शहर की चमक दमक से दूर गाँव की दुपहरी और शामें अपनी एकरूपता लिये होती हैं। अँधेरे का आगमन हुआ नहीं कि घर के बाहर की सारी गतिविधियाँ ठप्प । यानि महानगरीय माहौल से एकदम उलट जहाँ अँधेरे के साथ रात जवाँ होती है। पर मनोरंजन की जरूरत तो सब को है। और इसी आवश्यकता को पूरा करने के लिए सामाजिक उत्सवों पर नौटंकी और नाच का आयोजन गाँवों की परम्परा रही है ।
ऐसा ही माहौल दिया विशाल भारद्वाज ने गुलजार को अपनी फिल्म ओंकारा में और फिर गंवई मिट्टी की सुगंध ले कर जो गीत निकला उसका जाएका भारत के आम जनमानस की जिह्वा पर बहुत दिनों तक चढ़ा रहा ।
विशाल भारद्वाज ने ओंकारा के इस गीत को अपने जबरदस्त संगीत से जो उर्जा दी है, उसे सुखविंदर सिंह और सुनिधि चौहान की मस्त गायिकी ने और उभारा है। हालांकि इस गीत के लिए स्क्रीन संगीत अवार्ड में श्रेष्ठ गीतकार चुने जाने से गुलजार बहुत खुश नहीं थे। कारण ये नहीं कि उन्हें अपना ये गीत पसंद नहीं बल्कि ये कि इस गीत को रचने से ज्यादा संतोष उन्हें इस फिल्म के अन्य गीतों को लिखने में हुआ है । गुलजार की राय से मैं पूरी तरह सहमत हूँ । इसी फिल्म का एक और गीत इसी कारण से मैंने भी ऊपर की एक सीढ़ी के लिए सुरक्षित रखा है ।
पर जब मूड धमाल और मौज मस्ती करने का हो तो ये गीत एक जबरदस्त उत्प्रेरक का काम करता हे और इसी वजह से ये यहाँ विराजमान है । तो दोस्तों चलें ६ ठी पायदान के इस गीत के साथ थिरकने ।
ना गिलाफ, ना लिहाफ
ठंडी हवा भी खिलाफ ससुरी
इतनी सर्दी है किसी का लिहाफ लइ ले
ओ जा पड़ोसी के चूल्हे से आग लइ ले
बीड़ी जलइ ले, जिगर से पिया
जिगर मा बड़ी आग है...
धुआँ ना निकारी ओ लब से पिया, अह्हा
धुआँ ना निकारी ओ लब से पिया
ये दुनिया बड़ी घाघ है
बीड़ी जलइ ले, जिगर से पिया
जिगर मा बड़ी आग है...
ना कसूर, ना फतूर
बिना जुलुम के हुजूर
मर गई, हो मर गई,
ऐसे इक दिन दुपहरी बुलाई लियो रे
बाँध घुंघरू कचहरी लगाइ लियो रे
बुलाई लियो रे बुलाई लियो रे
लगाई लियो रे कचहरी
अंगीठी जरई ले, जिगर से पिया
जिगर मा बड़ी आग है....
ना तो चक्कुओं की धार
ना दराती ना कटार
ऐसा काटे कि दाँत का निशान छोड़ दे
जे कटाई तो कोई भी किसान छोड़ दे
ओ ऐसे जालिम का छोड़ दे मकान छोड़ दे
रे बिल्लो, जालिम का छोड़ दे मकान छोड़ दे
ना बुलाया, ना बताया
मारे नींद से जगाया हाए रे
ऐसा चौंकी की हाथ में नसीब आ गया
वो इलयची खिलई के करीब आ गया
कोयला जलइ ले, जिगर से पिया
जिगर मा बड़ी आग है
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7 टिप्पणियाँ:
सही गीत और सही स्थान. बहुत बढियां.
इसी फिल्म का एक और गीत इसी कारण से मैंने भी ऊपर की एक सीढ़ी के लिए सुरक्षित रखा है ।
मुझे भी इससे ज्यादा दूसरा वाला गाना लगा जिसे आपने उपर के क्रमांक के लिये चुना है यानि "जुबां पे लागा नमक इश्क का" :)
एक बात का और भी आश्चर्य हुआ कि आपका चिट्ठा खुलते ही गाना बजने लगा बिना लिंक पर क्लिक किये, यह आपने कैसे किया बतायेंगे?
ऐसा प्रमेन्द्र जी के चिट्ठे में भी होता है।
www.nahar.wordpress.com
समीर जी शुक्रिया ! वैसे पिछली पोस्ट पर आपने जो टिप्पणी की थी बात उससे पूरी तरह उलट है । मिठाइयाँ तो अब आपको बँटवानी चाहिए । :p
नाहर भाई हो सकता है कि आपने ओंकारा का जो गीत गेस किया है वो गलत निकले :p। और भी तो गीत हो सकता है उस फिल्म का !he he
बहरहाल, आपके सवाल का जवाब ये है कि कुछ संगीत की वेब साइट हैं जो अपने सर्वर पर संगीत अपलोड करने देती हैं। फिर आपको वे एक कोड दे देती हैं जिसे आप ब्लॉगर की टेमप्लेट पर डालकर पाठकों को जो धुन सुनाना चाहें सुना सकते हैं। मैंने यहाँ
iwebmusic.com का प्रयोग किया है जिसकी लिंक आपको चिट्ठे की sidebar में मिल जाएगी ।
मनीष जी, आपने संगीत लगाया है अच्छा है, पर और भी अच्छा होगा यदि आप प्रत्येक प्रविष्टि के लिये उस प्रविष्टि मे ही गीत को invisible (visible भी ठीक रहेगा)Player के साथ atoplay and autostart mode में embed कर दें।
इस गाने को थोडा और ऊपर होना चाहिये था! गाने के साथ आपकी कही बातें पसंद आईं हमेशा की तरह!
मिश्रा जी सिर्फ अंतिम गीत बजाने के पीछे कारण ये था कि लोग countdown के साथ-साथ ही गीत सुनें बाद में आकर नहीं । आपने जो सुझाव दिया है उसे मैंने अभी तक इस्तेमाल नहीं किया है । कोशिश करूँगा कि इस गीतमाला के खत्म होने के बाद हर गीत के लिंक को embed कर सकूँ
रचना जी शुक्रिया ! क्या ये आपका इस वर्ष का सबसे पसंदीदा नग्मा है ?
jindagi ki rahon me ranjo aur gam dono hi piroye gaye,Par jaane kyun bhi mera haath uttha hai kuch uthane kyun mere hathon mein bediya pad jaati hai
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