आँखें ऊपरवाले की दी हुई सबसे हसीन नियामत हैं। शायद ही जिंदगी का कोई रंग हो जो इनके दायरे से बाहर रहा हो। यही वजह है कि शायरों ने इन आँखों में बसने वाले हर रंग को, हर जज्बे को किताबों के पन्नों में उतारा है। तो आज से शुरू होने वाले इस सिलसिले में पेश है शायरों की जुबानी, इन बहुत कुछ कह जाने वाली आँखों की कहानी..
आखें देखीं तो में देखता रह गया
जाम दो और दोनों ही दो आतशां
आँखें या महकदे के ये दो बाब हैं
आँखें इनको कहूँ या कहूँ ख्वाब हैं
बाब-दरवाजा
आँखें नीचे हुईं तो हया बन गयीं
आँखें ऊँची हुईं तो दुआ बन गयीं
आँखें उठ कर झुकीं तो अदा बन गयीं
आँखें झुक कर उठीं तो कजा बन गयीं
कजा किस्मत
आँखें जिन में हैं मह्व आसमां ओ जमीं
नरगिसी, नरगिसी, सुरमयी, सुरमयी...
मह्व - तन्मय
यूं तो कहते हैं कि आँखें दिल का आइना होतीं हैं पर उसे पढ़ने के लिये एक संवेदनशील हृदय चाहिये। अगर कोई बिना बोले आपकी मन की बात जान ले तो कितना अच्छा लगता है ना ! अब खुमार बाराबंकवी साहब की आँखें - देखिये किसने पढ़ लीं ?
वो जान ही गये कि हमें उन से प्यार है
आँखों की मुखबिरी का मजा हम से पूछिये
किसी का प्यारा चेहरा हो, और सामने हो उस चेहरे को पढ़ती दो निगाहें तो जवां दिलों के बीच का संवाद क्या शक्ल इख्तियार करता है वो मशहूर शायरा परवीन शाकिर की जुबां सुनिये
चेहरा मेरा था, निगाहें उस की
खामोशी में भी वो बातें उस की
मेरे चेहरे पर गजल लिखती गईं
शेर कहती हुईं आँखें उस की
खुशी की चमक हो या उदासी के साये सब तुरंत आँखों में समा जाता है।
कभी तो ये किसी की याद से खिल उठती हैं......
तेरी आँखों में किसी याद की लौ चमकी है
चाँद निकले तो समंदर पे जमाल आता है
तो कभी किसी के पास ना होने का गम उन्हें नम कर देता है
शाम से आँख में नमी सी है
आज फिर आप की कमी सी है
पर आँखों की ये भाषा हर किसी के पल्ले नहीं पड़ती। अगर ऍसा नहीं होता तो नजीर बनारसी के मन में भला ये संदेह क्यूँ उपजता ?
मेरी बेजुबां आँखों से गिरे हैं चंद कतरे
वो समझ सके तो आँसू, ना समझ सके तो पानी
अब इन्हें भी तो अपने महबूब से यही शिकायत है
पत्थर मुझे कहता है मेरा चाहने वाला
मैँ मोम हूँ उसने मुझे छू कर नहीं देखा
वो मेरे मसायल को समझ ही नहीं सकता
जिस ने मेरी आँखों में समंदर नहीं देखा
पर ऐसा भी नहीँ है कि इस समंदर को महसूस करने वाले शायरों की कमी है।
एक तरफ तो जनाब अमजद इस्लाम अमजद इसकी गहराई में उतरना चाहते हैं....
जाती है किसी झील की गहराई कहाँ तक
आँखों में तेरी डूब के देखेंगे किसी दिन
.......तो फराज अपनी आखिरी हिचकी इन आँखों के समंदर में लेने की ख्वाहिश रखते हैं
डूब जा उन हसीं आँखों में फराज
बड़ा हसीन समंदर है खूदकुशी के लिये
और इन हजरात का ख्याल भी कोई अलग नहीं
अपनी आँखों के समंदर में उतर जाने दे
तेरा मुजरिम हूँ , मुझे डूब कर मर जाने दे
तो हुजूर आज के किये तो इतना ही... आँखों की ये दास्तान तो अभी चलती रहेगी क्योंकि
इन आँखों की मस्ती के मस्ताने हजारों हैं
इन आँखों के वाबस्ता अफसाने हजारों हैं
इक सिर्फ हमीं मय को आँखों से पिलाते हैँ
कहने को तो दुनिया में महखाने हजारों हैं
इस श्रृंखला की अगली कड़ियाँ
आँखों की कहानी : शायरों की जुबानी - भाग 2, भाग 3
साल्ज़बर्ग : मोत्ज़ार्ट की भूमि पर जब गूँजी बारिश की सरगम Scenic Lake
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5 वर्ष पहले
12 टिप्पणियाँ:
और गुलज़ार साहब के गरमा-गरम नज़रिये नोश फ़रमाइये:
नैणों की ज़ुबान पे भरोसा नहीं आता
लिखत पढ़त न रसीद न खाता
सारी बात हवाई रे
ओह, कहना भूल गया - अच्छा है, जारी रखिए.
बहुत बढिय - जारी रखें
इरशाद इरशाद
बढिया !
आगे भी इंतज़ार रहेगा
और यह-
"नैनों की कर कोठरी,पुतली पलंग बिछाय।
पलकों की चिक डार के, पिय को लियो रिझाय॥"
(बताएँ किसने लिखा है?)
विनय जी पसंदगी का शुक्रिया !
नैणों की ज़ुबान पे भरोसा नहीं आता
लिखत पढ़त न रसीद न खाता
सारी बात हवाई रे !
वाह! गुलजार साहब की तो बात ही क्या है ! कभी आँखों की गवाही को हवाई बताएँगे तो कभी राजदार! यहीं देखिए
आपकी आँखों मे कुछ महके हुए से राज हैं
आपसे भी खूबसूरत आपके अंदाज हैं
शोएब, छाया और प्रत्यक्षा जी पसंदगी का शुक्रिया !
"नैनों की कर कोठरी,पुतली पलंग बिछाय।
पलकों की चिक डार के, पिय को लियो रिझाय॥"
प्रेमलता जी बहुत सुंदर पंक्तियाँ हैं कवि प्रदीप की !
यहाँ उद्धृत करने का शुक्रिया .
मनीषजी यह यह संत कबीर ने कहा है। रहस्यवाद का उदाहरण है।
प्रेमलता जी
भूल के लिये क्षमा प्रार्थी हूँ । पर मैंने ऐसा ही एक गीत सुना था । अभी नेट पर खोजा तो ये लिंक भी मिली ! यहाँ देखें
http://www.earthmusic.net/cgi-bin/cgiwrap/nuts/search.cgi?song=nainon+ki+kothari+sajaake+putli+mein+palang+bichhaoon
शायद फिल्म सती-सावित्री में इसका प्रयोग हुआ है ।
मनीषजी,
बहोत खूब। मज़ा आया। आपने ये लाजवाब संकलन किया है।
तुषार जोशी, नागपूर
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