रविवार, अक्टूबर 21, 2007

दुर्गापूजा की एक रात, चलिए राँची की सड़कों पर मेरे साथ...

शहर में जश्न का माहौल है। सालों साल आम जन में इस उत्साह की पुनरावृति को देखता आया हूँ। बचपन और किशोरावस्था के कई सालों में पटना की गलियों और सड़कों में इसी हुजूम का कई बार हिस्सा बना हूँ। और अब राँची में अपने बालक को जब इन पूजा पंडालों की सैर करा रहा हूँ तो वही दृश्य फिर से सामने आ रहा है। सबसे अच्छी बात यही दिखती है कि लोग बाग अपनी रोजमर्रा की जिंदगी के कष्टों को भूल कर किस तरह कर हर साल नई उमंग और उत्साह के साथ इस त्योहार में शामिल हो जाते हैं।


पिछले साल भी इस चिट्ठे पर आपको दुर्गापूजा के पंडालों में ले गया था। चलिए एक बार फिर इस सफ़र में मेरे साथ शामिल हो जाइए।

वैसे तो शाम से ही पूजा पंडालों मे दर्शनार्थियों की भीड़ उमड़ पड़ती है पर उस वक्त की धक्कमधुक्की में परिवार के साथ निकलने की हिम्मत नहीं होती। इसलिए तमाम लोग अर्धरात्रि के बाद ही निकलते हैं। रात के साढ़े ग्यारह बज रहे हैं। हमारी तैयारी पूरी हो चुकी है। पर पहली बाधा घर के बाहर . गेट के ठीक सामने खड़ी एक गाड़ी के रूप में दिखाई देती है। गाड़ी किसी दूसरे मोहल्ले से आई है, इसलिए पता नहीं चल रहा है कि किसकी है? थोड़ी पूछताछ के बाद भी जब कोई नतीजा नहीं निकलता तो गाड़ी का हार्न लगातार बजा कर सारे मोहल्ले की नींद खराब की जाती है। जिनकी नींद खराब होती है उनमें से कुछ हमारी इस खोज में शामिल होते हैं और दस मिनट के अंदर वो गाड़ीवाला, क्षमा माँगता हुआ वहाँ से गाड़ी हटाता है।

पहली बाधा पार कर हम चल पड़े हैं राँची लेक के पास के राजस्थान मित्र मंडल के पंडाल की तरफ।

रात के बारह बज चुके हैं पर भीड़ जस की तस है। अब घर से खा पी कर कौन चलता है. पंडाल होगा तो आस पास खाने की स्टॉल भी होंगी। वैसे भी इस निम्मी-निम्मी ठंड में गोलगप्पे, समोसे और चाट खाने का आनंद कुछ और है।
राँची में इस बार सर्दी कुछ जल्द ही आई है। बकरी बाजार की ओर हल्के हल्के कदम से बढ़ते हुए इस ठंडक का अहसास हो रहा है। रात के एक बजना चाहते हैं। भीड़ तेजी से कदम बढ़ाने नहीं दे रही है। गरीब, अमीर, मनचले, पियक्कड़ सब इसी टोली में कंधे से कंधा मिला रहे हैं। राँची का सबसे सुंदर पंडाल हर साल बकरी बाजार में ही लगता है। इस पंडाल का बजट दस लाख के करीब होता है। इसलिए पंडाल का अहाता विज्ञापन से अटा पड़ा है। पर दिल्ली के अक्षरधाम मंदिर के मॉडल की बाहरी और आंतरिक सज्जा देखने लायक है। आखिर इसीलिए इतने लोग इतनी दूर दूर से इसे देखने के लिए आते हैं। आप भी गौर फरमाएँ..

हर बड़े पंडाल के बाहर मेले का भी आयोजन है। स्पीकर से उद्घोषक 'मौत के कुएँ ' में आने के लिए भीड़ को आमंत्रित कर रहा है। तरह-तरह के झूलों पर एक से दस साल के बच्चे बढ़ चढ़ कर हिस्सा ले रहे हैं। पर इतनी भीड़् में हमें वहाँ रुकने का दिल नहीं कर रहा और हम सब रातू रोड की ओर बढ़ चले हैं। रातू रोड से कचहरी तक का मुख्य आकर्षण यहाँ की विद्युत सज्जा है। कहीं महाभारत की झांकियाँ हैं तो कहीं सपेरे का नाग नाच चल रहा है। मेरा पुत्र इसे देख कर बेहद उत्साहित है और मुझे इनकी तसवीरें जरूर लेने की हिदायत दे रहा है।


वैसे एक बात बताएँ आप क्या पसंद करेंगे सर्प नृत्य या 'भेज चोमीन' :)?



घड़ी की सुइयाँ तीन के पास पहुँच रही हैं । रास्ते में बाहर गाँव से आए युवा रोड के डिवाइडर पर बैठ कर झपकियाँ ले रहे हैं । रात वो इसी तरह गुजारेंगे और सुबह आवागमन का साधन उपलब्ध होने पर अपने घर चले जाएँगे। भीड़ अब कम हो रही है और अब पंडालों में दुर्गा की प्रतिमाओं का अवलोकन और नमन करना सबको ज्यादा संतोष दे रहा है। तीन बजे हम कोकर के पंडाल के अंदर हैं। यहाँ अभी भी १०० से ज्यादा लोग ध्वनि और प्रकाश के बीच महिसासुर वध का आनंद ले रहे हैं। पंडाल के बाहर 20-20 की आखिरी गेंद का दृश्य दिखाया जा रहा है और श्रीसंत को गेंद लपकते देख कर बच्चे तालियाँ बजा रहे हैं।

हमारा आखिरी पड़ाव काँटाटोली और फिरायालाल है। इतना घूमने फिरने के बाद सबके चेहरे का मीटर डाउन है। दर्शक अब चुनिंदे ही दिख रहे हैं। रास्ते में मुर्गे की बांग भी सुनाई दे रही है, शायद ये कहती हुई कि.. सुबह हो गई मामू। हमारे जैसे रात का प्राणी सुबह चार बजे की बेला बिड़ले ही देख पाते हैं। सारी रात घूमना अपने बचपन में लौट जाने जैसा ही लग रहा है। सिर्फ पात्र बदल गए हैं।


ये तो था मेरे शहर की एक रात का आँखों देखा हाल। आप बताएँ कैसे मनाया आपने दुर्गा पूजा और दशहरा ?
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13 टिप्पणियाँ:

Udan Tashtari on अक्टूबर 21, 2007 ने कहा…

मजा आया भाई. हमारा तो आपके ब्लॉग पर घूम कर ही दुर्गा पूजा, दशहरा सब मना.डांडिया जरुर जगह जगह हो रहे हैं मगर उसमें हमारा क्या रोल?? :)

Sajeev on अक्टूबर 21, 2007 ने कहा…

manish bhai yahan dilli men bhi bahut dhoom hai durga puja ke pandaal sachmuch dekhne layak hote hain

अनामदास on अक्टूबर 21, 2007 ने कहा…

खुश कर दिया आपने, क्या बात है, वर्षों बाद यह नज़ारा देखा, नेट पर ही सही...शुक्रिया

बेनामी ने कहा…

राँची की पूजा के खूबसूरत नज़ारे दिखाये , आभार।शुभ विजया !

काकेश on अक्टूबर 21, 2007 ने कहा…

आपने कलकत्ता की याद दिला दी.धन्यवाद.

Rajesh Roshan on अक्टूबर 21, 2007 ने कहा…

अपनी पुरी जिन्दगी में २ बार पूजा में घर पर नही रह पाया. कल अपने दोस्त के साथ सी आर पार्क घूम आया लेकिन वो मजा कहा जो रांची के सडको में देर रात तक घूमते घूमते आता था. रातु रोड से शुरू होकर कोकर में ख़त्म होने वाला ये सफर पंडाल, मूर्ति और लाइटिंग देखते ही गुजरता था. इस बार नही जा पाया लेकिन मनीष जी आपका आभार की आपने ये चित्र और ये वर्णन दिया. रातु रोड की वो लाइटिंग और बकरी बाजार का वो विशाल पंडाल सब कुछ याद आ रहा है. आपका पुनः आभार

बेनामी ने कहा…

सुन्दर फोटो। हम वर्णन सुनकर खुश हो लिये।

Asha Joglekar on अक्टूबर 22, 2007 ने कहा…

पुरानी यादें ताजा हो गईं । हम लोग भी एक बार इसी तरह रात भर पूजा पंडाल देखते घूमे थे कलकत्ता में । फोचो देखकर मन प्रसन्न हो गया ।

Manish Kumar on अक्टूबर 23, 2007 ने कहा…

शुक्रिया आप सब का इस सफ़र में मेरा साथ देने के लिए !

Dawn on अक्टूबर 24, 2007 ने कहा…

Wah! adbhud drishya dekhne ka avsar mila...shukriya!

Dashera Aur Durgaahtami ki shubhkamnayein

बेनामी ने कहा…

http://www.anandautsav.com/mahishasurpala/mahishasurpala_demo.php

this is really funny! must watch ..

Unknown on अक्टूबर 27, 2010 ने कहा…

really nice web page............m a student studyin in bilaspur,cg.....home in ranchi...i miss d festivls of ma home town bt yha 2 sb ghum lia......... :)

Manish Kumar on अक्टूबर 27, 2010 ने कहा…

Ila..It was nice to know that u enjoyed this post but that was three years back. Want to know what happened in this year's Durga Puja in Ranchi ?

I have described it in my travel blog here & here

I am sure it will bring back many more memories of Ranchi ...

 

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