बुधवार, जुलाई 14, 2021

जोशी बंधुओं के नए एलबम महफिल की सुरीली पेशकश : काहे को सताए

जबसे फिल्मों के इतर संगीत को यू ट्यूब व सोशल मीडिया के अन्य प्लेटफार्म नसीब हुए हैं तबसे संगीत में नित नए प्रयोग देखने को मिल रहे हैं। ऐसा संगीत भले ही हफ्ते में सैकड़ो मिलियन व्यू नहीं बटोर पाता पर इसे सुनने वाला भी एक बहुत बड़ा तबका है जो अच्छे और कामचलाऊ संगीत के बीच का अंतर जानता है।

ऐसी ही एक कोशिश से मैं पिछले महीने रूबरू हुआ एक नये एलबम महफिल से ये मुलाकात नामी संगीतकार सलीम सुलेमान की जोड़ी की वज़ह से हुई क्यूंकि उन्हीं की वॉल पे मैंने इस एलबम का पहला प्रमोशन देखा। दरअसल सुलेमान रिकार्डस के बैनर तले ये एलबम, दो भाइयों आभास और श्रेयस जोशी की मेहनत का कमाल है जिसमें गीतकार की भूमिका में उनका पूरा साथ दिया है उनके पिता रवीन्द्र कुमार जोशी ने।


अगर आप आभास जोशी के नाम से अपरिचित हों तो याद दिला दूँ कि आज से लगभग डेढ़ दशक पहले ये छोटा सा जबलपुर का लड़का अमूल वॉयस आफ इ्डिया के मंच पर अपनी उपस्थिति दर्ज कर के गया था।। आज डेढ़ दशक बाद वही आभास अपने भाई के साथ मिलकर इंडिपेंडेंट म्यूजिक में ऐसे एलबमों के बलबूते अपना एक अलग मुकाम बनाने को प्रयासरत है।

इस एलबम में कुल पाँच गीत हैं। सुन माहिया, सजना, इश्क़ दा रोग, मेरे साहिबा और काहे को सतायेएलबम की खासियत ये है कि इसमें वाद्य यंत्रों के नाम पर सिर्फ गिटार है जो कि श्रेयस ख़ुद बजा रहे हैं। दोनों भाइयों पर ये गीत बड़ी खूबसूरती से मालदीव के रिसार्ट पर फिल्माए गए हैं। पर रिसार्ट और फोटोग्राफी कितनी भी खूबसूरत क्यों ना हो कोई गीत मन में बसता है उसकी धुन, बोल और गायिकी की वज़ह से। बाकी चीज़ें तो बस उस मूड में श्रोता को लाने में बस सहायक भर होती हैं।

एलबम के पाँचों गीत में इश्क़ के अलग अलग रंग हैं और सब के सब सुनने लायक हैं पर काहे को सताये और मेरे साहिबा को एक बार सुनकर ही बार बार सुनने का मन करता है। रवि के लिखे शब्द सीधे और सहज हैं पर जब दिल लगा के आभास इन सुरीली धुनों पर अपनी शास्त्रीय गायिकी का मलहम चढ़ाते हैं तो मन की सारी चिंताएँ दूर हो जाती हैं और रह जाता है तो बस गीत में बसा प्रेम या विरह का भाव।

काहे को सताए में श्रेयस की मुखड़े के पहले की धुन की मधुर टीस गीत सुनने के बाद भी याद रहती है। तो आइए सुनें सबसे पहले इस एलबम का गीत काहे को सताए..

काहे को सताये सजना वैरी... 
सांझ के ढ़लते साये, 
पंछी भी घर को आए का
तूँ क्यों ना आए सजना वैरी


  
 
इस एलबम का दूसरा नग्मा जो मुझे पसंद आया था वो था मेरे साहिबा। इश्क़ में डूबे प्रेमी की आवाज़ बने हैं आभास इस गीत में..


तो बताइए कैसी लगी आपको श्रेयस के गिटार के साथ आभास की गायिकी की ये जुगलबंदी ?

8 टिप्‍पणियां:

  1. The singer is a full trained classical vocalist. Nice combo of classical in western style

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  2. सिर्फ गिटार का प्रयोग अच्छा लगा. बोल साधारण थे. गायिकी बढ़िया.

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    1. मुझे सुकूनदेह लगा इनका संगीत और आभास की गायिकी। शब्दों में ऐसी कोई खास बात मुझे भी नहीं दिखी।

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  3. आज के समय में जहां गानों में आधुनिक वाद्ययंत्र और तेज संगीत का भरपूर प्रयोग होता है वहां ऐसी गायिकी, ऐसे सहज बोल और संगीत मन को सुकून देते है.. दोनों ही गाने बहुत अच्छे है

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  4. हाँ स्वाति बिल्कुल मन की बात कह दी आपने।

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