रविवार, फ़रवरी 26, 2023

गुल खिले चाँद रात याद आई.. नूरजहाँ की आवाज़ में शहज़ाद जालंधरी का कलाम

बहुत ऐसे शायर रहे जिनकी कोई एक ग़ज़ल किसी मशहूर फ़नकार ने गाई और वो बरसों तक उसी ग़ज़ल की वज़ह से जाने जाते रहे। शहज़ाद जालंधरी साहब की ये ग़ज़ल नूरजहाँ जी ने गाई और इसकी शोहरत इसी बात से है कि इस ग़ज़ल को आज भी नए गायक उसी तरह गुनगुना रहे हैं और श्रोताओं की वाहवाही लूट रहे हैं। कल जब प्रतिभा सिंह बघेल की आवाज़ में सालों बाद इस ग़ज़ल का एक टुकड़ा सुना तो पुरानी यादें ताज़ा हो गयीं जब हम इसे नूरजहाँ और आशा जी की आवाज़ में सुना करते थे।


जो प्यार के लम्हे होते हैं वो बड़े छोटे होते हैं। उनको पकड़ के रखना आसान नहीं होता खासकर तब जब वो शख़्स ही आपकी ज़िंदगी से निकल जाए। ऐसे में रह जाती हैं तो सिर्फ यादें और प्रकृति के वो रूप जो आपके प्रेम के साक्षी रहे थे। शहज़ाद जालंधरी साहब कभी फूलों, कभी चाँदनी रात तो कभी सावन की घटाओं के बीच की उन मुलाकातों को इस ग़ज़ल के जरिये एक बार फिर से महसूस करते हैं। कितनी प्यारी लगती थी वो दुनिया जब उनकी महफिल से लौट कर आते थे और अब तो जो बचा है सिर्फ यादें हैं आँसुओं के सैलाब में तैरती हुई...

गुल खिले चाँद रात याद आई
आपकी बात, बात याद आईगुल खिले चाँद रात याद आई
एक कहानी की हो गई तकमील*एक कहानी की हो गई तकमीलएक सावन की रात याद आईआपकी बात, बात याद आईगुल खिले चाँद रात याद आई
* अंत
अश्क आँखों में फिर उमड़ आए
अश्क आँखों में फिर उमड़ आएकोई माज़ी, की बात याद आईआपकी बात, बात याद आईगुल खिले चाँद रात याद आई
उनकी महफ़िल से लौट कर शहज़ादउनकी महफ़िल से लौट कर शहज़ादरौनक-ए-कायनात** याद आईआपकी बात, बात याद आई
** ब्रह्मांड

एक अलग तरह की आवाज़ का होना फिल्मी या गैर फिल्मी पार्श्व गायन में हमेशा से एक वरदान सा रहा है। मुकेश, तलत महमूद मन्ना डे, हेमंत कुमार, सचिन देव बर्मन, रफ़ी, किशोर कुमार, लता मंगेशकर, गीता दत्त, आशा भोसले इन सभी नामी गायकों की आवाज़ अपने तरह की थी और इसीलिए अब तक ये हमारे हृदय में राज कर रहे हैं। ग़ज़ल गायकों में वही मुकाम मेहदी हसन, गुलाम अली, जगजीत सिंह, बेगम अख्तर और नूरजहाँ का रहा। नूरजहाँ की आवाज़ में ठसक के साथ एक कशिश थी जो ग़ज़ल के सारे दर्द को अपनी गायकी में समेट लेती थी। इस ग़ज़ल को सुनते ही हुए आप ऐसा ही महसूस करेंगे। उनकी गायिकी को मंटो साहब ने कुछ यूं बयां किया था
मैं उसकी शक्ल-सूरत, अदाकारी का नहीं, आवाज़ का शैदाई था. इतनी साफ़-ओ-शफ़्फ़ाफ आवाज़, मुर्कियां इतनी वाज़िह1, खरज2 इतना हमवार3, पंचम इतना नोकीला! मैंने सोचा अगर ये चाहे तो घंटों एक सुर पर खड़ी रह सकती है, वैसे ही जैसे बाज़ीगर तने रस्से पर बग़ैर किसी लग़्ज़िश4  के खड़े रहते हैं.’
1. स्पष्ट , 2. नीचे के सुर, 3 . बराबर, 4. भूल    

तो सुनिए इस ग़ज़ल को मलिका ए तरन्नुम नूरजहाँ जी की आवाज़ में


इस ग़ज़ल को आज की तारीख़ में तमाम नए पुराने गायकों ने गाया है पर मुझे वो वर्सन ज्यादा पसंद आते हैं जो बिना किसी वाद्य यंत्र के साथ गाए जाएँ। शहज़ाद जालंधरी साहब के मिसरों के साथ नज़र हुसैन जी ने ग़ज़ल की जो धुन रची वो अपने आप में इतनी अर्थपूर्ण और मधुर है कि आपको किसी संगीत की आवश्यकता ही महसूस नहीं होती। नूरजहाँ तो ग़ज़लों की मलिका थीं ही, आशा जी ने भी इस ग़ज़ल को अपनी आवाज़ की मिठास देकर एक अलग ही जामा पहनाया है। 



वो एलबम था कशिश जो अस्सी के दशक में HMV ने रिलीज़ किया था। इसमें अधिकतर वो ग़ज़लें थीं जो पहले नूरजहाँ जी ने भी गायी हुई थीं। ज़ाहिर है हर गायक अपनी अदाएगी में एक अलग रंग भरता है। इस ग़ज़ल के साथ साथ इसी एलबम में शामिल नीयत ए शौक़ भी काफी मशहूर हुई थी जिसके पहले मैंने आपको यहाँ रूबरू कराया भी था


अगर आप ग़ज़ल के शैदाई हैं और एक ही पंक्ति को अलग अलग अंदाज़ में सुनने की इच्छा रखते हों तो आप धुरंधर शास्त्रीय गायक राहुल देशपांडे का ये वर्सन जरूर सुनें। "अश्क़ आँखों में फिर उमड़ आए" में अपनी आवाज़ की लर्जिश से उन्होंने जो दर्द अता किया है वो सुनने लायक है। प्रतिभा सिंह वघेल का गाया इस ग़ज़ल का एक टुकड़ा मैंने इस ब्लॉग के फेसबुक पेज पर यहाँ साझा किया ही है।


नूरजहाँ की गाई मेरे पसंदीदा नज़्में, गीत व ग़ज़लें


वैसे नूरजहां का गाया आपका पसंदीदा गीत कौन सा है?

4 टिप्‍पणियां:

  1. वाह ! बेहद ख़ूबसूरत । पुरानी और नयी ख़ुशबू की महक एक साथ ।

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    1. Amita Mishra जी बिल्कुल नए गायक भी पुराने गीतों और ग़ज़लों में एक नई रवानी ला रहे हैं।

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  2. आवाज दे कहां है, दुनिया मेरी जवां है.... सुरेंद्र के साथ

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