आँखें जितना कुछ कहती हैं उतना ही उसे छुपाने का प्रयास भी करती हैं । आँखों का ये छल लेकिन करीबियों की पकड़ में आ ही जाता है। अब देखें कैफी आजमी साहब क्या कहते हैं इस बारे में
तुम इतना जो मुस्करा रहे हो
क्या गम है जिसको छुपा रहे हो
आँखों में नमी हँसी लबों पर
क्या हाल है क्या दिखा रहे हो
चुप चाप जल जाने वालों को लोग निराशावादी की श्रेणी में ला खड़ा कर देते हैं, पर इश्क की राह में चलने वालों को दुनिया की परवाह कहाँ !
तुम्हारी आँख में गर मैं कभी चुपचाप जल जाऊँ
तुम अपनी आँख में लेकिन मेरा सदमा नहीं लिखना
मेरी आँखों में बातें हैं मगर चेहरे पे गहरी चुप
मेरी आँखें तो लिख देना मेरा चेहरा नहीं लिखना
पर आँखों का दर्द छुपाना कितना कष्टप्रद है उसकी झलक मीना कुमारी की इस नज्म में दिखायी देती है
टुकड़े टुकड़े दिन बीता
धज्जी धज्जी रात मिली
जिसका जितना आँचल था
उतनी ही सौगात मिली
रिमझिम बूंदों में जहर भी है
और अमृत भी
आँखें हँस दी, दिल रोया
ये अच्छी सौगात मिली
और जब ये दर्द असहनीय हो जाए तो राज की बात राज नहीं रह पाती। बकौल कासिमी
हौसला तुझ को ना था मुझसे जुदा होने का
वर्ना काजल तेरी आँखों में ना फैला होता
पर ये क्या? यहाँ तो शायर इश्क में मायूस हो कर भी अपनी आँखें नम नही करना चाहता क्योंकि वो सोचता है कि उससे मोहब्बत की तौहीन होती है
करना ही पड़ेगा जब्त-ए-गम, पीने ही पड़ेंगे ये आँसू
फरियाद-ए-फुगां से ऐ नादान, तौहीन-ए-मोहब्बत होती है
जो आ के रुके दामन पे 'साहिल' वो अश्क नहीं हैं पानी है
जो अश्क ना छलके आँखों से उस अश्क की कीमत होती है
और कुछ ऐसी ही सोच इन जनाब की भी है
पलट कर आँख नम करना हमें हरगिज नहीं आता
गये लमहों को गुम करना हमें हरगिज नहीं आता
मोहब्बत हो तो बेहद हो, जो हो नफरत तो बेपाया
कोई भी काम कम करना हमें हरगिज नहीं आता
पर आँखों से ही सब कुछ हो जाता तो क्या बात थी ! बात तब आगे बढ़ती है जब साथ ही साथ होठों को भी मशक्कत दी जाये । पर क्या हर समय ऐसा हो पाता है। अजी कहाँ जनाब..... बारहा रिश्ते आँखों के दायरे में ही सिमट कर रह जाते हैं। गुलजार साहब ने किस खूबसूरती से इस बात को लफ्जों का जामा पहनाया है, यहीं देख लीजिए
मुस्कुराहट सी खिली रहती है आँखों में कहीं
और पलकों पे उजाले से झुके रहते हैं
होठ कुछ कहते नहीं, कांपते होठों पे मगर
कितने खामोश से अफसाने रुके रहते हैं
बहुत सी बातें ऍसी होती हैं जो वक्त की नजाकत और प्रतिकूल हालातों की वजह से दिल के कोने में दफन करनी पड़ती हैं । आँखें उनकी झलक भले दिखला दें पर होठों के दरवाजे उनके लिए सदैव बंद रहते हैं। साजिद हाशमी का दिल को छूता हुआ ये शेर सुनिये
झलक जाते हैं अक्सर दर्द की मानिंद आँखों से
मगर खामोश रहते हें बयां होने से डरते हैं
कुचल देती है हर हसरत हमारी बेरहम दुनिया
दिल- ए -मासूम के अरमां जवां होने से डरते हैं
और बकौल अमजद इस्लाम अमजद
जो आँसू दिल में गिरते हें वो आँखों में नहीं रहते
बहुत से हर्फ ऐसे हैं जो लफ्जों में नहीं रहते
किताबों में लिखे जाते हैं दुनिया भर के अफसाने
मगर जिनमें हकीकत है किताबों में नहीं रहते
तो ये तो था आँखों में दर्द और उदासी का रंग ! लेकिन आप सब पर उदासी की चादर ओढ़ा कर इस सिलसिले का समापन करूँ ये अच्छा नहीं लगता । इसलिये चलते चलते पेश है मेरे प्रिय शायर गुलजार की ये नज्म जो किसी की प्यारी सी आखों को जेहन में रखकर लिखी गयी हैं
तेरी आँखों से ही खुलते हें सवेरों के उफक
तेरी आँखों से ही बंद होती है ये सीप की रात
तेरी आँखें हें या सजदे में है मासूम नमाजी
पलकें खुलती हैं तो यूँ गूंज के उठती है नजर
जैसे मंदिर से जरस की चले नमनाक हवा
और झुकी हैं तो बस जैसे अजान खत्म हुई हो
तेरी आँखें, तेरी ठहरी हुई गमगीन सी आँखें
तेरी आँखों से ही तखलीक हुई है सच्ची
तेरी आँखों से ही तखलीक हुई है ये हयात
उफक - आसमान का किनारा,क्षितिज, नमनाक - गीली, तखलीक - सृजन हयात - जीवन
श्रेणी : आइए महफिल सजायें में प्रेषित
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6 माह पहले
7 टिप्पणियाँ:
बहुत सुंदर!
बहुत बढियां.मज़ा आ गया पढकर.जारी रखें इस तरह की कड़ियां.
समीर लाल
बहुत ही सुंदर और सच्ची बात लिखा आपने
अतिसुन्दर भाई। लिखते रहें ।
प्रेमलता जी, समीर जी , हिमांशु एवं शोएब भाई इस सिलसिले को सराहने के लिये धन्यवाद !
एक शानदार श्रृंखला मनीष जी...
पूरी सीरिज पढ़ लेने के बाद अब मैं गुनगुनाये जा रहा हूं ’जनता हवलादार’ का वो गाना जिसमें नायक अंधी नायिका के लिये गाता है..."तेरी आंखों की चाहत में तो मैं सबकुछ भूला दूंगा"। अनवर की आवाज है ना शायद?
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