शुक्रवार, अगस्त 08, 2008

मोहब्बतों का शायर क़तील शिफ़ाई भाग २ : इश्क़ करोगे तो कमाओगे नाम, तोहमतें बँटती नहीं खैरात में

यूँ तो जगजीत जी ने कतील शिफ़ाई की बहुत सारी ग़ज़लें गाई हैं पर मुझे उनमें से तीन मेरी आल टाइम फेवरट ग़जलें हैं। तो चलिए आज की शाम की महफिल सजाते हैं जगजीत जी की गाई इन तीनों ग़जलों से । और पिछली पोस्ट की तरह महफिल का अंत क़तील की आवाज़ में पढ़ी गई उनकी एक खूबसूरत ग़ज़ल से....

जिंदगी में कभी आप जब अपने प्यारे हमसफ़र के साथ बैठे हों और मन अपने साथी के प्रति अपने प्रेम को अभिव्यक्त करने को मचल रहा हो तो किस तरह अपनी भावनाओं को शब्द देंगे आप? क्या कहेंगे आप उससे ? आपका उत्तर तो मुझे नहीं मालूम पर मैं तो क़तील की इस ग़ज़ल का ही सहारा लूँगा। इसका हर एक शेर कमाल है। कॉलेज के जमाने में इस ग़ज़ल को जब पहली बार सुना था तो महिनों अपने आप को इस ग़ज़ल के प्रभाव से मुक्त नहीं कर पाया था। दरअसल सीधे सादे शब्दों से एक गहरी भावना को निकाल पाना सबके बूते की बात नहीं है। पर क़तील को इस फ़न में कमाल हासिल था। मतले पर गौर करें क्या आगाज़ है इस ग़ज़ल का



अपने होठों पर सजाना चाहता हूँ
आ तुझे मैं गुनगुनाना चाहता हूँ


और फिर ये शेर..सुभानअल्लाह !

कोई आँसू तेरे दामन पर गिराकर
बूँद को मोती बनाना चाहता हूँ

थक गया मैं करते-करते याद तुझको
अब तुझे मैं याद आना चाहता हूँ


छा रहा है सारी बस्ती में अँधेरा
रौशनी को घर जलाना चाहता हूँ

आख़री हिचकी तेरे ज़ानों पे आये
मौत भी मैं शायराना चाहता हूँ

क़तील की जिंदगी में कई प्रेमिकाएँ आईं जिनके बारे में प्रकाश पंडित जी ने लिखा है

"प्रेम और पूजा की सीमा तक प्रेम उसने अपनी हर प्रेमिका से किया है और उसकी हर प्रेमिका ने वरदान-स्वरूप उसकी शायरी में निखार और माधुर्य पैदा किया है, जैसे ‘चन्द्रकान्ता’ नाम की एक फिल्म ऐक्ट्रेस ने किया है जिससे उसका प्रेम केवल डेढ़ वर्ष तक चल सका और जिसका अन्त बिलकुल नाटकीय और शायर के लिए अत्यन्त दुखदायी सिद्ध हुआ। लेकिन ‘क़तील’ के कथनानुसार : "यदि यह घटना न घटी होती तो शायद अब तक मैं वही परम्परागत गज़लें लिख रहा होता, जिनमें यथार्थ की अपेक्षा बनावट और फैशन होता है। इस घटना ने मुझे यथार्थवाद के मार्ग पर डाल दिया और मैंने व्यक्तिगत घटना को सांसारिक रंग में ढालने का प्रयत्न किया। अतएव उसके बाद जो कुछ भी मैंने लिखा है वह कल्पित कम और वास्तविक अधिक है।".

प्रकाश शायर की जिंदगी में प्रेरणा के महत्त्व के बारे में अपने लेख में आगे लिखते हैं.....

चन्द्रकान्ता से प्रेम और विछोह से पहले ‘क़तील’ शिफ़ाई आर्तनाद क़िस्म की परम्परागत शायरी करते थे और ‘शिफ़ा’ कानपुरी नाम के एक शायर से अपने कलाम पर सलाह लेते थे। फिर 'अहमद नदीम क़ासमी' साहब से भी उन्होंने मैत्रीपूर्ण परामर्श लिये। लेकिन किसी की इस्लाह या परामर्श तब तक किसी शायर के लिए हितकर सिद्ध नहीं हो सकते जब तक कि स्वयं शायर के जीवन में कोई प्रेरक वस्तु न हो। लगन और क्षमता का अपना अलग स्थान है, लेकिन इस दिशा की समस्त क्षमताएँ मौलिक रूप से उस प्रेरणा ही के वशीभूत होती हैं,जिसे ‘मनोवृत्तान्त’ का नाम दिया जा सकता है।
अगर ऊपर की ग़ज़ल में आपको प्रेम का सैलाब उमड़ता दिख रहा है तो इस ग़ज़ल पर निगाह डालिए। बेवफाई से छलनी हृदय की वेदना नज़र आएगी आपको इसमें। दरअसल किसी शायर या कवि की लेखनी उसके व्यक्तित्व का आईना है बशर्त्ते उसे पढ़ और समझ पाने का हुनर आप में मौजूद हो। इस ग़ज़ल को मैंने पहली बार आकाशवाणी पटना से सुना था और पहली बार सुन कर मन में एक उदासीनता का भाव व्याप्त हो गया था। मेरे एक मित्र ने बताया था कि जगजीत जी अपनी कानसर्ट में ये ग़ज़ल जल्दी नहीं गाते और गाते हैं तो मतले और उसके बाद का शेर उन्हें अपने बेटे की याद दिलाकर भावुक कर देता है। जगजीत जी ने इस ग़ज़ल में क़तील के साहब के उन चार शेरों को चुना है जो इस ग़ज़ल की जान हैं...




सदमा तो है मुझे भी कि तुझसे जुदा हूँ मैं
लेकिन ये सोचता हूँ कि अब तेरा क्या हूँ मैं

बिखरा पड़ा है तेरे ही घर में तेरा वजूद
बेकार महफ़िलों में तुझे ढूँढता हूँ मैं


मैं ख़ुदकशी के जुर्म का करता हूँ ऐतराफ़
अपने बदन की क़ब्र में कब से गड़ा हूँ मैं


किस-किसका नाम लाऊँ ज़बाँ पर कि तेरे साथ
हर रोज़ एक शख़्स नया देखता हूँ मैं

ना जाने किस अदा से लिया तूने मेरा नाम
दुनिया समझ रही है के सब कुछ तेरा हूँ मैं


ले मेरे तजुर्बों से सबक ऐ मेरे रक़ीब
दो चार साल उम्र में तुझसे बड़ा हूँ मैं

जागा हुआ ज़मीर वो आईना है "क़तील"
सोने से पहले रोज़ जिसे देखता हूँ मैं


जिंदगी की कितनी सुनसान रातें आसमान के इन चाँद तारों से मूक संवाद करते हुए बिताई हैं उसका कोई हिसाब फिलहाल मेरे पास नहीं। आज भी जब कभी अभी अपने घर जाता हूँ तो रात में छत पर चहलकदमी करते हुए सितारों से क़तील की जुबां में गुफ़्तगू करना बहुत भाता है..



परेशाँ रात सारी है सितारों तुम तो सो जाओ
सुकूत-ए-मर्ग तारी है सितारों तुम तो सो जाओ

हँसो और हँसते-हँसते डूबते जाओ ख़लाओं में
हमें ये रात भारी है सितारों तुम तो सो जाओ

तुम्हें क्या आज भी कोई अगर मिलने नहीं आया
ये बाज़ी हमने हारी है सितारों तुम तो सो जाओ

कहे जाते हो रो-रो के हमारा हाल दुनिया से
ये कैसी राज़दारी है सितारों तुम तो सो जा

हमें तो आज की शब पौ फटे तक जागना होगा
यही क़िस्मत हमारी है सितारों तुम तो सो जाओ

हमें भी नींद आ जायेगी हम भी सो ही जायेंगे
अभी कुछ बेक़रारी है सितारों तुम तो सो जाओ


इस ग़ज़ल को पाकिस्तानी फिल्म इश्क़ ए लैला में भी शामिल किया गया था जहाँ इसे आवाज़ दी थी इकबाल बानो ने। पिछली पोस्ट में यूनुस भाई ने क़तील के मुशायरे का वीडिओ देने का अनुरोध किया था। तो आज सुनने के साथ क़तील साहब को देखिए उनकी मशहूर ग़ज़ल हाथ दिया उसने मेरे हाथ में....
हाथ दिया उसने मेरे हाथ में
मैं तो वली बन गया इक रात में

इश्क़ करोगे तो कमाओगे नाम
तोहमतें बँटती नहीं खैरात में

इश्क़ बुरी शै सही पर दोस्तों
दखल ना दो तुम मेरी हर बात में

मुझ पे तवोज्जह है सब *आफ़ाक़ के (*संसार)
कोई कशिश तो है मेरी जात में

रब्त बढ़ाया ना 'क़तील' इसलिए
फर्क़ था दोनों के ख़यालात में



आज तो बस इतना ही अगले भाग में फिर मिलेंगे उनकी कुछ और ग़ज़लों के साथ...

इस श्रृंखला की सारी कड़ियाँ
मोहब्बतों का शायर क़तील शिफ़ाई : भाग:१, भाग: २, भाग: ३, भाग: ४, भाग: ५

अगर आपकों कलम के इन सिपाहियों के बारे में पढ़ना पसंद है तो आपको इन प्रविष्टियों को पढ़ना भी रुचिकर लगेगा
  1. मज़ाज लखनवी भाग:१, भाग: २
  2. फैज़ अहमद फ़ैज भाग:१, भाग: २, भाग: ३
  3. परवीन शाकिर भाग:१, भाग: २
  4. सुदर्शन फ़ाकिर

12 टिप्‍पणियां:

  1. बेहतरीन प्रस्‍तुति। बहुत अच्‍छा लगा इन ग़ज़लों को एकसाथ सुनना। अरसे बाद सुना। आपने अच्‍छा किया कि ग़ज़लों को पूरा-पूरा लिख दिया। रिकॉर्डिंग में पूरी नहीं मिलती अक्‍सर। सुनवाने का शुक्रिया।

    जवाब देंहटाएं
  2. क्या बात है मनीष !! यूं ही छाये रहो.

    बाकी सब तो सुने हुए थे (हालांकि इन्हें जितनी बार सुनो उतना कम है), लेकिन ये (ये भी कभी, कहीं पढ़ा तो था शायद) तो भाई BONUS हो गया :

    हाथ दिया उसने मेरे हाथ में
    मैं तो वली बन गया इक रात में

    इश्क़ करोगे तो कमाओगे नाम
    तोहमतें बँटती नहीं खैरात में

    इश्क़ बुरी शै सही पर दोस्तों
    दखल ना दो तुम मेरी हर बात में

    मुझ पे तवोज्जह है सब *आफ़ाक़ के (*संसार)
    कोई कशिश तो है मेरी जात में

    रब्त बढ़ाया ना 'क़तील' इसलिए
    फर्क़ था दोनों के ख़यालात में

    जारी रहो गुरु इसी तरह ....

    जवाब देंहटाएं
  3. ग़ज़लों को सुनना, पढ़ना अच्‍छा लगा।

    जवाब देंहटाएं
  4. वाह! आनन्द आ गया. आभार इस प्रस्तुति के लिए.

    जवाब देंहटाएं
  5. मनीष जी
    बार बार सुनी ये ग़ज़लें हमेशा तजा लगती हैं और जब सुनो लगता है पहली बार सुन रहे हैं...आप का इन्हे फ़िर सुनवाने का शुक्रिया.
    नीरज

    जवाब देंहटाएं
  6. आप बहुत परोपकार का काम कर रहे हैं। आपका यह गुण बना रहे। हम सब आपके अत्यंत आभारी हैं।

    जवाब देंहटाएं
  7. मनीष जी गजलें तो हमारी पसंदीदा ही हैं लेकिन इनके शायर के बारे में इतनी जानकारी न थी।
    आभार

    जवाब देंहटाएं
  8. kya kahun sab pasndida hai khas taur se .sadma to hai mujhe vali....aasani se nahi milti.....dhero sadhuvaad....

    जवाब देंहटाएं
  9. राहों पे नज़र रखना, होठों पे दुआ रखना,
    आ जाए कोई शायद दरवाजा खुला रखना।
    भूलूँ मैं अगर ऐ दिल तू याद दिला देना,
    तन्हाई के मौसम का हर ज़ख़्म हरा रखना।
    रातों को भटकने कीदेता है सजा मुझको,
    दुश्वार है पहलू में दिल तेरे बिना रखना।
    अहसास की शमां को इस तरह जला रखना,
    अपनी भी खबर रखना उसका भी पता रखना।
    लोगों की निगाहों को चेहरा पढ़ लेने की आदत है,हालात की तहरीरे चेहरे से बचा रखना।
    एक बूँद भी अश्कों की आँचल न भीगो पाए,
    ग़म उसकी अमानत है पलकों पे सजा रखना।
    इस तरह "क़तील" उससे बर्ताव रहे अपना,
    वो भी न बुरा माने दिल का भी कहा रखना।

    आज ऍफ़ एम् गोल्ड पर एक नज्म सुनी... दिल बाग़ बाग़ हो उठा...

    गूगल महाराज में बताया ये भूपेन्द्र मताली ने गया है...

    उनकी एक दो और गजल सुनी
    फिर
    दिल में ख्याल उठा लिखा किसने होगा..

    गूगल महाराज ने आगाज़ किया और कातील तरीके से फिर इस पोस्ट पर पहुंचा हूँ,

    सुभान अल्लाह...

    जवाब देंहटाएं
  10. दीपक जी क़तील पर ये श्रंखला वर्षों पहले की थी। आज आप की टिप्पणी ने मुझे भी अपनी इस पुरानी पोस्ट से गुजरने का मौका दिया। सच में लाजवाब शायर थे क़तील शिफाई उनकी लिखी नज़्म को यहाँ बाँटने के लिए आभार !

    जवाब देंहटाएं