गुरुवार, मार्च 30, 2006

छिप छिप अश्रु बहाने वालों ........

जिन्दगी में छोटी बड़ी मायूसी तो आती जाती रहती हैं । उन्हें कितने दिनों कोई अपने ऊपर हावी होने देता रहे । नीरज की ये कविता उन लोगों पर एक तीखा कटाक्ष है जो सपनों के टूटने और किसी के जुदा होने का मातम इस तरह मनाते हैं जैसे उसके आलावा उनकी जिन्दगी के कोई मायने ही ना हों ।
ये कविता हमें प्रेरित करती है गम के अंधेरों से बाहर निकलने की ...
और इस कठोर यथार्थ को समझने की, कि संगी साथी, सपने सब छूट जायें भी तो ये जीवन चलता रहता है,.बिना रुके बिना थमें...
तो क्यूँ ना हम बिखरे हुये तिनकों को जोड़ें और चल पड़ें जीवन रुपी पर्व का हर्षोल्लास से स्वागत करने!:)

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25 टिप्पणियाँ:

Pratik Pandey on मार्च 30, 2006 ने कहा…

निराशा से उबरने का सन्देश देती यह कविता बहुत उत्तम है। प्रस्तुतीकरण के लिए धन्यवाद।

Dawn on मार्च 30, 2006 ने कहा…

देवनागरी भाषा जगत में आपका स्‍वागत है। कविता पेहले पढ चुके हैं, इसिलिए बिना टिप्‍पणी किये जा रहे हैं...
अगली श्रृंखला के इंतजा़र में....
डौन ;)

अनुनाद सिंह on मार्च 31, 2006 ने कहा…

स्वागतम्, हिन्दी चिट्ठाजगत में |

नीरज की ये कविता बहुत अच्छी लगी | इसे पढकर मैथिलीशरण गुप्त जी की "नर हो न निराश करो मन को" याद आ गयी |

Poonam Misra on अप्रैल 01, 2006 ने कहा…

इसी तर्ज़ पर हरिवंशराय बच्चन जी की एक कृति है जो मुझे पंसद है.इसका एक अंश है ..
जो बीत गये सो बात गयी.
जीवन में एक सितारा था
माना वह बेहद प्यारा था
जो डूब गया तो डूब गया
अंबर के आँगन को देखो
कितने इसके तारे टूटे
कितने इसके प्यारे छूटे
जो छूट गये फिर कहाँ मिले
पर बोलो टूटे तारों पर
कब अम्बर शोक मनाता है
जो बीत गयी सो बात गयी !

Manish Kumar on अप्रैल 02, 2006 ने कहा…

प्रतीक नीरज जी की ये कविता आपको पसंद आयी , ये जानकर खुशी हुई ।

Manish Kumar on अप्रैल 02, 2006 ने कहा…

डॉन : स्वागत का शुक्रिया !

Manish Kumar on अप्रैल 02, 2006 ने कहा…

कविता पसंद करने का शुक्रिया जनाब ! आपने बिलकुल सही कहा कि नीरज की इस रचना का मूल भाव बहुत कुछ गुप्त जी नर हो... से मिलता है , जो मेरी इस कड़ी की अगली प्रस्तुति भी होगी !:)

Manish Kumar on अप्रैल 02, 2006 ने कहा…

पूनम : जो बीत गयी.. स्कूल के जमाने से ही मेरी पसंदीदा रचना रही है । पिछली अगस्त में अपने रोमन हिन्दी चिट्ठे पर पेश भी किया था ।
जानती हैं मशहूर शायर फैज ने भी इसी जमीन पर एक बेहतरीन नज्म लिखी है. कुछ पंक्तियाँ पेश हैं

मोती हो कि शीशा जॉम कि दुर
जो टूट गया सो टूट गया
कब अश्कों से जुड़ सकता है
जो टूट गया सो छूट गया

तुम नाहक टुकड़े चुन चुन कर
दामन में छुपाये बैठे हो
शीशों का मसीहा कोई नहीं
क्यूँ आस लगाये बैठे हो

Laxmi on अप्रैल 19, 2006 ने कहा…

मनीष जी,

हिन्दी ब्लोग जगत में आपका स्वागत है। बहुत सुन्दर कविता चुनी है, आपने नीरज जी की। प्रस्तुति के लिये धन्यवाद्। कुछ ऐसे ही थीम पर मेरी एक कविता है:

http://kavyakala.blogspot.com/2006_02_01_kavyakala_archive.html

Manish Kumar on अप्रैल 20, 2006 ने कहा…

शुक्रिया स्वागत का गुप्ता जी ! जरूर पढ़ेंगे आपकी रचना।

Rohit Wason on अप्रैल 24, 2006 ने कहा…

मनीष भाई, बहुत ही प्रेर्णाजनक कविता है. यह मोती आपके नाम!

बेनामी ने कहा…

Manish main ek radio presenter hun aur apne karyakram ke liye hasya vyang ki rachnayen ya koi bheeidea dhoond rahi hun aapki jaankaari kaafi hai so kripya kutch salah dein.....
mail karein sonia94.7@gmail.com par

अनूप शुक्ल on फ़रवरी 12, 2008 ने कहा…

सुन्दर! बहुत दिन बाद देखा आपका ब्लाग। ये भी दिन देखने थे कि जिस ब्लाग को पसंद करते हैं उसे देखे इतने दिन गुजर जायें।यह कविता मेरे पास कैसेट में है। कई बार सुनी है। हर बार अच्छी लगी।

Deepak on जुलाई 09, 2008 ने कहा…

shayad ye kavita mere humumra doston ne apne schools mein jaroor padhi hogi.. rongte khade kar dene wali prernaon se bhari is kavita ko Bachchanji ne jis josh se likha hai.. uska prabhaav har ek padhne wale pe dikhai deta hai.

Manish Kumar on जुलाई 09, 2008 ने कहा…

Kavita ke bare mmein aapne bilkul sahi kaha Deepak bhai. Par is prernadayak kavita ke rchnakaar Gopal Das Neeraj" hain na ki Bachchan.

Deepak on जुलाई 09, 2008 ने कहा…

correction ke liye dhanyawaad Manish bhai. kaafi arsa ho gaya hai is kavita to padhe hua. Kaafi dinon pehle maine ise dhoondne ki koshish ki thi, lekin mujhe kuch mila nahi. aaj phir se koshish ki to is blog pe puri kavita mil gayi. Gopal Das Neeraj ji ki bahut hi sundar rachana hai ye kavita. Lagbhag 15-20 saal ho gaye hain ise padhe hue lekin harek shabd aaj bhi utna hi prabhavshali hai!!

Unknown on दिसंबर 04, 2009 ने कहा…

kai dino se mere man me ye vichar aa raha tha ki kya hum apni bhasha par garv karna bhool gaye hai, lekin aj jub apka ye blog dekha to pata chala ki nahi, bharatvarsh me aj bhi apni bhasha se pyar karne wale hai. kripaya is karya ko jari rakhiye evam naee peedhee ko isme shamil kariye.

rohitash on अक्तूबर 06, 2011 ने कहा…

Kyu kavitayo ke peechhe chhupkar, hum apne aanshu bahaya karte hai,,,,,,,,,,,,,
jab tanha hi rona h,fir kyu sabko apna dard bataya karte hai...

Unknown on जून 02, 2012 ने कहा…

aaj subha aap ka TV per program dekha bhut accha laga or apne aap se bola ki
MERA BHARAT MAHANO KA BI MAHAN......
ISNE DIYE HAI NEERAJ JI JAISE INSAN MAHAN...

S.M.HABIB (Sanjay Mishra 'Habib') on जून 25, 2012 ने कहा…

कुछ सपनों के मर जाने से जीवन नहीं मरा करता है....

बहुत सुन्दर गीत पढवाने हेतु सादर आभार.

बेनामी ने कहा…

KHUB SUNDAR LIKHI YE KAVITA NEERAJJI NE.

Unknown on अक्तूबर 14, 2015 ने कहा…

गोपाल दास नीरज जी की यह एक अद्भुत कविता है
हम 1993 में इसे पढाने एक स्कूल जाते थे।(राजस्थान की कक्षा 7)
नीरज जी की यह बड़ी ऊर्जा देने वाली कविता है ।
अंधेरे से रोशनी का जलता हुआ दीपक है ।
निराशा से आशा , मनोबल बढ़ाने बाली शानदार कविता है।
गूगल का आभार जिसने हमें इनसे मिलवाया । ऐ जी

vinay ranjan on फ़रवरी 19, 2016 ने कहा…

एक ताजी हवा के झोंके की मानिंद आया है ये हिंदी ब्लॉग। नीरज जी की कविता हरि वंश राय बच्चन जी की प्रेरणादायी पंक्तियों " कोशिश करने वालों की कभी हार नहीं होती..." की याद ताजा करा गयीं जिसे उनके साहबजादे अमिताभ बच्चन जी ने कौन बनेगा करोड़पति के सेट पर बेहद लाजवाब अंदाज में पेश किया। इस सुन्दर कोशिश को सदाबहार बनाये रखें। साधुवाद।

Aarjoo-A-Zindagi on जुलाई 04, 2017 ने कहा…

prerna dayak kavita

Unknown on जनवरी 11, 2020 ने कहा…

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