शायर के शेर लिखने के ढंग आपने बहुत सुने होंगे। उदाहरणतः ‘इकबाल’ के बारे में सुना होगा कि वे फ़र्शी हुक़्क़ा भरकर पलंग पर लेट जाते थे और अपने मुंशी को शे’र डिक्टेट कराना शुरू कर देते थे। ‘जोश’ मलीहाबादी सुबह-सबेरे लम्बी सैर को निकल जाते हैं और यों प्राकृतिक दृश्यों से लिखने की प्रेरणा प्राप्त करते हैं। लिखते समय बेतहाशा सिगरेट फूँकने चाय की केतली गर्म रखने और लिखने के साथ-साथ चाय की चुस्कियाँ लेने के बाद (यहाँ तक कि कुछ शायरों के सम्बन्ध में यह भी सुना होगा कि उनके दिमाग़ की गिरहें शराब के कई पैग पीने के बाद) खुलनी शुरू होती हैं। लेकिन यह अन्दाज़ शायद ही आपने सुना हो कि शायर शेर लिखने का मूड लाने के लिए सुबह चार बजे उठकर बदन पर तेल की मालिश करता हो और फिर ताबड़तोड़ डंड पेलने के बाद लिखने की मेज पर बैठता हो। यदि आपने नहीं सुना तो सूचनार्थ निवेदन है कि यह शायर ‘क़तील’ शिफ़ाई है।क़तील’ शिफ़ाई के शे’र लिखने के इस अन्दाज़ को और उसके लिखे शे’रों को देखकर आश्चर्य होता है कि इस तरह लंगर-लँगोट कसकर लिखे गये शे’रों में कैसे झरनों का-सा संगीत फूलों की-सी महक और उर्दू की परम्परागत शायरी के महबूब की कमर-जैसी लचक मिलती है। अर्थात् ऐसे वक़्त में जबकि उसके कमरे से ख़म ठोकने और पैंतरें बदलने की आवाज़ आनी चाहिए, वहाँ के वातावरण में कुछ ऐसी गुनगुनाहट बसी होती है।

क़तील की शायरी की खास बात ये है कि वो बशीर बद्र साहब की तरह ही बड़े सादे लफ्ज़ों का प्रयोग कर भी कमाल कर जाते हैं। मिसाल के तौर पर उनकी इस ग़ज़ल के चंद अशआर देखिए

प्यास वो दिल की बुझाने कभी आया भी नहीं
कैसा बादल है जिसका कोई साया भी नहीं


बेरुखी इस से बड़ी और भला क्या होगी
इक मुद्दत से हमें उसने सताया भी नहीं

सुन लिया कैसे ख़ुदा जाने ज़माने भर ने
वो फ़साना जो कभी हमने सुनाया भी नहीं

तुम तो शायर हो क़तील और वो इक आम सा शख़्स
उस ने चाहा भी तुझे जताया भी नहीं


कितनी सहजता से कहे गए शेर जिसको पढ़ कर दिल अपने आप पुलकित हो जाता है। अगर मेरी बात पर अब तक यकीन नहीं आ रहा तो क़तील के इस अंदाजे बयाँ के बारे में आपका क्या खयाल है ?


गुज़रे दिनों की याद बरसती घटा लगे
गुज़रूँ जो उस गली से तो ठंडी हवा लगे


मेहमान बन के आये किसी रोज़ अगर वो शख़्स
उस रोज़ बिन सजाये मेरा घर सजा लगे


जब तशनगी की आखिरी हद पर मिले कोई
आँख उसकी जाम बदन महक़दा लगे

मैं इस लिये मनाता नहीं वस्ल की ख़ुशी
मुझको रक़ीब की न कहीं बददुआ लगे


वो क़हत दोस्ती का पड़ा है कि इन दिनों
जो मुस्कुरा के बात करे आशना लगे

एक ऍसी खुशजमाल परी अपनी सोच है
जो सबके साथ रह के भी सब से जुदा लगे

देखा ये रंग बैठ के बहुरूपियों के बीच
अपने सिवा हर एक मुझे पारसां लगे

तर्क-ए-वफ़ा के बाद ये उस की अदा "क़तील"
मुझको सताये कोई तो उस को बुरा लगे

और खुद अगर क़तील शिफ़ाई आपको ये ग़ज़ल अपनी आवाज़ में सुनाएँ तो कैसा रहे ? तो लीजिए हजरात सुनिए ये ग़ज़ल क़तील की अपनी आवाज़ में...


इस श्रृंखला की सारी कड़ियाँ

मोहब्बतों का शायर क़तील शिफ़ाई : भाग:1, भाग: 2, भाग: 3, भाग: 4, भाग: 5


अगर आपकों कलम के इन सिपाहियों के बारे में पढ़ना पसंद है तो आपको इन प्रविष्टियों को पढ़ना भी रुचिकर लगेगा

  1. मज़ाज लखनवी भाग:१, भाग: २
  2. फैज़ अहमद फ़ैज भाग:१, भाग: २, भाग: ३
  3. परवीन शाकिर भाग:१, भाग: २
  4. सुदर्शन फ़ाकिर

12 टिप्‍पणियां:

  1. जानकरी बहुत रोचक है और बहुत अच्छे ढंग से आपने लिखी है..सही कहा आपने की उनका लिखा हुआ इतनी सरल भाषा में होता है की सीधे दिल में उतर जाता है ..शुक्रिया

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  2. यार तुम सचमुच गजब के आदमी हो......एक शायर की पोस्ट डालते हो तो उसे रोचक बना देते हो ....ओर सच मानो यही सही तरीका है...भला हो .जगजीत जी का .हॉस्टल ओर मोहब्बत के दिनों में बड़ा साथ दिया उन्होंने हमारा .....वही इनको हम भी सुना करते थे

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  3. मनीष बहुत ही स्‍पेशल सीरीज़ । क़तील मेरे पसंदीदा शायर हैं ।
    उनके वीडियो भी लगाईयेगा अगर दिक्‍कत ना हो तो ।

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  4. और हां मनीष उनके फिल्‍मी गाने भी लगाना ।

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  5. बहुत रोचक जानकरी.आनन्द आ गया.इस आलेख के लिए बहुत आभार.

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  6. आह ! क्या बात है मनीष. शब्द नहीं हैं ...

    मेहमान बन के आये किसी रोज़ अगर वो शख़्स
    उस रोज़ बिन सजाये मेरा घर सजा लगे

    वो क़हत दोस्ती का पड़ा है कि इन दिनों
    जो मुस्कुरा के बात करे आशना लगे

    और एक ऐसा शेर कोई रोज़ सुना दे :

    तर्क-ए-वफ़ा के बाद ये उस की अदा "क़तील"
    मुझको सताये कोई तो उस को बुरा लगे

    Simply beautiful...

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  7. बेरुखी इस से बड़ी और भला क्या होगी
    इक मुद्दत से हमें उसने सताया भी नहीं

    तर्क-ए-वफ़ा के बाद ये उस की अदा "क़तील"
    मुझको सताये कोई तो उस को बुरा लगे
    bahut khub.... quatil ji ke vishay me rochak jaankaari

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  8. kal suni aaj phir sunney aayen hain...aagey aur bhi aani chahiye aisi badhiya posts

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  9. क़तील जैसे शायर कम ही हुआ करते हैं.बहुत खूब मनीष...
    मेहनत तेरी खुशबू सी बन के छाई है
    भरी दोपहर में ये शबनमी-रानाई है.

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  10. धृष्ठता के क्षमा चाहूंगा आपके इस आलेख का कुछ हिस्सा हिन्दी साहित्य पहेली में
    साभार उपयोग किया है

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