शनिवार, सितंबर 30, 2006

शादी का इंटरव्यू - भाग : २

शादी के लिये मेरे माता-पिता ने वही पुराना चिरपरिचित नुस्खा अपनाया यानि इश्तिहार देने का। वैसे भी तब तक अंतरजाल पर शादी कराने वालों की फौज पैदा नहीं हुई थी । नतीजन जब भी हर महिने जब मैं घर जाता बॉयोडाटा और तस्वीरों के साथ लिफाफे का एक पुलिंदा तैयार मिलता । इसके आलावा हमारे व्यक्तित्व की टोह लेने के लिये हमारे संभावित ससुर ओर साले भी आते जाते रहते थे ।

एक दिन ऐसी ही एक बुलाहट हुई और मैं आलस में स्लीपिंग सूट पहन कर नीचे आ गया । आगुंतक मुंबई से तशरीफ लाये थे और अपने आप को लड़की का भाई बता रहे थे । कुछ तसवीरों को बढ़ा कर कहने लगे मेरी बहन का फेस कट बहुत कुछ जूही चावला से मिलता है हाँ पर संस्कार विशुद्ध घरेलू लड़कियों वाले हैं। मन हुआ पूछूँ कि आपको जूही चावला के संस्कारों की कमियों की जानकारी कहाँ से मिल गई । जानता था कि ऐसा कह कर वो लड़कों की सुंदर,सुशील,घरेलू वाली मानसिकता पर निशाना साध रहा है। खैर अभी उसकी बातों का मूल्यांकन कर ही रहा था कि अचानक जेब से कैमरा निकाल कर वो बोल पड़ा If you don't mind.....और हमारी धड़ाधड़ दो तसवीरें खिंच गईं । खीसें निपोरते मैं इतना ही कह पाया कि यार पहले बताते तो कम से कम ये कपड़े तो बदल कर ही आता ।

जैसा कि आम तौर पर नौकरीपेशा मध्यमवर्गीय परिवार में होता है मेरे घर में पढ़ाई लिखाई पर हमेशा से जोर रहा, सो सबकी राय यही थी कि सिर्फ उन्हीं रिश्तों को प्रश्रय दिया जाए जिन लड़कियों का शैक्षणिक लेखा-जोखा बेहतर हो । खैर माता-पिता जुट गए अपने काम में और सारे प्रस्तावों में तीन लड़कियों को चुना। अब आगे की जिम्मेवारी मेरी थी । मुझे निर्णय लेने में कोई जल्दी नहीं थी, सो मैं साक्षात्कार के समय को आगे बढ़ाता गया। पर ऐसे ही एक दशहरे पर घर गया तो खबर मिली कि उन तीन में से एक ने अल्टीमेटम दे रखा है कि जो भी फैसला लेना है दशहरे तक ले लें अन्यथा....। अब परिस्थतियाँ कुछ ऐसी बनीं कि मुझे एक ही दिन में ये तीनों इंटरव्यू लेने या देने थे।

पहली कन्या को उसके घर जाकर ही देखना था । अभिभावकों के शुरू के सामान्य प्रश्नों के बाद हम दोनों से कहा गया कि अब आप आपस में बात कर लें । मैंने उसकी पढ़ाई से बात शुरु की । फिर पूछा कि इंटर में विज्ञान लेने और अच्छे अंक प्राप्त करने के बाद आपने स्नातक में इतिहास क्यूँ लिया । पहले तो उसने खास कुछ कहा नहीं पर फिर दुबारा घुमा कर वही सवाल करने पर मासूमियत से बोली कि इंटर में तो उस साल परीक्षा में चोरी चली थी इसलिये अच्छे अंक आ गए, पर आगे मुझसे विज्ञान नहीं चलने वाला था सो इतिहास ले लिया ।मैं आज तक इस बात को भूल नहीं पाया कि ये जानते हुए भी कि ऐसा कहकर वो अपनी छवि को खराब कर रही है , उसने झूठ का सहारा नहीं लिया । इसके बाद मैंने कहा कि मेरे बारे में कुछ जानना चाहें तो पूछें । वो चुप रही । मैंने फिर कुदेरा अरे आप मेरे बारे में नहीं जानेंगी तो फिर कैसे निर्णय लेंगी कि मैं आपके लायक हूँ या नहीं । सर झुकाए वो हल्के से मुस्कुराते हुए बोली कि अगर इस तरह सोच कर हम लड़कों को सेलेक्ट-रिजेक्ट करते रहे तो हमारी शादी तो होने से रही ।इससे पहले कि आप सब इस कन्या से हुये सवाल जवाब पर अपनी राय बनाएँ ये बता दूँ कि वो लड़की बिहार के छोटे से जिले में रही और पढ़ी थी।

सुबह के इस अनुभव के बाद दिन का साक्षात्कार था Neutral teritory में यानि मेरे शहर के बोटानिकल गार्डन में ।लड़की पटना के एक अच्छे कॉलेज की छात्रा थी और वहीं हॉस्टल में रहती थी । वहाँ उनके किसी रिश्तेदार का घर ना होने की वजह से ये जगह चुनी गई थी । अभिभावकों के पहले कुछ प्रश्नों का जवाब उसने अतिविश्वनीयता से दिया । और पापा ने रुचियों के बारे में पूछा तो उसने कहा कि गजलें सुनती हूँ । ये सुन कर हमें अपना दिल हिलोलें मारता सुनाई पड़ा क्योंकि दिल में बड़ी तमन्ना थी कि हमारा भावी हमसफर इस शौक में हमारा जोड़ीदार रहे । अब पिताजी को क्या सूझी पूछ दिया कोई गजल सुना दो । हमने देखा कि उधर से कोई जवाब नहीं आया तो पहली बार मैदान में कूदते हुए बोले कि इन्होंने कहा कि सुनती हैं, गाती नहीं और वैसे भी पापा आप खुद ही कहाँ गजल सुनते हैं जो पूछ रहे हैं । सब हँस पड़े और फिर पिताजी ने कमान तुरंत मेरी तरफ थमा दी कि भई तुम्हीं पूछो । छूटते ही हमने अपना हमेशा का प्रश्न दागा कि आपने अपने भावी पति के कौन से गुण सबसे ज्यादा मायने रखते हैं यानि जिसके बारे में आपकी पहले से कोई कल्पना हो ।

जवाब लंबा था पर सार यही कि मैं जिस तरह के सामान्य रहन सहन वाले घर से हूँ वहाँ पर हम ज्यादा स्वप्न नहीं देखा करते, मैं एक शिक्षक बनना चाहती हूँ और बस इतना चाहूँगी कि मुझे ये करने के लिये supportमिलता रहे।

पहले दोनों साक्षात्कार एक दूसरे से बिल्कुल विपरीत थे अलग तरह के व्यक्तित्व, अलग तरह की सोच....पर वक्त ज्यादा नहीं था । दिमाग पर अधिक जोर डाले बिना चल पड़े अपने अंतिम गन्तव्य की ओर ।

तीसरा इंटरव्यू बहुत कुछ पहले की तरह शुरु हुआ । लड़्की शांत प्रकृति की लग रही थी पर कुछ सहमी हुई भी ।१० मिनट लगे हमारी बातों में सहजता आने में । कन्या ने बातो. के संक्षिप्त उत्तर सुनाये ।
जैसे लड़के......मायने , उत्तर मिला
co-operative होना चाहिए
नौकरी करना चाहेंगी
कोशिश करूँगी । वैगेरह वैगेरह
इधर उधर की बातों के बाद हम यहाँ पर से भी कूच कर चले दिन भर की बातों को मन ही मन सोचते हुए ।

तो ये कहानी थी शादी के लिये दिये गए मेरे साक्षात्कारो की । अब इस आधार पर हमें आगे का निर्णय लेना था । खैर बात को अगर व्यक्तिगत स्तर से हटाकर सामाजिक स्तर पर लाया जाए तो एक प्रश्न सहज ही मस्तिष्क में उत्पन्न होता है ।
मेरा सवाल आप सब से बस इतना है कि साक्षात्कार के ये ३० - ४० मिनट क्या किसी को समझने आंकने के लिये पर्याप्त हैं खासकर तब जब एक पक्ष ने इसे पूरी तरह परिवार वालों के निर्णय पर छोड़ दिया है ?

श्रेणी : अपनी बात आपके साथ में प्रेषित
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9 टिप्पणियाँ:

Ashish Gupta on सितंबर 30, 2006 ने कहा…

Will wait for your next episode, if there is one. Do let me know the time when all this happened to decide frame of reference with respect to ladies' answers.

रवि रतलामी on सितंबर 30, 2006 ने कहा…

मेरी बात मानें तो ये इंटरव्यू का चक्कर छोड़ें. वैसे भी 40 मिनट में कुछ नहीं होता. उत्तम विचार होगा कि जाति-पांति के बंधन से उठकर अपने विचारों से मिलते जुलते विचारों वाली लड़की जिसे आप जानते हों उससे रिश्ता बनाएं, या फिर तलाशें, जान पहचान बनाएँ, फिर शादी करें.

अब, ये मैं अपने अनुभव बता रहा हूँ. :)

rachana on सितंबर 30, 2006 ने कहा…

मै उस समाज का हिस्सा हूँ ,जहाँ इन बातों से लडकियों को नहीं गुजरना पडता..अव्वल तो बिल्कुल ही अन्जान परिवारों मे रिश्ते बनाने का ज्यादा प्रचलन नही है..फिर अगर ऐसा होता भी है तो लडके और उसके परिवारवालों को लडकी को किसी समारोह मे देख लेना होता है,बाकी की सारी बातें भी पता कर लेने की होती हैं,फिर अगर लगे की सबकुछ ठीक है तभी लडकी और लडके का आपस मे 'साक्षात्कार' होता है..तो इस तरह बहुत ही कम बार ऐसा होता है की रिश्ता न बन पाये!
और अब आपके सवाल का जवाब... हाँ और ना---४० मिनट बहुत होते हैं!! और वैसे तो सारी उम्र भी कम ही होती है!!!

Sagar Chand Nahar on सितंबर 30, 2006 ने कहा…

चालीस मिनीटऽऽऽऽऽऽऽऽऽऽऽऽऽऽ
काश हमें भी इतना समय मिला होता।
वैसे हमारे हिसाब से दूसरे नंबर वाला साक्षात्कार सही हुआ था, और कन्या भी आपके योग्य लग रही है।

Dawn on अक्टूबर 02, 2006 ने कहा…

Manish...mein yehi kahoongi ek ladki hone ke naate ke...40 minat kya 40 saal bhi guzar jayein to bhi aap log ladkiyon ko samajh nahi paaoge aur na hee sahi nirnay le paaoge :D....zindagii aise mein ek challenge ban jaati hai ...jise lena ya na lene ka nirnay hee aap kar sakte hein :D...
kher...mere mann mein ye sawal baar baar aata raha tumhare interview ke samay ke kya tum pehale se sochkar jaate the ke 1 se kya poochna hai 2 se kya aur 3 se kya???? kyunke sabhi ko aankhne ka algah prashna kiya tha tumne...:)
kya tumhein aisa nahi laga ke itne ladkiyon ka interview le raha hoon...aise mein kisi ko reject aur ek ko select karna hoga...jo ke reject walon ke saath sahi vyavhaar nahi hoga...kyunke hum sabzi tarkari lene nahi aaye ya phir gaay bakri bhi khareedne nahi aaye..!
Mein samajhti hoon arranged marriages mein ye sab chalta hai lekin phir bhi arranged marriages ko bhi ek alagh tarike se handle kiya ja sakta hai jaise ke...
bina ladke ke involve kiye...parents ko jo jaanch padtaal karni hoti hai woh kar lein aur phir oonhein thik lage (jaise patrika, khandaan etc)...phir ladke se baat chalayein...jahan background checking ke results se ladka soch sakta hai ke thik se iss se milna bhi chahiye ya nahi...!
Pata nahi aise kayee sawal oothe...shayad ghalat hon...arranged marriages ke hisab se...lekin...mein bhi ek ladki hoon aur koi mujhe kuch sawal karke oos par tol-mol kare to mujhe to bahut bura lagega balke mein khud hee oos se chalta ban ne ke liye kahoon!
Bas ek baat kahoongi jaate jaate...ke mujhe tumhari ek baat bahut acchi lagi... aur woh ye ke tumne kaheen bhi ladki ki sundarta ka byora nahi diya which means you were really not selecting them based on looks etc.
I am waiting ke aakhir kis bechari ke gale mein phanda pada hahahahaha
cheers

Manish Kumar on अक्टूबर 02, 2006 ने कहा…
इस टिप्पणी को एक ब्लॉग व्यवस्थापक द्वारा हटा दिया गया है.
Manish Kumar on अक्टूबर 02, 2006 ने कहा…

आशीष ये बात ८‍- ९ साल पहले की है । और इसका कोई अगला भाग नहीं है । :)

रवि जी ये बात आज की नहीं । आपने जो राय दी है वही मैं अपने बेटे को भी दूंगा , बशर्ते वो अपने लिये किसी को ढ़ूंढ़ पाये । मुझे तो नहीं मिला था कोई सो माँ - बाबूजी की शरण में जाना पड़ा था । :)

रचना जी ४० मिनट.........और जिंदगी वाली बात भी सही है । मैंने ये प्रक्रिया क्यूँ इस्तेमाल की ये Dawn की टिप्पणी के जवाब में मैंने विस्तारपूर्वक लिखा है ।

नाहर जी राय देने के लिये धन्यवाद

डॉन तुम्हारे लंबी टिप्पणी पर उस वक्त की अपनी सोच जो आज भी कायम है लिखी है । देख लेना रोमन ब्लॉग पर ।

बेनामी ने कहा…

भैया ,

लगे हाथो ये भी बता देते कि कौनसी कन्या आपको पसंद आयी और क्यों ?

हमे कुछ टिप्स मिल जाती :)

बेनामी ने कहा…

NAVEEN ab main kya kahun mera bhi number jaldi hi aanewala hai mujhe 2 din main 4 interview lene hain :)
lekin sabse bada prasn hai ki kise haan karun kise na, kyunki yeh to saaf hai ki mujhe kisi ek to hi pasand karna hai, lekin baki 3 ko kis base pe reject karunga yeh samjh nahin aa raha hai, or rahi 40 min wali baat to yeh to sub naseeb ki baat hai ki aapka chunav theek tha ya galat, kyunki jo log 3-4 saal sath rehte hue bhi ek doosre ko nahin jaan pate hain to hum kaise samjhenge 40 min main subkuch

 

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