"कल चौदहवीं की रात थी..शब भर रहा चरचा तेरा
कुछ ने कहा ये चाँद है, कुछ ने कहा चेहरा तेरा..."
....से हुआ था, जो विविध भारती के रंग-तरंग कार्यक्रम में बारहा सुनने को मिला करती थी और पूरे घर भर को खूब पसंद भी आती थी।
पिछले हफ्ते इंटरनेट की दुनिया से दूर जब पटना की यात्रा पर था तो फुर्सत के क्षणों में डॉयरी के पन्नों में उनकी लिखी ये बेहतरीन नज़्म दिख गई तो सोचा इसे आपसे बाँटता चलूँ..
किसी से नेह हो तो उसके बारे में चिंता होती है..
उसे परेशानी में देख कर दिल भर भर आता है..
और उससे कई दिनों तक बात ना हो तो सब कुछ अनमना सा लगने लगता है..
पर रिश्ते के बीच का ये दर्द काफ़ूर हो जाए तो ...
तो समझ लीजिए, अब वो बात नहीं रही।
इंशा जी की ये नज़्म इसी अहसास को बड़ी खूबसूरती से इन लफ़्जों में बयाँ करती है।
दर्द रुसवा ना था ज़माने में
दिल की तन्हाईयों में बसता था
हर्फ-ए-नागुफ्तां था फ़साना-ए- दिल
एक दिन जो उन्हें खयाल आया
पूछ बैठे उदास क्यूँ हो तुम
यूँ ही ..! मुस्कुरा के मैंने कहा
देखते देखते, सर-ए-मिज़हगाँ*
एक आंसू मगर ढ़लक आया...
(पलकों की कोरों से*)
इश्क नीरस था, ख़ामक़ार था दिल
बात कुछ भी ना थी मगर हमदम
अब मोहब्बत का वो नहीं आलम
आप ही आप सोचता हूँ मैं
दिल को इल्जाम दे रहा हूँ मैं
दर्द बेवक़्त हो गया रुसवा
एक आँसू था पी लिया होता...
इश्क़ तौक़ीर* खो गया उस दिन
हुस्न मुहतात** हो गया उस दिन
हाए क्यूँ बेक़रार था दिल...
(*सम्मान, **बेफिक्री खो देना )
9 टिप्पणियाँ:
मनीष भाई इब्ने इंशा की शायरी लाजावाब है वैसे क्या जगजीत ने इनकी कोई और ग़ज़ल गाई है ?
बहुत खूब प्रतुत किया इब्रे इंसा साहब की शायरी को. आभार.
एक दिन जो उन्हें खयाल आया
पूछ बैठे उदास क्यूँ हो तुम
यूँ ही ..! मुस्कुरा के मैंने कहा
देखते देखते, सर-ए-मिज़हगाँ*
एक आंसू मगर ढ़लक आया...
उम्दा!!
मनीष मेरे प्रिय शायर हैं इब्ने इंशा ।
गुलाम अली ने उनकी बेहतरीन गजल गाई है । याद है ।
ये बातें झूठी बातें हैं ये लोगों ने फैलाई हैं
तुम इंशा जी का नाम ना लो कि इंशा तो सौदाई हैं ।
अदभुत है इस गजल का चलन ।
इंशा अपनी साफगोई और सादगी के लिए याद किये जायेंगे ।
अगर आप गुलाम अली की गाई ये गजल भी ले आएं तो
मजा आ जाए ।
सजीव शुक्रिया इब्न इस नज़्म को पसंद करने का। जगजीत जी की गाई किसी अन्य ग़ज़ल का तो ख्याल नहीं आता पर गुलाम अली साहब ने इंशा जी की दो तीन ग़ज़लों / नज़्मों को गाया जुरूर है
खूबसूरत नज़्म को पढ़वाने के लिये शुक्रिया, मनीष भाई!
लगभग आठ साल तो हो ही गये होंगे इस बात को.... ग़ुलाम अली का की गज़ल का कैसेट घर में आया, मैं और मेरे दोनो बड़े भाई (एक मुझसे १० साल बड़े, दूसरे २० साल)बैठ कर गज़ल सुनने लगे, अब इसमें आया शब्द तुम इंशा जी का नाम न लो... और हम तीनों भाई बहन परेशान.. सुनने में कुछ गलती हो रही है क्या? बार बार कैसेट रिवर्स किया जा रहा है, लेकिन इंशा जी का अर्थ नहीं समझ में आ रहा तो नही समझ में आ रहा... मैने भी कहा कि जो चीज़ नही समझ में आ रही उसमें क्या अधिक सर खपाना और दूसरी नज़्मों की तरफ बढ़ गई, लेकिन आज तक ये इंशा जी का अर्थ नही clear हुआ था, धन्यवाद आपकी पोस्ट को, जिससे इतने दिन बाद जा कर मामला समझ में आया।
यूनुस भाई मुझे भी उस नज़्म को सुने अर्सा हो गया। पोस्ट लिखते समय खोज रहा था कि नेट पर मिल जाए पर मिली नहीं। कभी मिलेगी तो अवश्य प्रस्तुत की जाएगी।
कंचन चलिए युनूस ने जिक्र किया तो आपकों पुरानी यादें बाँटने का मौका मिला जिसे पढ़कर अच्छा लगा। हम भाई बहन भी इसी तरह साथ साथ संगीत का आनंद उठाते थे।
अजय इंशा जी की ये नज़्म आपको पसंद आई जानकर खुशी हुई।
कल चौदहवीं की रात थी
पूरा गज़ल -
कल चौदहवीं की रात थी, शब भर रहा चर्चा तेरा|
कुछ ने कहा ये चाँद है, कुछ ने कहा चेहरा तेरा|
हम भी वहीं मौजूद थे, हम से भी सब पूछा किए,
हम हँस दिए, हम चुप रहे, मंज़ूर था परदा तेरा|
इस शहर में किस से मिलें, हम से तो छूटी महफ़िलें,
हर शख्स तेरा नाम ले, हर शख्स दीवाना तेरा|
कूचे को तेरे छोड़ कर, जोगी ही बन जाएँ मगर,
जंगल तेरे, पर्बत तेरे, बस्ती तेरी, सहरा तेरा|
तू बेवफ़ा तू मेहरबां हम और तुझ से बद-गुमां,
हमने तो पूछा था ज़रा, ये वक्त क्यों ठहरा तेरा|
हम पर ये सख्ती की नज़र, हम हैं फ़क़ीर-ए-रहगुज़र,
रस्ता कभी रोका तेरा, दामन कभी थामा तेरा|
दो अश्क जाने किस लिए, पलकों पे आ कर टिक गए,
अल्ताफ़ की बारिश तेरी, अक्राम का दरिया तेरा|
हाँ हाँ तेरी सूरत हँसी, लेकिन तू ऐसा भी नहीं,
इस शख्स के अशार से, शोहरा हुआ क्या क्या तेरा|
बेशक उसी का दोष है, कहता नहीं ख़ामोश है,
तू आप कर ऐसी दवा, बीमार हो अच्छा तेरा|
बेदर्द सुननी हो तो चल, कहता है क्या अच्छी ग़ज़ल,
आशिक़ तेरा, रुसवा तेरा, शायर तेरा, 'इन्शा' तेरा|
- इब्न ए इन्शा
Full song courtesy - http://cgspice.com/india-most-popular/shayari-poetry/433-ibne-insha.html
Manishbhai,
Ek sham mere nam -aap kahte hai
Ham aapke nam kai sham karenge!
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