जिंदगी में नाम की क्या अहमियत है..
शायद कुछ भी नहीं...
बस पुकारने का इक जरिया..
नाम बदल जाते हैं ...
चेहरे भी वक्त के साथ बदल जाते हैं..
पर दिल से निकली आवाज क्या बदल सकती है
नहीं कभी नहीं..क्योंकि वो तो दिल का आईना है..
और आईने कभी धोखा नहीं देते...
सत्तर के दशक की फिल्म 'किनारा' में यही बात गुलजार कह गए हैं
नाम गुम जाएगा , चेहरा ये बदल जाएगा
मेरी आवाज ही पहचान है, गर याद रहे
और इतने सालों बाद उसी सरसता से यही बात कही है गीतकार शाहीन इकबाल ने अभिजीत के इस एलबम लमहे में । कानपुर के इस गायक की इस गीतमाला में तीसरी और आखिरी पेशकश है । मैं नहीं जानता कि ये गीत आपको कितना पसंद आएगा पर मुझे इस गीत के बोल और अभिजीत की गायिकी दोनों पसंद हैं । तो पेश है नवीं पायदान का ये नग्मा
मैं रहूँ ना रहूँ मेरी आवाज...मैं रहूँ ना रहूँ मेरी आवाज..
तुम गूंजती हर जगह हर कदम पाओगे
मैं मिलूँ ना मिलूँ मेरे गीतों को तुम
जिंदगी की तरह हर कदम पाओगे...
मैं था जहाँ, हूँ मैं वहीं
बीता हुआ कल मैं नहीं
हर मोड़ पर, हर राह में
हर दर्द में , हर आह में
गुनगुनाऊँगा मैं, मुस्कुराऊँगा मैं
दिल की आबो हवा में याद आऊँगा मैं
याद आऊँगा मैं...
कुछ कहूँ, ना कहूँ मेरे गीतों को तुम
रोशनी की तरह , हर तरफ पाओगे
.
मैं आज हूँ, मैं कल भी हूँ
सदियाँ हूँ मैं, मैं पल भी हूँ
हर रंग में, हर रूप में
हर छांव में , हर धूप में
झिलमिलाऊँगा मैं, जगमगाऊँगा मैं
मौसमों की अदा में , याद आऊँगा मैं
मैं दिखूँ ना दिखूँ
मेरे अंदाज तुम, वक्त ही की तरह
हर तरफ पाओगे
मैं रहूँ ना रहूँ मेरी आवाज...मैं रहूँ ना रहूँ मेरी आवाज..
तुम गूंजती हर जगह हर कदम पाओगे
पिछले साल इसी जगह पर था यू बोमसी एंड मी के लिए नीरज श्रीधर का ये गीत कहाँ हो तुम मुझे बताओ ?
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सेना के कुछ अधिकारी वहां 1834 के करीब पहुंचे। चंद कोठियां भी बनी, वहां तक
पहु...
6 माह पहले
2 टिप्पणियाँ:
ये कनपुरिया है। तभी कहें कि ये कैसे इतना अच्छा गाता है और बात-बात पर इंडियन आयडल में काहे बमक जाता था!
अनूप जी हा हा हा हा !
वैसे वो प्रोग्राम लिटिलचैम्पस था । बात ये थी कि हमारे अभिजीत दादा को बप्पी लाहिड़ी जरा भी नहीं सुहाते । एक एपिसोड में तो कह बैठे थे कि अस्सी के दशक में मवाली, हिम्मतवाला जैसी फिल्मों में जिस तरह का संगीत आपने दिया था उस गर्त से हिन्दी फिल्म संगीत को निकलने में कई साल लगे ।
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