गुरुवार, नवंबर 01, 2007

या रब्बा...दे दे कोई जान भी अगर..: सुनिए कैलाश खेर की आवाज में ये उदास नग्मा

किसी शायर ने क्या खूब कहा है...

तेरा हिज्र मेरा नसीब है, तेरा गम ही मेरी हयात है
मुझे तेरी दूरी का ग़म हो क्यूँ, तू कहीं भी हो मेरे साथ है
तेरा इश्क मुझ पे है मेहरबान, मेरे दिल को हासिल है दो ज़हां
मेरी जान-ए-जां इसी बात पर मेरी जान जाए तो बात है


पर हक़ीकत अगर इससे ठीक उलट हो तो कोई क्या करे? वो प्रेम जिसका कोई प्रतिकार ना मिले, जो सिर्फ हमारे एकतरफा खुशनुमा ख्याल रूपी बुलबुलों का पुलिंदा हो..., व्यर्थ है, कभी भी फट सकता है ये समझने में अक्सर युवा काफी समय लगा देते हैं। और जब बात समझ आती है तो भी उसे स्वीकार करने को दिल तैयार नहीं होता क्योंकि तब तक हम अपनी कितनी मानसिक उर्जा खर्च कर चुके होते हैं। मन रास्ता दिखाता है सबसे कट जाओ..अकेलेपन को गले लगा लो..चुपचाप अपनी घुटन और बेचैनी बर्दाश्त करो..

कुछ ऍसे ही दर्द की अभिव्यक्ति करता समीर का लिखा गीत मैंने पिछले शनिवार रेडिओ पर सुना। और ये कैलाश खेर की आवाज़ का जादू था कि एक बार सुनकर ये गीत दिल की वादियों में अटक सा गया पर बोल याद ना रह पाए इसलिए मुश्किल थी कि खोजूँ कैसे और यक़ीन मानिए उस गीत को दुबारा सुनने के लिए रविवार को वो चैनल सुबह से लगातार ट्यून किया तो शाम को जाकर ये गीत मुझे दुबारा सुनने को मिला।

क्या शुरुआत है गीत की..शंकर-एहसान-लॉए का कलरव सा करता संगीत...कैलाश खेर की दिलकश गहरी आवाज़ आपको एकदम से बाँध लेती है और फिर गिटार के वो कमाल के नोट्स और बाँसुरी की तान। गीत के बढ़ने के साथ खेर की आवाज़ में गहराता दर्द , समीर के बोलों को आत्मसात करने को बाध्य कर देता है। कैलाश खेर के कैरियर के शुरुआती सफ़र और गायिकी के बारे में तो यहाँ पहले भी बात हो चुकी है। बस इस गीत को सुनने के बाद नम आँखों से बस यही दुआ निकलती है

या रब्बा ये बंदा बस ऍसे ही गाता रहे....

तो लीजिए सुनिए फिल्म सलाम-ए-इश्क का ये गीत


प्यार है या सज़ा, ऐ मेरे दिल बता
टूटता क्यूँ नहीं दर्द का सिलसिला
इस प्यार में हों कैसे कैसे इम्तिहान
ये प्यार लिखे कैसी कैसी दास्तान

या रब्बा... दे दे कोई जान भी अगर
दिलबर पे हो ना, दिलबर पे हो ना कोई असर
हो..या रब्बा... दे दे कोई जान भी अगर
दिलबर पे हो ना, दिलबर पे हो ना कोई असर
प्यार है या सज़ा, ऐ मेरे दिल बता
टूटता क्यूँ नहीं दर्द का सिलसिला ?


कैसा है सफ़र वफ़ा की मंजिल का
ना है कोई हल दिलों की मुश्किल का
धड़कन धड़कन बिखरी रंजिशें
सासें सासें टूटी बंदिशें
कहीं तो हर लमहा होठों पे फ़रियाद है
किसी की दुनिया चाहत में बर्बाद है
या रब्बा... दे दे कोई जान भी अगर
दिलबर पे हो ना, दिलबर पे हो ना कोई असर
हो..या रब्बा... दे दे कोई जान भी अगर
दिलबर पे हो ना, दिलबर पे हो ना कोई असर

कोई ना सुने सिसकती आहों को
कोई ना धरे तड़पती बाहों को
आधी आधी पूरी ख्वाहिशें
टूटी फूटी सब फ़रमाइशें
कहीं शक है कही नफ़रत की दीवार है
कहीं जीत में भी शामिल पल पल हार है
या रब्बा... दे दे कोई जान भी अगर
दिलबर पे हो ना, दिलबर पे हो ना कोई असर
हो..या रब्बा.. दे दे कोई जान भी अगर
दिलबर पे हो ना, दिलबर पे हो ना कोई असर
प्यार है या सज़ा, ऐ मेरे दिल बता
टूटता क्यूँ नहीं दर्द का सिलसिला

ना पूछो दर्दमंदों से
हँसी कैसी, खुशी कैसी
मुसीबत सर पे रहती है
कभी कैसी कभी कैसी
हो...रब्बा....रब्बा.हो...
Related Posts with Thumbnails

10 टिप्पणियाँ:

लावण्यम्` ~ अन्तर्मन्` on नवंबर 01, 2007 ने कहा…

मनीष भाई, इस सुँदर गीत को सनवाकर आपने मन प्रसन्न कर दिया - आभार !

Yunus Khan on नवंबर 01, 2007 ने कहा…

मनीष बेहतरीन गीत है । रिदम सेक्‍शन भी कमाल का है । मुझे निजी रूप से ये गीत बहुत पसंद है । इसका संगीत तो इतना अच्‍छा है कि मैंने अपने प्रसारणों में फिलर के रूप में बजाने के लिए उसके बोल काटकर इसके संगीत का पूरा ट्रैक तैयार किया है । जिसे अकसर बजाता रहता हूं रेडियो पर । कैलाश बहुत ही विनम्र और प्रतिभाशाली कलाकार हैं । लंबा संघर्ष रहा है उनका । उनकी कामयाबी दिखाती है कि सिने जगत चाशनी आवाज़ों का मोहताज नहीं रहा । मिट्टी जैसी आवाज़ों का भी कायल है । और हां तेरा हिज्र मेरा नसीब है निदा फ़ाज़ली की रचना है । इसे कब्‍बन मिर्ज़ा ने गाया है । रेडियोवाणी पर इसे सुना होगा आपने ।

Sajeev on नवंबर 01, 2007 ने कहा…

achha geet hai, kailash ki awaaz ka kayal hua bina nahi raha ja sakta

Anita kumar on नवंबर 01, 2007 ने कहा…

मनीश जी ये गाना हमारा भी पंसदीदा गाना है, कैलाश खैर की आवाज के जादू से हम भी अछूते नहीं, बहुत बहुत धन्यवाद आपका कि अब जब भी ये गाना सुनना होगा रडियो पर सारा दिन कान लगाए नहीं बैठना होगा, ये बताने की कृपा करे क्या हम इस गाने को आपके ब्लोग से कोपी कर सकते है और अगर हां तो कैसे

36solutions on नवंबर 01, 2007 ने कहा…

धन्‍यवाद मनीष भाई

www.aarambha.blogspot.com

मीनाक्षी on नवंबर 01, 2007 ने कहा…

बार बार सुन रही हूँ. मन में उतर जाने वाले शब्द सुर और लय...बहुत सुन्दर....
तहे दिल से आपका शुक्रिया !

Udan Tashtari on नवंबर 01, 2007 ने कहा…

हमेशा की तरह अति प्रसन्न हुऐ मानीष भाई.

rachana on नवंबर 02, 2007 ने कहा…

कैलाश खेर मेरे पसँदीदा गायक है और ये गाना मेरी खास पसँद....

Manish Kumar on नवंबर 03, 2007 ने कहा…

यूनुस रजिया सुल्तान का कैसेट मेरे पास है और वो गीत आपके चिट्ठे पर भी सुन चुका हूँ पर शेर पढ़ कर लिखते वक़्त strike ही नहीं हुआ कि ये तो वही गीत है। शुक्रिया बताने के लिए...

अनीता जी आशा है गीत आपको मिल गया होगा।


समीर जी, रचना जी, मीनाक्षी जी, संजीव भाई, लावण्या जी, सजीव आप सब को ये गीत पसंद आया जानकर खुशी हुई।

यायावर on अक्टूबर 22, 2009 ने कहा…

good blog
i am also writing blog plz visit

vyoum.blogspot.com

 

मेरी पसंदीदा किताबें...

सुवर्णलता
Freedom at Midnight
Aapka Bunti
Madhushala
कसप Kasap
Great Expectations
उर्दू की आख़िरी किताब
Shatranj Ke Khiladi
Bakul Katha
Raag Darbari
English, August: An Indian Story
Five Point Someone: What Not to Do at IIT
Mitro Marjani
Jharokhe
Mailaa Aanchal
Mrs Craddock
Mahabhoj
मुझे चाँद चाहिए Mujhe Chand Chahiye
Lolita
The Pakistani Bride: A Novel


Manish Kumar's favorite books »

स्पष्टीकरण

इस चिट्ठे का उद्देश्य अच्छे संगीत और साहित्य एवम्र उनसे जुड़े कुछ पहलुओं को अपने नज़रिए से विश्लेषित कर संगीत प्रेमी पाठकों तक पहुँचाना और लोकप्रिय बनाना है। इसी हेतु चिट्ठे पर संगीत और चित्रों का प्रयोग हुआ है। अगर इस चिट्ठे पर प्रकाशित चित्र, संगीत या अन्य किसी सामग्री से कॉपीराइट का उल्लंघन होता है तो कृपया सूचित करें। आपकी सूचना पर त्वरित कार्यवाही की जाएगी।

एक शाम मेरे नाम Copyright © 2009 Designed by Bie