आपके सामने आज वक्त मिला है इस गीतमाला के शीर्ष के तीन गीतों में पहले पर से पर्दा उठाने का । ये गीत फिल्म ओंकारा से है और सागर भाई ने एक गेस भी किया था । अपनी ४ अक्टूबर की प्रविष्टि मैंने इसी गीत पर लिखी थी और तभी मैंने लिखा था...
"......गुलजार एक ऐसे गीतकार है जिनकी कल्पनाएँ पहले तो सुनने में अजीब लगती हैं पर ऐसा इसलिए होता है कि उनकी सोच के स्तर तक उतरने में थोड़ा वक्त लगता है । पर जब गीत सुनते सुनते मन उस विचार में डूबने लगता है तो वही अनगढ़ी कल्पनाएँ अद्भुत लगने लगती हैं।
इसलिये उनके गीत के लिये कुछ ऐसा संगीत होना चाहिए जो उन भावनाओं में डूबने में श्रोता की मदद कर सके । गुलजार के लिये पहले ये काम पंचम दा किया करते थे और इस चलचित्र में बखूबी ये काम विशाल कर रहे हैं। ....."
रातें कटतीं ना थीं या यूँ कहें रातों को कटने देना कोई चाहता ही नहीं था । पर भई प्रेमियों के लिये ये कोई नई बात तो रही नहीं सो अब उन्होंने दिन को अपना निशाना बनाया है । और क्या खूब बनाया है कि सूर्यदेव भी उनकी गिरफ्त में आ गए । अब चिंता किस बात की जब सूरज ही शिकंजे में हो । अब उनका हाथ अपने हाथ में ले कर धूप और छाँव के साथ जितना मर्जी कट्टी-पट्टी खेलो कौन रोकेगा भला ।
और जनवरी २००७ में दिये हुए अपने साक्षात्कार में गुलजार साहब ने इस गीत के बारे में कहा
पार्श्व गायन की बात करें तो श्रेया घोषाल की मधुर आवाज में जो शोखी और चंचलता है वो इस गीत के रोमांटिक मूड को और प्रभावी बनाती है।वहीं विशाल भारद्वाज की ठहरी आवाज गीत के बहाव को एक स्थिरता सी देती है। कुल मिलाकर गीत, संगीत और गायन मिलकर मन में ऐसे उतरते हैं कि इस गीत के प्रभाव से उबरने का मन नहीं होता ।
ओऽऽ साथी रे दिन डूबे ना
आ चल दिन को रोकें
धूप के पीछे दौड़ें
छाँव छाँव छुए ना ऽऽ
ओऽऽ साथी रे ..दिन डूबेऽऽ ना
थका-थका सूरज जब, नदी से हो कर निकलेगा
हरी-हरी काई पे , पाँव पड़ा तो फिसलेगा
तुम रोक के रखना, मैं जाल गिराऊँ
तुम पीठ पे लेना मैं हाथ लगाऊँ
दिन डूबे ना हा ऽ ऽऽ
तेरी मेरी अट्टी पट्टी
दाँत से काटी कट्टी
रे जइयोऽ ना, ओ पीहू रे
ओ पीहू रे, ना जइयो ना
कभी कभी यूँ करना, मैं डाँटू और तुम डरना
उबल पड़े आँखों से मीठे पानी का झरना
हम्म, तेरे दोहरे बदन में, सिल जाऊँगी रे
जब करवट लेगा, छिल जाऊँगी रे
संग लेऽ जाऊँऽगाऽ
तेरी मेरी अंगनी मंगनी
अंग संग लागी सजनी
संग लेऽऽ जाऊँऽ
ओऽऽ साथी रे दिन डूबे ना
आ चल दिन को रोकें
धूप के पीछे दौड़ें
छाँव छुए नाऽऽ
ओऽऽ साथी रे ..दिन डूबेऽऽ ना
"......गुलजार एक ऐसे गीतकार है जिनकी कल्पनाएँ पहले तो सुनने में अजीब लगती हैं पर ऐसा इसलिए होता है कि उनकी सोच के स्तर तक उतरने में थोड़ा वक्त लगता है । पर जब गीत सुनते सुनते मन उस विचार में डूबने लगता है तो वही अनगढ़ी कल्पनाएँ अद्भुत लगने लगती हैं।
इसलिये उनके गीत के लिये कुछ ऐसा संगीत होना चाहिए जो उन भावनाओं में डूबने में श्रोता की मदद कर सके । गुलजार के लिये पहले ये काम पंचम दा किया करते थे और इस चलचित्र में बखूबी ये काम विशाल कर रहे हैं। ....."
रातें कटतीं ना थीं या यूँ कहें रातों को कटने देना कोई चाहता ही नहीं था । पर भई प्रेमियों के लिये ये कोई नई बात तो रही नहीं सो अब उन्होंने दिन को अपना निशाना बनाया है । और क्या खूब बनाया है कि सूर्यदेव भी उनकी गिरफ्त में आ गए । अब चिंता किस बात की जब सूरज ही शिकंजे में हो । अब उनका हाथ अपने हाथ में ले कर धूप और छाँव के साथ जितना मर्जी कट्टी-पट्टी खेलो कौन रोकेगा भला ।
और जनवरी २००७ में दिये हुए अपने साक्षात्कार में गुलजार साहब ने इस गीत के बारे में कहा
मैं सोचता हूँ कि संगीत की दृष्टि से ओंकारा में काफी विविधताएँ एवम् रंग हैं। इस फिल्म के गीत ओ साथी रे मैंने एक अलग तरह की काव्यात्मक सोच पर गीत बुनने की कोशिश की है । सूर्यास्त की बेला को मैंने यूँ वर्णित किया है मानो आकाश की फिसलन की वजह से सरकता डगमगाता सूरज नदी में डूबने वाला ही है ।और इसीलिए उसे रोकते प्रेमी युगल जाल डाल कर उसे पीठ पर ले जाने की तैयारी में हैं।
पार्श्व गायन की बात करें तो श्रेया घोषाल की मधुर आवाज में जो शोखी और चंचलता है वो इस गीत के रोमांटिक मूड को और प्रभावी बनाती है।वहीं विशाल भारद्वाज की ठहरी आवाज गीत के बहाव को एक स्थिरता सी देती है। कुल मिलाकर गीत, संगीत और गायन मिलकर मन में ऐसे उतरते हैं कि इस गीत के प्रभाव से उबरने का मन नहीं होता ।
ओऽऽ साथी रे दिन डूबे ना
आ चल दिन को रोकें
धूप के पीछे दौड़ें
छाँव छाँव छुए ना ऽऽ
ओऽऽ साथी रे ..दिन डूबेऽऽ ना
थका-थका सूरज जब, नदी से हो कर निकलेगा
हरी-हरी काई पे , पाँव पड़ा तो फिसलेगा
तुम रोक के रखना, मैं जाल गिराऊँ
तुम पीठ पे लेना मैं हाथ लगाऊँ
दिन डूबे ना हा ऽ ऽऽ
तेरी मेरी अट्टी पट्टी
दाँत से काटी कट्टी
रे जइयोऽ ना, ओ पीहू रे
ओ पीहू रे, ना जइयो ना
कभी कभी यूँ करना, मैं डाँटू और तुम डरना
उबल पड़े आँखों से मीठे पानी का झरना
हम्म, तेरे दोहरे बदन में, सिल जाऊँगी रे
जब करवट लेगा, छिल जाऊँगी रे
संग लेऽ जाऊँऽगाऽ
तेरी मेरी अंगनी मंगनी
अंग संग लागी सजनी
संग लेऽऽ जाऊँऽ
ओऽऽ साथी रे दिन डूबे ना
आ चल दिन को रोकें
धूप के पीछे दौड़ें
छाँव छुए नाऽऽ
ओऽऽ साथी रे ..दिन डूबेऽऽ ना
6 टिप्पणियाँ:
गीत का फिल्मांकन भी बहुत अच्छा हुआ है, एक ही शॉट में करीना और अजय आहाते से छत पर जाते हैं,छत का चक्कर काटते हैं और फिर सीढ़ियों से नीचे उतर आहाते से होते बाहर चले जाते हैं, कैमरा संगीत के साथ साथ घूमता है, मगर शॉट नहीं कटता। खूबसूरत और काव्यातम्क फिल्मांकन है गीत का।
गायकों की आवाज से आमतौर पर उनकी सांसों की आवाज गीत में से मिटा दी जाती है, मगर एक खास इफैक्ट देने के लिये गायकों की सांसों की आवाज को उभारा गया है, जो कि गीत में एक अलग ही असर छोड़ता है।
मैं तो यही कहूंगा फिल्म संगीत इतिहास की एक अमर कृति।
माचिस के संगीत में गुलजार और विशाल ने एक नयी छाप छोड़ी थी, ओंकारा में नयी बुलंदियों को छुआ है।
बहुत खूबसूरत गीत, उत्तम चयन, बधाई.
आपने बहुत सही कहा है मनीष जी .. ये मेरे पसंदीदा गानों में से है.. सच में OMKAARA का संगीत अलग है.. बोल भी बहुत नायाब हैं..
मेरे मनपसंद गानों में से एक.आज सुबह से उसे ही
सुन रही हूँ.दिन को संगीतमय बनाने के लिए धन्यवाद.
जगदीश जी इस फिल्म के संगीत से जुड़ी इतनी रोचक जानकारी यहाँ बाँटने के लिए शुक्रिया ! ओंकारा का संगीत इस साल का सबसे बेहतरीन एलबम है ऐसी मेरी भी राय है ।
समीर जी, मान्या जी एवम् रजनी जी मेरी तरह ये गीत आप लोगों की भी पसंद का है, ये जानकर खुशी हुई ।
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