वैसे तो गुलज़ार साहब आजकल 'झूम बराबर झूम' के गीतों से सबको झुमा रहे हैं पर मैंने अब तक इस एलबम के जितने गीत सुने हैं, वो कुछ खास पसंद नहीं आए हैं। खैर बहुत दिनों से उनका लिखा एक सूफी गीत आपके सामने पेश करने की चाहत थी । बात 1994 की है, विशाल भारद्वाज और गुलज़ार की जोड़ी माचिस का संगीत तैयार करने में जुटी थी । उसी वक्त विशाल अपनी पत्नी के लिए सूफी कवि बुल्लेशाह की कविताओं पर एक एलबम तैयार करने की सोच रहे थे। अब ये ना पूछने लगिएगा कि कौन हैं विशाल की पत्नी (अगर नहीं पता तो उसका खुलासा थोड़ी देर बाद)? और तब गुलजार ने पेशकश की, कि वो इस एलबम के गीतों के बोल लिखेंगे।
पर 1994 में दिमाग में उपजे इस विचार को फलीभूत होने में 10 वर्ष लग गए और 2004 में इश्का-इश्का के नाम से ये एलबम म्यूजिक टुडे ने निकाला । अब इस नग्मे के बारे में क्या कहा जाए...धुन ,लफ्ज, गायिकी मूड को रूमानी बना ही देते हैं। लबेलुबाब ये कि खुदा इश्क़ ना करवाये:) !
प्रेम की अनुभूतियों के लिए गुलज़ार जिस शब्द चित्र का इस्तेमाल करते हैं वो अपने आस-पास के प्राकृतिक बिम्बों से भरा होता है । गुलजार की कल्पनाओं को जीने की कोशिश कीजिए....
आप अपने प्रियतम के ख्यालों में खोए होते हैं और ये दिन कब आपकी टोह लेता हुआ चला जाता है..स्याह रातें तारों का साथ छोड़ कब सुबह में तब्दील हो जाती है.. क्या इनका हिसाब रख पाते हैं आप? ऐसे में रात कोयल से भी काली दिखे तो क्या आश्चर्य है? आसमां जमीं सब एक लगने लगें तो भी ताज्जुब नहीं । आपके दिल का मौसम तो वही रहता है भले सामने की फिजा कितनी बार अपना रंग बदल ले। हर पल, हर लमहे को अपनी यादों में सहेज कर रखना चाहते हैं आप। और कभी तो ऐसा लगता है कि मानों लमहों को गिनते-गिनते सदियाँ बीत गईं पर तनहाई दूर होने का नाम ही नहीं लेती। तो आइए सुनते हैं रेखा जी की आवाज़, गुलज़ार के शब्द और विशाल के संगीत संयोजन में इश्क की मीठी नमकीन चाशनी से सराबोर ये बेहद खूबसूरत नग्मा..
तेरे इश्क़ में, हाय तेरे इश्क़ में
राख से रूखी, कोयल से काली
रात कटे ना, हिज़्राँ* वाली (*वियोग की रात)
तेरे इश्क़ में, हाय तेरे इश्क़ में..
तेरी जुस्तजू
करते रहे, मरते रहे
तेरे इश्क़ में, तेरे रू-ब-रू
बैठे हुए, मरते रहे, तेरे इश्क़ में...
तेरे रू-ब-रू, तेरी जुस्तजू*(तलाश)
तेरे इश्क़ में, हाय तेरे इश्क़ में..
बादल धुने, मौसम बुने
सदियाँ गिनीं, लमहे चुने
लमहे चुने, मौसम बुने
कुछ गर्म थे, कुछ गुनगुने
तेरे इश्क़ में, बादल धुने
मौसम बुने, तेरे इश्क़ में
तेरे इश्क़ में, हाय हाय तेरे इश्क़ में...
तेरे इश्क़ में तन्हाइयाँ
तन्हाइयाँ तेरे इश्क़ में
हमने बहुत, बहलाइयाँ
तन्हाइयाँ, तेरे इश्क़ में
रूसे कभी, मनवाइयाँ
तन्हाइयाँ, तेरे इश्क़ में...
मुझे टोह कर, कोई दिन गया
मुझे छेड़ कर, कोई शब गई
मैंने रख ली सारी आहटें
कब आई थी, शब कब गई
तेरे इश्क़ में, कब दिन गया
शब कब गई, तेरे इश्क़ में
तेरे इश्क़ में, हाय हाय तेरे इश्क़ में..
राख से रूखी ...
दिल सूफी ये था
हम चल दिये, जहाँ ले चला
तेरे इश्क़ में, हम चल दिये
तेरे इश्क़ में, हाय तेरे इश्क़ में
मैं आस्माँ, मैं ही ज़मीं
गीली ज़मीं, सीली ज़मीं
जब लब जले, पी ली ज़मीं
गीली ज़मीं, तेरे इश्क़ में
अब बात इश्क की हो रही है तो चलते-चलते ये भी बताता चलूँ कि रेखा और विशाल भारद्वाज एक ही कॉलेज में पढ़ा करते थे। रेखा की ख्याति कॉलेज में एक अच्छी गायिका के तौर पर पहले से थी। विशाल इनके जूनियर थे। पर संगीत के कार्यक्रमों मे साथ-साथ हिस्सा लेते रहे और साथ ही लगे रहे अपने इश्क़ का मुकाम हासिल करने में और आज की वस्तुस्थिति से तो आप वाकिफ हैं ही।
19 टिप्पणियाँ:
बड़ा सुरीला नग़्मा है. रेखा की आवाज़ की कशिश इसे बहुत असरदार बनाती है. काश रेखा और निर्देशकों के लिए भी गाएँ. कम से कम विशाल से तो उम्मीद है कि अपनी हर फ़िल्म में एक गाना तो उनके लिए रखेंगे. इस गीत के बोल मैंने ISB/giitaayan के लिए पोस्ट किए थे. अक्षरमाला का स्त्रोत वही है. दो लफ़्ज़ छूट गये थे मुझसे, समझ में नहीं आए थे ("सूफ़ी ये"). भरने के लिए शुक्रिया.
गीत बहुत मधुर लगा. पहले नहीं सुना था. और अंदाजे बयाँ तो हमेशा की तरह ही दिलकश. :)
रेखा जी की दिल्कश आवाज़... गुल्जार साहब के बोल.. जिनकी मैं हमेशा से फ़ैन रही हूं.. सूफ़ी अंदाज़... मुझे गीत को बार बार सुनने के लिये काफ़ी था.. पहले सुन था ये गीत पर शायद इतने ध्यान से नहीं.. पर बही तो सच्मुच मज़ा आ गया..
मुझे टोह कर
कोई दिन गया
मुझे छेड़ कर
कोई शब गई
मैंने रख ली सारी आहटें
कब आई थी शब कब गई
तेरे इश्क़ में
कब दिन गया
शब कब गई
तेरे इश्क़ में
वैसे सारे बोल बेहद सुंदर हैं... पर इन लफ़्ज़ों की खुब्सूरती का जवाब नहीं.. आपका बेहद शुक्रिया..
मनीष मेरे मनपसंद गीत पर बात करने का शुक्रिया । किसी ज़माने में टी0वी0 पर इसका वीडियो आता था । ओह क्या फिल्माया था । बेहतरीन । वैसा नहीं कि एक लड़की है और एक लड़का है । ये मेरे मनपसंद वीडियोज़ में से भी एक रहा है । देखता हूं यू ट्यूब पर मिला तो आपको बताऊंगा । और हां रेखा के जो गीत ओंकारा में हैं, खासतौर पर नमक और लक्कड़ । वो आपको भी पसंद हैं और मुझे भी । सुनने में आया है कि रेखा एक नया अलबम लेकर आ रही हैं । और हां विशाल का विविध भारती पर माचिस वाले ज़माने में इंटरव्यू हुआ था और तब पता चला कि वो राष्ट्रीय क्रिकेट टीम में शामिल होने के रास्ते पर थे । घरेलू क्रिकेट बहुत खेला है विशाल ने । पर फिर वो संगीत में आ गये । और फिर निर्देशन में । मैं उनके पीछे कई महीनों से लगा हूं इंटरव्यू के लिए । बहुत सारी बातें पूछनी हैं उनसे । क्या आपने माचिस और सत्या का बैकग्राउंड म्यूजिक सुना है । सी0डी0 पर कुछ ट्रैक हैं । ना मिलें तो बताईये मैं एम0पी03 बनाकर मेल पर भेज दूंगा । ज़रूर सुनिए । उनके गानों से भी ज्यादा अच्छे हैं ये ट्रैक ।
रेखा भारद्वाज की दिलकश आवाज़ और गुलजार साहब के बोल का संगम अपना वाकई जादुई असर छोड़ता है। इसे पढ़ाने-सुनाने के लिए धन्यवाद!
मनीष क्या कहूँ , सब कुछ तो यूनुस भाई ने कह ही दिया है , मैंने भी यह गीत सिर्फ देखा है , बहुत कोशिश के बावजूद अल्बम नही मिल पायी .... अगर हो सके तो मुझे भी एक प्रती भेजें ... आपकी प्रस्तुती बेहद अच्छी है
धन्यवाद मनीष भाई
रांची किसी के लिए भी यादगार जगह हो सकती है । इस बार आने पर आपके साथ एक शाम चाय के साथ पीने का ख्वाहिशमंद हूँ ?
आपके ब्लोग का लिंक नई इबारतें पर डालूँ तो कोई आपत्ति तो नहीं ?
विनय सही कहा आपने, रेखा जी को अन्य निर्देशकों के साथ भी गाना चाहिए। हो सकता है कि जिस तरह के गीत उन्हें विशाल ने दिये हैं , वैसे मौके बाकी लोगों से ना मिल रहे हों।
आप लोगों ने बेहतरीन साइट बनाई है हिंदी संगीत प्रेमियों के लिए । साइट पर गीत में एक शब्द और था कोयले से काली जो मुझे बार-बार सुनने पर भी कोयल सी काली लगा।
समीर जी, सृजन शिल्पी जी शुक्रिया गीत पसंद करने के लिए ।
मान्या सही कहा आपने ।गुलजार,शब्दों से खेलते खेलते ऐसे भाव पैदा करते हैं कि मन ठगा सा रह जाता है उसके प्रभाव में।
सजीव जी बिलकुल सही कहा गीत के बारे में! पर गीत भेजने के लिए अपना मेल ID तो दें ।
सचिन स्वागत है भाई , जरूर आयें राँची। लिंक करने के लिए पूछने की आवश्यकता नहीं है भाई
यूनुस भाई, ऐसे offer लगातार करेंगे तो मुश्किल में पड़ जाएँगे। हम लोग शिष्टाचार वश ना कहने के आदि नहीं हैं, ही ही ।
विशाल जी का इंटरव्यु कीजिए और किसी अच्छे समय यानि छुट्टी या आफिस के बाद उसका प्रसारण कराईए।
गीतों के बारे में पसंद हमारी एक जेसी है ये तो आप जानते ही हैं।
मेरे मनपसंद गीतों मे से एक गीत।
शुक्रिया!
wah kaafi information diya hai :)
nice to read,....geet waqai bahut khub...aakhir Gulzar :D! well jhum barabar ka mera bhi yehi abhipraay hai :)
Thanks
Cheers
शुक्रिया, विकास एवम् डॉन गीत पसंद करने के लिए ।
lovely song !
aapko Jhoom Barabar Jhoom se Bol Na Halke Halke achhi nahin lagi?
सुपर्णा, एक बार जुरूर सुना था पर ज्यादा ठहर नहीं पाया था। अब तुमने कहा है तो फुरसत में दुबारा सुनूँगा :)
दादा,
Music video देखकर तो आँखें नम हो गईं। रेखा भारद्वाज की आवाज़ बहुत मधुर है।
सुंदर गीत और हमाशा की तरह अच्छी प्रस्तुती। शुक्रिया।
मनीष जी इसका ना प्लेयर चल रहा है ना ही यूटयूब। वैसे ये गाना हमें भी बहुत पसंद है।
सुशील भाई यू ट्यूब का लिंक दुरुस्त कर दिया है। आडियो प्लेयर को भी देखता हूँ ।
This song is an experience paved with pebbles of heartache and streams of separation. I clearly remember the first time I saw it on TV, and felt gripped to my innards. Was it KK Menon's riveting performance, or the old man's haplessness in trying to find a dead son, or the boundless splendour of Kathak dancer draped in white...or may be all...the song, with its complete picturisation, stayed in my heart. For years, this song stayed first on my playlist, and then moved positions when Tere Bina (Guru) and Rangrez (TanuWedsManu) conquered me. But never once did this song spare me. It left me quite shaken, even devastated in its aftermath, moved to the point of tears. Bringing back to my eyes, the unmistakable taste of longing.
उफ्फ. एक तो ये गीतकार संगीतकार जान ले लेते हैं. रही सही कसार आप पूरी कर देते हैं.
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