जिन्दगी में छोटी बड़ी मायूसी तो आती जाती रहती हैं । उन्हें कितने दिनों कोई अपने ऊपर हावी होने देता रहे । नीरज की ये कविता उन लोगों पर एक तीखा कटाक्ष है जो सपनों के टूटने और किसी के जुदा होने का मातम इस तरह मनाते हैं जैसे उसके आलावा उनकी जिन्दगी के कोई मायने ही ना हों ।
ये कविता हमें प्रेरित करती है गम के अंधेरों से बाहर निकलने की ...
और इस कठोर यथार्थ को समझने की, कि संगी साथी, सपने सब छूट जायें भी तो ये जीवन चलता रहता है,.बिना रुके बिना थमें...
तो क्यूँ ना हम बिखरे हुये तिनकों को जोड़ें और चल पड़ें जीवन रुपी पर्व का हर्षोल्लास से स्वागत करने!:)
कुन्नूर : धुंध से उठती धुन
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आज से करीब दो सौ साल पहले कुन्नूर में इंसानों की कोई बस्ती नहीं थी। अंग्रेज
सेना के कुछ अधिकारी वहां 1834 के करीब पहुंचे। चंद कोठियां भी बनी, वहां तक
पहु...
6 माह पहले
25 टिप्पणियाँ:
निराशा से उबरने का सन्देश देती यह कविता बहुत उत्तम है। प्रस्तुतीकरण के लिए धन्यवाद।
देवनागरी भाषा जगत में आपका स्वागत है। कविता पेहले पढ चुके हैं, इसिलिए बिना टिप्पणी किये जा रहे हैं...
अगली श्रृंखला के इंतजा़र में....
डौन ;)
स्वागतम्, हिन्दी चिट्ठाजगत में |
नीरज की ये कविता बहुत अच्छी लगी | इसे पढकर मैथिलीशरण गुप्त जी की "नर हो न निराश करो मन को" याद आ गयी |
इसी तर्ज़ पर हरिवंशराय बच्चन जी की एक कृति है जो मुझे पंसद है.इसका एक अंश है ..
जो बीत गये सो बात गयी.
जीवन में एक सितारा था
माना वह बेहद प्यारा था
जो डूब गया तो डूब गया
अंबर के आँगन को देखो
कितने इसके तारे टूटे
कितने इसके प्यारे छूटे
जो छूट गये फिर कहाँ मिले
पर बोलो टूटे तारों पर
कब अम्बर शोक मनाता है
जो बीत गयी सो बात गयी !
प्रतीक नीरज जी की ये कविता आपको पसंद आयी , ये जानकर खुशी हुई ।
डॉन : स्वागत का शुक्रिया !
कविता पसंद करने का शुक्रिया जनाब ! आपने बिलकुल सही कहा कि नीरज की इस रचना का मूल भाव बहुत कुछ गुप्त जी नर हो... से मिलता है , जो मेरी इस कड़ी की अगली प्रस्तुति भी होगी !:)
पूनम : जो बीत गयी.. स्कूल के जमाने से ही मेरी पसंदीदा रचना रही है । पिछली अगस्त में अपने रोमन हिन्दी चिट्ठे पर पेश भी किया था ।
जानती हैं मशहूर शायर फैज ने भी इसी जमीन पर एक बेहतरीन नज्म लिखी है. कुछ पंक्तियाँ पेश हैं
मोती हो कि शीशा जॉम कि दुर
जो टूट गया सो टूट गया
कब अश्कों से जुड़ सकता है
जो टूट गया सो छूट गया
तुम नाहक टुकड़े चुन चुन कर
दामन में छुपाये बैठे हो
शीशों का मसीहा कोई नहीं
क्यूँ आस लगाये बैठे हो
मनीष जी,
हिन्दी ब्लोग जगत में आपका स्वागत है। बहुत सुन्दर कविता चुनी है, आपने नीरज जी की। प्रस्तुति के लिये धन्यवाद्। कुछ ऐसे ही थीम पर मेरी एक कविता है:
http://kavyakala.blogspot.com/2006_02_01_kavyakala_archive.html
शुक्रिया स्वागत का गुप्ता जी ! जरूर पढ़ेंगे आपकी रचना।
मनीष भाई, बहुत ही प्रेर्णाजनक कविता है. यह मोती आपके नाम!
Manish main ek radio presenter hun aur apne karyakram ke liye hasya vyang ki rachnayen ya koi bheeidea dhoond rahi hun aapki jaankaari kaafi hai so kripya kutch salah dein.....
mail karein sonia94.7@gmail.com par
सुन्दर! बहुत दिन बाद देखा आपका ब्लाग। ये भी दिन देखने थे कि जिस ब्लाग को पसंद करते हैं उसे देखे इतने दिन गुजर जायें।यह कविता मेरे पास कैसेट में है। कई बार सुनी है। हर बार अच्छी लगी।
shayad ye kavita mere humumra doston ne apne schools mein jaroor padhi hogi.. rongte khade kar dene wali prernaon se bhari is kavita ko Bachchanji ne jis josh se likha hai.. uska prabhaav har ek padhne wale pe dikhai deta hai.
Kavita ke bare mmein aapne bilkul sahi kaha Deepak bhai. Par is prernadayak kavita ke rchnakaar Gopal Das Neeraj" hain na ki Bachchan.
correction ke liye dhanyawaad Manish bhai. kaafi arsa ho gaya hai is kavita to padhe hua. Kaafi dinon pehle maine ise dhoondne ki koshish ki thi, lekin mujhe kuch mila nahi. aaj phir se koshish ki to is blog pe puri kavita mil gayi. Gopal Das Neeraj ji ki bahut hi sundar rachana hai ye kavita. Lagbhag 15-20 saal ho gaye hain ise padhe hue lekin harek shabd aaj bhi utna hi prabhavshali hai!!
kai dino se mere man me ye vichar aa raha tha ki kya hum apni bhasha par garv karna bhool gaye hai, lekin aj jub apka ye blog dekha to pata chala ki nahi, bharatvarsh me aj bhi apni bhasha se pyar karne wale hai. kripaya is karya ko jari rakhiye evam naee peedhee ko isme shamil kariye.
Kyu kavitayo ke peechhe chhupkar, hum apne aanshu bahaya karte hai,,,,,,,,,,,,,
jab tanha hi rona h,fir kyu sabko apna dard bataya karte hai...
aaj subha aap ka TV per program dekha bhut accha laga or apne aap se bola ki
MERA BHARAT MAHANO KA BI MAHAN......
ISNE DIYE HAI NEERAJ JI JAISE INSAN MAHAN...
कुछ सपनों के मर जाने से जीवन नहीं मरा करता है....
बहुत सुन्दर गीत पढवाने हेतु सादर आभार.
KHUB SUNDAR LIKHI YE KAVITA NEERAJJI NE.
गोपाल दास नीरज जी की यह एक अद्भुत कविता है
हम 1993 में इसे पढाने एक स्कूल जाते थे।(राजस्थान की कक्षा 7)
नीरज जी की यह बड़ी ऊर्जा देने वाली कविता है ।
अंधेरे से रोशनी का जलता हुआ दीपक है ।
निराशा से आशा , मनोबल बढ़ाने बाली शानदार कविता है।
गूगल का आभार जिसने हमें इनसे मिलवाया । ऐ जी
एक ताजी हवा के झोंके की मानिंद आया है ये हिंदी ब्लॉग। नीरज जी की कविता हरि वंश राय बच्चन जी की प्रेरणादायी पंक्तियों " कोशिश करने वालों की कभी हार नहीं होती..." की याद ताजा करा गयीं जिसे उनके साहबजादे अमिताभ बच्चन जी ने कौन बनेगा करोड़पति के सेट पर बेहद लाजवाब अंदाज में पेश किया। इस सुन्दर कोशिश को सदाबहार बनाये रखें। साधुवाद।
prerna dayak kavita
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