जिन्दगी यादों का कारवाँ है.खट्टी मीठी भूली बिसरी यादें...क्यूँ ना उन्हें जिन्दा करें अपने प्रिय गीतों, गजलों और कविताओं के माध्यम से!
अगर साहित्य और संगीत की धारा में बहने को तैयार हैं आप तो कीजिए अपनी एक शाम मेरे नाम..
वार्षिक संगीतमाला में पिछले साल के पच्चीस बेहतरीन गीतों के सिलसिले को आगे बढ़ाते हुए चलते हैं 22वीं पायदान के गीत की तरफ जिसे यहाँ तक पहुँचाने में मुख्य भूमिका रही है संगीतकार जी वी प्रकाश कुमार व गीतकार सजीव सारथी की। ये गीत है पिछले साल आई और काफी सराही गयी युद्ध आधारित फिल्म आमरण (अमरन) का।
प्रकाश की वॉयलिन पर बजती मधुर स्वरलहरियाँ और एक नवयुगल के प्रेम को व्यक्त करते सजीव के मुलायम शब्द इस गीत को कई बार सुनने को मजबूर करते हैं।
हिन्दी ब्लागिंग के शुरुआती दौर के साथी कवि का एक बड़ी बैनर की फिल्म के गीतकार के रूप में अपना सिक्का जमाते हुए देखना अपने आप में एक बेहद खुशी का सबब था और वो भी तब जबकि सजीव को इस फिल्म के सारे गीतों को लिखने के लिए सिर्फ दो तीन दिनों का ही वक़्त मिला।
देवेंद्र, सजीव (बीच में) के साथ मैं (वर्ष 2007)
मूलतः तमिल में बनी इस फिल्म की हिंदी में प्रदर्शित करने का निर्णय अंतिम समय में लिया गया। वक़्त कम था और हिंदी वर्सन के लिए जब प्रकाश ने पहले साथ काम कर चुके सजीव का नाम सुझाया तो उन्हें फिल्म के गीत पहले हे सोनिये लिखने का अवसर मिला जो निर्देशक राजकुमार पेरियासामी को इतना पसंद आया कि उन्होंने सारे गीतों को लिखने का जिम्मा सजीव को दे दिया। तमिल से जब गीतों को हिंदी में लिखने की बारी आई तो सजीव ने शाब्दिक अनुवाद से परे हटके गीत की भावनाओं को पकड़ा और उन्हें अपने शब्द दिये। सजीव कहते हैं कि अगले चार दिनों में सारे गीत लिखे गए, संगीत का संयोजन हुआ और गीतों की अंतिम रिकार्डिग भी कर ली गई। बतौर सजीव
ये मेरे जीवन की सबसे यादगार चार रातें थीं और इन बेहतरीन धुनों पर काम करते हुए इतना आनंद मुझे पहले कभी नहीं आया। इस फिल्म को दिल्ली में जब सैनिकों को विशेष रूप से दिखाया गया तो बहुतों की रुलाई छूट गयी पर साथ ही फिल्म के गीतों पर दर्शकों की प्रतिक्रिया देखकर संगीतकार जी वी प्रकाश को कहना पड़ा कि हिंदी वर्सन के गीत संगीत तो लगता है तमिल की अपेक्षा ज्यादा बेहतर तरीके से उभर कर आए हैं।
सजीव और प्रकाश के गीत संगीत से सजा जो गीत मेरी इस गीतमाला का हिस्सा बना है वो है मन रे मन रे। दो लोगों के मिलने, परिणय सूत्र में बँधने और उनके निरंतर प्रगाढ़ होते प्रेम को दिखाता हुआ फिल्म का ये गीत पार्श्व में चलता रहता है। बाँसुरी के मधुर टुकड़े से ये गीत शुरु होता है जब मुखड़े में सजीव लिखते हैं..
सौंधी सी सुबहों में
कुछ भीगे सपने हैं
सपनों में है कोई अपना सा
कोई जादू हो जैसे
बदला ये जग कैसे
दिल जैसे हो दिल में धड़का सा
मन रे मन रे, पागल मन रे, कैसा तू दीवाना
इसके बाद जो जी वी प्रकाश कुमार की वॉयलिन आधारित धुन है उसे फिल्म में अभिनेत्री साई पल्लवी के इन्ट्रो में भी इस्तेमाल किया गया है और इस गीत के इंटल्यूड्स में।
जी वी प्रकाश कुमार
मैंने पिछले साल के जितने गीतों को सुना उसमें संगीत का ये टुकड़ा मेरे दिल में बस सा गया। बाद में मैंने पाया कि इस धुन की लोकप्रियता का ये आलम है कि इंस्टाग्राम पर हजारों की संख्या में लोग बाग इसी धुन को पार्श्व में रखकर रील बना रहे हैं।प्रकाश पिछले दो दशकों से तमिल और तेलगु फिल्मों के संगीत निर्देशन में सक्रिय रहे हैं और एक बार राष्ट्रीय पुस्कार भी जीत चुके हैं।
ये धरती ये गगन, हैं अपने मिलन के गवाह
दोहराते जायेगें , सदियों सदियों तक ये दास्तां
हम चाहत के माने, दुनिया को सिखाने
फिर लौटेंगे वापस यहां
मन रे मन रे, पागल मन रे, कैसा तू दीवाना
मजे की बात ये है कि इस गीत के दो अंतरे हैं जिसमें एक का इस्तेमाल फिल्म में हुआ है जबकि दूसरे का इ्ंटरनेट पर उपलब्ध आडियो में। फिल्म वर्सन में सजीव की लिखी ये पंक्तियाँ मुझे बेहद प्यारी लगीं
तेरी खुशबू ले पवन, मेरी सांसों को छूकर गई
कोई बदली चाहत की, मन मेरा भिगो कर गई
मैं तुझमें हूं खोया, न जागा न सोया
है मेरा भी कुछ हाल ऐसा
मन रे मन रे, पागल मन रे, कैसा तू दीवाना
इस गीत को गाया है शान के साथ श्वेता अशोक ने। हालांकि मुझे ऍसा लगा कि अगर श्वेता की जगह ये गीत श्रेया की आवाज़ में होता तो क्या ही बात होती। तो आइए सुनते हैं गीत अपने पहले अंतरे के साथ। दूसरे अंतरे के लिए तो आपको फिल्म देखनी होगी
वार्षिक संगीतमाला की 23 वीं पायदान पर एक बार फिर विराजमान है फिल्म मेरी क्रिसमस का एक दूसरा गीत। इससे पहले इसी फिल्म में अंतरा मित्रा और अरिजीत का गया गीत मैने आपको सुनवाया था।
प्रीतम के संगीत निर्देशन में बनी इस फिल्म के सारे गीत औसत से तो बेहतर ही थे। पर इस गीतमाला में आज इस फिल्म का वो गीत है जिसे गाया है सुनिधि चौहान ने और इस गीत के बोल लिखे हैं वरुण ग्रोवर ने।
वरुण ग्रोवर एक बेहतरीन गीतकार हैं हालाँकि मुझे लगता है की अभी भी उनको उतने गीत लिखने को नहीं मिले हैं जितनी प्रतिभा उनमें है।जोर लगा के हइशा में उनका लिखा मोह मोह के धागे या मसान में दुष्यंत कुमार की ग़ज़ल से प्रेरित तू किसी रेल से गुजरती है आज भी लोगों द्वारा बड़े मन से गुनगुनाए जाते हैं। फिल्म गैंग्स आफ वासेपुर और सुई धागा में भी उमका काम बेहतरीन था।
प्रीतम के साथ काम करने का वरुण के लिए ये पहला मौका था। इस फिल्म के लिए गीत लिखने के अनुभव के बारे में वरूण का कहना था
श्रीराम राघवन की फिल्मों का अनूठा पहलू यह है कि उनकी फिल्मों के गाने पटकथा से सीधे तौर पर जुड़े होते हैं। यह मेरे लिए कहानी और मूड के सार को पकड़ने का मौका तो देता ही है, साथ ही फिल्म के संदर्भ से इतर भी कुछ मनोरंजक रचने का अवसर प्रदान करता है। बिना इसकी पटकथा जाने हुए भी लोगों ने इस फिल्म के गीतों को पसंद किया है।
सच तो ये है कि मैंने भी मेरी क्रिसमस नहीं देखी पर इसके बावज़ूद भी इसके गीत मेरी गीतमाला का हिस्सा बने हैं।
ये फिल्म क्रिसमस के आस पास रिलीज़ हुयी थी। इसका जो ये शीर्षक गीत है वो इसी त्योहार की मौज मस्ती की तरंग को अपने अंदर समाता हुआ सा बहता है। वरुण के शब्द और सुनिधि की प्यारी गायिकी इस खुशनुमा माहौल को धनात्मक उर्जा और प्रेम के रंगों से भर देते हैं। सुनिधि की गायिकी कितनी शानदार है वो आप इस गीत के ऐश किंग वाले वर्सन को सुन कर समझ सकते हैं। प्रीतम ने अपने इस गीत में ट्रम्पेट का बेहतरीन इस्तेमाल किया है जिसे आप गीत के बोलों के आगे पीछे इस गीत में बारहा सुनेंगे।
मन में फूटा Rum Cake सा
हर कोई लगता नेक सा दिन बड़ा ये ख़ास है, प्यार आस-पास है छाया है जादू एक सा
Cherry और Sherry का समाँ नेमत बरसाता आसमाँ सात रंग शाम के, नाचें हाथ थाम के बातें भी बन जाएँ दुआ
बस, ये ख़ुमार मुझपे थोड़ा-सा, थोड़ा-सा, थोड़ा-सा आने दे बस, एक बार मुझे गहरे समंदर में गुम हो जाने दे ओ, बस, ये ख़ुमार मुझपे थोड़ा-सा, थोड़ा-सा, थोड़ा-सा आने दे बस, एक बार मुझे गहरे समंदर में गुम हो जाने दे,
रोशन तारों की रात है हम दिल-हारों की रात है प्यार है, जुनून है, और इक सुकून है सब रस्ते आते हैं यहाँ
वार्षिक संगीतमाला की 24 वीं पायदान पर गाना वो जिसे संगीतबद्ध किया सागनिक कोले ने और गाया हंसिका पारीक ने। ये गीत किसी फिल्म से नहीं बल्कि स्वतंत्र संगीत की उपज है जो आजकल इंटरनेट की सर्वसुलभता की वज़ह से तेजी से अपनी जड़ें जमा रहा है। इस गीत का शीर्षक है रतियाँ।
रतियाँ एक प्यारा सा गीत है जिसमें चाँद तारों के माध्यम से नायिका बड़ी शिद्दत से अपने प्रेमी को याद कर रही है। बांग्ला और हिंदी दोनों भाषाओं में लिखने वाले गीतकार सोहम मजूमदार के बोल सहज हैं पर दिल को छूते हैं। इतना तो तय है कि जिन लोगों ने तन्हाई के पलों में छत पर लेटे लेटे चांद सितारों से दीप्तमान आकाश को घंटों निहारते हुए अपने प्रिय को याद किया होगा उन्हें ये गीत जरूर अच्छा लगेगा।
वैसे चाँद तारे तो फ़िल्मी गीतों के अभिन्न अंग रहे हैं। कितने ही सदाबहार गीत इन बिंबों को ले के लिखे गए हैं। चाँद फिर निकला मगर तुम न आए, वो चाँद हंसा वो तारे खिले ये रात अजब मतवाली है, ऐ चाँद खूबसूरत, ऐ आसमान के तारे तुम मेरे संग ज़मीन पर थोड़ी तो रात गुजारो, तू मेरा चाँद मैं तेरी चांदनी, चाँद तारे तोड़ के लाऊँ बस इतना सा ख्वाब है , मतलब जितना सोचिये उतने गीत निकलते जाएंगे। सोहम भी इसी सिलसिले को एक और रूप देते हुए लिखते हैं...
ऐसा कभी हुआ है क्या तारों के बिन रात बनी चंदा के आने से रात में वो बात बनी माना कि इश्क़ मेरा जैसा कोई हो सितारा
तेरे ही आसमां में ढूँढे जो कोई बसेरा भाए ना रे उसे निंदिया, जागे सारी सारी रतियाँ तारों भरी कारी अँखियाँ, जागे सारी सारी रतियाँ
मौसमी ये प्रीत नहीं वो जो बीत जाए दूर ही सही हम दोनों, पर हैं नहीं पराए
जैसे सदियों से ही मिलते नहीं चाँद तारे
फिर भी आसमां में लगते दोनों कितने प्यारे
ये तो जाने सारी दुनिया, जागे सारी सारी रतियाँ तारों भरी कारी अँखियाँ, जागे सारी सारी रतियाँ
अब कुछ बातें इस गीत की गायिका के बारे में। हंसिका पारीक एक उभरती हुई युवा गायिका हैं। पिछले दो साल से मैं उन्हें सुन रहा हूँ। वे एक बेहद सुरीली गायिका तो हैं ही साथ ही शास्त्रीय संगीत में उनके पाँव भली भांति जमे हैं। राजस्थान के अजमेर में पली बढ़ी इस संगीत विशारद ने 23 साल की छोटी उम्र में ही विशाल मिश्रा, अमित त्रिवेदी और स्वानंद किरकिरे जैसे कलाकारों के साथ काम किया है और इस साल तो फिल्म आज़ाद में अरिजीत सिंह के साथ गया उनका गाना बेहद पसंद किया जा रहा है।
बांसुरी और तार वाद्यों से सजा सागनिक कोले का संगीत और हंसिका की सुरीली आवाज़ इस गीत को और श्रवणीय बनाती हैं। तो आइये हंसिका के मीठी सुरीली आवाज़ में सुने ये गीत
प्रीतम एक प्रतिभाशाली संगीतकार हैं । अपने संगीत को माँजने में अक्सर बड़ी मेहनत करते हैं। उनके बारे में मशहूर है कि गीत रिलीज़ होने के एक दिन पहले तक वो अपने संगीत संयोजन में परिवर्तन करते रहते हैं। उनके सहायक के रूप में कई नए चेहरे आए जो बाद में ख़ुद एक संगीतकार बन गए और कुछ गायक। उनमें एक हमारे अरिजीत सिंह भी हैं जिन्हें आज का युवा अपने सिर आँखों पर बिठाकर रखता है।
पर 2024 में यही प्रीतम कुछ खास कमाल नहीं दिखा सके। उनके जो कुछ गीत थोड़े बजे भी उनकी धुनों में मुझे एक दोहराव सा प्रतीत हुआ। साल 2024 की शुरुआत में उनकी एक फिल्म आई थी मेरी क्रिसमस। इस थ्रिलर के निर्देशक थे श्रीराम राघवन। प्रीतम ने इन्हीं के साथ 2012 में भी एक फिल्म की थी जिसका नाम था Agent Vinod। इस फिल्म का एक गीत था राब्ता। वार्षिक संगीतमाला की 25 वीं पायदान पर मैंने जिस गीत को रखा है वो मुझे राब्ता की याद दिला देता है। क्यूँ दिला देता है वो इस गीत को सुन कर देखियेगा। बहरहाल अरिजीत और अंतरा मित्रा की जोड़ी के साथ वरुण के बोलों ने इस गीत को इतना कर्णप्रिय जरूर बना दिया है कि वो इस संगीतमाला का हिस्सा बन पाए।
प्रीतम ज्यादातर अमिताभ भट्टाचार्य और इरशाद कामिल जैसे गीतकारों के साथ काम करते रहे हैं पर इस बार उन्होने इस फिल्म के लिए अपनी जोड़ी बनाई वरुण ग्रोवर के साथ। वरुण ग्रोवर ने बातचीत के अंदाज़ में कुछ प्यारे से बोल लिखे हैं..
रात अकेली थी तो बात निकल गई
तन्हा शहर में वो तन्हा सी मिल गई
मैंने उससे पूछा, "हम पहले भी मिले हैं कहीं क्या?"
फिर?
उसकी नज़र झुकी, चाल बदल गई
ज़रा सा क़रीब आई, और सँभल गई
हौले से जो बोली, मेरी जान बहल गई, हाँ
क्या बोली?
हाँ, हम मिले हैं १००-१०० दफ़ा
मैं धूल हूँ, तू कारवाँ
इक-दूसरे में हम यूँ लापता
मैं धूल हूँ, तू कारवाँ
क्या आपने इस फिल्म के बाकी गाने सुने हैं? इस फिल्म का एक और गीत है मेरी इस संगीतमाला में। उसे बाद में सुनवाता हूँ । फिलहाल इसे सुन लीजिए।
पिछले कुछ हफ्तों से गत वर्ष के कुछ शानदार गीतों की फेरहिस्त तैयार करने में जुटा हूं जैसा मैं अपने ब्लॉग पर पिछले दो दशकों से करता आया हूं। इधर देख रहा हूं कि हिंदी फिल्म संगीत एक बार फिर ढलान पर है। साल में रिलीज हुई दर्जनों फिल्मों में पांच छह का ही संगीत औसत से बेहतर नज़र आता है। विशाल शेखर और शंकर अहसान लाय जैसे गुणी संगीतकार तो पिछले कुछ सालों से फिल्म संगीत में कुछ खास रंग जमा नहीं पा रहे। प्रीतम, सचिन जिगर और राम संपत का काम भी इस साल औसत रहा है। हां ये जरूर है कि ए. आर. रहमान,अमित त्रिवेदी, प्रीतम और अनुराग सैकिया का काम विगत कुछ वर्षों में अच्छा रहा है।
नतीजा ये हुआ है कि साल 2024 के 25 बेहतरीन गीतों तक पहुंचने के लिए पिछली साल की ही तरह इस बार भी मुझे वेब सीरीज और स्वतंत्र संगीत के गलियारों से होकर गुजरना पड़ा है। पिछले साल भी अगर जुबली जैसा एल्बम न आया होता तो मेरी ये सूची पूरी न हो पाती।
अब स्वतंत्र संगीत भी ऐसा महासागर है जिसमें हजारों बिखरे मोतियों में से कुछ को चुनना आसान नहीं। इस बार चुने गए 25 गीतों में 13 फिल्मों से हैं जबकि बाकी के बारह गैर फिल्मी। इस बार की संगीतमाला में आपको मंजे हुए नामों के साथ कई युवा चेहरे भी दिखाई देंगे जिन्हें आपने शायद पहले न सुना हो। तो चलते हैं आज से वार्षिक संगीतमाला के इस सालाना सफ़र पर।
तो इस साल संगीतमाला का आगाज़ करने से पहले इक नज़र उन गीतों पर जिन्होंने हमें झूमने नाचने के कुछ हल्के फुल्के पल दिए।
हिंदी फिल्मों में डांस नंबर्स को फिल्माने का वही पुराना तरीका है जिसकी थीम में एक हसीना और सौ दीवाने रहते हैं। परिदृश्य में उछलते कूदते नर्तकों का हुजूम और फिर एक शोख बाला का आगमन। गीत लोगों के दिल में राज करे उसके लिए सबसे पहली जरूरत तो ध्यान खींचने वाली धुन का होता है। पर झुमाने वाली धुन के साथ अगर अपने चहेते अभिनेता अभिनेत्रियों द्वारा किए गए डांस स्टेप्स लोगों की आँखों में चढ़ गए तो समझिए की रील्स का कारोबार शुरु और गाने की लोकप्रियता रातों रात आसमान पर।
रही इन गीतों के बोलों की बात तो उनकी चर्चा जितनी कम की जाए उतना ही बेहतर। आप तो मस्ती की तरंग में डूबिए। इस पर क्यों ध्यान देना कि कहीं कोई खेतों में बुला रहा है, कोई उल्टी सीधी फोटो शेयर करने पर थप्पड़ मारने की धमकी दे रहा है, कहीं मम्मी जी अचानक घर पर आकर रंग में भंग किए दे रही हैं, कोई कहीं हुस्न की अधिकता से तौबा तौबा कर रहा है तो कोई हुस्न का दीदार कराने को आमादा है। 😝
इन सब गीतों के बीच ठेठ भोजपुरी में एक प्यारा सा सोहर ओ राजाजी भी है जो आज की सामाजिक परिस्थितियों को बड़े तरीके से आपके मन को गुदगुदाते हुए चित्रित करता है। इस गीत के छायांकन में कोई नृत्य नहीं पर उसकी धुन पर झूमते हुए मैंने नेट और सांस्कृतिक कार्यक्रमों में बहुतों को देखा है।
हुस्न तेरा तौबा
हिंदी फिल्मों के डांस नंबर में अगर पंजाबी तड़का ना लगे तब तक वो हिंदी फिल्म निर्देशकों और निर्माताओं के गले नहीं उतरता। वैसे वे करें भी तो कया करें हमारी नई पीढ़ी का एक बड़ा वर्ग पंजाबी पॉप का दीवाना है।
लाल पीली अंखियां
धुन तनिष्क बागची की और गाया है इसे तनिष्क के साथ रोमी ने।
किया कराया हो गया बर्बाद मम्मी जी
मनन भारद्वाज द्वारा संगीत निर्देशित फिल्म वेदा के इस गीत को गाया है हिमानी कपूर और प्राजक्ता शुक्रे ने।
ओ राजाजी ओ राजाजी
बात कहने का सलीका हो तो मुद्दे की बात कह कर भी लोगों को थिरकाया जा सकता है। पंचायत वेब सीरीज के लिए मनोज तिवारी का गाया ये गीत इसी तथ्य की तस्दीक़ करता है।
थप्पड़ मारूँगी
दक्षिण भारतीय फिल्मों में नृत्य की कोरियोग्राफी एक अलग ही स्तर की होती है। अभिनेत्री श्रीलीला ने गजब के स्टेप्स किए हैं पुष्पा 2 के इस गीत में
आज की रात मज़ा हुस्न का आँखों से लीजिए
मधुबंती बागची को भले ही स्त्री 2 के इस आइटम नंबर से देश में पहचान मिली हो पर आपको जानकर आश्चर्य होगा कि वो इसी महारत से ठुमरी से लेकर ग़ज़ल भी गाया करती हैं।
तेरी बातो. में ऐसा उलझा जिया
एक रोबोट अगर नृत्य करे तो मन थोड़ा उलझ ही जाएगा। तनिष्क बागची का संगीत और इस गीत के सिग्नेचर स्टेप्स ने मुझे भी पिछले साल झूमने पर मजबूर किया था।
वैसे इस साल आपको किस गीत ने सबसे ज्यादा थिरकाया है?
मेरी पसंद के पच्चीस गीतों को सिलसिलेवार ढंग से लाऊँगा अगले कुछ महीनों में वार्षिक संगीतमाला 2024 के माध्यम से। तब तक साथ बने रहें।
श्याम बेनेगल नब्बे साल की आयु में हम सबका साथ छोड़कर चल दिए। वैसे भी वो काफी दिनों से बीमार थे पर कुछ ही दिन पहले उनके 90 वें जन्मदिन की हंसती मुस्कुराती तस्वीरें देख कर लगा था कि उनकी ये जिजीविषा शायद उन्हें और लंबी पारी खेलने का मौका दे।पर होनी को कुछ और ही मंजूर था। सत्तर के दशक में जब उनकी फिल्में चर्चित हो रही थीं तब हमारी उम्र उनकी आम जन से जुड़ी पटकथाओं को समझ पाने लायक नहीं थी।
बचपन के उन दिनों में माता पिता मुझे अपने साथ पटना के एलफिंस्टन सिनेमा हॉल में श्याम जी की फिल्म अंकुर में ले गए थे। फिल्म की कहानी मुझे कितनी समझ आई होगी पर बाल मन में ये बात गहरे पैठ गई थी एक सीधे सादे परिवार के साथ जमींदार पुत्र जरूर बेहद बुरा कर रहा है। उस परिवार का दुख मुझे इतना दुखी कर गया कि सिनेमा हाल में मैं लोगों के चुप कराने की कोशिशों के बावजूद पांच दस मिनट तक फफक फफक कर रोता रहा था।
जब अस्सी के दशक में घर में टीवी आया तो श्याम बेनेगल द्वारा निर्देशित यात्रा, भारत एक खोज जैसे कई धारावाहिक देखने का मौका मिला और उनकी प्रतिभा को जानने समझने का अवसर भी। यूं तो श्याम बेनेगल साहब ने कई फिल्में बनाई पर मुझे उनकी निर्देशित फिल्मों में जो सबसे प्यारी फिल्म लगती है वो थी जुनून। आज तक फिल्म में शशि कपूर का वो किरदार मुझे भूलता नहीं जो एक ओर तो सिपाही विद्रोह के दौरान अंग्रेजों से दुश्मनी मोल लेता है तो दूसरी ओर अपने द्वारा बंधक बनाई एक अंग्रेज लड़की को दिल दे बैठता है। शशि कपूर के चरित्र के इस विरोधाभास को कितनी खूबसूरती से पकड़ा था श्याम बेनेगल ने। कितने ही दृश्य थे जिनमें नफीसा अली और शशि के बीच सिर्फ आंखों के माध्यम से संवाद चलता रहता था..वो अभी भी मन में रचे बसे हैं। फिल्म के अंतिम दृश्य में शशि किस कातरता से कहते हैं कि बस उसकी एक झलक दिखला दो...वो भुलाए नहीं भूलता।
अस्सी के दशक में जब मुख्यधारा का सिनेमा सामाजिक सरोकारों से दूर घिसे पिटे फार्मूलों का गुलाम बनता जा रहा था तब श्याम बेनेगल और बाद में गोविंद निहलानी जैसे निर्देशकों ने कला फिल्मों द्वारा समानांतर सिनेमा को जो परचम फैलाया उसके लिए सिनेमा प्रेमी दर्शक उनके हमेशा ऋणी रहेंगे।
उनकी फिल्मों के कुछ गाने जो मुझे बेहद प्रिय हैं वो आजआपकी नज़र। पहला गीत है फिल्म सरदारी बेगम का जिसे गाया था आरती अभ्यंकर ने और गीत के बोल थे राह में बिछि हैं पलकें आओ
सूरज का सातवाँ घोड़ा में धर्मवीर भारती जी की कविता को गीत की शक्ल में पेश किया था श्याम बेनेगल जी ने। उस कविता और गीत के बारे में पहले भी यहाँ लिख चुका हूँ। गीत के बोल थे ये शामें सब की सब शामें क्या इनका कोई अर्थ नहीं..
और चलते चलते मेरी प्रिय फिल्म जुनून का ये गीत कैसे भूल सकता हूँ जिसके बोल थे घिर आई काली घटा मतवारी.. सावन की आई बहार रे
वार्षिक संगीतमाला की ये समापन कड़ी है 2023 के संगीत सितारों के नाम। पिछले साल रिलीज़ हुई फिल्मों के बेहतरीन गीतों से तो मैंने आपका परिचय पिछले कुछ महीनों में तो कराया ही पर गीत लिखने से लेकर संगीत रचने तक और गाने से लेकर बजाने तक हर विधा में किस किस ने उल्लेखनीय काम किया यही चिन्हित करने का प्रयास है मेरी ये पोस्ट। तो आइए मिलते हैं एक शाम मेरे नाम के इन संगीत सितारों से।
साल के बेहतरीन एलबम
रॉकी और रानी की लव स्टोरी : प्रीतम
जुबली वेब सीरीज : अमित त्रिवेदी
PS -2 : ए आर रहमान
Animal : कई संगीतकार
साल का सर्वश्रेष्ठ एलबम : जुबली वेब सीरीज : अमित त्रिवेदी
साल के कुछ खूबसूरत बोलों से सजे सँवरे गीत
गुलज़ार : रुआं रुआं खिलने लगी है ज़मीं
कौसर मुनीर : वो तेरे मेरे इश्क़ का ...
मनोज यादव : पल ये सुलझे
डा. सागर : हेराइल बा
इरशाद कामिल : बरखा ..
स्वानंद किरकिरे : बोलो ना , नौका डूबी
साल के सर्वश्रेष्ठ बोल : वो तेरे मेरे इश्क़ का ...कौसर मुनीर
साल की बेहतरीन गायिका : वो तेरे मेरे इश्क़ का ...सुनिधि चौहान
साल के बेहतरीन गायक
अरिजीत सिंह : आधा तेरा इश्क़ आधा मेरा, ,
अरिजीत सिंह : मैं परवाना तेरा नाम बताना
विशाल मिश्रा : पहले भी मैं तुमसे मिला हूँ
अरिजीत सिंह : मैं परवाना तेरा नाम बताना
अरिजीत सिंह : : तुम क्या मिले
अरिजीत सिंह : वे कमलेया
साल के बेहतरीन गायक : अरिजीत सिंह
संगीत के कुछ बेहतरीन टुकड़े
प्रील्यूड तुम क्या मिले प्रीतम
प्रील्यूड इंटरल्यूड नहीं जी नहीं अमित त्रिवेदी
प्रथम इंटरल्यूड इसराज पल ये सुलझे सुहित अभ्यंकर
इंटरल्यूड बरखा गिटार आदित्य शंकर बाँसुरी निर्मल्य डे, अरिजीत सिंह
प्रील्यूड अनूप शातम पियानो मैं हँसता रहा
प्रील्यूड इंटल्यूश वॉयलिन रूआँ रूआँ ए आर रहमान
गीतों में प्रयुक्त कुछ प्यारे बोल
जो बनाने चले तो बिगड़ क्यूँ गया...आँख खोली ही थी आँसू गड़ क्यूँ गया ? मनोज यादव
मैं थी पन्ना तुम कहानी, एक माँगी ज़िंदगानी एक छींटा लिपटा ऐसे, शब्द भींगे नम है किस्से मनोज यादव
वो आसमां छलांग के जो, छत पे यूँ गले से लगे, वो रात कोई और ही थी…वो चाँद कोई और ही था...इक निगाह पे जल गए…इक निगाह पे बुझ गए ..वो आग कोई और ही थी…चराग कोई और ही था कौसर मुनीर
बे-इरादा रास्तों की बन गए हो मंज़िलें मुश्किलें हल हैं तुम्हीं से या तुम्हीं हो मुश्किलें? अमिताभ भट्टाचार्य
आजा रे, आ, बरखा रे, मीठे तू कर दिन खारे, झोंका हवा का पुकारे, ग़म को बहा ले जा रे इरशाद कामिल
मैं समंदर, परिंदा है ये इश्क रे..मन मातम और जिंदा है ये इश्क़ रे सिद्धार्थ गरिमा
आधा तेरा इश्क़, आधा मेरा .. ऐसे हो पूरा चंद्रमा..हो तारा तेरा इक तारा मेरा, बाकी अँधेरा आसमां सिद्धार्थ गरिमा
भीड़ में ऐसे छिंटा गईनी ऐसे ..बोरा से सरसों छिंटाइल बा..चल उड़ चल सुगना गउवाँ के ओर जहाँ माटी में सोना हेराइल बा डा. सागर
तू रात में ही उलझा था मैं बन गई सहर तू साँसें माँगता था और मैं पी गयी ज़हर स्वानंद किरकिरे
मंद मंद, नीम बंद, नैनों से कहीं ओ, आके बांके तूने कहीं झाँका तो नहीं गुलज़ार
पिछले महीने परिस्थतियाँ ऐसी रही कि वार्षिक संगीतमाला की आख़िरी पेशकश को आप तक पहुँचाने का समय टलता रहा।चलिए थोड़ी देर से ही सही पर अब वक़्त आ गया इस संगीतमाला का सरताजी बिगुल बजाने का और इस साल ये सेहरा बँधा है जुबली के गीत वो तेरे मेरे इश्क़ का इक, शायराना दौर सा था....पर। क्या शब्द , क्या धुन और क्या ही गायिकी इन तीनों मामलों में ये गीत अपने करीबी गीतों से कोसों आगे रहा और इसलिए इस वर्ष २०२३ का सर्वश्रेष्ठ गीत चुनने में मुझे कोई दुविधा नहीं हुई। यूँ तो इस सफलता के पीछे संगीतकार अमित त्रिवेदी, गीतकार कौसर मुनीर और गायिका सुनिधि चौहान बराबर की हक़दार हैं पर मैं कौसर मुनीर का विशेष रूप से नाम लेना चाहूँगा जिनके लिखे बोलों ने तमाम संगीतप्रेमियों के सीधे दिल पर असर किया।
आप सबके मन में एक प्रश्न उठता होगा कि क्या जीवन में प्रेम का स्वरूप हर समय एक जैसा हो सकता है? मुझे तो कम से कम ऐसा नहीं लगता। जिस सच्चे प्यार कि हम बात करते हैं मन की वो पवित्र अवस्था हमेशा तो नहीं रह पाती, पर उस अवस्था में हम अपने प्रेमी के लिए निस्वार्थ भावना से अपनी ज़िंदगी तक दाँव पर लगा देते हैं। कुछ ही दिनों पहले महान विचारक ओशो का सच्चे प्यार पर कही गयी ये उक्ति सुनी थी
प्रेम कोई स्थायी, शाश्वत चीज़ नहीं है। याद रखें, कवि जो कहते हैं वह सच नहीं है। उनकी कसौटी मत लो, कि सच्चा प्रेम शाश्वत है, और झूठा प्रेम क्षणिक है - नहीं! मामला ठीक इसके विपरीत है. सच्चा प्यार बहुत क्षणिक होता है - लेकिन क्या क्षण!... ऐसा कि कोई इसके लिए पूरी अनंतता खो सकता है, इसके लिए पूरी अनंतता जोखिम में डाल सकता है। कौन चाहता है कि वह क्षण स्थायी रहे? और स्थायित्व को इतना महत्व क्यों दिया जाना चाहिए?... क्योंकि जीवन परिवर्तन है, प्रवाह है; केवल मृत्यु ही स्थायी है.
संगीतकार अमित त्रिवेदी, गीतकार कौसर मुनीर के साथ
भले ही प्रेम में पड़े होने के वे अद्भुत क्षण बीत जाते हैं पर हम जब भी उन लम्हों को याद करते हैं मन निर्मल हो जाता है और अतीत की यादों से प्रेम की इसी निर्मलता को कौसर मुनीर ने इस गीत में ढूँढने की कोशिश की है वो भी पूरी आत्मीयता एवम् काव्यात्मकता के साथ। फिर वो रात में अपने चाँद से आलिंगन की बात हो या फिर किसी की एक नज़र उठने या गिरने से दिल में आते भूचाल की कसक कौसर मुनीर प्रेम करने वाले हर इंसान को अपने उस वक़्त की याद दिला देती हैं जब इन कोमल भावनाओं के चक्रवात से वो गुजरा था। गीत में उन प्यारे लम्हों के गुजर जाने को लेकर कोई कड़वाहट नहीं है। बस उन हसीन पलों को फिर से मन में उतार लेने की ख़्वाहिश भर है।
संगीतकार अमित त्रिवेदी ने भी सारंगी, सितार, हारमोनियम के साथ तबले की संगत कर इस गीत का शानदार माहौल रचा है। इस गीत में सितार वादन किया है भागीरथ भट्ट ने, सारंगी सँभाली है दिलशाद खान ने हारमोनियम पर उँगलियाँ थिरकी हैं अख़लक वारसी की और तबले पर संगत है सत्यजीतकी।
गीत स्वरमंडल की झंकार से बीच सुनिधि के आलाप से आरंभ होता है। आरंभिक शेर के पार्श्व में स्वरमंडल, सितार और सारंगी की मधुर तान चलती रहती है.। गीत का मुखड़ा आते ही मुजरे के माहौल को तबले और हारमोनियम की संगत जीवंत कर देती है। पहले अंतरे के बाद सितार का बजता टुकड़ा सुन कर मन से वाह वाह निकलती है। गीत में नायिका के हाव भाव उमराव जान के फिल्मांकन की याद दिला देते हैं।सुनिधि की आवाज़ बीते कल की यादों के साथ यूँ डूबती उतराती हैं कि आँखें नम हुए बिना नहीं रह पातीं।
सुनिधि चौहान
बतौर गायिका सुनिधि चौहान के लिए पिछला साल शानदार रहा। अपने तीन दशक से भी लंबे कैरियर में बीते कुछ सालों से उन्हैं अपने हुनर के लायक काम नहीं मिल रहा था पर जुबली में बाबूजी भोले भाले, नहीं जी नहीं और वो तेरे मेरे इश्क़ का... जैसे अलग अलग प्रकृति के गीतों को जिस खूबसूरती से उन्होंने अपनी आवाज़ में ढाला उसकी जितनी तारीफ़ की जाए कम होगी।
क्या इश्क़ की दलील दूँ, क्या वक़्त से करूँ गिला
कि वो भी कोई और ही थी, कि वो भी कोई और ही था
वो तेरे मेरे इश्क़ का इक, शायराना दौर सा था....
वो मैं भी कोई और ही थी वो तू भी कोई और ही था
वो तेरे मेरे इश्क़ का इक, शायराना दौर सा था
वो आसमां छलांग के जो, छत पे यूँ गले से लगे
वो आसमां छलांग के जो, छत पे यूँ गले से लगे
वो रात कोई और ही थी…वो चाँद कोई और ही था
इक निगाह पे जल गए…इक निगाह पे बुझ गए
इक निगाह पे जल गए…इक निगाह पे बुझ गए
वो आग कोई और ही थी…चराग कोई और ही था
वो तेरे मेरे इश्क़ का इक शायराना दौर सा था..
जिस पे बिछ गई थी मैं…जिस पे लुट गया था तू
बहार कोई और ही थी…वो बाग कोई और ही था
जिसपे मैं बिगड़ सी गई…जिससे तू मुकर सा गया
जिसपे मैं बिगड़ सी गई…जिससे तू मुकर सा गया
वो बात कोई और ही थी…वो साथ कोई और ही था।
वो तेरे मेरे इश्क़ का इक शायराना दौर सा था..
वैसे मुझे जुबली देखते वक़्त ये जरूर लगा कि जितनी सशक्त भावनाएँ इस गीत में निहित थीं उस हिसाब से निर्देशक विक्रमादित्य उसे अपनी कहानी में इस्तेमाल नहीं कर पाए।
वार्षिक संगीतमाला 2023 में मेरी पसंद के पच्चीस गीत
तो ये थे मेरी पसंद के साल के पच्चीस बेहतरीन गीत। पहले नंबर के गीत का तो आज मैंने ऍलान कर दिया। बाकी गीतों की अपनी रैंकिंग मैं अपनी अगली पोस्ट में बताऊँगा। आप जरूर बताएँ कि इन गीतों में या इनके आलावा भी इस साल के पसंदीदा गीतों की सूची अगर आपको बनानी होती तो आप किन गीतों को रखते?
वार्षिक संगीतमाला में 2023 के पच्चीस बेहतरीन गीतों की शृंखला अब अपने अंतिम चरण में आ पहुंची है। आज जिस गीत के बारे में मैं आपसे चर्चा करने जा रहा हूं उसकी रूपरेखा एक विशुद्ध मुंबईया फिल्मी गीत सरीखी है। यहां हसीन वादियां हैं, खूबसूरत परिधानों में परी सी दिखती नायिका है और साथ में एक छैल छबीला नायक जो हवा के झोंकों के बीच बहती सुरीली धुन और मन को छूते शब्दों में अपने प्रेम का इज़हार कर रहे हैं। हालांकि वास्तव में नायक वहां है नहीं पर नायिका उसकी उपस्थिति महसूस कर रही है। यथार्थ से परे होकर भी भारतीय दर्शक गीतों में इस larger than life image को दिल से पसंद करते हैं क्यूंकि ऐसे गीतों की परंपरा हिन्दी सिनेमा में शुरू से रही है या यूं कह लें कि ये बॉलीवुड की विशिष्टता है जिसे हम सबने अपनी थाती बनाकर अपने दिल में बसा लिया है।
ये गीत है फिल्म रॉकी और रानी की प्रेम कहानी से। पिछले साल के अंत में आई ये फिल्म हिट तो हुई ही थी, इसके गाने भी खूब पसंद किए गए थे। वे कमलेया और वाट झुमका से तो आप परिचित होंगे ही। आज के गीत, तुम क्या मिले जो इस फिल्म का मेरा सबसे पसंदीदा गीत है, को मैंने पिछले साल खूब सुना था और अब तक सुन रहा हूं। मुझे यकीन है कि अगर आपने ये गीत अब तक नहीं सुना तो इसे सुन कर आप अवश्य इसकी मधुरता के कायल हो जाएंगे।
अक्सर गीतों के मुखड़ों के पहले कई संगीतकार पियानो का बेहद प्यार इस्तेमाल करते हैं। तुम क्या मिले की शुरुआत भी इसी वाद्य यंत्र से होती है। जब जब इस गीत को सुनना शुरु करता हूँ पियानो की ये धुन मुझे अलग ही दुनिया में ले जाती है। वो जो प्रेम की मीठी सी कसक होती है न वही कुछ है हिमांशु पारिख के बजाए मन को तरंगित करते इस टुकड़े में । मन इस स्वरलहरी में हिलोरे ले ही रहा होता है कि अमिताभ भट्टाचार्य के शब्द समय के उस छोर पे मुझे ले जाते हैं जब ऐसी ही भावनाएँ दिल में घर बनाया करती थीं।
भला किसको अपनी ज़िंदगी में किसी ऐसे शख़्स से मिलने का इंतज़ार नहीं होता जो उसकी बेरंगी शामों को रंगीन बना दे। फीके लम्हों में नमकीनियाँ भर दे। और जब दिल की ये मुराद पूरी हो जाती है तो यही चाहत बेचैनी और मुसीबत का सबब भी बन जाती है और इसीलिए अमिताभ ने गीत के मुखड़े में लिखते हैं
बेरंगे थे दिन, बेरंगी शामें
आई हैं तुम से रंगीनियाँ
फीके थे लम्हे जीने में सारे
आई हैं तुम से नमकीनियाँ
बे-इरादा रास्तों की बन गए हो मंज़िलें
मुश्किलें हल हैं तुम्हीं से या तुम्हीं हो मुश्किलें?
पियानो की मिठास अब भी इन शब्दों के पीछे बरक़रार रहती है। अरिजीत के मोहक स्वर में तुम क्या मिले की पंच लाइन आते आते ढोलक, तबले के साथ साथ तार वाद्य और ट्रम्पेट अपनी संगत से गीत का मूड खुशनुमा कर देते हैं और फिर फ़िज़ा में तैर जाती है श्रेया की दिलकश आवाज़। अंतरों के बीच श्रेया का आलाप रस की फुहार जैसा प्रतीत होता है। प्रीतम मेलोडी के बादशाह है। श्रोताओं के कानों में कब कैसा रस घोलना है वो बखूबी जानते हैं। अरिजीत, श्रेया और अमिताभ उनके संगीत संयोजन को गायिकी और बोल से ऐसे उभारते हैं कि मन रूमानी हो ही जाता है। गीत का अंत तरार वाद्यों के साथ बजते ट्रम्पेट के उत्कर्ष से होता है।
तुम क्या मिले, तुम क्या मिले हम ना रहे हम, तुम क्या मिले जैसे मेरे दिल में खिले फागुन के मौसम, तुम क्या मिले तुम क्या मिले, तुम क्या मिले तुम क्या मिले, तुम क्या मिले
कोरे काग़ज़ों की ही तरह हैं इश्क़ बिना जवानियाँ दर्ज हुई हैं शायरी में, जिनकी हैं प्रेम कहानियाँ हम ज़माने की निगाहों में कभी गुमनाम थे अपने चर्चे कर रही हैं अब शहर की महफ़िलें
तुम क्या मिले,....
हम थे रोज़मर्रा के, एक तरह के कितने सवालों में उलझे उनके जवाबों के जैसे मिले झरने ठंडे पानी के हों रवानी में, ऊँचे पहाड़ों से बह के ठहरे तालाबों से जैसे मिले
तुम क्या मिले....
गीत के बारे में इतना कुछ कहने के बाद इसके फिल्मांकन की बात ना करूँ तो कुछ चीजें अधूरी रह जाएँगी। करण जौहर ने जब इस गीत का फिल्मांकन किया तो उनके मन में यश चोपड़ा की फिल्मों के गीत उमड़ घुमड़ रहे थे।
इस गीत में गुलमर्ग, पहलगाम और श्रीनगर के शूट किए दृश्य इतने शानदार हैं कि उन्हें देख मन बर्फ की वादियों में तुरंत लोट पोट करने का करता है। अमिताभ एक जगह लिखते हैं झरने ठंडे पानी के हों रवानी में, ऊँचे पहाड़ों से बह के ..ठहरे तालाबों से जैसे मिले...तुम क्या मिले.... और कैमरा पहाड़ से गिरती बलखाती नदी का एरियल शॉट ले रहा होता है।
प्राकृतिक खूबसूरती के साथ साथ आलिया बर्फ की सफेद चादर के परिदृश्य में अपनी रंग बिरंगी शिफॉन की साड़ियों से दर्शकों का मन मोह जाती हैं। इस गीत के बाद उन साड़ियों का ऐसा क्रेज हुआ कि वे कुल्फी साड़ियों के नाम से बाजार में बिकने भी लगीं। आलिया के व्यावसायिक कौशल की तारीफ़ करनी होगी कि प्रेगनेंसी के चार महीने बाद ही पूरी तरह फिट हो कर इस गीत के लिए कश्मीर के ठंडे मौसम में अपने आप को तैयार किया।
आइए देखें ये पूरा गीत जो है रॉकी और रानी की प्रेम कहानी का।
वार्षिक संगीतमाला 2023 में मेरी पसंद के पच्चीस गीत
उत्तरी कारो नदी में पदयात्रा Torpa , Jharkhand
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कारो और कोयल ये दो प्यारी नदियां कभी सघन वनों तो कभी कृषि योग्य पठारी
इलाकों के बीच से बहती हुई दक्षिणी झारखंड को सींचती हैं। बरसात में उफनती ये
नदियां...
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