"जब मैंने तुम्हें कभी सुना ही नहीं तो ये गीत तुमसे कैसे गवा लूँ। "
बड़े मान-मुनौवल के बाद सलिल दा राजी हुए। ये वाक़या इस बात को स्पष्ट करता है कि वो समय ऍसा था जब ज्यादातर संगीत निर्देशक किशोर की आवाज़ को गंभीरता से नहीं लेते थे।
बतौर नायक किशोर कुमार का ये समय ज्यादा बेहतर रहा। १९५६ में जे के नंदा की फिल्म 'ढ़ाके का मलमल' में पहली बार वो और मधुबाला साथ साथ देखे गए। शायद इसी वक़्त उनके प्रेम की शुरुआत हुई। १९५८ में फिल्म 'चलती का नाम गाड़ी' इस जोड़ी की सबसे सफल फिल्म रही। इस जोड़ी पर फिल्माए गीत 'इक लड़की भीगी भागी सी...' और 'पाँच रुपैया बारह आना....' इसी फिल्म से थे। १९६१ में अपनी पहली पत्नी रूमा गुहा के रहते हुए किशोर ने मधुबाला से शादी की और इसके लिए मुस्लिम धर्म को अपनाते हुए अपना नाम अब्दुल करीम रख लिया। ज़ाहिर है ये सारी क़वायद दूसरी शादी करने में कानूनी पचड़ों से बचने के लिए की गई थी।
कानूनी पचड़ों की बात चली है तो ये बताना भी लाज़िमी होगा कि आयकर वालों से किशोर दा सनकपन की हद तक घबड़ाते थे। कहा जाता है कि 'चलती का नाम गाड़ी' उन्होंने ये सोच कर बनाई कि ये फिल्प फ्लॉप हो जाएगी और इसके नुकसान को बढ़ा-चढ़ा कर दिखा वो टैक्स चुकाने से बच जाएँगे। पर हुआ ठीक इसका उलट। 'चलती का नाम गाड़ी' हिट हुई। किशोर इस बात से इतने कुपित हुए कि उन्होंने इस फिल्म से मिलने वाली सारी रॉयल्टी अपने सचिव अनूप शर्मा के नाम कर दी :)।
किशोर दा के बारे में कहा जाता है कि आयकर वालों और अवांछित मेहमानों से बचने के लिए हर तीन चार महिने पर वो अपने बँगले में आने के मुख्य द्वार को बदलते रहते थे, ताकि रेड पड़ने के दौरान वो सबको चकमा दे सकें।
वापस बढ़ते हैं किशोर दा के संगीत के सफ़र पर। संगीतकार एस. डी. बर्मन पहले ऐसे संगीतकार थे जिन्होंने ये समझा कि किस तरह के गानों के लिए किशोर की आवाज सबसे ज्यादा उपयुक्त है। उन्हीं की वज़ह से साठ के दशक में किशोर, देव आनंद की आवाज़ बने। बरमन सीनियर द्वारा संगीत निर्देशित 'गाइड' और 'जेवल थीफ' में उनके गाए गीतों ने उनके यश को फैलने में मदद की।
पर किशोर की गायिकी के लिए मील का पत्थर साबित हुई १९६९ में बनी फिल्म 'अराधना'।
एस डी बर्मन साहब इस फिल्म के गीत रफी साहब से गवाने का मन बना चुके थे। पर धुनें बना चुकने के बाद वो बीमार पड़ गए और इसके संगीत को पूरा करने की जिम्मेवारी पंचम दा पर आन पड़ी। उन्होने इन धुनों को गाने के लिए किशोर दा को चुना और उसके बाद जो रच कर बाहर निकला वो इतिहास बन गया। इस फिल्म के गीत 'रूप तेरा मस्ताना...' के लिए किशोर दा को पहली बार फिल्मफेयर एवार्ड से नवाज़ा गया।
सत्तर के दशक की शुरुआत किशोर दा के लिए जबरदस्त रही। एस. डी. बर्मन के संगीत निर्देशन में 'शर्मीली' और 'प्रेम पुजारी' के गीत चर्चित हुए। वहीं 'अराधना', 'कटी पतंग' और 'अमर प्रेम' की अपार सफलता के बाद किशोर दा पर्दे पर राजेश खन्ना की स्थायी आवाज़ बन गए। किशोर दा के बारे में बाकी बातें तो आगे भी होती रहेंगी पर अब चलें इस श्रृंखला के अगले गीत पर
गीत संख्या:९ - कुछ तो लोग कहेंगे...
'अमर प्रेम' में आनंद बख्शी ने कमाल के गीत लिखे हैं। चाहे वो 'चिंगारी कोई भड़के..' हो...या 'फिर ये क्या हुआ ..' कोई भी संगीत प्रेमी इनके प्रभाव से बच नहीं पाता। अंतरजाल पर तो भारत के बाहर के लोगों को जिन्हें हिंदी या उर्दू नहीं आती, को भी मैंने इन गीतों के अंग्रेजी अनुवाद की तारीफ़ करते पाया।
इस फिल्म से इस संकलन के लिए इन बेमिसाल गीतों में से एक को चुनना बेहद कठिन था। अगर मैंने ये गीत 'कुछ तो लोग कहेंगे....' चुना है तो वो इसलिए कि इसके बोल मेरे दिल को इन तीनों गीतों में सबसे ज्यादा छूते हैं। किशोर की गायिकी और एस डी बर्मन की धुनें (वैसे तो काग़जी तौर पर आर डी बर्मन इसके संगीत निर्देशक कहे जाते हें , पर विभिन्न संगीत समीक्षक बार-बार ये कह चुके हैं कि इस फिल्म की धुन बर्मन सीनियर की थीं) मन के आर-पार हो जाती हैं।
तो सुनें मेरी कोशिश इस गीत को गुनगुनाने की...
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कुछ तो लोग कहेंगे
लोगों का काम है कहना
छोड़ों बेकार की बातों में कहीं बीत ना जाए रैना
कुछ तो लोग कहेंगे....
कुछ रीत जगत की ऍसी है, हर एक सुबह की शाम हुई
तू कौन है, तेरा नाम है क्या, सीता भी यहाँ बदनाम हुई
फिर क्यूँ संसार की बातों से भींग गए तेरे नैना
कुछ तो लोग कहेंगे....
हमको जो ताने देते हैं, हम खोए हैं इन रंगरलियों में
हमने भी उनको छुप-छुप के आते देखा इन गलियों में
ये सच है झूठी बात नहीं , तुम बोलो ये सच है ना
कुछ तो लोग कहेंगे....
अमरप्रेम फिल्म के गीतों को आप यहाँ भी सुन सकते हैं।
राजेश खन्ना और शर्मीला टैगोर अभिनीत इस गीत को आप यहाँ देख सकते हैं।
इस श्रृंखला की सारी कड़ियाँ
- यादें किशोर दा कीः जिन्होंने मुझे गुनगुनाना सिखाया..दुनिया ओ दुनिया
- यादें किशोर दा कीः पचास और सत्तर के बीच का वो कठिन दौर... कुछ तो लोग कहेंगे
- यादें किशोर दा कीः सत्तर का मधुर संगीत. ...मेरा जीवन कोरा कागज़
- यादें किशोर दा की: कुछ दिलचस्प किस्से उनकी अजीबोगरीब शख्सियत के !.. एक चतुर नार बड़ी होशियार
- यादें किशोर दा कीः पंचम, गुलज़ार और किशोर क्या बात है ! लगता है 'फिर वही रात है'
- यादें किशोर दा की : किशोर के सहगायक और उनके युगल गीत...कभी कभी सपना लगता है
- यादें किशोर दा की : ये दर्द भरा अफ़साना, सुन ले अनजान ज़माना
- यादें किशोर दा की : क्या था उनका असली रूप साथियों एवम् पत्नी लीना चंद्रावरकर की नज़र में
- यादें किशोर दा की: वो कल भी पास-पास थे, वो आज भी करीब हैं ..समापन किश्त
12 टिप्पणियाँ:
बहुत खूब उनगुनाया है और रोचक लेख. जरा karaoke के साथ गायें, दुना आनन्द हो जायेगा. सच में. :) बधाई. karaoke के साथ का इन्तजार है.
--कान में आपकी आवाज अभी भी चल रही है-
बोलो ये सच है न!!
कुछ तो लोग कहेंगे.....
मनीषजी,
वाह क्या खूब गुनगुनाया है । ईश्वर ने हमें तो केवल कानसेन बनाकर भेज दिया, काश हम भी ऐसे गुनुगुना पाते ।
समीरजी की बात एकदम सही है, आपको karaoke के साथ इस गीत को प्रस्तुत करना चाहिये,
आपकी आवाज में एक और गीत सुनने की ख्वाहिश है, "रात कली एक ख्वाब में आयी"
उम्मीद है आप जल्दी ही ये गीत अपनी आवाज में सुनवायेंगे ।
साभार,
नीरज के सुझाये गीत का अनुमोदन करता हूँ.
वाह मनीष क्या आवाज़ पाई है भाई
मजा आ गया । बेहतरीन । किशोर दा की वो गाड़ी उनके बंगले गौरी कुंज में मैंने भी देखी है
आपको पता है उस गाड़ी से उनको इतना प्रेम था कि उसे हमेशा के लिए अपने बंगले में रख छोड़ा था ।
आजकल किशोर दा का वो बंगला किराए पर उठा दिया गया है ।
और अमित कुमार और लीना जी कांदीवली में रहने लगे हैं ।
दुख यही है कि वो बंगला नहीं है किशोर दा की यादों का एक केंद्र है ।
पर अब वहां व्यापार होता है
के.बी.एच.
चौक गए न ?
के.बी.एच. का मतलब क्या बात है ! अमित भाई ने इन्दौर में एक लाइव शो के दौरान मुझे बताया था कि बाबा (किशोर दा ) नए नए जुमले ईजाद भी करते थे.पंचम दा के साथ एक गाने की रिहर्सल चल रही थी.उसका इंटरल्यूड किशोर दा को बहुत पसंद आया...जैसे ही साज़िंदों ने बजाया वो पीस तो किशोर दा पंचम की ओर देख कर बोले..के.बी.एच. के.बी.एच. जैसे आप चौंके पंचम दा भी..किशोरे दा बोले क्या बात है थोड़ा लम्बा हो जाता है इसलिये के.बी.एच.ऐसे ही इन्दौर में अपने संक्षिप्त अध्ययन के समय क्रिश्चियन काँलेज में वे पूरा का पूरा गीत उल्टा गा देते थे ..अपना नाम भी किशोर कुमार रशोकि रमाकु सरपट बोलते थे.एक और रिकाँर्डिंग का क़िस्सा है मेरे पास ..वह कभी और..अभी तो के.बी.एच.
सही है मनीष.. गाते रहें गुनगुनाते रहें..
वाह-वाह-वाह !!
बहुत ख़ूब!!
अच्छा लग रहा है आपको सुनना, गीत का सबसे अच्छा अंतरा चुना भी है आपने गाने के लिये! अगले गैत की प्रतीक्षा है!
समीर भाई और नीरज अच्छा सुझाव दिया है आप लोगों ने। ऐसा नहीं कि मैंने ये सोचा नहीं था, पर फिलहाल मैं ऍसा कर नहीं पा रहा हूँ।
बात ये है कि कैरोके के साथ गाने के लिए अभी पूरी तकनीकी कुशलता हासिल नहीं कर पाया हूँ। वैसे भी इंटरनेट पर मुझे इन गीतों के कैरोके ट्रेक नही् मिले। अगर आप लोगों की नज़र में ऐसी कोई साइट हो तो बताएँ। मुझे एक ट्रैक मिला भी तो उसमें म्यूजिक का sound level मेरी आवाज़ से कहीं ऊपर जा रहा था और परिणाम मुझे अच्छा नहीं लगा।
रही बात रात कली ..गुनगुनाने की तो हमें क्या है जब तक आप झेलने कौ तैयार हैं बंदा हाज़िर है :)
यूनुस भाई आपने पास अगर उस बँगले की तस्वीर हो तो बताएँ। उस बँगले से जुड़ी कई और बातें भी हैं बताने लायक।
अभय जी, वो तो मेरे स्वभाव का हिस्सा ही है
ममता जी शुक्रिया !
कंचन खुशी हुई जानकर कि आपको भी वही अंतरा ज्यादा पसंद है। हौसलाफजाही का शुक्रिया
संजय भाई सचमुच आपने चौंका दिया :)! बड़ी रोचक बात सुनाई आपने। मज़ा आया पढ़ कर। आगे भी इंतजार रहेगा इन रोचक जानकारियों का।
बहुत अच्छे मनीष भाई ...
आपने बहुत अच्छी तरह किशोर दा का ये गीत गाया
मैँ भी सहमत हूँ कि " केरीओकी "
के साथ गाना जुरुरी नहीँ !
आप और भी गीत अवश्य सुनायेँ ...
किशोर दा पर पूरी शृँखला बढिया बन पडी है -
जिसे ब्लोग जगत पर सदा के लिये प्रतिष्ठित करने का शुक्रिया !
स स्नेह,
-- लावण्या
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