बदलते वक़्त के साथ एक शाम मेरे नाम में एक नया सिलसिला शुरु करने जा रहा हूँ और वो है मशहूर गानों को आज के कलाकारों द्वारा गाए जा रहे बिना आर्केस्ट्रा वाले अनप्लग्ड वर्सन का जो कि आलेख के हिसाब से भले छोटे हों पर आपके दिलों में देर तक राज करेंगे।
क्रिमिनल नब्बे के दशक में तब रिलीज़ हुई थी जब अस्सी के दशक के उतार के बाद हिंदी फिल्म संगीत फिर अपनी जड़ें जमा रहा था। फिल्म के संगीत निर्देशक थे एम एम क्रीम। तब नागार्जुन का सितारा दक्षिण की फिल्मों में पहले ही चमक चुका था और महेश भट्ट उसे हिंदी फिल्मों में उनकी लोकप्रियता भुनाने की कोशिश कर रहे थे। फिल्म तो कोई खास नहीं चली पर गीत संगीत के लिहाज से इस फिल्म का एक ही गीत बेहद पसंद किया गया था और वो था तू मिले दिल खिले और जीने को क्या चाहिए। हालांकि क्रीम साहब की ये कंपोजिशन पूरी तरह मौलिक नहीं थी औेर उस वक़्त के बेहद लोकप्रिय बैंड एनिग्मा की एक धुन से प्रेरित थी। पर इतना सब होते हुए भी इंदीवर के बोलों को गुनगुनाना लोगों को भला लगा था और आज भी इस गीत को पसंद करने वालों की कमी नहीं है।
बेहतरीन गायकी, आजकल अनप्लग्ड सुनने में ही ज्यादा रस मिल रहा है। अगर सहमत हों तो अनप्लग्ड के चलन पर एक सीरीज होनी चाहिए आपकी तरफ से।
जवाब देंहटाएंPrabhat बिल्कुल आपने देखा होगा मैं इधर वही कर रहा हूँ। नये कलाकारों में प्रतिभा की कमी नहीं है।
जवाब देंहटाएंअनूप शंकर ने जितना बेहतरीन गाया है कि असली गायक हरिहरन भी हैरानी से देख रहे हैं उन्हें। नागार्जुन की मुस्कान बहुत कुछ कह ही जाती है और उनकी पनीली आँखें!❤️
जवाब देंहटाएंसही कह रहे हैं नयन
जवाब देंहटाएंआपकी लिखी रचना "पांच लिंकों का आनन्द में" बुधवार 15 सितंबर 2021 को लिंक की जाएगी ....
जवाब देंहटाएंhttp://halchalwith5links.blogspot.in पर आप भी आइएगा ... धन्यवाद! !
बहुत ही प्यारा लेख और बहुत ही प्यारा गीत सुनकर बहुत अच्छा लगा
जवाब देंहटाएंपम्मी हार्दिक आभार
जवाब देंहटाएंमनीषा आलेख व गीत पसंद करने के लिये शुक्रिया।
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