कार्यालय के काम - काज से मुझे बैंगलूरू के पास भद्रावती में जाना पड़ा और इसी वजह से इस गीतमाला पर मुझे लेना पड़ गया चार दिनों का दीर्घ विराम ।
खैर, अब वापस आ गया हूँ एक बार फिर सीढ़ियाँ चढ़ने की कवायद जारी रखने !
१९ वीं पायदान पर के इस गीत में कई खास बाते हैं । पहली तो ये के इसके गीतकार, संगीतकार और यहाँ तक की गायक भी पहली बार इस गीतमाला में तशरीफ रख रहे हैं । इस गीत को लिखा प्रसून जोशी ने, धुन बनाई जतिन-ललित ने और गायक वो जिनके आज ही साक्षात दर्शन करने का सुअवसर मिला । जी हाँ मैं 'शान' की ही बात कर रहा हूँ । आज बैंगलूरू से कोलकाता की विमान यात्रा खत्म हुई तो पाया कि जनाब हमारे साथ ही सफर कर रहे हैं । खैर सामने ना सही पर टी वी स्क्रीन पर सा रे गा मा...कार्यक्रम में आप सब इन से रूबरू हो चुके होंगे । वैसे २००० में उनके एलबम 'तनहा दिल' की सफलता के बाद से शान यानि शान्तनु मुखर्जी ने पीछे मुड़ कर नहीं देखा । इस गीत की लोकप्रियता में शान की सुरमयी आवाज का काफी हाथ है।
और गर ये गीत आपने ध्यान से सुना हो तो जतिन-ललित ने यहाँ ताली का इस्तेमाल एक निराले ढंग से किया जो निश्चय ही तारीफ योग्य है।
चाँद सिफारिश जो करता हमारी, देता वो तुमको बता
शर्म - ओ - हया के पर्दे गिरा के, करनी है हमको खता..
जिद है अब तो है खुद को मिटाना, होना है तुझमें फना
चलते चलते एक सवाल आप सब से..क्या आपको पता है कि इस गीत की शुरुआत में सुभान अल्लाह की मधुर तान किसने छेड़ी है ?
इस गीत के पूरे बोल यहाँ पढ़ सकते हैं ।
कुन्नूर : धुंध से उठती धुन
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आज से करीब दो सौ साल पहले कुन्नूर में इंसानों की कोई बस्ती नहीं थी। अंग्रेज
सेना के कुछ अधिकारी वहां 1834 के करीब पहुंचे। चंद कोठियां भी बनी, वहां तक
पहु...
6 माह पहले
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