अब तक की कड़ियाँ किशोर के एकल गीतों पर ही मैंने केंद्रित रखीं थी। पर एक भी युगल गीत ना रहे तो कुछ अटपटा सा लगता है। किशोर के युगल गीतों की चर्चा करने से पहले कुछ बातें किशोर दा की, जो जुड़ी हैं उनके सहगायकों से।
आखिर क्या सोचते थे किशोर, अपने समकालीनों के बारे में ?
लड़कपन से ही किशोर के. एल. सहगल के दीवाने थे। बचपन मे वे अपनी पॉकेटमनी से सहगल साहब के रिकार्ड खरीदा करते थे। सही मायने में वो उनको अपना गुरु मानते थे।जब उन्होंने खुद बतौर गायक काफी ख्याति अर्जित कर ली तो एक संगीत कंपनी ने उनके सामने सहगल के गीतों को गाने का प्रस्ताव रखा। किशोर ने साफ इनकार कर दिया। उनका कहना था....
" मैं उनके गीतों को और बेहतर गाने की कोशिश क्यूँ करूँ ? कृपया उन्हें हमारी यादों में बने रहने दें। उनके गाये गीत, उनके ही रहने दें। मुझे ये किसी एक शख्स से भी नहीं सुनना कि किशोर ने सहगल से भी अच्छा इस गीत को गाया। "
सहगल का विशाल छायाचित्र हमेशा उनके घर के पोर्टिको की शोभा बढ़ाता रहा। और उसी तसवीर के बगल में रफी साहब की तसवीर भी लगी रहती थी। किशोर, रफी की काबिलियत को समझते थे और उसका सम्मान करते थे। सत्तर के दशक में जब किशोर दा की तूती बोल रही थी, तो उनके एक प्रशंसक ने कह दिया....
"किशोर दा , आपने तो रफी की छुट्टी कर दी।..."
उस व्यक्ति को प्रत्त्युत्तर एक चाँटे के रूप में मिला। किशोर और रफी के फैन आपस में एक दूसरे की कितनी खिंचाई कर लें, वास्तविक जिंदगी में कभी इन महान गायकों के बीच आपसी सद्भाव की दीवार नहीं टूटी।
किशोर और लता जी के युगल गीत काफी चर्चित रहे हैं। इतने सालों के बाद आज भी 'आँधी', 'घर', 'हीरा पन्ना', 'सिलसिला' और 'देवता' जैसी फिल्मों के गीत को सुनने वालों की तादाद में कमी नहीं आई है।
किशोर, लता को अपना सीनियर मानते थे और इसीलिए किसी गीत के लिए उन्हें जितना पैसा मिलता वो उससे एक रुपया कम लेते।
और लता जी, साथ शो करतीं तो तारीफ़ों के पुल बाँध देतीं। हमेशा किशोर को किशोर दा कह कर संबोधित करतीं। ये अलग बात थी कि उम्र में किशोर लता से मात्र एक महिना चौबीस दिन ही बड़े थे।
किशोर और आशा जी को पंचम की धुनों में सुनने का आनंद ही अलग है। अपने एक साक्षात्कार में आशा जी ने कहा था कि
"किशोर एक जन्मजात गायक थे जो गाते समय आवाज़ में नित नई विविधता लाने में माहिर थे। इसीलिए उनके साथ युगल गीत गाने में मुझे और सजग होना पड़ता था, गायिकी में उनकी हरकतों को पकड़ने के लिए।"
किशोर दा भी मानते थे कि उनके चुलबुले अंदाज को कोई मिला सकता है तो वो थीं आशा। इसीलिए कहा करते
"She is my match at mike. "
चौथी पायदान के इस गीत को चुनते वक्त कई और गीत मेरे ज़ेहन में आए। सबसे पहले बात 'आँधी' के गीतों की की। इस फिल्म में यू् तो इस मोड़ से जाते हैं.....तुम आ गए हो....और तेरे बिना जिंदगी में कोई शिकवा... जैसे बेहतरीन गीत हैं। पर इन गीतों को जब सुनता हूँ तो मुझे लता, गुलज़ार और पंचम दा ही मन में छाए से लगते हैं। किशोर ने यकीनी तौर पर अपने अंतरे बखूबी गाए हैं पर इन विभूतियों के सामने वो थोड़े पीछे चले जाते हैं।
पर उन्हीं लता पर वो गुलज़ार और पंचम द्वारा रचित 'घर' के इस गीत पर भारी पड़ते हैं। क्या बोल लिखे गुलज़ार ने और कितनी खूबसूरती से उन्हें निभाया किशोर और लता ने... आप भी आनंद उठाएँ
आप की आँखों में कुछ महके हुए से राज़ है
आपसे भी खूबसूरत आपके अंदाज़ हैं
लब हिले तो मोगरे के फूल खिलते हैं कहीं
आप की आँखों में क्या साहिल भी मिलते हैं कहीं
आप की खामोशियाँ भी आप की आवाज़ हैं
आप की आँखों में कुछ महके हुए से राज़ है
आप से भी खूबसूरत आपके अंदाज़ हैं
आप की आँखों में कुछ महके हुए से राज़ है
आप की बातों में फिर कोई शरारत तो नहीं
बेवजह तारीफ़ करना आप की आदत तो नहीं
आप की बदमाशियों के ये नये अंदाज़ हैं
ना.. ना.. ये गीत नहीं मेरी चौथी पायदान पर और ना ही 'हीरा पन्ना' का ये गीत जो पता नहीं कितने छोटे से मेरे दिल के क़रीब रहा है। कुछ तो है इसकी लय में जो इसे गुनगुनाते वक्त बचपन में भी मेरी आँखें नम कर देता था।
प्यारी सी ज़ीनत और सदाबहार देव आनंद पर फिल्माए हुए इस गीत को आप यहाँ देख सकते हैं।
पन्ना की तमन्ना है कि हीरा मुझे मिल जाये
चाहे मेरी जान जाये चाहे मेरा दिल जाये
हो ... पन्ना की तमन्ना है कि हीरा मुझे मिल जाये
चाहे मेरी जान जाये चाहे मेरा दिल जाये
हीरा तो पहले ही किसी और का हो चुका
किसी की, मदभरी, आँखों में खो चुका
यादों की बस से धूल बन चुका दिल का फूल
सीने पे मैं रख दूँ जो हाथ फिर खिल जाये
चाहे मेरी जान जाये चाहे मेरा दिल जाये
हो ... पन्ना की तमन्ना है कि हीरा मुझे मिल जाये
चाहे मेरी जान जाये चाहे मेरा दिल जाये .....
गीत संख्या ४ : कभी कभी सपना लगता है...
ऊपर के गीत कई मायनों में इस गीत से बेहतर होंगे पर 'रतनदीप' फिल्म का ये गीत जो किशोर ने आशा के साथ मिलकर गाया है, मुझे बेहद पसंद है।
विशेषकर इसका मुखड़ा जिसे गुनगुनाते-गुनगुनाते मूड ही बदल जाता है। अपने जमाने में गुलज़ार और पंचम की जोड़ी के संगीत से रची ये फिल्म फ्लॉप हुई थी और उसका खामियाज़ा इस गीत को भी भुगतना पड़ा था। क़रीब दो साल पहले मैंने इस गीत के बारे में यहाँ लिखा था
ख्वाब और हक़ीकत के फ़ासले कभी कभी मिट जाते हैं..
कभी कोई हक़ीकत ख़्वाब सी लगने लगती है..
तो कभी कोई ख़्वाब हक़ीकत की शक्ल इख्तियार करने लगता है..
समझ नहीं आता कि किस पर यक़ीन करें
जो आँखों के सामने है...
या फिर उस सपने पर जो दूर होते हुए भी अपना सा लगने लगा है....
इस गीत को पहलें झेंले मेरी आवाज़ में :)
Kabhie Kabhie Sapn... |
और फिर आनंद उठाएँ आशा किशोर के युगल स्वरों में
|
कभी कभी सपना लगता है
कभी ये सब अपना लगता है
तुम समझा दो, मन को क्या समझाऊँ
मुझे अगर बाहों में भर लो, शायद तुमको चैन मिले
चैन तो उस दिन खोया मैंने, जिस दिन तुमसे नैन मिले
फिर भी ये अच्छा लगता है, मगर अभी सपना लगता है
तुम समझा दो, मन को क्या समझाऊँ
कभी कभी सपना लगता है......
चेहरे पे है, और एक चेहरा, कैसे उसे हटाउँ
मेरा सच गर तुम अपना लो, जनम जनम तरसाऊँ
ऐसे सब अच्छा लगता है, सब का सब सपना लगता है
तुम समझा दो, मन को क्या समझाऊँ
कभी कभी सपना लगता है.....
गीत संख्या-३ : रिमझिम गिरे सावन, सुलग सुलग जाए मन....
अग़र पिछले गीत ने आपके मन को बोझिल कर दिया हो तो इस गीत की सावनी पुकार सुनकर आपके दिल का पपीहा अपना मौन तोड़ देगा। ये गीत भी स्कूल के ज़माने से ही मेरा प्रिय रहा है। मुझे उस वक्त ये गलतफ़हमी थी कि हो ना हो इसके बोल भी गुलज़ार ने लिखे होंगे पर बहुत बाद में पता चला कि इसके गीतकार तो योगेश गौड़ साहब हैं जो मेरे और यूनुस भाई के भी चहेते हैं।
वैसे भी कल सावन की पूर्णिमा थी और आज से भादो का महिना शुरु हो रहा है पर रिम झिम तो अभी भी जोरों पर है। तो सावन को क्यूँ ना विदाई दें इस प्यारे से गीत को गुनगुनाकर।
rimjhim gire sawan... |
रिम-झिम गिरे सावन, सुलग सुलग जाए मन
भीगे आज इस मौसम में, लगी कैसी ये अगन
रिम-झिम गिरे सावन, सुलग सुलग जाए मन
भीगे आज इस मौसम में, लगी कैसी ये अगन
रिम-झिम गिरे सावन ...
जब घुंघरुओं सी, बजती हैं बूंदे,
अरमाँ हमारे, पलके न मूंदे
कैसे देखे सपने नयन, सुलग सुलग जाए मन
भीगे आज इस मौसम में, लगी कैसी ये अगन
रिम-झिम गिरे सावन ...
महफ़िल में कैसे कह दें किसी से,
दिल बंध रहा है किस अजनबी से
हाय करे अब क्या जतन, सुलग सुलग जाए मन
भीगे आज इस मौसम में, लगी कैसी ये अगन
रिम-झिम गिरे सावन ...
गीतों के बोल अक्षरमाला से
अमिताभ और मौसमी चटर्जी पर फिल्माए इस गीत को आप यहाँ देख सकते हैं।
इस श्रृंखला के अगले भाग में आपके साथ बाटूँगा किशोर की पारिवारिक जिंदगी के पहलू कुछ अनमोल चित्रों के साथ........
इस श्रृंखला की सारी कड़ियाँ
- यादें किशोर दा कीः जिन्होंने मुझे गुनगुनाना सिखाया..दुनिया ओ दुनिया
- यादें किशोर दा कीः पचास और सत्तर के बीच का वो कठिन दौर... कुछ तो लोग कहेंगे
- यादें किशोर दा कीः सत्तर का मधुर संगीत. ...मेरा जीवन कोरा कागज़
- यादें किशोर दा की: कुछ दिलचस्प किस्से उनकी अजीबोगरीब शख्सियत के !.. एक चतुर नार बड़ी होशियार
- यादें किशोर दा कीः पंचम, गुलज़ार और किशोर क्या बात है ! लगता है 'फिर वही रात है'
- यादें किशोर दा की : किशोर के सहगायक और उनके युगल गीत...कभी कभी सपना लगता है
- यादें किशोर दा की : ये दर्द भरा अफ़साना, सुन ले अनजान ज़माना
- यादें किशोर दा की : क्या था उनका असली रूप साथियों एवम् पत्नी लीना चंद्रावरकर की नज़र में
- यादें किशोर दा की: वो कल भी पास-पास थे, वो आज भी करीब हैं ..समापन किश्त
9 टिप्पणियाँ:
उस व्यक्ति को प्रत्त्युत्तर एक चाँटे के रूप में मिला। किशोर और रफी के फैन आपस में एक दूसरे की कितनी खिंचाई के लें
किशोअरदा और रफी साहब के बीच में बहुत प्रेम था यह कई जगहों पर पढ़ा परन्तु रफी साहब के नाम पर ही चल रही एक साईट पर रफी- किशोर में श्रेष्ठ कौन पर इतना लम्बा विवाद चला कि पाठकों ने 815 टिप्प्णीयाँ दर्ज करवा कर शायद एक रिकॉर्ड बना दिया।
आपकी यह लेखनी और गीत सचमुच बेहतर रहे। बुरा ना मानिये मैं भी किशोर कुमार को एक अभिनेता के तौर पर ज्यादा पसंद करता हूँ गायक किशोरकुमार की बजाय ! परन्तु पिछले कुछ अंकों में जो गाने आये हैं उन्हें मैं बहुत पसन्द करता हूँ।
आपको बहुत बहुत धन्यवाद स्व, किशोरकुमार पर लेखमाला लिखने के लिये।
वाह जी, पुनः एक शानदार अंक.आपसी सद्भाव ही तो महानता का परिचायक है. गाने एक से एक लाये हैं.
चलिये इन्तजार है कि कुछ पारिवारिक जानकारी भी जानें.
आभार !!
उपर की टिप्प्णी में रफी किशोर के विवाद पर रिकॉर्ड टिप्प्णीयों वाला लिंक देना रह गया और वे सारी टिप्प्णीय़ाँ यहाँ है।
थोडी देर से आये हैं, क्षमा कीजियेगा ।
किशोरकुमारजी के गीतों की इस कडी की सारी प्रविष्टियाँ सहेज कर रखने लायक हैं ।
साथ ही आपके लगाये हुये चित्र मन को बहुत पीछे ले गये हैं जहाँ संगीत एक साधना होती थी दिखावा नहीं ।
आपकी आवाज ने बिल्कुल भी नहीं झिलाया, कसम से सच्ची...
आगे भी गुनगुनाते रहें और सुनवाते रहें ।
बिल्कुल सही कहाँ मनीष जी आपने..
आंधी के गीतों में तो लताजी सचमुच भरी पड़ती है किशोरदा पे...
पर किशोरदा भी भी कम नही..
अगर आप फ़िल्म पिया का घर का यह गाना सुने...
" ये जीवन है इस जीवन का " तो आपकों भी शायद लताजी के गाने से अच्छा किशोरदा का गाना लगेगा..
लताजी की आवाज कुदरत की देन है.. पर किशोरदा की आवाज सदा विविधता का पर्याय रहेगी...
bahut khub shradhanjali hai!!! barson ho gaye the tumhari awaz mein geet sunkar!!!!....
Thanks for sharing
Cheers
सागर भाई रफी और किशोर के समर्थकों को लड़ने दीजिये. मेरे लिए तो दोनों महान कलाकार थे जिनकी गायन शैली भिन्न थी. रफी के पास गायन की विविधता थी तो किशोर के पास ऐसी आवाज़ जो आम जन को गुनगुनाने पर मजबूर कर दे.
इस श्रृंखला की आखिरी कड़ी में मैं आपको ये बताऊंगा की ख़ुद किशोर अपनी अदाकारी को किस तरह लेते थे.
लेख और गीतों को आपने पसंद किया जान कर खुशी हुयी :)
समीर जीं और नीरज इस सफर में साथ साथ चलने का शुक्रिया. आशा है आप सब आगे भी बने रहेंगे.
आलोक जी ये जीवन है ..सच में एक खूबसूरत नगमा है.
डॉन हाँ सही कहा आपने. झेलने का शुक्रिया :)
जो हमे अच्छा लगे.
वो सबको पता चले.
ऎसा छोटासा प्रयास है.
हमारे इस प्रयास में.
आप भी शामिल हो जाइयॆ.
एक बार ब्लोग अड्डा में आके देखिये.
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