अमूमन कविता मैं लिखता नहीं पर आप सोच रहे होंगे कि फिर आज ये कैसे लिख डाली ! तो क्या बताऊँ अपनी महफिल में कविताओं की अंत्याक्षरी में एक अक्षर 'थ' बहुत दिनों से सीना ताने खड़ा था, गर्व से इठलाता हुआ कि याद है कोई हम से शुरू होने वाली रचना। खैर हमें तो कोई रचना याद ना आई पर रचना जी ने पेश कर दी अपनी इक रचना ।पर मुसीबत ये थी कि वो भी 'थ' से शुरू हो कर 'थ' पर खत्म । इधर हम दो हफ्ते बहुत ही व्यस्त रहे पर आकर देखते हैं कि कविराज जोशी जी ने उसी कविता को और आगे बढ़ाया है पर मजाल है की 'थ' को अपनी जगह से हटा पाये हों। मुआ 'थ' ना हुआ अंगद का पाँव हो गया। हमने भी ठान ली कि आज ४ पंक्तियाँ ही सही पर कुछ लिख डालें ताकि ये 'थ' की बला टले !
अब पहली चार पंक्तियाँ लिखीं तो सोचा क्यूँ ना इस विचार को आगे बढ़ाकर एक कविता की शक्ल दें । इसका नतीजा आपके सामने है , ज्यादा बुरी लगे तो अपनी सारी गालियाँ अक्षर 'थ' पर केंद्रित कर दीजिएगा ।:)
कल्पना और यथार्थ
थाम कर के बादलों का काफिला
मन हुआ छुप जाऊँ मैं उनके तले
देख लूँगा ओट से उस चाँद को
मखमली सी चाँदनी बिखेरते
कहते हो तुम लुकाछिपी क्या खेल है ?
शोभता है क्या तुम्हें ये खेलना
मिलो जीवन के यथार्थ से
समझो कि क्या है जगत की वेदना
सुनो ! बात तुमने है कही सही
ख्वाब का आँचल पकड़ कर के हमें
जीवन को कभी नहीं है तोलना
खुद के स्वप्नों में करनी नहीं
परिजनों के सुख-दुख की अवहेलना
पर तुम ही कहो ये भी कोई बात है?
स्वप्न देखा है जिसने नहीं
कल्पना की उड़ान पर जो ना उड़ा
दूसरों का दर्द समझेगा क्या भला ?
जिसके मन-मस्तिष्क से मर गई संवेदना !
सो निर्भय हो के ऊँचे तुम उड़ो
सपनों की चाँदनी को तुम चखो
पर लौटना तो ,पाँव धरातल पर हो खड़े
है करना अब हम सबको यही जतन
जीवन में कैसे हो इनका संतुलन
मनीष कुमार
कुन्नूर : धुंध से उठती धुन
-
आज से करीब दो सौ साल पहले कुन्नूर में इंसानों की कोई बस्ती नहीं थी। अंग्रेज
सेना के कुछ अधिकारी वहां 1834 के करीब पहुंचे। चंद कोठियां भी बनी, वहां तक
पहु...
6 माह पहले
10 टिप्पणियाँ:
मनीष जी, अच्छा हुआ कि थ ने "था था थैया" करवा दिया और इतनी अच्छी कविता बन गई कि तारीफ तरने से अपनेआप को थाम नहीं पा रहा हूं।
हम तो 'थ' को धन्यवाद ही कहेँगे,और अपने धैर्य को भी,कि हमने 'थ' से शुरु होने वाले 'बच्चन' जी के दो छन्द मालूम होने के बाद भी प्रविष्टि नही डाली...वरना आपकी बेहतरीन पन्क्तियाँ पढ ही नही पाते!! बहुत खूब कविता लिखी है आपने....
Rachana
क्यों मज़ाक कर रहे हो भाई - हम तो खामोशी से आपकी कविताएं पढते ही रहते हैं। और आज आपने अपने दिल की बात लिख ही दी तो दिल ने चाहा कि अब हमारा टिप्पनी लिखना भी ज़रूरी है। और आपकी कवीताऔं का असर इतना है कि अब क्या बताऐं। पहले तो हमे शायरी आती नही मगर कोई कुछ आच्छा लिखे तो बार बार पढने के लिए दिल चाहता है जैसे के आप :)
क्या तारीफ भी थाम के की जाय
भाषा सराहें या भाव, दोनों ही अनुपम है।लगता है हमें अब थ से खत्म होने वाली कविता लिखनी पड़ेगी ताकि आपकी एक सुन्दर कृति देखने को मिले। पर हमारी कविता झेलने से अच्छा है आप स्वयं ही कविता की सरिता बहाते रहें।
जगदीश , रचना, शोएब, उन्मुक्त एवं रत्ना जी मेरा ये प्रयास आप सबको अच्छा लगा जानकर बेहद खुशी हुई ।
शोएब भाई इस चिट्ठे पर ये हमारी पहली पूरी कविता है । और और राज की बात बताऊँ तो पूरी जिंदगी की तीसरी :)
अब तक शायरी या कविता आप यहाँ पढ़ते आए हैं वो तो मेरी पसंद की रचनाएँ थीं । आप पुरानी पोस्टों पर गौर करें तो स्पष्ट हो जाएगा ।
वाह मनीष भाई, वाह!!!
क्या बात है।
अब झेलिए एक तारीफ़ मेरी भी :)
शुक्रिया सिन्धु !
Rachana ke bahane hi sahi ek badhiya rachana padhi aaj....shukriya
बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति मनीष जी। 'थ'को हम भी धन्यवाद देना चाहेंगे।
एक टिप्पणी भेजें