ग्यारहवीं पायदान पर गीतकार हैं एक बार फिर गुलजार अपनी एक सलाह के साथ !
और सलाह भी कैसी ?...उन मदहोश करने वाली आँखों से बच कर रहने की...
अब ये कोई आसान बात है क्या ?
तमाम शायर तो इनके तीखे बाणों से खुद को बचा नहीं पाए । (उसकी कहानी तो आपको यहाँ पहले ही सुना चुके हैं ) अब ये हमें सिखा रहे हैं । आपको तो याद ही होगा कि स्वयं गुलजार ने पिछले साल कजरारी आँखों पर एक गीत क्या लिख दिया, जनता उन आँखों के जलवे देखने के लिए पूरी फिल्म ही देख आई । :p
खैर गंभीरता से देखें तो इस बात से इनकार भी तो नहीं किया जा सकता कि आँखें ठगती भी हैं । इनके इस रूप को गुलजार ने इन जुमलों में कितनी बारीकी से उभारा है..
जगते जादू फूकेंगी रे नीदें बंजर कर देंगी...नैणा ठग लेंगे..
या फिर
नैणों की जुबां पे भरोसा नहीं आता, लिखत पढ़त ना रसीद ना खाता !
इस गीत की धुन बनाई है विशाल भारद्वाज ने और इसे गाया है मशहूर सूफी गायक नुसरत फतेह अली खाँ के भतीजे राहत फतेह अली खाँ ने । राहत मेरी वार्षिक गीतमाला के लिए नये नहीं है । चाहे वो २००४ में पाप के लिए इनका गाया गीत लगन लागी तुम से मन की लगन हो या फिर २००५ में कलयुग का बेहद लोकप्रिय जिया धड़क धड़क जाए, ये हमेशा अपनी बेमिसाल गायकी से मेरे पसंदीदा गीतों में अपनी जगह बनाते रहे हैं ।
नैणों की मत मानियो रे, नैणों की मत सुनियो
नैणो की मत सुनियो रे ,नैणा ठग लेंगे
नैणा ठग लेंगे, ठग लेंगे, नैणा ठग लेंगे,
जगते जादू फूंकेंगे रे, जगते-जगते जादू
जगते जादू फूंकेंगे रे, नींदें बंजर कर देंगे, नैणा ठग लेंगे
नैणा ठग लेंगे, ठग लेंगे, नैणा ठग लेंगे
नैणों की मत मानियो रे.......
भला मन्दा देखे ना पराया ना सगा रे, नैणों को तो डसने का चस्का लगा रे
भला मन्दा देखे ना पराया ना सगा रे, नैणो को तो डसने का चस्का लगा रे
नैणो का जहर नशीला रे, नैणों का जहर नशीला.....
बादलों मे सतरंगियाँ बोवें, भोर तलक बरसावें
बादलों मे सतरंगियाँ बोवे, नैणा बावरा कर देंगे,नैणा ठग लेंगे
नैणा ठग लेंगे, ठग लेंगे, नैणा ठग लेंगे
नैणा रात को चलते-चलते, स्वर्गा मे ले जावें
मेघ मल्हार के सपने दीजे, हरियाली दिखलावें
नैणों की जुबान पे भरोसा नही आता, लिखत पढत ना रसीद ना खाता
सारी बात हवाई रे , सारी बात हवाई
बिन बादल बरसावें सावण, सावण बिण बरसाता
बिण बादल बरसाए सावन, नैणा बावरे कर देंगे, नैणा ठग लेंगे
नैणा ठग लेंगे, नैणा ठग लेंगे नैणा ठग लेंगे, नैणा ठग लेंगे
नैणों की मत मानियो रे.......
जगते जादू फूंकेंगे रे, जगते जगते जादू
नैणा ठग लेंगे, नैणा ठग लेंगे नैणा ठग लेंगे, नैणा ठग लेंगे
कुन्नूर : धुंध से उठती धुन
-
आज से करीब दो सौ साल पहले कुन्नूर में इंसानों की कोई बस्ती नहीं थी। अंग्रेज
सेना के कुछ अधिकारी वहां 1834 के करीब पहुंचे। चंद कोठियां भी बनी, वहां तक
पहु...
6 माह पहले
3 टिप्पणियाँ:
बहुत सुन्दर गीत है, मनीष भाई।
इसके बोल भी बहुत अच्छे है और गाया भी बहुत प्यार से गया है।
आगे की कड़ियों का बेसब्री से इन्तज़ार है।
जी बिलकुल सही फरमाया आपने !
दोनो जगह हम तो नही सुन पाए जी। पर गाना वाकई बेहतरीन है इसमें कोई शक नही।
एक टिप्पणी भेजें