

तो आइए सुनें इस ताजगी से भरे गीत को जो शुरू होता है गिटार की एक मधुर धुन से ! इसे सुन कर शायद महसूस करें आपके अंदर भी कहीं ना कहीं जल रही है। एक बार ये आग बाहर नकल जाए तो अपने आस पास की कितनी ही जिंदगी को रौशन कर देगी ।
ऐ साला ! अभी अभी हुआ यकीं
कि आग है मुझमें कहीं
हुई सुबह मैं जल गया
सूरज को मैं निगल गया
रूबरू रोशनी...रूबरू रोशनी है
जो गुमशुदा, सा ख्वाब था, वो मिल गया
वो खिल गया..
वो लोहा था, पिघल गया
खिंचा खिंचा मचल गया
सितार में बदल गया
रूबरू रोशनी...रूबरू रोशनी है
धुआँ, छटा खुला गगन मेरा
नई डगर, नया सफर मेरा
जो बन सके तू हमसफर मेरा, नजर मिला जरा...
आँधियों से झगड़ रही है लौ मेरी
अब मशालों सी बढ़ रही है लौ मेरी
नामो निशान रहे ना रहे
ये कारवां रहे ना रहे
उजाला मैं पी गया
रोशन हुआ, जी गया
क्यूँ सहते रहे....
रूबरू रोशनी...रूबरू रोशनी है
धुआँ, छटा खुला गगन मेरा
रूबरू रोशनी...रूबरू रोशनी है
4 टिप्पणियाँ:
ये गीत मुझे भी बेहद पसन्द है! प्रसून की रचनात्मक सोच कमाल की है,चाहे विज्ञापन हों चाहे गीत!
बहुत उमदा पेशकश. प्रसून जी और नरेश जी का परिचय भी बहुत उत्तम तरीके से पेश किया, गीत भी मेरी पसंद का. बधाई.
हर पायदान नया पन लिए है!!! अगली के बारे में सोच जगाती है।
शुक्रिया आप सब का ! अच्छा लगता है जानकर कि आप सब की गीत संगीत की पसंद मुझसे मेल खाती है ।
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