तो मेहमान और कद्रदान २००६ की इस गीतमाला की शुरुआत एक ऐसे गीत से जिस पर आप सब थिरक सकते हैं।इसे गाया अलीशा चिनॉय , महालक्ष्मी अय्यर और सोनू निगम ने ! बोल लिखे जावेद अख्तर ने और धुन बनाई शंकर अहसान लॉय की तिकड़ी ने और फिल्म तो आप पहचान ही गए होंगे डॉन.....
३१ दिसम्बर की रात है जनाब नए साल में प्रवेश करने के पहले एक बार सोच तो लीजिए कि आपने इस रात ना सही पर पूरे साल में क्या खोया और क्या पाया !
वैसे तो २५ गानों की गीतमाला में इस तरह झूमने -झुमाने वाले गीत दो ही हैं । अब इसे शामिल कैसे ना करता । एक तो अलीशा ने गाया बड़ी तबियत से है और दूसरे हमारे कुछ साथी चिट्ठाकारों की पिछले दस दिन की पोस्ट पर नजर मारें तो लगेगा कि सारे मिलकर यही राग अलाप रहे थे :)
दो घड़ी में ही यहाँ जाने क्या होगा
जो हमेशा था मेरा, फिर मेरा होगा
कौन किसके दिल में है फैसला होगा
फैसला है यही, जीत होगी मेरी
दीवानों (जजों) को अब तक नहीं है ये पताऽऽ :) :)
आज की रात, होना है क्या, पाना है क्या , खोना है क्या!
तो साथी चिट्ठाकारों को मेरी शुभकामना यही की नए साल में आप सब जो नामांकित हुए हैं और जो नहीं भी हुए हैं चिट्ठाकारी से कुछ पाइए ! प्रोत्साहन की कमोबेश सभी को जरूरत होती है पर ये सिर्फ क्षणिक आनंद देते हैं । जब तक आपके अंदर लिखने की इच्छा, आत्ममूल्यांकन की समझ और अपने ऊपर आत्मविश्वास हो तो आपकी धारदार लेखनी के प्रवाह को कोई नहीं रोक सकता ।
कुन्नूर : धुंध से उठती धुन
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आज से करीब दो सौ साल पहले कुन्नूर में इंसानों की कोई बस्ती नहीं थी। अंग्रेज
सेना के कुछ अधिकारी वहां 1834 के करीब पहुंचे। चंद कोठियां भी बनी, वहां तक
पहु...
6 माह पहले
4 टिप्पणियाँ:
बहुत सही फरमा रहे हैं, मनीष भाई. पूर्ण सहमति.
आपकी सीख हम जरूर मानेंगे! चिट्ठाकारी से हमने बहुत कुछ सीखा है, आगे भी सीखते रहेंगे.गीतों के बारे मे आपकी पसंद उम्दा होती है,अन्य गीतों और नसीहतों का इन्तजार रहेगा!
एकदम सही कहा मनीष जी।
उम्मीद है नए साल में भी गीतों का ये सफर यूँ ही जारी रहेगा।
मुबारक !
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