ऊपर की सीढ़ियाँ चढ़ते-चढ़ते आज आ पहुँचे हैं 20 वीं पायदान पर ! और आज यहाँ विराजमान हैं मेरे प्रिय गायक अभिजीत साहब उन्स के इस गीत के साथ ! पर ये कर क्या रहें हैं यहाँ पर ? कभी खामोश बैठ जाते हैं तो कभी खुद से उसके बारे में सवाल करते हैं और फिर खुद ही उनका जवाब देते हैं ।
ये सारे लक्षण जिस रोग की ओर इशारा करते हैं, वो तो समझ आ ही गया होंगा आपको । यानि एक तो इश्क और वो भी इकतरफा । अब क्या करें ये जनाब भी, हमारे हिन्दुस्तान में ज्यादातर किस्से होते ही ऐसे हैं । ख्याली पुलाव पकाने में तो हम सारे ही सिद्धस्त हैं । वैसे हमारे अभिजीत खामोश तो शायद ही कभी रहते हों । पाकिस्तानी गायकों को भारत में जरूरत से ज्यादा भाव दिये जाने पर और उस हिसाब से पाक द्वारा हमारे गायकों को तरजीह ना दिए जाने के मामले में वो सबसे ज्यादा मुखर रहे हैं। और हाल फिलहाल में जी टी वी के लिटिल चैम्पस कार्यक्रम में बतौर जूरी वो शांत तो कभी शायद ही रहे। इसलिये जब इतने प्यार और भोलेपन से उन्होंने अपनी इस खामोशी की दास्तान सुनाने की पेशकश की तो हम तो दंग से रह गए और ना नहीं कह सके....
बस यही सोच के खामोश मैं रह जाता हूँ
कि अगर हौसला करके मैं तुम्हें कह भी दूँ
तो कहीं टूट ना जाए ये भरम डरता हूँ
जिसने मासूम बनाया है तुम्हारे दिल को
जिसके साये में तुम्हें अपना कहा करता हूँ
ये भरम गम के धुएँ में ना कहीं खो जाए
दिल के जज्बों की ना तौहीन कहीं हो जाए
बस यही सोच के खामोश मैं रह जाता हूँ...
सुजीत शेट्टी के संगीत निर्देशन में शाहीन इकबाल रचित इस गीत को आप यहाँ सुन सकते हैं ।
4 टिप्पणियाँ:
ऐसा लगता है जैसे रेडियो से चिपक कर 'बिनाका गीत माला' सुन रहे हैं.
हुम्म भाइयों बहनों अगली पायदान पर है सरताज गीत . . . .लेकिन उसके पहले यह सरताज बिगुल ह्म्म . . .
मनीष जी, अभी तक के सब गीत और उनका संक्षिप्त परिचय अच्छा है! आगे के गीतों का इन्तजार है..
अनुराग
हा हा हा हा.. अमीन सयानी की टोन को क्या खूब पकड़ा है आपने ! बिनाका और बाद में सिबाका संगीतमाला सुनते-सुनते ना जाने कितनी शामें निकली हैं अपनी !
रचना जी अब दौरे से वापस आ गया हूँ तो गीतों की श्रृंखला फिर से आगे बढ़ेगी ।
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