इससे पहले कि इस गीतमाला को आगे बढ़ाने के लिए नई पोस्ट लिखता ,ये खबर मिली की मशहूर संगीतकार ओ. पी. नैयर साहब नहीं रहे।
अभी हाल में यानि १६ जनवरी को उन्होंने अपना ८० वाँ जन्मदिन मनाया था । ओ.पी. नैयर का संगीत अपने तरह से अनूठा था । पश्चिमी संगीत और हिन्दुस्तानी संगीत का जिस तरह से उन्होंने उस जमाने में समावेश किया उसका जोड़ ढूंढना मुश्किल है । अपनी इसी खासियत के लिए उन्हें रिदम किंग की उपाधि दी जाती है। इतने वर्षौं के बाद भी उनकी धुनें आज भी उतनी ही कर्णप्रिय लगती हैं । उनकी रचित धुनों की लोकप्रियता का आलम ये है कि पुराने संगीतकारों में पंचम के बाद सबसे ज्यादा उन्हीं की धुनों पर रिमिक्स संगीत बनाया गया है। आज जब वो हमारा साथ छोड़ गए हैं मेरी समझ से उनके लिए मेरी श्रृद्धांजलि यही होगी कि उनकी यादगार धुनों को आप सब के साथ फिर से बाँट सकूँ ।
पचास और साठ के दशक में अपनी धुनों का जादू बिखेरने वाले ओंकार प्रसाद नैयर ने अपनी पहली मुख्य सफलता गुरुदत्त की फिल्म आर पार (१९५४) से अर्जित की । वैसे तो नय्यर साहब ने आशा जी के साथ सबसे ज्यादा काम किया पर उनकी कई बेहतरीन धुनें गीता दत्त ने गायी हैं । आर पार में गीता दत्त से गवाये उनके गीत...
सुन , सुन, सुन, सुन बेवफा, कैसा प्यार कैसी प्रीत रे
तू ना किसी का मीत रे, झूठी तेरी प्यार की कसम....
या फिर ..शोखी और चंचलता लिये ये गीत
"बाबूजी धीरे चलना, प्यार में जरा सँभलना, होऽऽऽऽऽऽबड़े हैं धोखे हैं इस प्यार में..." या फिर
"ये लो मैं हारी पिया..." बेहद लोकप्रिय हुए ।
इसके आलावा CID (1956) के गीत "आँखो ही आँखों में इशारा हो गया...", हावड़ा ब्रिज (1958) का "मेरा नाम चिन चिन चूँ,रात चाँदनी मैं और तू , हैलो मिस्टर हाउ डू यू डू ?..."या फिर मिस्टर एवम् मिसेज ५५(1955) की ठंडी हवा , काली घटा आ ही गई झूम के जैसे लोकप्रिय गीतों में गीता दत्त को नैयर साहब ने निर्देशित किया ।
पर आशा भोंसले के साथ नैयर साहब का जुड़ाव भावनात्मक और पेशेवर दोनों तौर पर बेहद पुख्ता रहा । ऐसा कहा जाता है कि लता इनके बीच के घनिष्ठ संबंधों को पसंद नहीं करती थीं। नैयर साहब ने लता से कभी कोई गीत नहीं गवाया । उनका कहना था कि लता की आवाज उनके संगीत के अनुरूप नहीं थी ।
आशा और नैयर साहब ने साथ मिलकर कई बेशकीमती गीत दिये हैं ।
हावड़ा ब्रिज का ये गीत "आइए मेहरबान, बैठिए जानेजान, शौक से लीजिए जी..इश्क की इम्तिहान.." को भला कौन भूल सकता है ।
१९६८ में आई उनकी फिल्म हमसाया जिसमें आशा जी का गीत
"वो हसीन दर्द दे दो जिसे मैं गले लगा लूँ, वो निगाह मुझ पे डालो कि मैं जिंदगी बना लूँ ..."मुझे बेहद प्रिय है । इसी फिल्म से रफी का गाया हुआ नग्मा "दिल की आवाज भी सुन मेरे फसाने पे ना जा..." बहुत मशहूर हुआ था ।
पर आशा जी ने नैयर साहब के निर्देशन में १९६५ की फिल्म मेरे सनम के लिए जो गीत गाए वो उनके कैरियर के सबसे बेहतरीन गीतों में से एक हैं ।
"जाइए आप कहाँ जाएँगे, ये नजर लौट के फिर आएगी ,
दूर तक आपके पीछे पीछे मेरी आवाज चली आएगी "
और इसी फिल्म का एक और अमर गीत "ये है रेशमी जुल्फों का अँधेरा ना घबराइए.." की तो बात ही क्या है ।
पर आशा के साथ मोहम्मद रफी भी नैयर साहब के प्रिय कलाकारों में से एक थे ।मेरे ख्याल में कश्मीर की कली (१९६४) के गीतों में इन दोनों प्रतिभाओं ने अपने जबरदस्त हुनर की नुमाइश की । "दीवाना हुआ बादल हो....", या "सुभान अल्लाह हसीं चेहरा...", या फिर "ये दुनिया उसी की" (याद है ना गीत के पहले की सेक्सोफोन कि मधुर धुन), ये सारे गीत आज भी उतने ही मनभावन हैं जितना तब थे ।
१९६५ में रफी ने ये रात फिर ना आएगी में उनके ही निर्देशन में फिर मिलोगे कभी इस बात का वादा कर लो जैसा मधुर गीत गाया । और इसी फिल्म से आशा जी का गाया नग्मा ...
यही वो जगह है,यही वो फिजा है
यहाँ पर कभी आप हम से मिले थे ।.....भी है ।
नैयर साहब ने अपने कैरियर के आखिरी मुकाम पर आने से पहले मुकेश (चल अकेला चल अकेला...) और किशोर दा (रूप तेरा एसा दर्पण में ना समाए....) के साथ भी काम किया । ये तो थे उनके वो गीत जिन्होंने मुझे इस प्रविष्टि को लिखने को बाध्य किया ।
नैयर साहब ने अपने संगीत निर्देशन में जो बेशुमार गीत हमको दिये हैँ वो उनकी मृत्यु के बाद भी संगीत प्रेमियों के दिल में वैसे ही रहेंगे जैसे अब तक थे । चलते-चलते महेंद्र कपूर का उनकी फिल्म 'ये रात फिर ना आएगी' का ये गीत उन्हें अपनी श्रृद्धांजलि स्वरूप समर्पित कर रहा हूँ
मेरा प्यार वो है जो मर कर भी तुमको
जुदा अपनी बाहों से होने ना देगा
मिली मुझको जन्नत तो, जन्नत के बदले
खुदा से मेरी जां तुझे माँग लेगा
अभी हाल में यानि १६ जनवरी को उन्होंने अपना ८० वाँ जन्मदिन मनाया था । ओ.पी. नैयर का संगीत अपने तरह से अनूठा था । पश्चिमी संगीत और हिन्दुस्तानी संगीत का जिस तरह से उन्होंने उस जमाने में समावेश किया उसका जोड़ ढूंढना मुश्किल है । अपनी इसी खासियत के लिए उन्हें रिदम किंग की उपाधि दी जाती है। इतने वर्षौं के बाद भी उनकी धुनें आज भी उतनी ही कर्णप्रिय लगती हैं । उनकी रचित धुनों की लोकप्रियता का आलम ये है कि पुराने संगीतकारों में पंचम के बाद सबसे ज्यादा उन्हीं की धुनों पर रिमिक्स संगीत बनाया गया है। आज जब वो हमारा साथ छोड़ गए हैं मेरी समझ से उनके लिए मेरी श्रृद्धांजलि यही होगी कि उनकी यादगार धुनों को आप सब के साथ फिर से बाँट सकूँ ।
पचास और साठ के दशक में अपनी धुनों का जादू बिखेरने वाले ओंकार प्रसाद नैयर ने अपनी पहली मुख्य सफलता गुरुदत्त की फिल्म आर पार (१९५४) से अर्जित की । वैसे तो नय्यर साहब ने आशा जी के साथ सबसे ज्यादा काम किया पर उनकी कई बेहतरीन धुनें गीता दत्त ने गायी हैं । आर पार में गीता दत्त से गवाये उनके गीत...
सुन , सुन, सुन, सुन बेवफा, कैसा प्यार कैसी प्रीत रे
तू ना किसी का मीत रे, झूठी तेरी प्यार की कसम....
या फिर ..शोखी और चंचलता लिये ये गीत
"बाबूजी धीरे चलना, प्यार में जरा सँभलना, होऽऽऽऽऽऽबड़े हैं धोखे हैं इस प्यार में..." या फिर
"ये लो मैं हारी पिया..." बेहद लोकप्रिय हुए ।
इसके आलावा CID (1956) के गीत "आँखो ही आँखों में इशारा हो गया...", हावड़ा ब्रिज (1958) का "मेरा नाम चिन चिन चूँ,रात चाँदनी मैं और तू , हैलो मिस्टर हाउ डू यू डू ?..."या फिर मिस्टर एवम् मिसेज ५५(1955) की ठंडी हवा , काली घटा आ ही गई झूम के जैसे लोकप्रिय गीतों में गीता दत्त को नैयर साहब ने निर्देशित किया ।
पर आशा भोंसले के साथ नैयर साहब का जुड़ाव भावनात्मक और पेशेवर दोनों तौर पर बेहद पुख्ता रहा । ऐसा कहा जाता है कि लता इनके बीच के घनिष्ठ संबंधों को पसंद नहीं करती थीं। नैयर साहब ने लता से कभी कोई गीत नहीं गवाया । उनका कहना था कि लता की आवाज उनके संगीत के अनुरूप नहीं थी ।
आशा और नैयर साहब ने साथ मिलकर कई बेशकीमती गीत दिये हैं ।
हावड़ा ब्रिज का ये गीत "आइए मेहरबान, बैठिए जानेजान, शौक से लीजिए जी..इश्क की इम्तिहान.." को भला कौन भूल सकता है ।
१९६८ में आई उनकी फिल्म हमसाया जिसमें आशा जी का गीत
"वो हसीन दर्द दे दो जिसे मैं गले लगा लूँ, वो निगाह मुझ पे डालो कि मैं जिंदगी बना लूँ ..."मुझे बेहद प्रिय है । इसी फिल्म से रफी का गाया हुआ नग्मा "दिल की आवाज भी सुन मेरे फसाने पे ना जा..." बहुत मशहूर हुआ था ।
पर आशा जी ने नैयर साहब के निर्देशन में १९६५ की फिल्म मेरे सनम के लिए जो गीत गाए वो उनके कैरियर के सबसे बेहतरीन गीतों में से एक हैं ।
"जाइए आप कहाँ जाएँगे, ये नजर लौट के फिर आएगी ,
दूर तक आपके पीछे पीछे मेरी आवाज चली आएगी "
और इसी फिल्म का एक और अमर गीत "ये है रेशमी जुल्फों का अँधेरा ना घबराइए.." की तो बात ही क्या है ।
पर आशा के साथ मोहम्मद रफी भी नैयर साहब के प्रिय कलाकारों में से एक थे ।मेरे ख्याल में कश्मीर की कली (१९६४) के गीतों में इन दोनों प्रतिभाओं ने अपने जबरदस्त हुनर की नुमाइश की । "दीवाना हुआ बादल हो....", या "सुभान अल्लाह हसीं चेहरा...", या फिर "ये दुनिया उसी की" (याद है ना गीत के पहले की सेक्सोफोन कि मधुर धुन), ये सारे गीत आज भी उतने ही मनभावन हैं जितना तब थे ।
१९६५ में रफी ने ये रात फिर ना आएगी में उनके ही निर्देशन में फिर मिलोगे कभी इस बात का वादा कर लो जैसा मधुर गीत गाया । और इसी फिल्म से आशा जी का गाया नग्मा ...
यही वो जगह है,यही वो फिजा है
यहाँ पर कभी आप हम से मिले थे ।.....भी है ।
नैयर साहब ने अपने कैरियर के आखिरी मुकाम पर आने से पहले मुकेश (चल अकेला चल अकेला...) और किशोर दा (रूप तेरा एसा दर्पण में ना समाए....) के साथ भी काम किया । ये तो थे उनके वो गीत जिन्होंने मुझे इस प्रविष्टि को लिखने को बाध्य किया ।
नैयर साहब ने अपने संगीत निर्देशन में जो बेशुमार गीत हमको दिये हैँ वो उनकी मृत्यु के बाद भी संगीत प्रेमियों के दिल में वैसे ही रहेंगे जैसे अब तक थे । चलते-चलते महेंद्र कपूर का उनकी फिल्म 'ये रात फिर ना आएगी' का ये गीत उन्हें अपनी श्रृद्धांजलि स्वरूप समर्पित कर रहा हूँ
मेरा प्यार वो है जो मर कर भी तुमको
जुदा अपनी बाहों से होने ना देगा
मिली मुझको जन्नत तो, जन्नत के बदले
खुदा से मेरी जां तुझे माँग लेगा
11 टिप्पणियाँ:
नैय्यर साहब को भावभीनी श्रृद्धांजली. आपका आलेख एक संपूर्ण श्रृद्धांजली है इनकी शख्शियत को.
मनीष जी, क्या खूब फ्लैश बैक प्रस्तुत किया है आपने! ये सब सदाबहार गीत आज भी उतने ही मनभावन हैं जितने तब थे नैयर साहब को विनम्र श्रृद्धान्जली..
नैयर साहब को हमारी श्रद्धांजलि। सुना है उनको पारम्परिक संगीत की कोई शिक्षा नहीं मिली थी।लेख अच्छा लिखा!
'Yehi woh jagah hai' is one of my all-time favourites.. really melodious.
n ofcourse 'Jaaiye aap kahaan..' as well as 'Aaiye Meherban..'
nice post Manish
Waqai ek legend ko loose kiya hai iss daur ne...which is irreplaceable!
Mujhe onki har geet ko sunkar lagta hai ye acchi hai ya behatar hai...lekin kisi ek nirnay per pahunchana bahut hee mushkil hee nahi asambhav bhi !
Tumhari iss shradhanji ke zariye mein bhi apni dua pesh karti hoon
Bhagwan oonki atma ko shanti de!
Hey, I like this song. I do not know much Hindi, but can understand.
Main sirf Ithna kahna chatihu. Do not go calling on gully, gully, find someone.
Keep adding more songs. I am going to bookmark you in my site.
समीर जी शुक्रिया !
रचना जी शुक्रिया !
जी हाँ ऍसे गीतों की कोई उम्र नहीं होती..वो जेहन में पलते बढ़ते रहते हैं ।
अनूप जी बिलकुल दुरुस्त फरमाया ! इन्होंने कोई पारंपरिक संगीत की शिक्षा नहीं ली । लेख आपको पसंद आया जानकर खुशी हुई ।
सुपर्णा मुझे भी यही वो जगह....बेहद पसंद है ! कुछ ऐसा है उस नग्मे में कि मन भावुक हो जाता है उसे सुनने के बाद !
शुक्रिया इसे पढ़ने के लिए वक्त निकालने का ।
डॉन हाँ , मुश्किल तो है ही ये चुनाव करना । क्योंकि सारे ही कमोबेश अच्छे हैं । अपनी राय देने के लिए शुक्रिया !
Mahesha Welcome to my blog ! Infact I wrote this post to highlight the work of great composer O. P. Nayyar who died two days back.
Pukarta Chala hoon main was his composition sung by Rafi.
Just for ur info this blog is also available in roman script at
manishkmr.blogspot.com
As for the songs my annual fav song countdown will go up to song no. 25 ,24,23....upto 1 . Hope to see u again.
ओ.पी. नैय्यर साहिब को सलाम....
हम तो बस साड़ी उम्र उनके ही गीत गाते रहे....
और शायद मरते दम तक यही गाते रहेंगे.....
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