शुक्रवार, अगस्त 31, 2007

यादें किशोर दा की : ये दर्द भरा अफ़साना, सुन ले अनजान ज़माना - भाग : ७

किशोर कुमार की पारिवारिक जिंदगी, उनकी शख्सियत जितनी ही पेचीदा रही। आज की ये पोस्ट मेरी कोशिश है उनकी व्यक्तिगत जिंदगी के इन अनछुए पहलुओं को कुछ दुर्लभ चित्रों के साथ बाँटने की । साथ ही बात करेंगे इस श्रृंखला के दूसरे नंबर के गीत की भी।

बात १९५१ की है। उस वक्त किशोर मुंबई फिल्म उद्योग में एक अदाकार के तौर पर पाँव जमाने की कोशिश कर रहे थे। इसी साल उन्होंने रूमा गुहा ठाकुरता से शादी की। १९५२ में अमित कुमार जी की पैदाइश हुई। ये संबंध १९५८ तक चला। रूमा जी का अपना एक आकर्षक व्यक्तित्व था। एक बहुआयामी कलाकार के रूप में बंगाली कला जगत में उन्होंने बतौर अभिनेत्री, गायिका, नृत्यांगना और कोरियोग्राफर के रुप में अपनी पहचान बनाई। पर उनका अपने कैरियर के प्रति यही अनुराग किशोर को रास नहीं आया। किशोर ने खुद कहा है कि

"...वो एक बेहद गुणी कलाकार थीं। पर हमारा जिंदगी को देखने का नज़रिया अलग था। वो अपना कैरियर बनाना चाहती थीं और मैं उन्हें एक घर को बनाने वाली के रूप में देखना चाहता था। अब इन दोनों में मेल रख पाना तो बेहद कठिन है। कैरियर बनाना और घर चलाना दो अलग अलग कार्य हैं। इसीलि॓ए हम साथ नहीं रह पाए और अलग हो गए।..."




१९५८ में ये संबंध टूट गया। इससे पहले १९५६ में मधुबाला, किशोर की जिंदगी में आ चुकी थीं। पाँच साल बाद दोनों विवाह सूत्र में बँध तो गए पर किशोर दा के माता-पिता इस रिश्ते को कभी स्वीकार नहीं पाए। बहुतेरे फिल्म समीक्षक इस विवाह को 'Marriage of Convenience' बताते हैं। दिलीप कुमार से संबंध टूटने की वजह से मधुबाला एक भावनात्मक सहारे की तालाश में थीं और किशोर अपनी वित्तीय परेशानियों से निकलने का मार्ग ढ़ूंढ़ रहे थे।

पर इस रिश्ते में प्यार बिलकुल नहीं था ये कहना गलत होगा। गौर करने की बात है कि मधुबाला ने नर्गिस की सलाह ना मानते हुए, भारत भूषण और प्रदीप के प्रस्तावों को ठुकरा कर किशोर दा से शादी की। तो दूसरी ओर किशोर ने ये जानते हु॓ए भी कि उनकी होने वाली पत्नी, एक लाइलाज रोग (हृदय में छेद) से ग्रसित हैं, उनसे निकाह रचाया। पर शुरुआती प्यार अगले ९ सालों में मद्धम ही पड़ता गया।
किशोर ने Illustrated Weekly को दिए अपने साक्षात्कार में कहा था...

"...मैंने उन्हें अपनी आँखों के सामने मरते देखा। इतनी खूबसूरत महिला की ऍसी दर्दभरी मौत....! वो अपनी असहाय स्थिति को देख झल्लाती, बड़बड़ाती और चीखती थीं। कल्पना करें इतना क्रियाशील व्यक्तित्व रखने वाली महिला को नौ सालों तक चारदीवारी के अंदर एक पलंग पर अपनी जिंदगी बितानी पड़े तो उसे कैसा लगेगा? मैं उनके चेहरे पर मुस्कुराहट लाने का अंतिम समय तक प्रयास करता रहा। मैं उनके साथ हँसता और उनके साथ रोता रहा। ..."

पर मधुबाला की जीवनी लिखने वाले फिल्म पत्रकार 'मोहन दीप' अपनी पुस्तक में उनके इस विवाह से खास खुशी ना मिलने का जिक्र करते हैं। सच तो अब मधुबाला की डॉयरी के साथ उनकी कब्र में दफ़न हो गया, पर ये भी सच हे कि किशोर उनकी अंतिम यात्रा तक उनके साथ रहे और जिंदगी के अगले सात साल उन्होंने एकांतवास में काटे। अगर गौर करें तो उनके लोकप्रिय उदासी भरे नग्मे इसी काल खंड की उपज हैं।

१९७६ में उन्होंने योगिता बाली से शादी की पर ये साथ कुछ महिनों का रहा। किशोर का इस असफल विवाह के बारे में कहना था....

"...ये शादी एक मज़ाक था। वो इस शादी के प्रति ज़रा भी गंभीर नहीं थी। वो तो बस अपनी माँ के कहे पर चलती थी। अच्छा हुआ, हम जल्दी अलग हो गए।..."

वैसे योगिता कहा करती थीं कि किशोर ऍसे आदमी थे जो सारी रात जग कर नोट गिना करते थे। ये बात किशोर ने कभी नहीं मानी और जब योगिता बाली ने मिथुन से शादी की, किशोर ने मिथुन के लिए गाना छोड़ दिया। इस बात का अप्रत्यक्ष फ़ायदा बप्पी दा को मिला और मिथुन के कई गानों में उन्होंने अपनी आवाज़ दी।

१९८० में किशोर ने चौथी शादी लीना चंद्रावरकर से की जो उनके बेटे अमित से मात्र दो वर्ष बड़ी थीं। पर किशोर, लीना के साथ सबसे ज्यादा खुश रहे। उनका कहना था..

'...मैंने जब लीना से शादी की तब मैंने नहीं सोचा था कि मैं दुबारा पिता बनूँगा। आखिर मेरी उम्र उस वक़्त पचास से ज्यादा थी। पर सुमित का आना मेरे लिए खुशियों का सबब बन गया। मैंने हमेशा से एक खुशहाल परिवार का सपना देखा था। लीना ने वो सपना पूरा किया।...

... वो एक अलग तरह की इंसान है । उसने दुख देखा है..आखिर अपने पति की आँख के सामने हत्या हो जाना कम दुख की बात नहीं है। वो जीवन के मूल्य और छोटी-छोटी खुशियों को समझती है। इसीलिए उसके साथ मैं बेहद खुश हूँ।
..."



किशोर दा की बातों को आप होली के दौरान खींचे गए चित्र में सहज ही महसूस कर सकते हैं।


ये तो हुईं उनकी निजी जिंदगी से जुड़ी कुछ बातें। अब एक बार फिर किशोर के पसंदीदा गीतों के इस सिलसिले को आगे बढ़ाते हैं...


गीत संख्या २ : ये दर्द भरा अफ़साना, सुन ले अनजान ज़माना...

इस श्रृंखला की दूसरी पायदान पर गीत है १९६५ की फिल्म "श्रीमान फंटूश" का जिसके बोल लिखे आनंद बख्शी ने और धुन बनाई लक्ष्मीकांत-प्यारेलाल की जोड़ी ने। मुझे ये गाना बेहद पसंद है और इसका मुखड़ा तो कुछ-कुछ किशोर दा के जीवन की कहानी कह देता है। क्या गायिकी थी और कितनी मीठी धुन कि वर्षों पहले सुने इस गीत को गाते वक्त मन खुद-बा-खुद उदास हो जाता है। मैंने इस गीत का एक अंतरा और मुखड़ा गुनगुनाने की कोशिश की है। आशा है आप इसे पसंद करेंगे..

MainHoon.mp3



ये दर्द भरा अफ़साना, सुन ले अनजान ज़माना ज़माना
मैं हूँ एक पागल प्रेमी, मेरा दर्द न कोई जाना - २

कोई भी वादा, याद न आया
कोई क़सम भी, याद न आई
मेरी दुहाई, सुन ले खुदाई
मेरे सनम ने, की बेवफ़ाई
दिल टूट गया, दीवाना
सुन ले अनजान, ज़माना ज़माना
मैं हूँ एक पागल प्रेमी ...

फूलों से मैं ने दामन बचाया
राहो में अपनी काँटे बिछाये
मैं हूँ दीवाना, दीवानगी ने
इक बेवफ़ा से नेहा लगाये
जो प्यार को न पहचाना
सुन ले अनजान ज़माना, ज़माना ...

यादें पुरानी, आने लगीं क्या
आँखें झुका लीं, क्या दिल में आया
देखो नज़ारा, दिलवर हमारा
कैसी हमारी, महफ़िल मे आया
है साथ कोई, बेगाना
सुन ले अनजान, ज़माना ज़माना
मैं हूँ एक पागल प्रेमी ...


किशोर दा की आवाज़ में आप इस मधुर गीत को यहाँ सुन सकते हैं।

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और अगर खुद किशोर दा को अस्सी के दशक में इसे स्टेज पर गाते देखना चाहें तो यहाँ देख सकते हैं, हालांकि तब तक उनकी आवाज़ में वो धार नहीं रह गई थी.



अगली पोस्ट इस श्रृंखला की आखिरी पोस्ट होगी जिसमें मैं बताऊँगा कौन है किशोर दा का गाया मेरा सबसे पसंदीदा गीत और चर्चा होगी कि आखिर क्या सोचती थीं फिल्मी हस्तियाँ किशोर के बारे में?

इस श्रृंखला की सारी कड़ियाँ


  1. यादें किशोर दा कीः जिन्होंने मुझे गुनगुनाना सिखाया..दुनिया ओ दुनिया
  2. यादें किशोर दा कीः पचास और सत्तर के बीच का वो कठिन दौर... कुछ तो लोग कहेंगे
  3. यादें किशोर दा कीः सत्तर का मधुर संगीत. ...मेरा जीवन कोरा कागज़

  4. यादें किशोर दा की: कुछ दिलचस्प किस्से उनकी अजीबोगरीब शख्सियत के !.. एक चतुर नार बड़ी होशियार

  5. यादें किशोर दा कीः पंचम, गुलज़ार और किशोर क्या बात है ! लगता है 'फिर वही रात है'

  6. यादें किशोर दा की : किशोर के सहगायक और उनके युगल गीत...कभी कभी सपना लगता है

  7. यादें किशोर दा की : ये दर्द भरा अफ़साना, सुन ले अनजान ज़माना

  8. यादें किशोर दा की : क्या था उनका असली रूप साथियों एवम् पत्नी लीना चंद्रावरकर की नज़र में

  9. यादें किशोर दा की: वो कल भी पास-पास थे, वो आज भी करीब हैं ..समापन किश्त
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11 टिप्पणियाँ:

विपुल जैन on अगस्त 31, 2007 ने कहा…

सलाम आपकी इस लेखनी को

ghughutibasuti on अगस्त 31, 2007 ने कहा…

एक अच्छा लेख । मेरी फिल्मों में रुचि न के बराबर है किन्तु सोचा कि चलो किशोर कुमार के जीवन के बारे में जान ही लिया जाए । उनके जीवन में इतने उतराव चढ़ाव आए पता ही नहीं था । जानकारी देने के लिए धन्यवाद ।
घुघूती बासूती

Nishikant Tiwari on अगस्त 31, 2007 ने कहा…

दिल की कलम से
नाम आसमान पर लिख देंगे कसम से
गिराएंगे मिलकर बिजलियाँ
लिख लेख कविता कहानियाँ
हिन्दी छा जाए ऐसे
दुनियावाले दबालें दाँतो तले उगलियाँ ।
NishikantWorld

कंचन सिंह चौहान on अगस्त 31, 2007 ने कहा…

बहुत ही अच्छी एवं सार्थक जानकारी वाला लेख था ये। मधुबाला जी के लिये दिया गया किशोर जी का वक्तव्य मार्मिक लगा। लीना जी के पति की हत्या उनकी आँखों के सामने हो गई थी ये नई जानकारी थी मेरे लिये।

Udan Tashtari on अगस्त 31, 2007 ने कहा…

चलिये आज किशोर दा के पारिवारिक जीवन की भी बहुत सी नई जानकारी मिली...आभार.

Udan Tashtari on अगस्त 31, 2007 ने कहा…

बढ़िया गुनगुनाया है. रिकार्डिंग के लिये कौन सा सॉफ्टवेयर इस्तेमाल करते हैं?? ईको अच्छी है, इसलिये जानना था. :)

Yunus Khan on अगस्त 31, 2007 ने कहा…

मनीष बेहतरीन काम कर रहे हो ।
लगातार टिप्‍पणीयां नहीं कर सका । लेकिन पढ़ रहा हूं । जब मैं
बंबई में नया नया आया था तो एक पुस्‍तक प्रदर्शनी में किशोर पर एक
दुर्लभ पुस्‍तक हाथ लगी थी । इसे किसी सोशल रिसर्च संस्‍था ने छापा है ।
बेहतरीन पुस्‍तक है ये ।
कभी मिलेंगे तो दिखाऊंगा ।
किशोर दा के जीवन के इतने पहलू हैं कि बड़ी मुश्किल हो जाती है उनके बारे में
बात करने से । लेकिन इस श्रृंखला ने कई पहलुओं को छुआ है और संवेदना के साथ
छुआ है । मज़ा आ गया ।

लावण्यम्` ~ अन्तर्मन्` on अगस्त 31, 2007 ने कहा…

मनीष भाई,
बहुता सारी खूबियां थीं किशोर दा ऐ व्यक्तित्त्व में
और हरइन्सान की तरह कुछ ऐसा भी हुआ जिस पर् उनका ओर नहीं था ..पारा इतना तो हम कहेगे क व एक सम्पूर्ण कलाकार थे ..क्शोरा दा के मधुर गीत सुनवाने का शुक्रिया ...
-- लावान्या

SahityaShilpi on सितंबर 01, 2007 ने कहा…

मनीष जी!
किशोर दा के बारे में इतनी सारी जानकारी देने तथा इतने दिलकश गीत सुनवाने के लिये आभार!

Manish Kumar on सितंबर 02, 2007 ने कहा…

विपुल शुक्रिया हौसला बढाने का !

घुघुती जी धन्यवाद !

निशीकांत स्वागत है आपका यहाँ ! आशा है भविष्य में आपकी बात सच साबित हो !

कंचन शुक्रिया लेख पसंद करने का !

समीर जी शुक्रिया..audicity का इस्तेमाल करता हूँ

Manish Kumar on सितंबर 02, 2007 ने कहा…

यूनुस भाई उनकी कहानी तो दो अन्य पुस्तकों में भी छप चुकी है। उसमें से एक का जिक्र अगली पोस्ट में करूँगा। आप को ये कड़ी पसंद आ रही है, जानकर खुशी हुई।

लावण्या जी सही कहा आपने !

अजय धन्यवाद सराहने का !

 

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