पिछली पोस्ट में बात हुई थी किशोर दा की अजीबोगरीब शख्सियत की.....आज वापस लौटते हैं उनके गीतों के सफ़र पर। आप सब जो मुझे पढ़ते आए हैं, भली भांति जानते हैं कि गुलज़ार का लिखा हुआ मुझे कितना पसंद आता है। यही वजह है कि किशोर के गाए मेरे सबसे प्रिय गीतों में से चार गुलज़ार ने लिखे हैं।
अब क्या करूँ मैं !
जब पंचम दा की मधुर धुन हो , शब्द हों गुलज़ार के और आवाज हो किशोर कुमार की तो उस गीत की कै़फि़यत सालों साल दिलो दिमाग में नक़्श सी हो जाती है। कितना भी इन्हें सुन लूँ, गुनगुना लूँ ये ज़ेहन से नहीं हटते, मानो मन के आँगन में खूँटा गाड़े बैठे हों। तो इस क्रम में परिचित होते हैं परिचय फिल्म के इस गीत से।
गीत संख्या ६ : मुसाफिर हूँ यारों / आने वाला पल... जाने वाला है
जी हाँ मेरी इस श्रृंखला की छठी पायदान पर एक नहीं दो गीत है। इन दोनों में से एक को चुनना मेरे लिए काफी मुश्किल था।
तो पहले बात करें परिचय के इस सदाबहार नग्मे की..
परिचय में पहली बार पंचम ने गुलज़ार के साथ काम किया था। पंचम और गुलज़ार के साझे संगीत सत्रों में इन गीतों की रचना होती थी। हुआ यूँ कि गुलजार मुखड़े को लेकर जब राजकमल स्टूडियो पहुँचे तो वहाँ दूसरी फिल्म के पार्श्व संगीत की रिकार्डिंग चल रही थी। मुखड़ा पंचम को थमा कर गुलज़ार वापस चले आए। रात को एक बजे पंचम, गुलज़ार के पास आए और कहा चलो नीचे। दिन भर में पंचम एक कैसेट में उस गाने की धुन बना चुके थे। बांद्रा की सड़कों पर गाड़ी दौड़ती रही..डैशबोर्ड पर धुन बजती रही और ख्याल लफ़्जों की शक्ल लेने लगे और इस तरह ये गीत अपने अस्तित्व में आया।
किशोर ने जिस मस्ती और बेफिक्रपन से इस गीत को गाया है कि मन रूपी मुसाफिर गीत के साथ ही इस प्यारे से सफ़र में साथ हो लेता है, वो भी मंजिल को जाने बगैर. ..
तो तैयार हैं ना साथ साथ इस गीत को गुनगुनाने के लिए
मुसाफ़िर हूँ यारों
ना घर है ना ठिकाना
मुझे चलते जाना है, बस, चलते जाना
मुसाफ़िर...
एक राह रुक गई, तो और जुड़ गई
मैं मुड़ा तो साथ-साथ, राह मुड़ गई
हवा के परों पर, मेरा आशियाना
मुसाफ़िर...
दिन ने हाथ थाम कर, इधर बिठा लिया
रात ने इशारे से, उधर बुला लिया
सुबह से शाम से मेरा, दोस्ताना
मुसाफ़िर...
ना घर है ना ठिकाना
मुझे चलते जाना है, बस, चलते जाना
मुसाफ़िर...
एक राह रुक गई, तो और जुड़ गई
मैं मुड़ा तो साथ-साथ, राह मुड़ गई
हवा के परों पर, मेरा आशियाना
मुसाफ़िर...
दिन ने हाथ थाम कर, इधर बिठा लिया
रात ने इशारे से, उधर बुला लिया
सुबह से शाम से मेरा, दोस्ताना
मुसाफ़िर...
जीतेंद्र पर फिल्माये इस गीत को आप यहाँ देख सकते हैं।
इस पायदान पर दूसरा गीत फिल्म 'गोलमाल' से है। इसके लिए १९७९ में गुलज़ार को फिल्मफेयर पुरस्कार मिला था। पंचम की जबरदस्त धुन के बीच किशोर की गूँजती आवाज में इस गीत को सुनना मन को एक शांति से भर देता है।
आने वाला पल जाने वाला है
हो सके तो इस में
ज़िंदगी बिता दो
पल जो ये जाने वाला है
एक बार यूँ मिली, मासूम सी कली
खिलते हुए कहा, उश बाश? मैं चली
देखा तो यहीं हैं,ढूँढा तो नहीं हैं
पल जो ये जाने वाला हैं
एक बार वक़्त से, लमहा गिरा कहीं
वहाँ दास्तां मिली,लमहा कहीं नहीं
थोड़ा सा हँसा के, थोड़ा सा रुला के
पल ये भी जाने वाला है
हो सके तो इस में
ज़िंदगी बिता दो
पल जो ये जाने वाला है
एक बार यूँ मिली, मासूम सी कली
खिलते हुए कहा, उश बाश? मैं चली
देखा तो यहीं हैं,ढूँढा तो नहीं हैं
पल जो ये जाने वाला हैं
एक बार वक़्त से, लमहा गिरा कहीं
वहाँ दास्तां मिली,लमहा कहीं नहीं
थोड़ा सा हँसा के, थोड़ा सा रुला के
पल ये भी जाने वाला है
इस गीत को अमोल पालेकर और बिंदिया गोस्वामी पर फिल्माया गया है।
गीत संख्या ५ : फिर वही रात है ...
याद आता है बी.आई.टी. मेसरा के हॉस्टल नम्बर एक का वो छोटा सा कमरा..
अलमारी पर रखा छोटा सा टेप रिकार्डर..
कमरे में घुप्प अंधकार...
पंचम..गुलज़ार...किशोर के इस जादुई गीत संगीत का ख़ुमार.. इस कदर सर चढ़ता था कि बीसियों बार कैसेट पर इस गीत को रिवर्स कर कर के सुनते थे।
कितनी रातें बर्बाद..नहीं यूँ कहना चाहिए कि आबाद कीं इस गीत ने.....
सपने देखना सिखाया इस गीत ने...वो भी सोती नहीं बल्कि जागती आँखों से..
आप भी इसे महसूस करना चाहेंगे मेरे साथ......
अलमारी पर रखा छोटा सा टेप रिकार्डर..
कमरे में घुप्प अंधकार...
पंचम..गुलज़ार...किशोर के इस जादुई गीत संगीत का ख़ुमार.. इस कदर सर चढ़ता था कि बीसियों बार कैसेट पर इस गीत को रिवर्स कर कर के सुनते थे।
कितनी रातें बर्बाद..नहीं यूँ कहना चाहिए कि आबाद कीं इस गीत ने.....
सपने देखना सिखाया इस गीत ने...वो भी सोती नहीं बल्कि जागती आँखों से..
आप भी इसे महसूस करना चाहेंगे मेरे साथ......
फिर वही रात है ...
फिर वही रात है, फिर वही रात है ख्वाब की
हो ... रात भर ख्वाब में,देखा करेंगे तुम्हे
फिर वही रात है ...
मासूम सी नींद में, जब कोई सपना चले
हो ... हम को बुला लेना तुम, पलकों के पर्दे तले
हो ये रात है ख्वाब की, ख्वाब की रात है
फिर वही रात है...फिर वही रात है
फिर वही रात है ख्वाब की
फिर वही रात है, फिर वही रात है ख्वाब की
हो ... रात भर ख्वाब में,देखा करेंगे तुम्हे
फिर वही रात है ...
मासूम सी नींद में, जब कोई सपना चले
हो ... हम को बुला लेना तुम, पलकों के पर्दे तले
हो ये रात है ख्वाब की, ख्वाब की रात है
फिर वही रात है...फिर वही रात है
फिर वही रात है ख्वाब की
काँच के ख्वाब हैं, आँखों में चुभ जायेंगे
हो ... पलकों पे लेना इन्हें, आँखों में रुक जायेंगे
हो ... ये रात है ख्वाब की, ख्वाब की रात है
फिर वही रात है..., फिर वही रात है
फिर वही रात है ख्वाब की
फिर वही रात है ...
विनोद मेहरा पर फिल्माए इस गीत को आप यहाँ देख सकते हैं।
गीतों के बोल मूलतः विनय जैन के जाल पृष्ठ अक्षरमाला से कुछ मामूली सुधार के बाद यहाँ चस्पा किए गए हैं।
अगले भाग में बात होगी पायदान संख्या चार, तीन और दो के गीतों की...जिनमें दो, एक बार फिर गुलज़ार के और एक योगेश का लिखा है।
इस श्रृंखला की सारी कड़ियाँ
- यादें किशोर दा कीः जिन्होंने मुझे गुनगुनाना सिखाया..दुनिया ओ दुनिया
- यादें किशोर दा कीः पचास और सत्तर के बीच का वो कठिन दौर... कुछ तो लोग कहेंगे
- यादें किशोर दा कीः सत्तर का मधुर संगीत. ...मेरा जीवन कोरा कागज़
- यादें किशोर दा की: कुछ दिलचस्प किस्से उनकी अजीबोगरीब शख्सियत के !.. एक चतुर नार बड़ी होशियार
- यादें किशोर दा कीः पंचम, गुलज़ार और किशोर क्या बात है ! लगता है 'फिर वही रात है'
- यादें किशोर दा की : किशोर के सहगायक और उनके युगल गीत...कभी कभी सपना लगता है
- यादें किशोर दा की : ये दर्द भरा अफ़साना, सुन ले अनजान ज़माना
- यादें किशोर दा की : क्या था उनका असली रूप साथियों एवम् पत्नी लीना चंद्रावरकर की नज़र में
- यादें किशोर दा की: वो कल भी पास-पास थे, वो आज भी करीब हैं ..समापन किश्त
14 टिप्पणियाँ:
मनीष जी आपका ब्लाग पसंद आया. हमने एक नयी बहुभाषीय वेबसाइट बनाई है. yuyam.com which we want to promote as a premier discussion forum and social bookmarking website . An avid blogger like you can contribute a lot to our site.
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वाह मनीषजी किशोर की आवाज में गुलजार के गीतों का संकलन प्रस्तुत करने के लिये शुक्रिया
गुरू मज़ा आ गया ..मैं भी गुलज़ार की कलमों में डूबा रहने वाला हूं......
वैसे आप मजेदार काम कर रहे हैं..
बढ़िया !
अगली पायदानो का इंतज़ार रहेगा।
और इन तीनों का कॉम्बीनेशन तो लाजवाब था।
मनीष आप अच्छा प्रयोग कर रहे हैं दरअसल में एक पूरी की पूरी पीढ़ी है जो लता किशोर गुलज़ार और पंचम दा को सुनकर बड़ी हुई है उस पीढ़ी के लिये आपका काम डाउन मेमारी लेन की तरह है । मैं आपसे कहना चाहूंगा कि नमकीन में किशोर दा का गुलज़ार का गीत राहों पे रहते हैं को भी शामिल करें । साथ में सितारा और देवता के गानों को भी विशेषकर लता ओर किशोर के गीत गुलमोहर गर तुम्हारा नाम होता को
आज तो आपको बताना ही पड़ेगा कि आप हमारी सारी पसंद कैसे जान जाते हैं? कोई जासूस तो नहीं लगाया जो बताता हो हमें कौन से गाने पसंद हैं. बहुत खूब, जारी रहें.
Really Pancham, Gulzar and Kishore was the rarest combo of a musician,
a lyricist and a funloving but serious singer...
and my favourite album from these maestros is.. Aandhi...
I still love all the songs from this album..
Especially... "Iss mod se jate hai....".. A difficult poetry by one of the most difficult and sensuous poet.. amazing melody created by the master and marvellously sung by the marvels.. Lata and Kishore.....
I think songs from Aandhi or Mere Apne can make a place in ur song list..
Alok Mallik
यूयम जी धन्यवाद आपका कि आपने मेरे लेख को इस काबिल समझा। मुझसे जहाँ तक बन पड़ेगा मैं सहयोह करूँगा।
भुवनेश शुक्रिया !आप तो खुद किशोर के फैन हैं. मुझे याद है कि आपकी आर्कुट प्रोफाइल में किशोर दा की तसवीर थी।
गिरीन्द्र जानकर खुशी हुई कि आप इस श्रृंखला का आनंद ले रहे हैं। वैसे गुलज़ार के लिके पसंदीदा गीतों नज्मों का जिक्र करने लगें तो १०० भी कम पड़ेंगे।
ममता जी धन्यवाद !
सुबीर जी आपकी बात सोलह आने सही है। दरअसल मैंने इस श्रृंखला को लिखना इसीलिए शुरु किया कि हमारी पीढ़ी को संगीत के प्रति खींचने का एक बहुत बड़ा योगदान किशोर का था। हमारे किशोर और युवा जी वन की कितनी शामें कितनी रातें इन गीतों से गुलज़ार हुई हैं। इस महान विभूति से जुड़ी यादों को इसी बहाने ताज़ा करने का मौका मिल रहा है।
आपने शानदार युगल गीतों की याद दिलाई है पर चूंकि सिर्फ दस गीतों का चयन करना है इसलिए मैंने सोलो गीतों के बारे में ही अब तक बात की है। देवता,सितारा के आलावा आँधी, रतनदीप और घर में भी किशोर के यादगार युगल गीत हैं। आगे की पोस्ट्स में इनकी चर्चा होगी।
आलोक जी आँधी के गीत तो गुलज़ार के सबसे खूबसूरत रचे गीतों में से है। युगल गीतों के लिए तो एक अलग लिस्ट ही बन सकती है. मेरे अपने का वो गीत मुझे भी पसंद है। अगली पोस्ट में आप सबकी फर्माइश पुरा करने की कोशिश करूँगा.
फिर वही शाम है, इतना खूबसूरत गाना और मैने सुना ही नही था..! बड़ा कष्ट हो रहा है खुद पर और पसंद तो आपकी है ही काबिल-ए-तारीफ!
bahut hee badhiya....have the same in my collection too
Cheers
Heyy U have been
Tagged !!!
बहुत समय बाद आपके ब्लॉग पर आना हुआ ..कितनी गलती करती हूँ मैं यहाँ ना आके !
आज जब गुलज़ार,पंचम दा,किशोर दा के गीतों पर आपकी कलम से लिखी पोस्ट पढ़ रही हूँ तो सच मानिये मैं भी अपनी होस्टल लाइफ में वापस आ गयी ...जहाँ मैं चुपचाप रात में स्लो वोल्यूम में इन्ही गीतों से रातें गुलज़ार करती थी ..मज़ा आ गया पढ़कर वाकई !
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