रविवार, अप्रैल 02, 2006

नर हो ना निराश करो मन को ..


नाकामी, हताशा, मायूसी, क्रोध कुछ ‌‌ऐसी भावनायें हैं जो गाहे बगाहे अक्सर हमें दुखी करती रहती हैं । पर इनसे निकलने के लिये इधर उधर भटकने के बजॉय अगर अपने अन्तर्मन में झांकें तो वहीं से एक उम्मीद की किरण दिख सकती है । मैं तो हर बार ऐसे क्षणों मे अपने पास ही लौटा हूँ और मुझे यही महसूस हुआ है कि आत्म बल ही सबसे बड़ा बल है । यानि यूँ कहैं कि अपने आप को सबसे बड़ा सहारा आप अपनी अन्दरुनी शक्ति को जगा के ही दे सकते हैं । वैसे भी ऊपरवाला उन्हीं का साथ देता है जिन्हें खुद अपनी काबिलियत पर विश्वास हो ।
आखिर इकबाल ने यूँ ही तो नहीं कहा...
खुदी को कर बुलंद इतना कि हर तकदीर से पहले
खुदा बन्दे से खुद पूछे कि बता तेरी रजा क्या है

और इस कविता में गुप्त जी खुद कहते हैं
अखिलेश्वर है अवलम्बन को
नर हो ना निराश करो मन को

बचपन में पिताजी उत्साह बढ़ाने के लिये इसी कविता की पंक्तियाँ सुनाया करते थे । और आज भी जब लगता है कि मैं बेकार ही अपना समय नष्ट कर रहा हूँ तो इस कविता की पंक्तियाँ गुनगुना कर खुद में एक नयी आशा का संचार करने कि कोशिश करता हूँ... आशा है ये कविता आप सब की भी प्रिय होगी...

नर हो न निराश करो मन को
कुछ काम करो कुछ काम करो
जग में रहके निज नाम करो ।
यह जन्म हुआ किस अर्थ अहो
समझो जिसमें यह व्यर्थ न हो ।
कुछ तो उपयुक्त करो तन को
नर हो न निराश करो मन को ।।

संभलो कि सुयोग न जाए चला
कब व्यर्थ हुआ सदुपाय भला
समझो जग को न निरा सपना
पथ आप प्रशस्त करो अपना ।
अखिलेश्वर है अवलम्बन को
नर हो न निराश करो मन को ।।

जब प्राप्त तुम्हें सब तत्त्व यहाँ
फिर जा सकता वह सत्त्व कहाँ
तुम स्वत्त्व सुधा रस पान करो
उठके अमरत्व विधान करो ।
दवरूप रहो भव कानन को
नर हो न निराश करो मन को ।।

निज गौरव का नित ज्ञान रहे
हम भी कुछ हैं यह ध्यान रहे।
सब जाय अभी पर मान रहे
मरणोत्तर गुंजित गान रहे ।
कुछ हो न तजो निज साधन को
नर हो न निराश करो मन को ।।


प्रभु ने तुमको दान किए
सब वांछित वस्तु विधान किए
तुम प्राप्‍त करो उनको न अहो
फिर है यह किसका दोष कहो
समझो न अलभ्य किसी धन को
नर हो, न निराश करो मन को
।।

किस गौरव के तुम योग्य नहीं
कब कौन तुम्हें सुख भोग्य नहीं
जान हो तुम भी जगदीश्वर के
सब है जिसके अपने घर के
फिर दुर्लभ क्या उसके जन को
नर हो, न निराश करो मन को

करके विधि वाद न खेद करो
निज़ लक्ष्य निरन्तर भेद करो
बनता बस उद्‌यम ही विधि है
मिलती जिससे सुख की निधि है
समझो धिक् निष्क्रिय जीवन को
नर हो, न निराश करो मन को
कुछ काम करो, कुछ काम करो
।।
मैथिलीशरण गुप्त
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31 टिप्पणियाँ:

बेनामी ने कहा…

yeh aapka naya blog hain ya sirf yeh post aapne devnagiri mein likha hain.

Manish Kumar on अप्रैल 04, 2006 ने कहा…

नागू आजकल मैं हर प्रविष्टि देवनागरी में भी लिख रहा हूँ !

CN on अप्रैल 13, 2006 ने कहा…

Manish! bahut achha kaam kiya hai mitr! nar ho na niraash karo man ko main kaafi dino se dhoondh raha tha..

dhanyawaad ise net par share karne k liye

Manish Kumar on अप्रैल 17, 2006 ने कहा…

खुशी हुई जानकर निपुन कि आपकी खोज को मैं सार्थक कर सका ! आशा है कि आगे भी आप यहाँ आते रहेंगे ।

Poonam Misra on अप्रैल 18, 2006 ने कहा…

मनीष ,आपका रचनाओं का चयन उत्तम है.स्कूल कालेज के बाद इन कविताओं से जैसे रिश्ता ही टूट गया था.उनसे पुनः मिलाने का धन्यवाद.

Manish Kumar on अप्रैल 20, 2006 ने कहा…

पूनम जी आपको इन कविताओं का चयन अच्छा लगा ये जानकर खुशी हुई ।

Manish Kumar on अप्रैल 20, 2006 ने कहा…

शुक्रिया same ! आशा है भविष्य में भी आपकी प्रतिक्रिया मिलती रहेगी ।

बेनामी ने कहा…

How to save these poems on computer

Manish Kumar on जुलाई 12, 2006 ने कहा…

राघव स्वागत है आपका इस blog पर !
Wordpad पर कविता को copy-paste कर save करें *.rtf (rich text format) में !

बेनामी ने कहा…

Dear Manish,
I do not have word pad,
I could not do onnote pad and word.
Is There any other simple way to save

Manish Kumar on जुलाई 12, 2006 ने कहा…

Raghav any software that supports unicode will show the text. I use Takhti which is free to use software . U can download it from

www.geocities.com/hanu_man_ji/

I hope this will solve ur problem.

Manish Kumar on जुलाई 28, 2006 ने कहा…

उमेश जी स्वागत है आपका इस चिट्ठे पर ! सही कहा आपने इस प्रेरणादायक कविता के बारे में।

बेनामी ने कहा…

GR888 man ...dil ko chu gayi ...this one is really very inspirational and my fav. on also

Sharad Kumar on सितंबर 09, 2007 ने कहा…

Manish Ji.

Main Ek Theater Artist hoon.. Aur Aane wali 14 Septmeber 2007 (Hindi Diwas) Ke Uplakshya main Ek Natak Hone wala hai Jisme main Kavi Shri Maithili Sharan Gupt Ji Ki Bhumika Nibha raha hoon... Jo Bharat Bhawan, Bhopal main Hoga..

Isliye Aapse Nivedan hai ki aap Mujhe Ukni Kavitaon Ka Sangraha Bhejne Ki Kripa Karen... Jo Pramujh hai Woh hai..

Tum Nirkho Hum Natya Karen...
Ram Tumhari Rangbhumi main Kaho Koun Sa Roop Dhare...

Aur Dusri hai

Mrisha Mrityu Ka Bhay hai...
Jiwan Ki hi jay hai...

Apse Nivedan hai ki aap In Kavitao Ke bare main Mujhe Batae Aur Mujhe Kavi Shri Maithili Sharan Gupt Ji Ke Bare main Bhi Kuch Jankari Chahiye..
To Kripa Karke Aap Mujhe Uprokta Jankari Bhejne Ki Kripa Karen...

Sharad Kumar.

chauhan on फ़रवरी 20, 2008 ने कहा…

मनीष जी ,हिन्दी जगत में आपके इस योगदान के लिए धन्यबाद.
कृपया हिन्दी जगत के महान कवि श्री ओमप्रकाश आदित्य जी की कुछ कवितायेँ अगर मिल जाएँ तो मन की मुराद पुरी हो जाए.
विकास चौहान

बेनामी ने कहा…

thank u so so so-100000000000000
times much mere skool project ke liye yeh poem perfect hai thanks!

बेनामी ने कहा…

Hi Guys,

Can any one you can tell me what does this line mens?
"Davroop raho bhav kannan ko" this line is from "Nar ho na nirash karo man ko" poem.

Thanks in advance.


Thanks and Regards,
-Pavan Srivastava

बेनामी ने कहा…

Thnks Manish, itni sari site khoji par maine kanhi bhi hindi kavitayaon ka itna acha sanghra nahi dekha. Thnks for sharing this.

Manish Kumar on जनवरी 08, 2010 ने कहा…

Pavan I am also not sure about it


Anonymous Comment ke sath naam bhi likh diya karein . Aapko meri pasand pasand aayi jaan kar prasannata huyi.

Unknown on अप्रैल 04, 2010 ने कहा…

Nar Ho Na Nirash Karo Man Ko...
The Best Poem...No other poem is this much capable to motivate you..
the Great poem...ever

बेनामी ने कहा…

yaha kavita to mere jivan me sanchar bhar deti h.....

Methalisharan gupt ji is great poet...
subhash chandra 9462894494

बेनामी ने कहा…

manish ji please contect me on this number..
subhash goyal nimawali
Sri ganganagar RAjasthan
+91-9462894494

Pushpendra Singh on अक्तूबर 07, 2011 ने कहा…

Hi,
Manish such a ow-some blog..
I am really happy to see this one,
a very interesting and worthy search for me...
thanks a lot for sharing this one.

बेनामी ने कहा…

Manish jee aapne bahut hi achi kavita post ki hai...kai log ise dhundh rahe the aur aapne ise i-net par post kar ke un logo k liye ye aasan kar diya....thanx. Lekin isme se kuch panktiya chut gayi h wo u hai
जल तुल्य निरंतर सुध रहो
प्रबलनन ज्यो अनिरुद्ध रहो
अवनी तलवट शील रहो
पवनों-उपवम सत्कृति शील रहो
ho sakta hai in linesh me kuch mistake ho bt ye bhi post kare agar aapke pas ho to....thanx Manish jee...!!!

pawan on अक्तूबर 24, 2011 ने कहा…

Awesome!!!!!!
and
AWESOME!!!!!!

Adarsh mishra on फ़रवरी 07, 2012 ने कहा…

Kavita uplabhd krane k liye Hardik Dhanyawad

dev ने कहा…

Sir plz tell kya ye poem complete he

बेनामी ने कहा…

Insprationl

बेनामी ने कहा…

अति सुन्दर और मन को काफी प्रभावित करने वाला ।
हमारे पिताजी अक्सर इस कविता को गुनगुनाते है। यहाँ नेट पे ये कविता देख काफी ख़ुशी हुई। धन्यवाद।

Hickaru on अक्तूबर 02, 2016 ने कहा…

nice one bro keep it up

बेनामी ने कहा…

Manish ji aapne is daur me jhan log apni matri bhasha se door hote ja rhe h is samay hindi sahitya ko logo tak pahuchane ke liye bhut bhut dhanywad asha krti hu age bhi hme is anupam sahity se labhanwit krte rahene

 

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