छायावादी कवियों से स्कूल के दिन में हम सब बहुत दूर भागते थे । एक तो उनकी रचनाएँ सर के ऊपर से गुजरती थीं और दूसरे इन कविताओं के भावार्थ रटने में सबके हाथ पैर फूल जाते थे । जयशंकर प्रसाद और महादेवी वर्मा सरीखे कवि हमारे मन में प्रेम रस की बजाए आतंक ज्यादा उत्पन्न करते थे । पर कितना फर्क आ गया है तब और अब में। आज उम्र की इस दलहीज पर इन्हीं कवियों की रचनाएँ मन को पुलकित करती हैं ।
महादेवी जी की इस रचना को ही लें --- उस प्यारे से आगुंतक के लिए प्रतीक्षारत व्याकुल मन से निकलती ये भावनाएँ हृदय को सहजता से छू लेती हैं।
आज इनका भावार्थ बताने के लिए मास्टर साहब के नोट्स देखने की जरूरत नहीं, बस दिल का दर्पण ही काफी है।
जो तुम आ जाते एक बार !
महादेवी जी की इस रचना को ही लें --- उस प्यारे से आगुंतक के लिए प्रतीक्षारत व्याकुल मन से निकलती ये भावनाएँ हृदय को सहजता से छू लेती हैं।
आज इनका भावार्थ बताने के लिए मास्टर साहब के नोट्स देखने की जरूरत नहीं, बस दिल का दर्पण ही काफी है।
जो तुम आ जाते एक बार !
कितनी करुणा, कितने संदेश
पथ में बिछ जाते बन पराग
पथ में बिछ जाते बन पराग
गाता प्राणों का तार तार
आँसू लेते वे पद पखार !
हँस उठते पल में आर्द्र नयन
धुल जाता ओठों का विषाद,
छा जाता जीवन में वसन्त
लुट जाता चिर संचित विराग
आँसू लेते वे पद पखार !
हँस उठते पल में आर्द्र नयन
धुल जाता ओठों का विषाद,
छा जाता जीवन में वसन्त
लुट जाता चिर संचित विराग
आँखें देतीं सर्वस्व वार
जो तुम आ जाते एक बार !
जो तुम आ जाते एक बार !
9 टिप्पणियाँ:
सही है। लेकिन चलो अब देर आये दुरुस्त आये।
बिल्कुल सही फरमाया मनीष भाई. सब उम्र का तकाजा है.
-कविता पेश करने के लिये साधूवाद!!
माना उम्र का तकाजा सही .एक और बात मेरे साथ थी.मेरी हिंदी की शिक्षिका छायावाद को ईश्वर के साथ जोड देतीं थीं.जो मुझे कभी भी समझ नहीं आता था.
मेरे लिये बहुत ही ह्र्दय स्पर्शी पक्तियां है.आजकल मैं ऐसी ही स्थिति से गुज़्रर रही हूँ.यह कविता मैंने विदेश में तैनात अपने पति को भेज दीं.
अनूप भाई :) :)
समीर जी शुक्रिया !
कांति दी बाप रे, यानि कनफ्यूजन और भी ज्यादा !
पूनम जी अरे वाह ! चलिए उम्मीद करता हूँ की आपकी भेजी हुई पंक्तियाँ अपना असर दिखायेंगी ।
mann prasann hogaya aapke blog ko pad kar...!!! amazinf collection of hindi literature !!!
// उस प्यारे से आगुंतक के लिए प्रतीक्षारत व्याकुल मन से निकलती ये भावनाएँ हृदय को सहजता से छू लेती हैं।
//
टिप्पणी मे बस यही कहना है!
किम स्वागत है आपका इस ब्लॉग पर । तारीफ का शुक्रिया, आते रहें !
रचना जी लगता है मैंने आपके मुँह की बात छीन ली :)
जो तुम आ जाते एक बार निःसंदेह महादेवी जी की यादगार कविता है और इन महान कवियों को इस ब्लॉग के माध्यम से पाठकों तक पहुँचाना अपने आप में श्रेष्ठ कार्य है. कविता में एक संशोधन कर लें 'पद प्रखार' को कृपया 'पद पखार' कर लें. ऐसे ही अन्य कवियों को उद्घृत करते रहें पाठकों की दुआएं आपको मिलती रहेंगी .
एक टिप्पणी भेजें