हाय री जिन्दगी...
और उसकी ख्वाहिशें...
कूछ पूरी होती हें तो कुछ फिर से पैदा हो जाती हैं। पर मामला इतना सरल भी नहीं।
कभी तो ऐसा होता है जनाब कि हम जिसे चाहते हैं मन उसे पाने की राह भी खोज देता है पर ये खोपड़ी पर राज करने वाला दिमाग है ना तुरंत एक हिदायत दे डालता है
ख्वाब, उम्मीद, नशा, सांस, तबस्सुम, आँसू
टूटने वाली किसी शय पर भरोसा ना करो
कमरान नज्मी
और उसकी ख्वाहिशें...
कूछ पूरी होती हें तो कुछ फिर से पैदा हो जाती हैं। पर मामला इतना सरल भी नहीं।
कभी तो ऐसा होता है जनाब कि हम जिसे चाहते हैं मन उसे पाने की राह भी खोज देता है पर ये खोपड़ी पर राज करने वाला दिमाग है ना तुरंत एक हिदायत दे डालता है
ख्वाब, उम्मीद, नशा, सांस, तबस्सुम, आँसू
टूटने वाली किसी शय पर भरोसा ना करो
कमरान नज्मी
किसी की प्रीत से उपजी दिलोदिमाग की इस जद्दोजहद का शिकार इंसान आखिर यही कहने पर मजबूर हो जाता है
क्या ये भी जिंदगी है कि राहत कभी ना हो
ऐसी भी किसी से मोहब्बत कभी ना हो
लब तो ये कह रहे हैं कि उठ बढ़ कर चूम ले
आँखों का इशारा कि जुर्रत कभी ना हो
कृष्ण मोहन
पर परसों जब ये गीत सुना तो पाया कि जावेद अख्तर साहब तो कुछ उलटा ही सिखा पढ़ा रहे हैं। अब वो तो धड़कनों की आवाज सुनने को कहेंगे शायर जो ठहरे। पर ये जो शायर हैं ना कुछ पल के लिये ही सही वास्तविकता के धरातल के ऊपर ऐसी उड़ान पर ले जाते हैं जहाँ प्रीत की ऊँची ऊँची लहरों के थपेड़ों से टकराकर दिमागी उलझनें दूर छिटक जाती हैं।
सूफियाना अंदाज में शफकत अमानत अली द्वारा गायी पहली कुछ पंक्तियाँ सुन कर ही मन झूम जाता है। और शंकर-अहसान-लॉय की तिकड़ी के मधुर संगीत संयोजन का तो कहना ही क्या! चाहे वो मुखड़े के पहले गिटार की धुन हो या अंतरे के बीच गिटार और भारतीय वाद्य यंत्रों के साथ की शास्त्रीय जुगलबंदी। मन वाह वाह कर उठता है।
मेरे मन ये बता दे तू
किस ओर चला है तू ?
क्या पाया नहीं तूने ?
क्या ढ़ूंढ़ रहा है तू ?
जो है अनकही , जो है अनसुनी, वो बात क्या है बता ?
मितवा ऽऽऽऽऽऽ, कहें धड़कनें तुझसे क्या, मितवा ऽऽऽऽऽऽऽऽऽ, ये खुद से तो ना तू छुपा
जीवन डगर में, प्रेम नगर में
आया नजर में जब से कोई है
तू सोचता है! तू पूछता है !
जिसकी कमी थी, क्या ये वही है ?
हाँ ये वही है, हाँ ये वही है ऽऽऽऽऽऽऽऽ
तू इक प्यासा और ये नदी हैऽऽऽ
काहे नहीं, इसको तू, खुल के बताये
जो है अनकही .................ना तू छुपा
तेरी निगाहें पा गयी राहें
पर तू ये सोचे जाऊँ ना जाऊँ
ये जिंदगी जो, है नाचती तो
क्यूँ बेड़ियों में हैं तेरे पाँव?
प्रीत की धुन पर नाच ले पागलऽऽऽऽ
उड़ता अगर है, उड़ने दे आंचलऽ
काहे कोई, अपने को, ऐसे तरसाए
जो है अनकही .................ना तू छुपा
कभी अलविदा ना कहना के ये गीत जरूर सुनें । गीत सुनने के लिये यहाँ क्लिक करें ।और हाँ गलती से Remix Version मत सुन लीजियेगा।
5 टिप्पणियाँ:
मेरा बस चले तो मनीष भाई ये रिमिक्स की बला को, खैर, आप तो शायराना हो चले।
इस गाने को जितनी भी बार सुने, दिल नही भरता।
संगीत से स्नेह स्पष्ट है। सुंदर प्रस्तुति।
छाया मूड तो सचमुच शायराना हो गया था इस गीत को सुन पर इन बम धमाकों ने मन खिन्न कर दिया है ।
सिन्धु हाँ ,बिलकुल सही कहा जी!
प्रेमलता जी शुक्रिया !
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