बुधवार, जुलाई 26, 2006

फिर क्या होगा उसके बाद ? : बालकृष्ण राव

हमारे भविष्य में क्या है, ये जानने की उत्सुकता तो हम सभी में होती है। पर इस उत्सुकता का ना तो कोई अंत है, ना कोई सीमा।
भविष्य की गहराइयों में उतरने लगें तो पहले तो सब स्पष्ट दिखता है, पर फिर धुंधलापन बढ़ता जाता है ।
आखिर किसी से कहाँ तक जान पाते हैं हम ?
जन्म, शिक्षा, प्रेम, नौकरी, विवाह, वैभव.... के बारे में जान लेने के बाद बचता ही क्या है हमारे पास!
बस मृत्यु की एक दस्तक जिसे जानने की इच्छा नहीं होती !
और फिर उसके बाद क्या ?
उसका जवाब शायद किसी के पास नहीं! भविष्य के पास भी नहीं क्योंकि यहाँ आकर तो वो भी अपने मायने खो देता है।
बालकृष्ण राव की ये कविता शिशु के मुख से चंद पंक्तियों में इस सहजता और भोलेपन से प्रकृति की इस अनसुलझी पहेली की ओर इशारा कर जाती है कि मन सोच में पड़ जाता है।

विद्यालय की छठी कक्षा में पढ़ी ये कविता मुझे बेहद प्रिय है पर नेट पर ये मिल नहीं रही थी। इसकी तालाश मुझे NCERT की एक पुस्तक अपूर्वा तक ले गयी और इसे पुनः पढ़कर मन ही मन बालकृष्ण राव को नमन किया, जिन्होंने अनादि..अनन्त काल से चले आ रहे इस प्रश्न को इतनी सुंदरता से पेश किया है .

' फिर क्या होगा उसके बाद?'
उत्सुक होकर शिशु ने पूछा,
' माँ, क्या होगा उसके बाद?'


 रवि से उज्जवल, शशि से सुंदर,
नव-किसलय दल से कोमलतर ।
वधू तुम्हारे घर आएगी 
उस विवाह उत्सव के बाद 

पलभर मुख पर स्मिति - रेखा
खेल गई, फिर माँ ने देखा
उत्सुक हो कह उठा किन्तु वो
फिर क्या होगा उसके बाद


फिर नभ से नक्षत्र मनोहर
स्वर्ग -लोक से उतर- उतर कर
तेरे शिशु बनने को मेरे
घर आएँगे उसके बाद


मेरे नए खिलौने लेकर,
चले ना जाएँ वे अपने घर
चिंतित होकर उठा, किन्तु फिर
पूछा शिशु ने उसके बाद ?

अब माँ का जी ऊब चुका था
हर्ष-श्रांति में डूब चुका था
बोली, "फिर मैं बूढ़ी होकर
मर जाऊँगी उसके बाद"


ये सुन कर भर आए लोचन
किंतु पोंछकर उन्हें उसी क्षण
सहज कुतूहल से फिर शिशु ने
पूछा, "माँ, क्या होगा उसके बाद"

 कवि को बालक ने सिखलाया
सुख-दुख है पलभर की माया
है अनंत तत्त्व का प्रश्न यह,
"फिर क्या होगा उसके बाद?"


बालकृष्ण राव (Balkrishna Rao)
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15 टिप्पणियाँ:

rachana on जुलाई 26, 2006 ने कहा…

ek achchi si kavita share karne ke liye bahut shukriya....

बेनामी ने कहा…
इस टिप्पणी को एक ब्लॉग व्यवस्थापक द्वारा हटा दिया गया है.
Pratyaksha on जुलाई 27, 2006 ने कहा…

बडे दिनों बाद फिर इस कविता को आपके सौज्न्य से पढा . शुक्रिया

बेनामी ने कहा…

सुंदर कविता को पेश भी सुंदरता से किया है, धन्यवाद।

बेनामी ने कहा…

-premlata

Abhas Kumar on जुलाई 27, 2006 ने कहा…

a bful pic.. with a really bful conclusion.

But at times - I think that its better to not know the future. Let me just live the present!

बेनामी ने कहा…

धन्यवाद मनीष भाई, इतनी सुंदर रचना को हमारे साथ बांटने के लिये. "आगे क्या?" - सवाल मासूम है, पर बहुत गहरा.

बेनामी ने कहा…

बहुत सुन्दर (हमेशा की तरह)!! :)

Manish Kumar on जुलाई 31, 2006 ने कहा…

रचना,प्रत्यक्षा,प्रेमलता, अमित, आभास और सिन्धु आप सब को ये कविता अच्छी लगी जानकर बेहद खुशी हुई ।

Shankari on अगस्त 05, 2006 ने कहा…

Thank you Manish!

Bahut dinno se dhoondh rahi thi, isse , meri kavita mil hi gayi aaj! :)

Manish Kumar on अगस्त 07, 2006 ने कहा…

खुशी हुई जानकर कि ये कविता आपको भी पसंद है। आशा है आप यहाँ आती रहेंगी।

Mrityunjay Kumar Rai on मई 05, 2012 ने कहा…

you sent me 20 yerars back. Yes also read this poem in my class years. Thanx for sharing this poem . Your presentation is really superb. Thanx

बेनामी ने कहा…

Bahut bahut dhanyavaad aapkaa! bade aaansoon aate hain jab bhee koi aisee kavita padh lene ke baad.

Unknown on अप्रैल 12, 2020 ने कहा…

आहा मज़ा आ गया,बचपन में पढ़ी कविता आज आपकी वजह से ताज़ी हो गई। धन्यवाद आपका।

vlaxmanan on मार्च 04, 2022 ने कहा…

The kid probably didn't even know what dying means...when the mom says, I will get old and die...he/she innocently asks again the same question...

But, interestingly that's exactly where Krishna begins His discourse in chp 2...He says, "We will be reborn again with a new body"

Dehinosmin yathaa dehe kaumaaram yauvanam jaraa l
tathaa dehanantarah praaptih dheerah tatra na muhyati ll 2.13 ॥

देहिनोsस्मिन् यथा देहे कौमारं यौवनं जरा ।
तथा देहान्तर प्राप्तिः धीरः तत्र न मुह्यति ॥ २.१३ ॥

Indeed, the poet alludes to this in his concluding verse with "this is the unending question of this universe"...vishwaka anant prashna 😃

 

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