पिछला हफ्ता अंतरजाल यानि 'नेट' से दूर रहा। जाने के पहले सोचा था कि नूरजहाँ की गाई ये ग़ज़ल आपको सुनवाता चलूँगा पर पटना में दीपावली की गहमागहमी में नेट कैफे की ओर रुख करने का दिल ना हुआ। वैसे तो नूरजहाँ ने तमाम बेहतरीन ग़ज़लों को अपनी गायिकी से संवारा है पर उनकी गाई ग़ज़लों में तीन मेरी बेहद पसंदीदा रही हैं। उनमें से एक फ़ैज़ की लिखी मशहूर नज़्म "....मुझसे पहली सी मोहब्बत मेरी महबूब ना माँग....." इस चिट्ठे पर आप पहले सुन ही चुके हैं। अगर ना सुनी हो तो यहाँ देखें।
तो आज ज़िक्र उन तीन ग़ज़लों में इस दूसरी ग़ज़ल का। ये ग़ज़ल मैंने पहली बार १९९५-९६ में एक कैसेट में सुनी थी और तभी से ये मेरे मन में रच बस गई थी। लफ़्जों की रुमानियत का कमाल कहें या नूरजहाँ की गहरी आवाज़ का सुरूर कि इस ग़ज़ल को सुनते ही मन पुलकित हो गया था। इस ग़जल की बंदिश 'राग काफी' पर आधारित है जो अर्धरात्रि में गाया जाने वाला राग है। वैसे भी महबूब के खयालों में खोए हुए गहरी अँधेरी रात में बिस्तर पर लेटे-लेटे जब आप इस ग़ज़ल को सुनेंगे तो यक़ीन मानिए आपके होठों पर शरारत भरी एक मुस्कुराहट तैर जाएगी।
हमारी साँसों में आज तक वो हिना की ख़ुशबू महक रही है
लबों पे नग्मे मचल रहे हैं, नज़र से मस्ती झलक रही है
वो मेरे नजदीक आते आते हया से इक दिन सिमट गए थे
मेरे ख़यालों में आज तक वो बदन की डाली लचक रही है
सदा जो दिल से निकल रही है वो शेर-ओ-नग्मों में ढल रही है
कि दिल के आंगन में जैसे कोई ग़ज़ल की झांझर झनक रही है
तड़प मेरे बेकरार दिल की, कभी तो उन पे असर करेगी
कभी तो वो भी जलेंगे इसमें जो आग दिल में दहक रही है
इस ग़जल को किसने लिखा ये मुझे पता नहीं पर हाल ही मुझे पता चला कि इस ग़ज़ल का एक हिस्सा और है जिसे जनाब मेहदी हसन ने अपनी आवाज़ दी है। वैसे तो दोनों ही हिस्से सुनने में अच्छे लगते हैं पर ये जरूर है कि नूरजहाँ की गायिकी का अंदाज कुछ ज्यादा असरदार लगता है।
शायद इस की एक वज़ह ये भी हैं कि जहाँ इस ग़ज़ल के पहले हिस्से में महकते प्यार की ताज़गी है तो वहीं दूसरे हिस्से में आशिक के बुझे हुए दिल का यथार्थ के सामने आत्मसमर्पण।
तो मेहदी हसन साहब को भी सुनते चलें,इसी ग़ज़ल के एक दूसरे रूप में जहाँ एक मायूसी है..एक पीड़ा है और कई अनसुलझे सवाल हैं...
हमारी साँसों में आज तक वो हिना की ख़ुशबू महक रही है
लबों पे नग्मे मचल रहे हैं, नज़र से मस्ती झलक रही है
कभी जो थे प्यार की ज़मानत वो हाथ हैं गैरो की अमानत
जो कसमें खाते थे चाहतों की, उन्हीं की नीयत बहक रही है
किसी से कोई गिला नहीं है नसीब ही में वफ़ा नहीं है
जहाँ कहीं था हिना को खिलना, हिना वहीं पे महक रही है
वो जिन की ख़ातिर ग़ज़ल कही थी, वो जिन की खातिर लिखे थे नग्मे
उन्हीं के आगे सवाल बनकर ग़ज़ल की झांझर झनक रही है
लबों पे नग्मे मचल रहे हैं, नज़र से मस्ती झलक रही है
कभी जो थे प्यार की ज़मानत वो हाथ हैं गैरो की अमानत
जो कसमें खाते थे चाहतों की, उन्हीं की नीयत बहक रही है
किसी से कोई गिला नहीं है नसीब ही में वफ़ा नहीं है
जहाँ कहीं था हिना को खिलना, हिना वहीं पे महक रही है
वो जिन की ख़ातिर ग़ज़ल कही थी, वो जिन की खातिर लिखे थे नग्मे
उन्हीं के आगे सवाल बनकर ग़ज़ल की झांझर झनक रही है
16 टिप्पणियाँ:
wah! aapko to pata hi hai ki ham hindi me.n likhne me asamarth hai aaj kal.
bahut sundar!
कभी जो थे प्यार की ज़मानत वो हाथ हैं गैरो की अमानत
जो कसमें खाते थे चाहतों की, उन्हीं की नीयत बहक रही है
वो जिन की ख़ातिर ग़ज़ल कही थी, वो जिन की खातिर लिखे थे नग्मे
उन्हीं के आगे सवाल बनकर ग़ज़ल की झांझर झनक रही ह
ye lines bahut sundar lagi. ek filmi song tumhari ankho me hamane dekha azab si chahat jhalak rahi hai, shayad isi se utprerit hai.
दोनो ही अच्छे लगे ,कौन सा ज्यादा पसंद आया तय करना मुश्किल है। बेहतरीन पेशकश।
क्या बात है मनीष भाई! आप पागल कर देंगे। ये ख़ास आपके लिए- क्लिक करें।
बेहतरीन मोती प्रस्तुत किये है बधाई
मेरी साँसों को जो महका रही है.. ये तेरे प्यार की....
सुन्दर गीत सुनाने के लिए धन्यवाद ।
घुघूती बासूती
दीपावली के उत्सव की शुभ कामनाएँ
आप को साल मुबारक !
मुबारकक्या बात है ...नूरजहाँ जी की आवाज़ का जादू ..वाह वाह , क्या अँदाज़ है
शुक्रिया लफ्ज़ छोटा पड रहा है मनीश भाई ..अब से ये हमारी भी पसँदीदा गज़ल बन गई है
स स्नेह,
-- लावण्या
मनीष कमाल की पोस्ट । मेरे नज़रिये से तुम्हारी पिछले कुछ दिनों की ये सर्वश्रेष्ठ पोस्ट है । मेरे लिए ये तय करना मुश्किल हो गया है कि किसकी आवाज़ में ये गीत ज्यादा अच्छा है, हम मेहदी हसन के शैदाईयों में से हैं । लेकिन अफ़सोस कि इस बार हम मेहदी हसन के साथ नहीं बल्कि नूरजहां के साथ हैं । मलिकाए तरन्नुम ने ये गीत बहुत ही अदा के साथ गाया है । अगर ईमेल पर नूरजहां वाली फाईल भेज सको तो मज़ा आ जाए । अदभुत सुख है इस पोस्ट से गुज़रने में ।
Manish Sir u'd just picked one of my favories...
I've heard it in the voice of Noorzehan so many times..
Bt listening Mehndi Hasan is itself a delight....
कंचन शायद महदी हसन वाले वर्सन की भावनाओं ने आपके मन का कोई तार छू लिया
ममता जी हैं तो दोनों ही बेहतर पर मुझे गायिकी के लिहाज़ से नूरजहाँ की ग़ज़ल ज्यादा पसंद आती है।
अविनाश शुक्रिया हुजूर ! अब राँची आ जाइए :)
प्रमेन्द्र, पुनीत, घुघूति जी, लावण्या जी और आलोक ये ग़ज़ल अब आप सब की पसंद बन गई है, जानकर खुशी हुई।
यूनुस आपकी राय से पूरी तरह सहमत हूँ। ग़ज़ल तो आपको भेज ही दी है।
Manish Ji,AAJ Appne hamari sabse pyari Gazal is andaz main prastut ki hai ki Dil pulkit pulkit ha gya hai.
Hamara man apaka mastak chumne ko kar raha hai.
kripya kar ke apni pasand ki 8-10 Gazals ka ek set hame bhej dijiye.
Hum Ssydney main rah rahen hain esiliye ab en khoobsorat gazalon ke liye khabi tadapna padta hai...
Dhanyawad...
आदित्य भाई शुक्रिया आपके प्यार का। रही पसंदीदा ग़ज़लों की बात तो वो जरूर भेंजेगे पर आपने तो अपना ई मेल दिया ही नहीं।
really very nice.. I heard dis first in 1998 in a HMV CD named Gazals to remember.. But unfortunatly i lost tht in my hostell. I was famous in whole hostell for that CD. Now after a long time to listen it again.. really very touchable experience.. Thanx Avi..
kaamal hai dost kubh liktai ho....lakin picture abhi baki hai marai dost.
in dono gazlon ki ahmiyat, in ki tarif in ki dil ko shoo lene ka kamal main lafzon me karne ke kabil nahi hoon.noor jahaan ji aur mehdi hassan ji,aur in gazlon ko banane aur su nane walon ke samne apna sir jhukata hoon. baldev singh.
दोनों ही महान गायकों ने अपने अपने अन्दाज़ में बेहतरीन गाया है।
एक टिप्पणी भेजें