मजाज़ लखनवी की ये नज्म आवारा उर्दू की बेहतरीन नज्मों में से एक मानी जाती है । यूँ तो अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय से स्नातक की परीक्षा उत्तीर्ण करने वाले मजाज, प्रगतिशील शायरों में एक माने जाते थे, पर दिल्ली में अपना दिल खोने के बाद अपनी जिंदगी से वे इस कदर हताश हो गए कि शराब और शायरी के आलावा कहीं और अपना गम गलत नहीं कर सके ।
देखा जाए तो मजाज़ लखनवी की पूरी जिंदगी का दर्द इस नज्म के आईने में समा गया है । दिल्ली से वापस लखनऊ और फिर मुम्बई में किस्मत आजमाने आए मजाज का जख्म इतना हरा था कि उन्हें मुम्बई की चकाचौंध कहाँ से पसंद आती । सो उन्होंने लिखा
शहर की रात और मैं नाशाद-ओ-नाकारा फिरूँ
जगमगाती जागती सड़कों पे आवारा फिरूँ
गैर की बस्ती है कब तक दर-ब-दर मारा फिरूँ ?
ऐ गम-ए-दिल क्या करूँ, ऐ वहशत-ए-दिल क्या करूँ ?
जगमगाती जागती सड़कों पे आवारा फिरूँ
गैर की बस्ती है कब तक दर-ब-दर मारा फिरूँ ?
ऐ गम-ए-दिल क्या करूँ, ऐ वहशत-ए-दिल क्या करूँ ?
मुंबई की मेरीन ड्राइव का रात का सौंदर्य भला किससे छुपा है?
पर जब दिल में किसी की बेवफाई की चोट हो तो ये मोतियों सरीखी टिमटिमाती रोशनी भी सीने में तेज धार वाली तलवार की तरह लगती हैं? न उस वक्त चाँद की चाँदनी दिल को शीतलता पहुँचाती हे ना खूबसूरत सितारों से पटी आकाशगंगा ही दिल को सुकूं दे पाती है
पर जब दिल में किसी की बेवफाई की चोट हो तो ये मोतियों सरीखी टिमटिमाती रोशनी भी सीने में तेज धार वाली तलवार की तरह लगती हैं? न उस वक्त चाँद की चाँदनी दिल को शीतलता पहुँचाती हे ना खूबसूरत सितारों से पटी आकाशगंगा ही दिल को सुकूं दे पाती है
झिलमिलाते कुमकुमों की राह में, जंजीर सी
रात के हाथों में दिन की, मोहनी तसवीर सी
मेरे सीने पर मगर ,दहकी हुई शमशीर सी
ऐ गम-ए-दिल क्या करूँ ? ऐ वहशत-ए-दिल क्या करूँ ?
ये रूपहली छांव ये आकाश पर तारों का जाल
जैसे सूफी का तस्सवुर, जैसे आशिक का हाल
आह ! लेकिन कौन समझे कौन जाने दिल का हाल ?
ऐ गम-ए-दिल क्या करूँ ? ऐ वहशत-ए-दिल क्या करूँ ?
रात के हाथों में दिन की, मोहनी तसवीर सी
मेरे सीने पर मगर ,दहकी हुई शमशीर सी
ऐ गम-ए-दिल क्या करूँ ? ऐ वहशत-ए-दिल क्या करूँ ?
ये रूपहली छांव ये आकाश पर तारों का जाल
जैसे सूफी का तस्सवुर, जैसे आशिक का हाल
आह ! लेकिन कौन समझे कौन जाने दिल का हाल ?
ऐ गम-ए-दिल क्या करूँ ? ऐ वहशत-ए-दिल क्या करूँ ?
दिल की हालत तो तकदीर की गिरफ्त में कैद है ! किसी के भाग्य में फुलझड़ियों की चमक है तो कहीं टूटे तारों की टीस भरी यादें..
फिर वो टूटा इक सितारा, फिर वो छूटी फुलझड़ी
जाने किसकी गोद में आये ये मोती की लड़ी
हूक सी सीने में उठी, चोट सी दिल पर लगी
ऐ गम-ए-दिल क्या करूँ ? ऐ वहशत-ए-दिल क्या करूँ ?
जाने किसकी गोद में आये ये मोती की लड़ी
हूक सी सीने में उठी, चोट सी दिल पर लगी
ऐ गम-ए-दिल क्या करूँ ? ऐ वहशत-ए-दिल क्या करूँ ?
मजाज का मन भटकता रहा कभी मयखाने में तो कभी हुस्न की मलिका की महफिल में . पर हर वक्त वो महफिलें भी कहाँ से मयस्सर होतीं ! अगर कोई चीज हमेशा मजाज के साथ रही तो सिर्फ अकेलापन, उदासी और रुसवाई ।
रात हँस-हँस कर ये कहती है कि मैखाने में चल
फिर किसी शहनाज-ए-लालारुख के काशाने में चल
ये नहीं मुमकिन तो फिर ऐ दोस्त वीराने में चल
ऐ गम-ए-दिल क्या करूँ ? ऐ वहशत-ए-दिल क्या करूँ ?
हर तरफ बिखरी हुई रंगीनियाँ रअनाईयाँ
हर कदम पर इशरतें लेतीं हुईं अंगड़ाईयाँ
बढ़ रहीं हैं गोद फैलाए हुए रुसवाईयाँ
ऐ गम-ए-दिल क्या करूँ ? ऐ वहशत-ए-दिल क्या करूँ ?
मजाज पहले प्यार को ना पाने के गम में ऐसा टूटे कि अपना संतुलन खो बैठे । पर वो फिर से उपचार के बाद उबर सके । माता पिता ने सोचा उनकी शादी करा दी जाए। पर अब मजाज के बिगड़े मानसिक संतुलन की खबर फैल चुकी थी और उनकर लिये आए कई रिश्ते अंत-अंत में टूट गए । ये हुआ एक ऐसे शायर के साथ जिसके बारे में इस्मत चुगताई ने कहा था कि कॉलेज के जमाने में उनकी शायरी पर लड़कियाँ जान देती थीं । पर मजाज जिंदगी के इस अकेलेपन से लड़ते रहे। अपनी जिंदगी की कशमकश को किस बखूबी से उन्होंने इन पंक्तियों में उतारा है
रास्ते में रुक के दम ले लूँ, मेरी आदत नहीं
लौट कर वापस चला जाऊँ, मेरी फितरत नहीं
और कोई हमनवां मिल जाये, ये किस्मत नहीं
ऐ गम-ए-दिल क्या करूँ ? ऐ वहशत-ए-दिल क्या करूँ ?
मजाज की लाचारी और मायूसी इस नज्म की हर पंक्तियों में नुमायां हैं । अब मैं आप सब को अभी और उदास नहीं करूँगा । मजाज की कुछ और बातों के साथ अगली पोस्ट में पेश करूँगा इस नज्म का अगला हिस्सा !
जगजीत सिंह ने कहकशाँ एलबम में इस लंबी नज़्म के कुछ हिस्सों को अपनी जादुई आवाज़ से सँवारा है...
इस नज़्म का अगला भाग आप इस पोस्ट में यहाँ पढ़ सकते हैं।
16 टिप्पणियाँ:
मजाज साहब के बारे में बताने का अंदाज आपका इतना बेहतरीन रहा कि पढ़ने में डूबा ले गया. वाह भाई मनीष, लेखनी मे दम है!! बहुत खुब अंदाजे बयां....
बहुत उम्दा. क्या शानदार तरीके से आपने मजाज साहब का परिचय दिया है.
मजाज साहब, उनकी शायरी और आप का अंदाज़-ए-बयाँ तीनों ही काबिल-ए-तारीफ़!
बहुत अच्छे मनीश ।
शायद कुछ लोगों को मालूम न हो , मजाज लखनवी जावेद अख्तर के मामा यानी जावेद की मां सफ़िया अख्तर के भाई थे ।
वाह ! बहुत बढिया
अगले भाग का इंतज़ार है
दिलकश बयानबाज़ी आपकी लेखनी की खासियत है। बधाई।
http://pkblogs.com/deewananeeraj/2005/08/blog-post_112344019060349959.html
यहां देखो भाई, पूरी रचना लिखी थी.. खुशी होगी.
वैसे मजाज़ मुझे बेहद प्रिय है. इनसे तआरुफ़ जगजीत सिंह की गज़ल सुनकर हुआ. तभी से दीवाना हो गया. आप इनकी और भी रचनाएं पेश करें. मायनों के साथ
समीर जी, अनूप जी, रत्ना जी, प्रत्यक्षा, कालीचरण और अनुराग आप सब को मजाज साहब की ये नज्म और मेरी प्रस्तुति पसंद आई जानकर प्रसन्नता हुई । जगजीत की आवाज में इस नज्म का लिंक अगली पोस्ट में दे रहा हूँ । अगर सुनना चाहें तो वहाँ सुन सकते हैं ।
नीरज, आपकी दी हुई लिंक खुल नहीं पाई इसलिए पढ़ नहीं पाया । आपकी तरह ही मैंने भी जगजीत जी की आवाज में नज्म पहले सुनी थी और तब ही पता चला कि ये मजाज ने लिखी है ।
इनकी लिखी हुई नज्म
अब मेरे पास तुम आई हो तो क्या आई हो....
मेरी बेहद प्रिय है ।
कभी यहाँ जरूर प्रस्तुत करूँगा ।
I'm merely a speck in front of Majaaz sahab, par unke liye ek sher zarur mere zehen se nikla:
दफन हैं इस कदर हम अपनी पशेमानी में
कलम उठायें तो कैसे, कुछ कहे कोई
आज आपका ब्लॉग देखा...जबरदस्त है या यूं कहूं खज़ाना है...मजा़ज साहब को जिस तरीके से आपने बयां किया है, काबिल-ए-तारीफ है..इस बेहतरीन खजाने में जवाहरात सजाने का शुक्रिया...
har shayar ki kismat me yahi akelapan aur tanhai likhi hoti hai aur yahi use oorja bhi deti hai behtareen rachnaye likhne ke liye. aapka lekh padh kar mai bahut bhavuk ho gai. bahut badhiya. shukriya
thanks to saagar ke is blog kaa pata milaa ...
बिल्कुल इत्तेफाक़ रखता हूँ आपकी राय से लीना !
सोनल यहाँ स्वागत है आपका ।
सुना है ये गजल बहुत मशहूर थी। जब हमने ये पहली बार पढी थी तो दिल में उतर गई थी ।
रास्ते में रुक के दम ले लूँ, मेरी आदत नही
.
और कोई हमनवां मिल जाए, ये किस्मत नहीं
बहुत शुक्रिया मनीष जी।
बहुत अच्छा लगा ब्लोक येह साहित्य हर तरह का होगा यहाँ शायेद
मजाज़ जी पर एक टीवी सिरियेल बना था उसमे कई गज़ले हैं उनकी जगजीत सिंह की आवाज़ मे मिएँ आपने फेस बुक वाल अपर बहुत बार उसे पोस्ट किया हैं आज ऐसे ढूंढते येह ब्लाग देखा बहुत अच्छा हैं ब्लॉग
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